बच्चों तक पहुँच रही अश्लील सामग्री!

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू द्वारा गठित की गयी राज्य सभा समिति ने बच्चों द्वारा अश्लील वीडियो देखे जाने पर चिन्ता जतायी है। समिति ने बच्चों तक अश्लील सामग्री की पहुँच पर रोक के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री को फिल्टर करने के लिए एप ईज़ाद करने का सुझाव दिया है।

राज्यसभा की सात महिला सदस्यों सहित 14-सदस्यीय समिति ने बच्चों की पोर्नोग्राफी सामग्री तक पहुँच को फिल्टर करने के लिए अनिवार्य एप का सुझाव दिया है।

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू की गठित के गयी समिति ने बच्चों के यौन शोषण को रोकने और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री तक पहुँच को लेकर 40 सिफारिशें की हैं। समिति का गठन नायडू ने पिछले साल 12 दिसंबर को किया था, जिसमें कुछ सदस्यों ने अश्लील सामग्री और बाल शोषण के लिए सोशल मीडिया के व्यापक दुरुपयोग पर चिन्ता व्यक्त की थी।

समिति के अध्यक्ष जय राम रमेश की तरफ से प्रस्तुत रिपोर्ट में समिति ने बाल पोर्नोग्राफी की भयावह सामाजिक बुराई की व्यापकता पर चिन्ता व्यक्त की है। इसने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अलावा तकनीकी, संस्थागत, सामाजिक और शैक्षणिक उपायों और राज्य स्तर की पहल के अलावा सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के खतरनाक मुद्दे और बच्चों और पूरे समाज पर इसके प्रभावों के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण संशोधनों की सिफारिश की है।

समिति ने महिलाओं और बाल विकास, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी और गृह मामलों के मंत्रालयों के अलावा एनसीपीसीआर और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण और गूगल, फेसबुक, व्हाट्स एप, बीटेडेंस (टिकटॉक), ट्विटर और शेयर चैट जैसे अन्य हितधारकों के विचारों को सुना। समिति को तीन एनजीओ- एचईआरडी एजुकेशनल एंड मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन (नागपुर), सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स (नई दिल्ली) और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (नई दिल्ली) से भी प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ। समिति की रिपोर्ट में जयराम रमेश ने कहा कि यह एक अच्छा मॉडल है, जिसका उपयोग समय-समय पर राज्यसभा के सदस्य सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

समिति की तरफ से की गयी 40 सिफारिशें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की व्यापक परिभाषा को अपनाने, ऐसी सामग्री के लिए बच्चों तक पहुँच को नियंत्रित करने और बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) के प्रसार को रोकने, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाने, बच्चों को इसकी पहुँच से वंचित करने, सामग्री की निगरानी, पोर्न देखने की स्थिति का पता लगाने और ऑनलाइन साइटों से ऐसी अश्लील सामग्री को हटाना, ऐसी सामग्री के काम उम्र बच्चों में उपयोग को रोकने, माता-पिता को बच्चों के इस तरह की सामग्री का जल्दी पता लगाने के लिए सक्षम करने, सरकारों के प्रभावी कार्रवाई करने और एजेंसियों को आवश्यक निवारक और दंडात्मक उपाय आदि करने के लिए अधिकृत करने से सम्बन्धित हैं। यह देखते हुए कि बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े लोग हमेशा नियामकों से एक कदम आगे रहते हैं। समिति ने अपनी सिफारिशों को एक एकीकृत पैकेज के रूप में लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। समिति ने व्यापक रूप से सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री के लिए बच्चों की पहुँच के मुद्दे और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री के प्रचलन पर गौर करने की माँग की है, जिसमें बच्चों का शोषण किया जाता है।

विधायी उपाय

समिति ने भारतीय दंड संहिता में किये जाने वाले बदलावों के साथ पोक्सो अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें कुछ प्रमुख यह हैं-

पोक्सो अधिनियम, 2012 में एक खंड डाला जाए, जिसके तहत किसी भी लिखित सामग्री, दृश्य प्रतिनिधित्व या ऑडियो रिकॉॄडग या किसी भी लक्षण वर्णन के माध्यम से 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन गतिविधियों की वकालत को अपराध बनाया जाये। पोक्सो अधिनियम, 2012 में एक और खंड जोड़ा जाए, जिसमें बिचौलियों (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म) की एक आचार संहिता की बात हो, ताकि ताकि ऑनलाइन बाल सुरक्षा सुनिश्चित हो, आयु अनुसार उपयुक्त सामग्री सुनिश्चित हो और अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चों के उपयोग पर अंकुश लगाया जा सके।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत स्कूल प्रबंधन को स्कूलों के भीतर बच्चों की सुरक्षा, परिवहन सेवाओं और ऐसे अन्य कार्यक्रमों के लिए ज़िम्मेदार होना चाहिए, जिनके साथ स्कूल जुड़ा हुआ है।  राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोॄटग पोर्टल इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के मामले में पोक्सो अधिनियम में रिपोॄटग आवश्यकताओं के तहत राष्ट्रीय पोर्टल के रूप में नामित किया जाए। आईटी अधिनियम-2000 में एक नया खंड शामिल किया जाना चाहिए, जो बच्चों को अश्लील पहुँच प्रदान करने वालों और बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री (सीएसएएम) का उपयोग, उत्पादन या संचार करने वालों के लिए भी दंडात्मक उपायों की व्यवस्था करता है। संघ सरकार को उन सभी वेबसाइटों/बिचौलियों जो बाल यौन शोषण सामग्री ले जाते हैं; को ब्लॉक करने/रोकने के लिए अपने प्राधिकारी के माध्यम से सशक्त किया जाना चाहिए।

