बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म मामला न्याय में देरी क्यों?

परिजनों और समाज के लोगों ने सरकार तथा पुलिस से कहा- ‘दोषियों को हो फाँसी’

जब व्यवस्था में ही दोष हो और जिम्मेदारी किसी पर तय न हो, तो अराजकता मचनी सुनिश्चित है। मौज़ूदा सियासत कुछ इसी तरह की है कि कोई बड़ी वीभत्स घटना भी केवल सियासत का हिस्सा बन जाती है और पीडि़तों को या तो न्याय मिलता नहीं, या मिलना मुश्किल हो जाता है। शासन-प्रशासन पर ज़िम्मेदारी तय न होने से भी ऐसे कई मामले दबकर रह जाते हैं और दोषी बच जाते हैं। देश की राजधानी दिल्ली के पुराना नागलराया (कैंट एरिया) में कुछ दरिंदों ने नौ साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसे ज़िन्दा जला दिया। दिल दहला देनी वाली यह घटना दरिंदों की हिम्मत और पुलिस प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है।
ऐसी घटनाएँ सरकारों और पुलिस को चुनौती देकर ललकारती हैं कि तुम अपराधियों का कुछ नहीं कर सकते। ऐसी वीभत्स घटनाओं की पीड़ा जनता को होती है; लेकिन वह न्याय के लिए कुछ दिन के प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं कर पाती। क़ानून के हाथ बँधे लगते हैं और पुलिस हीला-हवाली का परिचय देते हुए जाँच करती है।
दिल्ली की इस घटना से क्रोधित लोगों ने भी लगातार न्याय की माँग की, तब जाकर दरिंदों को पुलिस हिरासत में न्यायालय ने भेजा। यह तब हुआ, जब न्यायालय में दायर एक याचिका में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने आरोपियों को गवाहों और सुबूतों की पुष्टि करने के लिए पाँच दिन के रिमांड की माँग की। यानी न्याय अभी भी दूर सुबूतों के इंतज़ार में है।
पीडि़त परेशान हैं। न्याय माँग रहे हैं। बच्ची के साथ वहाँ के 55 वर्षीय पुजारी राधेश्याम, सलीम, लक्ष्मीनारायण और कुलदीप ने मासूम के साथ बारी-बारी से बलात्कार किया। जब बच्ची लहूलुहान हो गयी, तो वहीं श्मशान घाट में ज़िन्दा जला दिया। जब परिजनों को इस घटना का पता चला, तो वे और कुछ पड़ोसी दौड़े-दौड़े श्मशान घाट पहुँचे और जलती चिता को पानी से बुझाते हुए बच्ची के बुरी तरह जले शव को बाहर निकाला। लोगों ने पुलिस को इस वीभत्स घटना की तत्काल सूचना दी। ज़िन्दा जली बेटी के पैर और शरीर का कुछ ही हिस्सा जाँच-पड़ताल व पोस्टमार्टम के लिए बचा था। पुलिस ने शव का नज़दीकी अस्पताल में पोस्टामार्टम कराया। पुलिस ने बच्ची की माँ के बयान के आधार पर आरोपियों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा-302 (हत्या), धारा-376 (बलात्कार) और धारा-506 (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) व एससी / एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। मृतक बच्ची के माता-पिता की सहमति के बिना बच्ची के शव का दाह संस्कार कर दिया गया।
घटना से पहले चारों आरोपी घटना स्थल के पास ही बैठकर शराब पी रहे थे। उन्होंने पानी भरने आयी अकेली बच्ची देखी, तो उसे कमरे में ले गये और दरिंदगी दिखा डाली। स्थानीय लोगों ने उन्हें पकडक़र पुलिस के हवाले किया।
ज़िला डीसीपी इंगित प्रताप सिंह का कहना है कि दिल्ली पुलिस इस मामले में 60 दिन के अन्दर ही चार्जशीट दाख़िल कर देगी। जो भी इस घटना से जो भी साक्ष्य जुटाने सम्भव हो सके, उन्हें जुटा लिया गया है। वारदात के वैज्ञानिक सुबूत भी जुटाये गये हैं। आरोपियों के कपड़ों और कमरे को सील कर दिया है। जो जाँच में काम आएँगे। मुख्य आरोपी के घर और शरीर से सभी बायोलॉजिकल सुबूत एकत्रित किये गये हैं, जिसमें कपड़े, अंग वस्त्र (अंडरगार्मेंट), चादर और बच्ची के डीएनए से जुड़े सभी सुबूत शामिल किये गये हैं।
