बहकावे में नाबालिग़

कोरोना-काल में बढ़ी मानव तस्करी, झारखण्ड देश में 11वें स्थान पर

झारखण्ड के साहिबगंज ज़िले के बरहेट क्षेत्र की 13 साल की बच्ची नम्रता (बदला हुआ नाम) को कुछ दिन पहले दिल्ली से तस्करों के चंगुल से निकालकर घर वापस लाया गया। कोरोना संक्रमण के कारण उसके पिता की खेती-बाड़ी चौपट हो गयी। मानसिक तनाव के कारण शराब पीने लगे और चार महीने पहले मार्च में पिता का निधन हो गया। नम्रता के घर की पहले से ख़राब आर्थिक स्थिति और दयनीय हो गयी। नम्रता की दोस्त चाँदनी दिल्ली से गाँव आयी। नम्रता ने उसे अपनी समस्या बतायी।
चाँदनी ने नम्रता को दिल्ली में काम दिलाने का आश्वासन दिया। नम्रता दो अन्य परिचितों के साथ दिल्ली पहुँच गयी। वहाँ प्लेसमेंट एजेंसी के ज़रिये उसे एक घर में काम मिल गया। नम्रता ने बताया कि उसे काम के बदले पैसे नहीं मिले। उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। मानसिक और शारीरिक प्रताडऩा दी जाती थी। किसी तरह से वहाँ से वह भाग निकली। इसके बाद पुलिस और स्वयंसेवी संगठनों की मदद से कुछ दिन पहले घर लौटी है। इसी तरह जुलाई के पहले सप्ताह में पूर्व विधायक अमित महतो ने बेंगलूरु से संध्या (बदला हुआ नाम) को तस्करों के चंगुल से निकालकर वापस लाये हैं। संध्या पाँच साल से ग़ायब थी। इस दौरान उसे चार बार विभिन्न जगहों पर बेचा गया। वह दिल्ली से अलग-अलग जगहों से होते हुए बेंगलूरु पहुँच गयी थी। उसे हर तरह की प्रताडऩा का सामना करना पड़ा। ऐसी कहानी केवल नम्रता या संध्या की नहीं है। झारखण्ड में शायद ही किसी दिन मानव तस्करी की शिकार महिलाओं, लड़कियों या बच्चे-बच्चियों के बचाव की सूचना न मिलती हो। कई बार तस्करी कर ले जाते समय ही मामला पकड़ आ जाता है। 25 जुलाई को बचाव दल द्वारा चार युवतियों को दिल्ली से मुक्त कराकर पुनर्वास के लिए रांची
ले जाया गया।

झारखण्ड की स्थिति ख़राब
मानव तस्करी का जाल देश भर में फैला है, लेकिन झारखण्ड की स्थिति काफ़ी ख़राब है। नीति आयोग की हाल में आयी रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी के मामले में झारखण्ड देश भर में 11वें स्थान पर है। भारत में 10 लाख की आबादी पर पाँच लोग मानव तस्करी के शिकार होते हैं। देश में मणिपुर 61 लोगों के साथ पहले स्थान पर है। वहीं गोवा 59 लोग, मिजोरम 45 और दिल्ली में प्रति 10 लाख पर 31 लोग मानव तस्करी के शिकार होते हैं। झारखण्ड में यह आँकड़ा प्रति 10 लाख में सात लोग हैं। झारखण्ड पहले से मानव तस्करी का मुख्य केंद्र रहा है। कोरोना-काल ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। बेरोज़गारी, ग़रीबी, माँ-बाप या अभिभावक साया छूटने के कारण मानव तस्करी बढ़ा है। अभी हाल में 24 जून को रांची हवाई अड्डे पर 19 नाबालिग़ बच्चों को तस्करी के शिकार होने से बचाया गया। इस वर्ष जनवरी से जून तक रांची हवाई अड्डे से ही 50 से अधिक लड़कियों को मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया, जिनमें अधिकतर नाबालिग़ थीं। कोरोना-काल में मानव तस्करी की घटना बढऩे की आशंका केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों ने भी जतायी है। कुछ महीने पहले मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि के मद्देनज़र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने विभिन्न राज्यों को परामर्श जारी किया है, जिसमें मानव तस्करी पर विशेष नज़र रखने के लिए निर्देश दिये गये हैं।

पैसे के लालच में कुकृत्य
कुछ लोग पैसे के लिए कुछ भी करने पर आमादा हो जाते हैं। मानव तस्करी जैसा कुकृत्य भी पैसे के लालची लोग करते हैं। इसकी शिकार लड़कियों, महिलाओं, बच्चों को भले ही कोई लाभ न मिलता हो; लेकिन तस्करों को इसके लिए अवैध रूप से जमकर लाभ मिलता है। पकड़े गये तस्करों के बयानों से पता चला है कि एक लड़के-लड़की की तस्करी पर 30 से 40 हज़ार रुपये मिलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, झारखण्ड में मानव तस्करी का अवैध कारोबार करने वाले तस्करों की कमायी करोड़ों में है। राज्य पुलिस के आँकड़ों के मुताबिक, सन् 2015 से लेकर अब तक 660 मामले राज्य के एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट थानों में दर्ज किये गये हैं। इनमें से मामलों में 300 चार्जशीट दायर हो चुकी हैं; जबकि 90 मामले बन्द हो चुके हैं और 135 मामले लम्बित हैं। सन् 2008 से लेकर अब तक कुल 350 पुरुष और 150 महिला तस्कर पुलिस के हत्थे चढ़े हैं।

