‘बड़ा गोलमाल कर सकती है भाजपा’

hardik patel (5)

गुजरात विधानसभा चुनाव में पटेल समुदाय बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गया है। बीजेपी के तमाम पैंतरों और रणनीतियों को 23 साल के हार्दिक पटेल बैकफुट पर धकेलते दिखाई दे रहे हैं। राज्य में अगले महीने 9 और 14 दिसंबर को मतदान होंगे और नतीजा 18 दिसंबर को आ जायेगा। बीजेपी से खफा हार्दिक पटेल की अगुवाई वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) ने गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय का समर्थन कांग्रेस को देने के लिए शर्त रखी है कि पार्टी ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर पहले अपना रुख साफ करे। पाटीदार समाज के युवा नेता हार्दिक पटेल से चुनाव में उनकी भूमिका और कांग्रेस को समर्थन संबंधित कई मुद्दों पर मनमोहन सिंह नौला ने खास बातचीत की।

कहा जा रहा है कि हार्दिक पटेल की पकड़ गुजरात में बीजेपी के आगे कमज़ोर पड़ती जा रही है?
यह सब भारतीय जनता पार्टी के फैलाये जा रहे झूठ की साजि़श का हिस्सा है। दरअसल सच्चाई यह है कि बीजेपी बुरी तरह से डर गई है । अपने टूटते तिलस्म से बौखलाई हुई है। वह भूल गयी है कि साम दाम दण्ड भेद के प्रयोग का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है। गुजरात सरकार आंदोलनकारियों को प्रताडि़त कर रही है, लेकिन पाटीदार समाज इतना कमज़ोर नहीं है। पिछले कुछ वक्त से सरकार यहां बैकफुट पर हो गयी है और फ्रंटफुट पर आने की कोशिश कर रही है। बीजेपी जितना हमें दबाने की कोशिश करेगी उतना ही हम मज़बूत होंगे….. मजबूत बन रहे हैं। मजबूत बनकर हम इन्हें इनकी जगह दिखा देंगे।

क्या वाकई बीजेपी खरीद फरोख्त कर रही है? आपके कार्यकर्ता बिकाऊ कैसे बन गए हैं, कितनी सच्चाई है?
देखिए पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती। लेकिन सभी कमजोर नहीं होते। मैंने कहा न कि बीजेपी अब आने वाले समय के नतीजों से डरी हुई है। वह नैतिक मूल्यों को भूलकर सब कुछ कर गुजरने को तैयार है। उसने हमारे दो अच्छे आंदोलनकारियों को खरीद लिया है। आज वो लोग उनकी गोद में जाकर बैठे हंै। पटेल समाज के दोनों अच्छे आंदोलनकारी वरुण और रेशमा पटेल आज बीजेपी का दामन थाम चुके हैं, दोनों ही अच्छे लीडर थे। मुझे भी बीजेपी की तरफ से ऑफर किया गया था लेकिन मैंने ‘नÓ बोल दिया। मुझसे कहा गया था कि आपको वरुण और रेशमा से ज़्यादा दिया जायेगा। हमारे एक सहयोगी को एक करोड़ का ऑफर हुआ और तो और 10 लाख अपने आप उसके अकाउंट में जमा कर दिए गए। बीजेपी चुनाव में हर संभव पैंतरे
अपना रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी मानसिक स्थिति क्या है।

आप लोगों का आरोप है कि बीजेपी आंदोलनकारियों पर जानलेवा हमला कर रही है, अगर यह सच है तो आप इन हमलों की बाबत पुलिस कंप्लेंट क्यों नहीं करते ? 
सवाल आपका सही है ….. लेकिन बात भरोसे की है। पुलिस पर क्या भरोसा करें। कुछ दिनों पहले मेरे सहयोगियों पर जानलेवा हमला किया गया, मेरे ऊपर भी कई बार हमला किया जा चुका है। पुलिस तंत्र पर हमे खास भरोसा नहीं, वे लोग आज कुछ भी कर सकते हैं। हमारे लोगों पर मुकदमा लगा दिया जाता है, केस बनाया जाता है 307 का। हमें तो हर पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़ते हैं। मेरा तो पासपोर्ट भी जमा है। बीजेपी ने ज़बरदस्ती आरोप बनाया है हम पर। पूरे गुजरात में हमारे आंदोलन के दौरान केस लगाए गए हंै। एक केस में 39 लोगों पर 307 का मुकदमा दर्ज किया है। हम लोग किसी का नाम बोलकर पाटीदार समाज के लोगों पर जान का खतरा नहीं ला सकते, हमारी चुप्पी ही हमारा जवाब है। और देखिएगा यह चुप्पी क्या रंग लाती है। तूफान के पहले की खामोशी है यह।

