बढ़ती महामारी पर बेबस सरकार

देश में कोरोना वायरस के मामले फिर से बढऩे लगे हैं। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को आशंका है कि आने वाले दिनों में नये मरीज़ों की संख्या बढ़ सकती है। क्योंकि एक तरफ बिहार में विधानसभा चुनाव के चलते जमकर रैलियाँ की गयीं, तो दूसरी तरफ त्योहारी सीज़न के दौरान देश भर के बाज़ारों में भीड़ इकट्ठी हुई।

देश में दोबारा बढ़ते मामलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 नवंबर को कोरोना वायरस बढऩे वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल बैठक करके ताज़ा स्थिति की समीक्षा की। इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बधेल और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने हिस्सा लिया। बैठक में अमित शाह ने मुख्यमंत्रियों को कोरोना पर काबू पाने के तीन तरीके बताये।

गृहमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे सुनिश्चित करें कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते मृत्यु दर एक फीसदी से कम हो और अगर मामले बढ़ते हैं, तो यह दर पाँच फीसदी से कम हो। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री राज्यों में कंटेनमेंट जोन की रणनीति को नया रूप दें। उन्होंने यह भी कहा कि हर राज्य के अधिकारी हर हफ्ते रेड जोन का दौरा करके वहाँ के आँकड़े इकट्ठे करें और उसके हिसाब से किसी विशेष क्षेत्र की स्थिति को बदला जाना चाहिए।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 की तीसरी लहर की अधिक गम्भीरता के कई कारण है, जिसमें प्रदूषण प्रमुख है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि जब तक शहर में संक्रमण की तीसरी लहर का कहर जारी है, तब तक दिल्ली स्थित केंद्र सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में कोरोना वायरस के मरीज़ों के लिए 1000 अतिरिक्त आईसीयू बिस्तर आरक्षित किये जाएँ।

प्रबन्धन की कमी

अब जब कोरोना मरीज़ों की संख्या फिर तेज़ी से बढ़ रही है, तो राज्य सरकारें सख्ती पर उतर आयी हैं। केंद्र व राज्य सरकारें अपनी फिक्रमंदी ज़ाहिर कर रही हैं। यहाँ राज्य सरकारों की कार्यशैली पर भी सवाल उठता है। गर्मियों में जब कोरोना के मामले लगातार तेज़ी से बढ़ रहे थे, तभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सचेत कर दिया था कि आने वाली सर्दियों और त्योहारी मौसम में कोरोना के मामले बढ़ सकते हैं। दिल्ली में फिर कोरोना वायरस तेज़ी से फैल रहा है। नीति आयोग ने पहले ही राजधानी में आने वाले दिनों में प्रति 10 लाख की आबादी में 500 लोगों के संक्रमित होने की आशंका ज़ाहिर की थी। दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकारने में भी कई दिन लगे कि दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि हमने कभी यह नहीं सोचा था कि कोरोना चला गया है; लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि इस तरह फिर वापस लौटेगा। अक्टूबर के पहले सप्ताह में संक्रमण की दर पाँच-छ: फीसदी रही, तब लगा था कि वह कम हो गया। विशेषज्ञ कह रहे थे कि प्रदूषण बढऩे के साथ-साथ कोरोना के मामले भी बढ़ेंगे। मौसम में बदलाव व त्योहारी मौसम में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी पर मुख्यमंत्री का यह कहना कि कोरोना इस तरह वापस लौटेगा, ऐसी उन्हें उम्मीद नहीं थी। यह हैरत में डालने के साथ-साथ यह भी बताता है कि प्रशासन ने कोरोना को कितनी आसानी से लिया। शुरू में केरल में कोरोना पर काबू पाने की मिसाल देश भर में दी जाने लगी थी। लेकिन वहाँभी लोगों ने ओणम का त्योहार धूमधाम से मनाया और उसके बाद वहाँ कोरोना के मामलों में वृद्धि की खबरें आने लगीं। केरल सरकार ने भी माना कि कोरोना के मामलों के बढऩे की एक वजह त्योहार भी है। बिहार की राजधानी पटना में दशहरे के बाद कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखी गयी। यह उदाहरण जब राज्य सरकारों के सामने हैं, तो सवाल उठता है कि राज्य सरकारों ने दीपावली, छठ पूजा आदि त्योहारों के मद्देनज़र कोरोना के फैलाव को रोकने की तैयारी क्यों नहीं की? बाज़ारों में भी विकट भीड़ उमड़ती रही और प्रशासन ने ऐसा कोई उपाय नहीं किया, जिससे इस लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जा सके। क्या सरकारें सितंबर से ही स्थानीय स्तर पर ऐसी कोई योजना बनाने पर काम नहीं कर सकती थीं, जिससे वार्ड स्तर पर स्थानीय विधायकों, निगम पार्षदों, रेजीडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्यों के सहयोग से बाज़ार में लोगों की खरीदारी की ऐसी रूपरेखा तैयार की जाती, जिससे भीड़ इकट्ठी ही नहीं होती। कोरोना महामारी में भीड़ प्रबन्धन के सन्दर्भ में अभी तक सरकारें पशोपेश वाली स्थिति में ही नज़र आ रही हैं। एक तरफ उनके सामने लोगों की आजीविका, उनकी और देश की कमज़ोर आर्थिक स्थिति के आँकड़ें घूमते रहते हैं, तो दूसरी तरफ चुनावों में जीत का स्वार्थ नेताओं, सरकारों को बेपरवाह बनाते हैं। प्रधानमंत्री आये दिन अवाम को सीख देते रहते हैं कि कोरोना को हराने के लिए मास्क व दो गज़ की दूरी ज़रूरी है। लेकिन हाल में सम्पन्न बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने भी ताबड़तोड़ रैलियाँ कीं।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि कोरोना महामारी को हराने के लिए जनता का सहयोग भी ज़रूरी है, लेकिन प्रशासन भी जनता में व्यवहार परिवर्तन के लिए गम्भीरता से लगातार प्रयास जारी रखे। प्रशासन ने शुरू में लॉकडाउन के दौरान सख्ती बरती, लेकिन जैसे-जैसे अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ती गयी, वैसे-वैसे प्रशासन सुस्त पड़ता गया और जनता लापरवाह होती गयी। प्रशासन ने मान लिया कि कोरोना के मामलों में कमी आने का मतलब है कि अब कोरोना की विदाई का वक्त आ गया है और जनता को भी लगा कि संक्रमण दर में कमी आने का अर्थ है कि घरों से बाहर बे-वजह घूमना। बहुत-से लोग मास्क से नाक व मुँह को न ढककर, उसे गले में लटकाकर घूमने लगे, बिना मास्क के घूमने लगे। अब जब हालात बेकाबू हो गये हैं तो कई राज्य सरकारों ने सीमित कफ्र्यू लगाने का ऐलान कर दिया है। शादी में मेहमानों की संख्या भी कम कर दी गयी। मास्क नहीं लगाने पर ज़ुर्माने की राशि 500 रुपये से बढ़ाकर 2000 रुपये कर दी गयी। सार्वजनिक स्थल पर थूकने, सिगरेट पीने पर भी 2000 रुपये का ज़ुर्माना लगाने का नियम बना दिया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ज़ुर्माना राशि बढ़ाने से लोग मास्क पहनेंगे और कोरोना पर काबू पाने में मदद मिलेगी। यह कदम कितना कारगर साबित होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा।