आईटी अधिनियम को संशोधित किया जाए, ताकि बिचौलियों को सक्रिय रूप से पहचानने और सीएसएएम को हटाने के अलावा भारतीय अधिकारियों के साथ-साथ विदेशी अधिकारियों को भी इसकी सूचना  देने के लिए उसे ज़िम्मेदार बनाया जाए। गेटवे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (आइएसपी) को सीएसएएम वेबसाइटों का पता लगाने और उन्हें अवरुद्ध करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाना चाहिए। बिचौलिये भी नामित प्राधिकारी को रिपोर्ट करने, बाल पोर्न / खोज करने वाले सभी लोगों के आईपी पते/पहचान/सीएसएएम की वड्र्स के लिए ज़िम्मेदार होंगे।

प्रोद्योगिक उपाय

बाल पोर्नोग्राफी के वितरकों का पता लगाने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एंड-टू एंड एंक्रिप्शन को ब्रेक करने की अनुमति मिले। ऐसे एप्स, जो बच्चों की पोर्नोग्राफिक सामग्री तक पहुँच की निगरानी करने में मदद करते हैं; उन्हें भारत में बेचे जाने वाले सभी उपकरणों में अनिवार्य बनाया जाए। ऐसे एप या इसी तरह के समाधान विकसित किये जाएँ और उनकी आईएसपी, कम्पनियों, स्कूलों और माता-पिता तक पहुँच आसान की जाए।

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी और गृह मंत्रालय मंत्रालय बाल पोर्नोग्राफी ऑनलाइन खरीदने के लिए क्रिप्टो मुद्रा लेन-देन में संलग्न उपयोगकर्ताओं की पहचान का पता लगाने के लिए ब्लॉक चेन विश्लेषण कम्पनियों के साथ समन्वय करें। ऑनलाइन भुगतान पोर्टल्स और क्रेडिट कार्ड किसी भी अश्लील वेबसाइट के लिए प्रसंस्करण भुगतान से निषिद्ध किये जाएँ। इंटरनेट सामग्री तक बच्चों की पहुँच को विनियमित करने के लिए साइनअप के बिन्दु पर माता-पिता को परिवार के अनुकूल फिल्टर प्रदान करने के लिए आईएसपी को ज़रूरी किया जाए, सभी सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों को देश में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नियमित रिपोॄटग के अलावा बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री का पता लगाने के लिए न्यूनतम आवश्यक तकनीकों के साथ अनिवार्य किया जाए। नेटफ्लिक्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक आदि पर ऑन-स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म में अलग-अलग वयस्क सेक्शन होने चाहिए, जहाँ कम उम्र के बच्चों को रोका जा सके। सोशल मीडिया में आयु सत्यापन और आपत्तिजनक/अश्लील सामग्री तक पहुँच को प्रतिबन्धित करने के लिए तंत्र होना चाहिए।

संस्थागत उपाय

समिति ने बाल पोर्नोग्राफी के मुद्दे से निपटने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में एक उन्नत और तकनीकी रूप से सशक्त राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश की है, ताकि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का संरक्षण किया जा सके। समिति ने कहा कि एनसीपीसीआर में आवश्यक तकनीकी, साइबर पुलिसिंग और अभियोजन क्षमता होनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अनिवार्य रूप से हर तरह के चाइल्ड पोर्नोग्राफी के सालाना मामलों की रिपोर्ट का रिकॉर्ड रखेगा। एक राष्ट्रीय टिपलाइन नम्बर बनाया जाना चाहिए, जहाँ बाल यौन शोषण के साथ-साथ सम्बन्धित बाल अश्लील सामग्री के वितरण को लेकर सम्बन्धित नागरिक रिपोर्ट कर सकें।

सामाजिक और शैक्षिक उपाय

महिला, बाल विकास और सूचना प्रसारण मंत्रालय माता-पिता में बच्चों के प्रति शोषण के आरम्भिक लक्षणों को पहचानने, ऑनलाइन जोखिमों और अपने बच्चे के लिए ऑनलाइन सुरक्षा के प्रति बेहतर रूप से जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान चलाएँ। स्कूल वर्ष में कम-से-कम दो बार माता-पिता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करें, जिससे उन्हें कम उम्र में स्मार्ट फोन, इंटरनेट के मुफ्त उपयोग के खतरों के बारे में पता चल सके। अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर, कम उम्र बच्चों के स्मार्ट फोन के उपयोग को प्रतिबन्धित करने के लिए एक उचित व्यावहारिक नीति पर विचार किया जाए।

राज्य स्तरीय कार्यान्वयन

समिति ने सिफारिश की कि प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के पास बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए एनसीपीसीआर क्षमताओं वाला राज्य आयोग हो। अश्लील सामग्री को हटाने, आयु सत्यापन, चेतावनी जारी करने आदि से सम्बन्धित सोशल मीडिया और वेबसाइट दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर ई-सुरक्षा आयुक्तों की नियुक्ति की जाए।