बीजेपी के खिलाफ अपनी रणनीति में कोई बदलाव किया है आपने ?
नहीं, बीजेपी को हराना हमारा मकसद नहीं। हमारा पहला मकसद ये है कि हमें आरक्षण मिले। बीतें कुछ समय में बीजेपी ने हमारे साथ जो बुरा व्यवहार किया है, हमारे आंदोलन और विरोध को दबाने की कोशिश की है उसका करारा जवाब भी देना है। जैसे हम लोग को सभा करने और अनशन की अनुमति नहीं दी जाती, शांतिपूर्ण आंदोलन में हमारे लोगों को गिरफ्तार कर उन पर केस बना दिया जाता है। हार तय है उनकी। चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे किये गए, हमारी पांच मुख्य मांगों को सरकार ने पूरा करने का वाद किया। 27 महीनों में 12 बार हमें मीटिंग के लिए बड़े बड़े मिनिस्टरों ने बुलाया। लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। चुनाव डिक्लेयर होने के बाद मिले जुले लोगों को सरकार ने 20-20 लाख का चेक थमा दिया। जाना तो निश्चित ही है इस सरकार का।

आपको इतना भरोसा ?
हमारे भरोसे की वजह है … क्योंकि इस सरकार पर लोगों का भरोसा नहीं है।..इस सरकार पर किसी को भरोसा नहीं रहा, इसलिए हम लोग बीजेपी को गुजरात से उखाड़ फेंकेंगे, 2012 के चुनाव में बीजेपी ने 182 सीटों में से 120 हासिल की थी लेकिन इस बार पाटीदार समाज बीजेपी को 70 के नीचे तक सीमित कर देंगे। हमारे साथ सिर्फ पाटीदार समाज नहीं जुड़ा है बल्कि किसानों का एक बड़ा तबका हमारे साथ है। जिन्हें न पानी मिलता है न बिजली, सरकार किसानों को उनकी जायज़ मजदूरी तक नहीं देती। मूंगफली और कपास की खरीद का उचित दाम भी नहीं दिया जाता। इस बार पाटीदार समाज जो 70 फीसदी खेती पर आधारित है वो लोग सरकार से नाराज़ है। हर बात की कोई न कोई सीमा तो होती ही है। सीमा टूट गई है।

माना जाता है कि पाटीदार और पटेल समाज पहले से ही अमीर है, तो उन्हें आरक्षण की ज़रूरत नहीं है…
मैं एक गलतफहमी दूर करना चाहता हूं। पाटीदार समाज अगर इतना ही अमीर होता तो भला वह आरक्षण की मांग क्यों करता? 80 फीसदी लोग खेती पर जीवन यापन करते हैं, रोज़गार की तलाश में लोग गांव से माइग्रेट हो रहे हैैं। पाटीदार अब सूरत और अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में पलायन कर रहे हैैं, जहां रोज़गार की तलाश में वे अब शहर में हीरे की मजदूरी करते हैं जिसकी कमाई हर मौसम एक सी नहीं होती है, गांव के मुकाबले शहरों में जीवन जीना ज्य़ादा कठिन है। वहां महंगी शिक्षा और घर मकान मिलना कठिन है। ज्य़ादा पैसा कमाने वाला 15 फीसदी ही अमीर है, जिनके पास ज्वेलरी आदि का बिज़नेस है। अब इस आंकड़े के मुताबिक क्या सभी को अमीर मान लेना चाहिए?