प्लेसमेंट एजेंसी और परिचित ज़िम्मेदार
मानव तस्करी और तस्करों से युवतियों, महिलाओं, बच्चों के बचाव में लगे एनजीओ ऐक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग सेक्सुअल एक्सप्लोयटेशन इन इंडिया (अटसेक) के मुताबिक, झारखण्ड को मानव तस्करी का एक सोर्स राज्य के रूप में माना जाता है। झारखण्ड से हर साल 30 से 40 हज़ार बच्चे मानव तस्करी के शिकार होते हैं। इनमें से 10 फ़ीसदी बच्चे तो गुम ही हो जाते हैं। मानव तस्करी में प्लेसमेंट एजेंसी और बच्चों के नज़दीकी रिश्तेदार, दोस्त, स्थानीय परिचित व्यक्ति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। दिल्ली देश की राजधानी होने के नाते मानव तस्करी का हब है। ज़्यादातर बच्चों को दिल्ली, कोलकाता, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बेंगलूरु आदि जगहों पर भेजा जाता है। लड़कियों को 30 हज़ार से 1.5 लाख रुपये तक में बेचा जाता है। उन्हें कई तरह की यातनाएँ सहनी होती हैं। कुछ मामलों में ग़रीबी के कारण माता-पिता द्वारा भी बच्चे को भेजे जाने की बात सामने आती है। झारखण्ड में मानव तस्करी से जुड़े ज़्यादातर मामले सिमडेगा, गुमला, खूँटी व संथाल परगना के अलग-अलग ज़िलों से ही होते हैं।

सरकारें उठा रहीं क़दम


केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मानव तस्करी (रोकथाम, देखभाल एवं पुनर्वास) विधेयक-2021 का मसौदा तैयार किया है। इस पर विभिन्न पक्षों से सुझाव माँगे गये हैं। विधेयक में तस्करी के दोषी पाये जाने वाले व्यक्ति को कम-से-कम सात वर्ष क़ैद की सज़ा होगी, जिसे बढ़ाकर 10 वर्ष तक किया जा सकेगा। इसके अलावा दोषी पर कम-से-कम एक लाख रुपये से लेकर पाँच लाख रुपये तक का ज़ुर्माना भी लगाया जा सकेगा।
झारखण्ड सरकार लगातार मानव तस्करी रोकने की दिशा में क़दम उठा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले को लेकर गम्भीर हैं। अधिकारियों को मानव तस्करों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने का आदेश दिया। इसी का नतीजा है कि फरवरी, 2021 में 14 नाबालिग़ों (12 लड़के एवं दो लड़कियों सहित) को छुड़ाया गया। पिछले महीने तमिलनाडु के तिरुपुर में फँसे आदिवासी लड़कियों और महिलाओं को वापस लाया गया। तस्करों के चंगुल से लाये गये लड़के-लड़कियों के पुनर्वास की व्यवस्था सरकार ने की है। झारखण्ड सरकार लगातार मानव तस्करी के ख़िलाफ़ क़दम उठा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरने समय-समय पर समीक्षा कर रहे हैं। राज्य में जहाँ से भी मानव तस्करी के शिकार बच्चों, नाबालिग़ लड़के-लड़कियों या युवतियों, महिलाओं की जानकारी मिलती है, उन्हें तस्करों के चंगुल से छुड़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
राज्य में अप्रैल, 2020 से मार्च, 2021 तक 199 लड़कियों को तस्करों के चंगुल से निकाला जा चुका है। वहीं अप्रैल, 2021 से अब तक 55 को तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया है। सरकार बचाव कार्य के बाद पुनर्वास की व्यवस्था भी कर रही है। राज्य सरकार का क़दम सराहनीय है। लेकिन मानव तस्करी की रोकथाम के लिए ये प्रयास पर्याप्त नहीं है। मानव तस्करी के पीछे के कारणों को तलाश कर उसके निदान की दिशा में और ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है; तभी झारखण्ड के माथे से मानव तस्करी का कलंक मिट पाएगा।


“झारखण्ड से मानव तस्करी के कलंक को मिटाना सरकार की प्राथमिकता है। मानव तस्कर रोधी इकाइयों की स्थापना का आदेश दिया गया है। ग्रामीण इलाक़ों में मानव तस्करी पर नज़र रखने के लिए राज्य भर में विशेष महिला पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी। बचाकर लाये गये पीडि़तों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था की गयी है। कोरोना संक्रमण से प्रभावित बच्चों की स्थिति का किसी को फ़ायदा नहीं उठाने दिया जाएगा। हम अपने बच्चों की देखभाल करेंगे। कोई भी बच्चा किसी भी प्रकार के अनुचित साधनों का शिकार नहीं होगा। सरकार जल्द ही ऐसे बच्चों के पुनर्वास के लिए एक विस्तृत योजना लेकर आएगी। जिन्होंने दुर्भाग्य से अपने माता-पिता को खो दिया है।”
हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री, झारखण्ड

 

 

“मानव तस्करी का शिकार ज़्यादातर महिलाएँ, लड़कियाँ और बच्चे होते हैं। इनमें 80 फ़ीसदी 18 साल से कम उम्र की नाबालिग़ लड़कियाँ होती हैं। कई बार वे आत्मनिर्भर बनने और परिवार का भरण-पोषण करने की सोच के चलते दलालों के चंगुल में फँस जाती हैं। मानव तस्करी के 90 फ़ीसदी मामलों में क़रीबी रिश्तेदारों, परिचितों का हाथ होता है। पीडि़तों को जिस तरह की मानसिक यातनाओं से गुज़रना पड़ता है कि उनके काउंसलिंग और पुनर्वास करने में दो-तीन साल लग जाते हैं। मानव तस्करी पर रोक तभी लग सकती है, जब उन्हें अपने ही घर या ज़िले के आसपास जीवनयापन के लिए काम की व्यवस्था होगी।”
संजय मिश्रा, झारखण्ड प्रमुख, अटसेक