बढ़ती महँगाई में महँगी हुई पढ़ाई

लगातार बढ़ती हुई महँगाई में पढ़ाई भी महँगी होती जा रही है। जालिम नगला गाँव के देवेंद्र कुमार कहते हैं कि महँगाई ने ग्रामीण लोगों की कमर तोड़ दी है। इस महँगाई में ग्रामीणों को पहले ही घर चलाना महँगा पड़ रहा है, ऊपर से अब बच्चों की पढ़ाई और महँगी हो गयी है। योगी सरकार को समझना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग किस तरह जीवनयापन करेंगे? पाँच किलो प्रति यूनिट के हिसाब से अनाज मिलने से किसी बड़े का छोडि़ए बच्चे का भी महीना नहीं कट सकता। इसी गाँव की एक महिला कहती हैं कि योगी महाराज अपना सिलेंडर उठा ले जाएँ। इतना महँगा सिलेंडर कौन भरा पाएगा? हम लकड़ी-कण्डों (उपलों) से ही चूल्हे पर रोटी बना लेते हैं। आमदनी है नहीं और महँगाई बढ़ती जा रही है। कैसे गुज़र-बसर होगी?

विदित हो कि हाल ही में रसोई गैस के सिलेंडर पर 50 रुपये बढ़े हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में रोष है। सामान्य ग्रामीण बाज़ार में जाने से भी अब कतराते दिखते हैं। बच्चों की पढ़ाई महँगी होने को लेकर ओमपाल गंगवार कहते हैं कि आजकल एक बच्चे की पढ़ाई भी इतनी महँगी है कि पूरे परिवार का खाना उतने में हो जाए। धनेटा चौराहे पर एक फल विक्रेता की दुकान पर उनका 14-15 साल का बेटा भी उनके काम में हाथ बँटाता है। उनसे जब हमने पूछा कि स्कूल खुल गये आपका बेटा पढऩे क्यों नहीं जाता है? तो उन्होंने कहा कि क्या बताएँ भैया! पढ़ाई में इतना ख़र्चा करने से अच्छा है, कामधंधे में लगाया जाए। कुछ नहीं तो 100-200 रुपये तो कमाएगा।
विदित हो कि उत्तर प्रदेश में सरकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों से लेकर निजी शिक्षण संस्थानों तक में अब पढ़ाई महँगी हो चुकी है। इसके चलते ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है।

निजी विद्यालयों में घट रहे बच्चे

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य विद्यालय के संस्थापकों में से एक राजकरन मौर्य ने बताया कि कोरोना नाम की महामारी जबसे फैली है, स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की संख्या में कमी आयी है। मगर इससे भी बड़ी समस्या पाठ्य सामग्री के बढ़े दाम हैं। बढ़ती महँगाई के चलते स्कूलों को भी शुल्क (फीस) में मामूली बढ़त करनी पड़ी है। हालाँकि शुल्क इतना कम है कि अध्यापकों को वेतन देना भी भारी पड़ता है। वहीं किसान ओमवीर ने कहा कि स्कूल अब पढ़ाई के केंद्र नहीं रहे, बल्कि कमायी के अड्डे बन चुके हैं, जहाँ हर साल शुल्क बढ़ा दिया जाता है, हर साल कॉपी, किताबें और ड्रेस के दाम बढ़ा दिये जाते हैं।

हो चुका है हंगामा

बीते हुए दो महीनों से उत्तर प्रदेश के अधिकतर विश्वविद्यालयों में छात्रों ने जमकर प्रदर्शन किया है। छात्रों ने यह प्रदर्शन विश्वविद्यालयों, महाविद्यायलों में शुल्क बढ़ोतरी को लेकर किया था। हालाँकि अभी विरोध-प्रदर्शन शान्त है; लेकिन अगर विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में शुल्क बढ़ता है, तो विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय प्रबंधन को छात्रों के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। इसी प्रकार छात्रावासों में शुल्क में वृद्धि कर दी गयी है। इनमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीती 28 मार्च से ही छात्रावास की शुल्क में वृद्धि कर दी गयी है। जैसे ही शुल्क वृद्धि हुई थी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय के बाहर छात्रों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान वहाँ हाथापाई भी हुई थी, जिसमें छात्रों ने आरोप लगाया कि वे शान्तिपूर्वक विरोध कर रहे थे कि सुरक्षाकर्मियों ने उन पर लाठियों से हमला बोल दिया। इस झड़प व हाथापाई में कुछ लोग घायल भी हुए थे। जैसे-तैसे कई दिनों में इस मामले को शान्त कराया गया था।

इसी प्रकार रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय ने भी इस वर्ष से कई कक्षाओं की शुल्क में अघोषित बढ़ोतरी कर दी है। यहाँ स्नात्कोत्तर (एमए) प्रथम व द्वितीय वर्ष की शुल्क में 200 रुपये से 500 रुपये तक की वृद्धि की गयी है। छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रबंधन से तत्काल बढ़े शुल्क का निर्णय बदलने की माँग की है। एमए प्रथम वर्ष के एक छात्र ने बताया कि गत वर्ष इस कक्षा की शुल्क 1,250 रुपये था, परन्तु इस बार ऑनलाइन परीक्षा फार्म के माध्यम से विश्वविद्यालय ने 1,750 रुपये लिये हैं। इसी प्रकार एमए द्वितीय वर्ष की शुल्क पिछले साल 1,550 रुपये था, जो इस साल बढ़कर 1,750 रुपये हो गया है।