अब कांग्रेस को भी आप लोगों ने आरक्षण के मामले को लेकर, शर्तें थोप दी हैं। इससे कांग्रेस और आपके बीच खटास आ सकती है ?
खटास आने का सवाल कहां उठता है? कोई नाजायज मांग तो है नहीं।हम लोग अगर आपको समर्थन दे रहे हैं तो यह हमारा अधिकार बनता है कि हम अपने हितों की बात बिल्कुल करें।…. देखिए पिछले कई सालों से गुजरात के पास बस दो ही विकल्प रहे हैैं। कांग्रेस और बीजेपी। 1995 से लगातार बीजेपी का ही इस राज्य में कब्ज़ा रहा है, उससे पहले कांग्रेस थी। गुजरात के लोग विचारशील हैं। बीजेपी को यहां 20 साल से ज़्यादा हो गए। हम लोगों ने पार्टी पर विश्वास रखा। तभी आज राज्य का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बन गया है। गुजरात के उद्योगपतियों ने पैसा देकर आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचा दिया है लेकिन प्रधानमंत्री ने हमें नहीं देखा, हमारे पास दूसरा विकल्प कांग्रेस ही है। बाकि आम आदमी पार्टी, एनसीपी अभी डेवलेप हो रही है। उन्हें वक्त लगेगा, हमारे पास विकल्प नहीं है…..। लेकिन आज युवाओं की सोच में बड़ा बदलाव आया है।
यह वह युवा वर्ग है जो आंख बंद कर किसी पर विश्वास नहीं करता। गुजरात के युवा अब मोदी की माया जाल में फंसने वाले नहीं है। आज का युवा ये देख रहा है कि पिछले 20 सालों में गुजरात मे क्या विकास हुआ है? गुजरात का यह युवा अब ये देख रहा है, समझ रहा है कि गुजरात में नदियों पर डैम किसने बनाये, यूनिवर्सिटी, सरकारी हॉस्पिटल और रोड किसने विकसित किए। क्या ये सब 20 साल पहले ही विकसित हो चुके थे?… या अभी बनाई गयी है। आज का युवा इतिहास देख रहा है। हर छोटी बड़ी बात की बारीकी देख रहा है। निरीक्षण कर रहा है। कांग्रेस के शासन में क्या विकास हुआ? बीजेपी ने क्या दिया गुजरात को? सिर्फ अहमदाबाद और वडोदरा की तस्वीर से पूरे गुजरात का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। दूर दराज के गांवों में, इलाकों में, क्षेत्रों में तस्वीरें बिल्कुल अलग है।..
दरअसल सच्चाई यह है कि मोदी ने अपने प्रचार और प्रसार के जरिए गुजराती समाज को अपनी तरफ लुभाया था। मोदी जी ने 2012 में कपास और मूंगफली की खरीद से संबंधित कई वादे किये थे….. इसी विश्वास पर लोगों ने एक बार फिर उन्हें चुना लेकिन वे अपने वादे भूल गए इसलिए किसान समाज भी बीजेपी से नाराज़ है।

कांग्रेस आपकी शर्ते मानेगी? और अगर कांग्रेस अपनी शर्तों को नहीं मानती है तो आप क्या करेंगे?
मुझे लगता है, और मैं अब तक 900 गांव में सभा और सम्मेलन कर चुका हूँ। वहां मैं लोगो से मिलता हूँ, दलित से लेकर रघुमति समाज मुझे अपनी सभाओं में बुलाते हंै। मैंने पाया की ज्य़ादतर लोग सरकार से खुश नहीं है। मैंने दलित से लेकर हर तबके के लोगों से मुलाकात की। उनसे मिलकर यह पता चला कि सिर्फ पाटीदार समाज ही नहीं बल्कि कई और समाज भी है जो अब बीजेपी के खिलाफ हैं। आज ओबीसी, पाटीदार, रघुमति और दलित सब यही चाहते है कि अब बस बीजेपी को गुजरात से निकालना है। कांग्रेस का मकसद भी बीजेपी को हटाना हैं। हमारे साथ मिलकर उनके लिए यह आसान हो जाएगा….यह उन्हें भी पता है।
कांग्रेस ने 20 साल पहले हमारे पाटीदारों को नाराज़ किया नतीजा आपके सामने है। आज 20 साल से ज्य़ादा का वक्त हो गया है, कांग्रेस गुजरात में सत्ता से दूर है, अब वही काम बीजेपी कर रही है। इसलिए बीजेपी के सामने भी इसका नतीजा आ जायेगा, और कांग्रेस अगर सत्ता में आई और उसने हमारी मांगों को अनदेखा किया तो फिर पाटीदार इतना तो काबिल है कि 14 फीसदी लोग इन्हें फिर से सत्ता से दूर कर दें।

