बड़े पैमाने पर होती है कछुओं की तस्करी

पेट की भूख और पैसा कमाने की हवस ने इंसान को इतना निर्दयी बना दिया है कि बेज़ुबान जानवरों की तस्करी से लेकर उनकी हत्या तक उसके लिए एक खेल बन चुका है। तस्करी और हत्या के चलते आज दुनिया में कई जानवर विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें हर तरह के जानवर हैं, जिनमें कछुआ बेहद दुर्लभ और सीधा सरीसृप प्राणी है। कछुओं के पालने के शौक़ीनों का मानना है कि वास्तु दोष ठीक करने और पैसा कमाने के लिए वे कछुआ पालते हैं। हालाँकि इस पर प्रतिबंध है। लेकिन इससे इतर कछुए का मांस खाने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है। भारत में नट, कंजड़ और जंगली जातियों के अलावा आदिवासी तथा कुछ मांसाहारी प्रदेशों के लोगों का प्रिय मांसाहार कछुआ है। इसके अलावा विदेशों में बहुत लोग भी कछुए का मांस और उसके चिप्स खाना बहुत पसन्द करते हैं। यही वजह है कि कछुओं की माँग विकट है, जो तस्करी को बढ़ावा देती है। हालाँकि भारत में यह ग़ैर-क़ानूनी है।

कछुओं की पूरी दुनिया में 225 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इनमें से अकेले भारत में क़रीब 20 फ़ीसदी यानी क़रीब 55 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। हालाँकि समुद्री कछुओं का जीवन नदियों और तालाबों में पाये जाने वाले कछुओं से ज़्यादा सुरक्षित होता है। यही वजह है कि समुद्री कछुओं की आयु और वज़न दोनों ही ज़्यादा हो जाते हैं। क़रीब 200 साल की औसत आयु वाले कछुओं को अगर सुरक्षित जीने दिया जाए, तो वे 300 साल से भी अधिक जीवित रह सकते हैं। कछुए मानव फ्रेंडली होते हैं, यही वजह है कि लोग इसे आसानी से पकड़ लेते हैं।

हाल ही में मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले के एंडोरी थाना क्षेत्र की पुलिस ने भारतीय कछुओं की दुर्भल प्रजाति के नौ कछुओं के साथ दो तस्करों को गिरफ़्तार किया था। पुलिस ने सभी कछुए वन विभाग को सौंप दिये। गिरफ़्तार लोगों ने बताया था कि वे इन कछुओं को दतिया के एक तस्कर को 35,000 रुपये में बेचने जा रहे थे। इससे पहले आगरा में रेलवे स्टेशन के पास एक 25 किलो का दुर्लभ कछुआ एक बोरी में बन्द मिला, जो रस्सी से बुरी तरह बँधा हुआ था। इस कछुए को वाइल्ड लाइफ एसओएस की टीम ने अपने क़ब्ज़े में लेते वक़्त बताया कि यह कछुआ एक दुर्लभ प्रजाति का कछुआ है, जो कि दक्षिण एशिया में मीठे पानी में रहता है। इसी साल अप्रैल के महीने में एसटीएफ की टीम ने अंतरराज्यीय कछुआ तस्कर ठाकुरगंज के राजकुमार उर्फ़ कल्लू को पारा इलाक़े में गिरफ़्तार किया था। एसटीएफ टीम ने बताया था कि इस कुख्यात तस्कर के क़ब्ज़े से 160 कछुए बरामद किये गये। कल्लू इन कछुओं को पश्चिम बंगाल में बेचने वाला था। इसके अलावा क़रीब एक महीने पहले कछुओं का मांस बेचने के तीन आरोपियों को वन विभाग ने गिरफ़्तार किया था। वन विभाग के मुताबिक, ये आरोपी इसी साल 18 मार्च को एक कछुए का मांस बेच चुके थे।

तस्करी के आँकड़े
भारत में कछुओं की तस्करी पर प्रतिबंध के बावजूद इस मूक प्राणी की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। हालाँकि कछुओं की तस्करी के सही-सही आँकड़े न तो सरकार के पास हैं, न ही वन विभाग के पास और न ही वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया के पास ही हैं। भारतीय स्टार कछुओं की सुरक्षा के लिए साल 2019 में इनके अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस साल इन्हें भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और सेनेगल के प्रयासों से यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डैन्जर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फाउना एंड फ्लोरा या सीआईटीईएस के परिशिष्ट-ढ्ढ में जोड़ा गया। इससे पहले भारतीय स्टार कछुआ को परिशिष्ट-ढ्ढढ्ढ में रखा गया था, जिसका अर्थ है कि निर्यात परमिट के साथ कछुओं के विनियमित व्यापार की अनुमति थी। लेकिन सीआईटीईएस व्यापार डाटाबेस के मुताबिक, जंगलों से एकत्र किये गये भारतीय स्टार कछुओं के वाणिज्यिक निर्यात के लिए भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान द्वारा सन् 1999 से कोई परमिट जारी नहीं किया गया है। इसके बाद भी भारतीय स्टार कछुओं की तस्करी पर कोई रोक नहीं लग पायी है। एक रिपोर्ट बताती है कि सन् 2017 में भारत, श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड से तस्करों से 6,040 भारतीय स्टार कछुए ज़ब्त किये गये। वहीं सन् 2014 में कहा गया कि आंध्र प्रदेश के एक ही क्षेत्र से 55,000 से ज़्यादा भारतीय स्टार कछुओं को अवैध तरीक़े से जमा किया गया था।