कोरोना-टीके पर मँडराते सवाल

इन दिनों विश्व भर में 73 टीकों (वैक्सीन) पर अलग-अलग चरणों में काम चल रहा है। इनमें से छ: का आपात इस्तेमाल शुरू हो गया है। अधिक चर्चा पाँच टीकों की हो रही है। फाइजर टीका बनाने वालों का दावा है कि यह 95 फीसदी असरदार है और दिसंबर में आ सकता है। मॉडर्ना टीके को लेकर दावा है कि यह 94.5 फीसदी प्रभावशाली है। वैक्सीन का तीसरा ट्रायल शुरू हो चुका है। एस्ट्राजेनका के तीसरे चरण के नतीजों का इंतज़ार है। इसकी फरवरी में आने की सम्भावना बतायी जा रही है। रूस में बने स्पुतनिक टीके का इस्तेमाल वहाँ हो रहा है; लेकिन भारत में इसका दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस टीके की दो खुराकें दी जाएँगी। इधर चीन ने कोरोना की एक सुपर टीका बनाने का दावा किया है। यह टीका 10 लाख लोगों को लगाया जा चुका है। और किसी में कोई गम्भीर नुकसान भी नज़र नहीं आया है। बेशक इस टीके के परीक्षण का अन्तिम चरण अभी पूरा नहीं हुआ है, मगर चीन की सरकार ने आपात स्थिति में इस प्रायोगिक टीके को मरीज़ों को लगाने की अनुमति दे दी है।

दुनिया बड़ी उम्मीद के साथ कोरोना-टीके का इंतज़ार कर रही है, मगर यह वैक्सीन कितने समय तक लोगों को कोरोना से सुरक्षा कवच प्रदान करेगी, इसे लेकर किसी के पास स्पष्ट जवाब नहीं है। इस बाबत कई अटकलें लगायी जा रही हैं, मसलन वैक्सीन की एक खुराक के बाद अगले साल बूस्टर खुराक की ज़रूरत पड़ेगी। यहाँ भी तस्वीर साफ नहीं है। दरअसल कोरोना-टीके के प्रदर्शन और उसकी क्षमता का सटीक आकलन होना अभी शेष है। यह सवाल भी अपनी जगह बना हुआ है कि क्या टीका आने के बाद कोरोना से प्रभावित गम्भीर मरीज़ों की संख्या कम हो जाएगी? और अगर होगी, तो कितने फीसदी? इसी तरह कोरोना-टीका बनाने वाली कम्पनियों के साथ अमेरिका व ब्रिटेन जैसे विकसित मुल्कों ने पहले ही अधिक मात्रा में वैक्सीन खरीदने के करार कर लिये हैं। गरीब देश इसे पाने की दौड़ में काफी पीछे हैं।