कांग्रेस का मानना है कि राहुल गांधी के आने से गुजरात चुनाव समर की तस्वीर बदल गई है…कुछ फर्क पड़ा है?
फरक तो पड़ा है….जैसे, गुजरात में हार्दिक पटेल, दलित लीडर जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी लीडर अल्पेश ठाकुर गांव गांव में घूमते हैं और जनता के बीच जाते हैं तो जनता को लगता है कि हम लोग उनकी आवाज हैं, वैसे ही अब जनता को लग रहा है कि राहुल उनकी आवाज़ है जो आज उनके बीच आये हैं। और जो ये भीड़ इकठ्ठी होती है वो रियल होती है इन्हें हार्दिक और राहुल को आदेश देकर बुलाना नहीं पड़ता। लोग अपने दिल की आवाज़ सुनकर राहुल और हार्दिक की सभाओं और रैलियों में आते हैं, न की संतों का आदेश का पालन समझते हुए। जैसे की मोदी जी की अक्षरधाम सभा में संतों ने सभा में भक्तों को आने का आदेश दिया था। आज गुजरात के लोगों को यह यकीन हो गया है कि राहुल गांधी उनके लिए अच्छा करेंगे और यहां क्रांति आएगी।
बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड खेला था, और गुजरात के लोगों ने उनका साथ दिया लेकिन कांग्रेस में तो हिंदुत्व का सवाल ही नहीं उठाती?
मेरे ख्याल से हिंदुत्व अब कोई मुद्दा नहीं रहा है। बीजेपी इसे खामखा राजनीतिक मुद्दा बना रही है । आज गुजरात का युवा इतिहास देख रहा है,आज लोगों में जागरूकता आ गई है। 2002 के दंगे आज भी लोगों के ज़ेहन में है। आज पाटीदार समाज भी उस दंगे के ज़ख्म को झेल रहा है। लेकिन अब लोगों को ये साफ पता चल गया है कि कैसे हमे बीजेपी ने हथकंडा बनाया और सत्ता हासिल की। अब कोई समाज बंधा हुआ नहीं रहना चाहता और न ही किसी के बहकावे में आएगा। लेकिन अब गुजरात की जनता जाग गई है। हमको बैसाखी बनाकर मोदी जी एवरेस्ट पर चढ़ गए। लेकिन आज हम सच देख सकते है और इसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। जिसने सच्चाई को जनता के सामने लाने में अहम भूमिका निभाई है। आज लोग हिंदू-मुस्लिम से ऊपर उठकर सोच रहे हंै, अब सबके सामने सच्चाई आ गई है। आज बीजेपी गो हत्या और हिंदुत्व के नाम पर लोगों को लड़ा रही है। यह कोई जायज़ तरीका है सत्ता में आने का?

विकल्प के तौर पर गुजरात में कोई तीसरी पार्टी क्यों नहीं उभरती? कांग्रेस, बीजेपी के अलावा कोई सरकार क्यों नहीं बन सकती?
ऐसा नहीं कि इस विषय पर सोचा नहीं गया है। लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं हो सका। पिछले कई वर्षों से यहां अभी दो पार्टी ही मज़बूत है, हालंाकि, एक बार तीसरी पार्टी पर विचार हुआ था। लेकिन समस्या ये है कि हमने आंदोलन के लिए सोचा लेकिन कभी राजनीति में जाने का विचार नहीं किया। गुजरात के लोग की विचारधारा है कि यहां दो पार्टियां ही रह सकती है बाकी कोई आई तो उसे समर्थन दिया जायेगा।

बात तो इस तरह की भी सुनाई दे रही है कि अगर हार्दिक पटेल आरक्षण छोड़ राजनीति करने लगे तो उन्हें पाटीदारों का समर्थन मुश्किल है।
यह सब ग़लत बात फैलाई जा रही हैं , जनता खुद बोलती है कि हार्दिक तुम राजनीति में आ जाओ, लेकिन मैंने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है कि कम से कम ढाई साल तक तो मैं राजनीति में आने की सोच भी नहीं सकता, क्योंकि अभी मेरी उमर नहीं है। हार्दिक फिलहाल पाटीदार समाज के लिए ही लड़ेगा। बीजेपी का सोशल मीडिया ये सारी अफवाहें उड़ाता है। मैं राजनीति में आऊंगा तो ज़रूर वह भी डंके की चोट पर आऊंगा।

हार्दिक की इस बात का क्या अर्थ लगाया जाय कि चोर और महाचोर में से महाचोर को हटाना है…. कांग्रेस और बीजेपी?
बात बिल्कुल सरल और साफ है , बिलकुल दोनों पार्टियां ही चोर हैं, लेकिन हमें महाचोर को खदेडऩे के लिए चोर का सहारा लेना ही पड़ेगा। हमें किसी एक चोर को चुनना पड़ेगा। हमें बड़े चोर को चुनना नहीं है इसलिए हम छोटे चोर को चुनेंगें।

ख़बर है कि शिवसेना भी 40 से अधिक सीटों पर चुनाव लडने की तैयारी में है… शिवसेना के इस कदम से क्या फर्क पड़ेगा?
आप पिछले 70 सालों का इतिहास देखें तो पाएंगे कि गुजरात में तीसरी पार्टी के लिए कोई जगह नहीं है। शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर लडऩे की घोषणा करेगी। हिन्दू मुस्लिम के नाम पर यहां कोई कार्ड नहीं खेल सकता है। आर पार की लड़ाई है गुजरात में। कांग्रेस या बीजेपी। और बीजेपी को हटाना चाहती है जनता यहां की। वह शिवसेना को क्यों वोट देगी?

वीवीपीएटी मशीनों पर भी सवाल उठाया है….
उठाना लाजमी है। क्योंकि लेवल टेस्ट में ही चुनाव आयोग की 3,500 मशीनें फेल साबित हुई हैं। यही वजह है कि गुजरात चुनाव में वीवीपीएटी मशीनें काम नहीं करेगी और इस बार भी बीजेपी बड़ा गोलमाल कर सकती है।