इसी प्रकार केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद के 2022-23 के सत्र में प्रवेश शुल्क को भी बढ़ाने की बात बीते महीनों में सामने आयी थी, जिसके विरोध में विश्वविद्यालय के छात्रों व छात्र संगठनों ने एकत्रित होकर विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध में जमकर विरोध-प्रदर्शन किया। इसी प्रकार अन्य विश्वविद्यालयों से बीते महीने में प्रवेश फार्म भरने के दौरान शुल्क वृद्धि और उसके विरोध में प्रदर्शन करने के समाचार प्रदेश भर से मिले। हालाँकि अब विश्वविद्यालयों में स्थिति थोड़ी सामान्य है, जिससे यह माना जा सकता है कि जहाँ शुल्क में वृद्धि हो गयी है; वहाँ छात्रों ने उसे स्वीकार कर लिया है। वहीं जहाँ विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने निर्णयों में नरमी बरती है, वहाँ आने वाले समय में शुल्क बढ़ सकता है।

निजी विद्यालयों में बढ़ा शुल्क

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस सत्र 2022-23 में निजी विद्यालयों को 10 फ़ीसदी तक शुल्क वृद्धि करने की अनुमति दे दी है। विद्यालयों ने इस शुल्क वृद्धि का स्वागत करते हुए छात्रों व अभिभावकों पर यह भार डाल दिया है। सरकार ने तो शुल्क में 20 फ़ीसदी की शुल्क वृद्धि करने को कहा है। परन्तु यह शुल्क 10 नहीं, बल्कि 30 फ़ीसदी बढ़ा है। क्योंकि यह शुल्क वृद्धि सत्र 2019-20 से की गयी है, जिसकी अनुमति योगी आदित्यनाथ सरकार ने ही दी है। हालाँकि कुछ विद्यालयों ने 20 से 25 फ़ीसदी की भी बढ़ोतरी की है, जिसे वो छात्रों व अध्यापकों को अपनी ओर से छूट देना बता रहे हैं। वहीं प्रदेश के कुछ विद्यालयों में तो 40 फ़ीसदी तक शुल्क बढ़ा दिया गया है। हालाँकि इस शुल्क वृद्धि के योगी सरकार के निर्णय का अभिभावकों, छात्रों, सामाजिक संस्थाओं व पैरंट्स एसोसिएशन ने विरोध किया है। हालाँकि कुछ विद्यालय संचालकों ने शुल्क नहीं भी बढ़ाया है, तो कुछ ने शुल्क में थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी की है। मगर कुछ ने जमकर शुल्क बढ़ा दिया है। माना जा रहा है कि देर-सबेर विद्यालयों की शुल्क बढ़ ही जाएगा।

ठिरिया गाँव के एक अभिभावक राकेश कुमार कहते हैं कि बच्चों को कैसे पढ़ाएँ? अभी कोरोना की मार से ही आदमी परेशान है। कमायी कम हो चुकी है। ऐसे में अब बच्चों की पढ़ाई महँगी हो गयी।

पाठ्य सामग्री पहले से ही है महँगी

शुल्क में वृद्धि तो अब हो रही है; पाठ्य सामग्री तो चार-पाँच साल पहले ही महँगी हो चुकी है। यही नहीं, पाठ्य पर हर वर्ष बिना किसी सोच-समझ के वृद्धि हो जाती है। इस पर शिक्षा विभाग व सरकार कोई बात नहीं करते। विदित हो कि सत्र 2017-18 में ही पाठ्य सामग्री पर जीएसटी लगाने का निर्णय केंद्र सरकार ने ले लिया था, जिस पर राज्य सरकारों ने अमल करते हुए इसे लागू कर दिया। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पाठ्य सामग्री पर 5 फ़ीसदी से लेकर 18 फ़ीसदी कर जीएसटी लगा दी थी। इसका भी विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में छात्रों ने विरोध किया था। मगर अब छात्र जीएसटी के साथ पाठ्य सामग्री क्रय कर रहे हैं।
इन सब कारणों से छात्रों की पढ़ाई अत्यधिक महँगी हो चुकी है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक (बीए) प्रथम के छात्र रवि ने बताया कि अब सरकारी विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाई करने का अर्थ है- शिक्षा का मोटा मूल्य चुकाना। अन्यथा घर बैठिए और अनपढ़ बने रहिए। रवि कहते हैं कि यह बड़े दु:ख की बात है कि एक तरफ़ देश की राजधानी दिल्ली में शिक्षा स्तर सुधर रहा है। छात्र नि:शुल्क पढ़ाई कर पा रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में शिक्षा बिक रही है, जो धनवान हो वह ख़रीदे और जो निर्धन हो, वह मनरेगा में बच्चों से भी मज़दूरी करवाये। पढ़ाई उसके बच्चों के लिए अब नहीं है।