चंबल नदी के किनारे के क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित करने के बाद सन् 1980 से सन् 2018 तक केवल इटावा ज़िले से पुलिस, एसटीएफ व वन्य विभाग समेत अन्य एजेंसियों द्वारा 100 से ज़्यादा तस्करों गिरफ़्तार करके एक लाख संरक्षित कछुए बरामद करने का रिकॉर्ड है। इतना ही नहीं पिछले दो साल में पुलिस, वन विभाग और एसटीएफ द्वारा इटावा से 20 और तस्करों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनके पास से 12,000 से ज़्यादा कछुए बरामद किये जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने सिर्फ़ साल 2018 में ही इटावा क्षेत्र से तस्करों से 2489 संरक्षित कछुए और 171 किलो कछुओं की कैनोपी (पीठ वाला हिस्सा) बरामद किया था।
वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया के आँकड़े बताते हैं कि उसने सन् 2012 में भारत में कुल 1,968 भारतीय स्टार कछुओं को ज़ब्त किया गया। वहीं सन् 2013 में 1,059 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2014 में 2,197 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2015 में 1,986 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2016 में 907 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2017 में 4258 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2018 में 5971 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2019 में 1474 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2020 में 478 भारतीय स्टार कछुए, सन् 2021 में 3,099 भारतीय स्टार कछुए और इस साल यानी 2022 में अप्रैल तक क़रीब 1,498 भारतीय स्टार कछुए पुलिस और वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया ने ज़ब्त किये थे। सन् 2016 के एक शोध में पाया गया कि भारतीय स्टार कछुओं का व्यापार दूसरे कछुओं के मुक़ाबले सबसे अधिक अवैध व्यापार होता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भारतीय स्टार कछुओं को अधिक संवेदनशील सरीसृप की श्रेणी में वर्गीकृत किया है और लुप्तप्राय प्रजातियों की रेड लिस्ट से सिर्फ़ एक पायदान नीचे रखा है।

लाखों तक में बिकते हैं कछुए
कछुओं की तस्करी उन्हें पालने से लेकर उनका मांस बेचने, उनकी पीठ का ऊपरी हिस्सा संरक्षित करने, दवाएँ बनाने और ताक़त बढ़ाने आदि के चलते होती है। भारत में कछुए आसानी से मिल जाते हैं, जिसके चलते यहाँ कछुओं के तस्करों की संख्या बहुत अधिक है। तस्कर इन्हें बोरों में भरकर पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों को भेजते हैं। वहाँ से विदेशों में भी इनकी सप्लाई होती है। कछुओं की तस्करी से आमदनी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनकी तस्करी के लिए लग्जरी गाडिय़ों तक का इस्तेमाल तस्कर करते हैं। इसकी वजह यह है कि एक कछुए की क़ीमत 50 रुपये से लेकर एक लाख या इससे ऊपर तक हो सकती है। हालाँकि कछुए का मूल्य उसकी प्रजाति पर निर्भर करता है। चीन सबसे ज़्यादा कछुओं को मारने वाला देश है, जहाँ मांस और कैनोपी के लिए हर साल क़रीब 73,000 कछुए मार दिये जाते हैं। यह टॉरट्वाइज इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में कहा गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन कई देशों से क़ानूनी और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से कछुए आयात करता है। वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) की साइबर विंग के मुताबिक, जबसे इंटरनेट और सोशल मीडिया का चलन शुरू हुआ, इनकी भूमिका वन्य जीवों की तस्करी में विलेन की हो चुकी है, क्योंकि इनके ज़रिये वन्य जीवों का सौदा आसानी से होने लगा है; क्योंकि तस्करों की जमात सोशल मीडिया के ज़रिये ही सौदा करती है। वन्यजीव संरक्षण चैरिटी एवं वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के मुताबिक, कछुओं को रखना आसान होता है और इनकी उम्र भी लम्बी होती है। लोग इन्हें भाग्योदय का जीव मानते हैं, इसलिए भी पालते हैं। लेकिन चोरी से ही इन्हें पाला जाता है।

तस्करी रोकने के लिए क़ानून और सज़ा
सन् 1979 में भारत सरकार ने कछुओं को बचाने की मुहिम शुरू की थी। इसके लिए सरकार ने चंबल नदी के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैले तक़रीबन 425 किलोमीटर तट से सटे हुए सभी इला$कों को राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य घोषित किया था। चंबल नदी का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा के हिस्से में आता है, जिसके चलते इटावा कछुओं की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का गढ़ बन चुका है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की अनुसूची-ढ्ढङ्क के तहत कछुआ भी दूसरे वन्य जीवों की तरह ही संरक्षित है। कछुओं की तस्करी करने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा, सज़ा के अलावा उस पर ज़ुर्माना लगाया जाता है। इस मामले में तस्करों के ख़िलाफ़ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की धारा-02 की उपधारा (1), (5), (16), (20) और (37) धारा 09, 40, 48 व 51 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा वन अपराध प्रकरण क्रमांक 744/32 क़ायम किया जा सकता है।