अब अदालत में सुबूत पेश किये जाएँ, तो मृतक बच्ची और उसके परिजनों को न्याय मिले। सबसे बड़े सुबूत के रूप में ज़िन्दा जलती मिली बच्ची कोई मायने नहीं रखती।
घटना वाली जगह के पास के लोगों का कहना है कि पुलिस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है, तो नेता आकर दिखावा कर रहे हैं। एक ओर तो केंद्र सरकार कहती है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; महिलाओं का सम्मान, राष्ट्र का सम्मान है। वहीं दूसरी ओर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाती। उसके बड़े-बड़े दावों, बड़ी-बड़ी बातों की पोल तब खुलती है, जब किसी के साथ दरिंदगी हो जाती है। पीडि़तों को न्याय के लिए इतना परेशान होना पड़ता है, मानो उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। बहुत-से मामले तो न्याय व्यवस्था में ख़ामी होने और लोकलाज के डर से घर में दबकर रह जाते हैं। देश में बच्चियों से लेकर महिलाओं के साथ आये दिन बलात्कार जैसी घटनाएँ होती रहती हैं। इन घटनाओं की सबसे ज़्यादा शिकार छात्राएँ और कामकाजी महिलाएँ होती हैं।
बाल्मीकि समाज के उदय सिंह गिल ने कहा कि यह घटना 2020 में हुई हाथरस की घटना की याद दिलाती है, जिसमें दरिंदगी के बाद दलित बेटी को तड़पा-तड़पाकर जान से मार दिया गया और पुलिस ने उसके शव को जबरन जला दिया। उनका आरोप है कि तब भी पीडि़त दलित परिवार को पुलिस ने डराया-धमकाया और इस मामले में भी पुलिस डरा-धमका रही है।
दिल्ली की बच्ची के परिजन और उनके पड़ोसी पीडि़त बच्ची को न्याय दिलाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। वे लगातार नागलराया थाने की पुलिस से लेकर केंद्र सरकार तक से दोषियों को फाँसी की सज़ा देने की माँग कर रहे हैं। ‘तहलका’ को पीडि़तों के एक रिश्तेदार और सम्बन्धित समाज के लोगों ने बताया कि कि नौ साल की मासूम बच्ची अपने घर के पास बने श्मसान घाट के बाहर लगे नल से पानी लेने गयी थी। उसी समय वहाँ बैठे शराब पी रहे दरिंदों ने उसके साथ दरिंदगी दिखायी और अधमरा करके उसे ज़िन्दा जला दिया।
बच्ची की माँ सुशीला देवी पिता मोहनलाल का आरोप है कि जब वे पुलिस स्टेशन अपनी बेटी के साथ हुई इस अमानवीय घटना की शिकायत करने पहुँचे, तो पुलिस ने शिकायत सुनने के बजाय, उनसे मारपीट की और मामले को दबाने की कोशिश की। मोहन लाल रोते हुए कहते हैं कि अगर पुलिस चाहती, तो मेरी बेटी बच सकती थी; लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जब तक इस मामले में थाने में मौज़ूद पुलिस वाले दोषियों को बचाने में लगे हैं, तब तक न्याय मिलना मुश्किल है। नागलराया में इस समय थाने के बाहर से लेकर श्मशान घाट और मुख्य सडक़ पर बाल्मीकि समाज, दलित मोर्चा व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं का उग्र धरना-प्रदर्शन जारी है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार से लेकर दिल्ली पुलिस तक, सब दिखावे के तौर पर काम कर रहे हैं।
बच्ची को न्याय दिलाने के लिए बाल्मीकि समाज के हज़ारों लोग लगातार मोमबत्ती जुलूस (कैंडल मार्च) निकाल रहे हैं। समाजसेवी प्रेमलता सत्यार्थी का कहना है कि दोषियों को फाँसी की सज़ा जल्द-से-जल्द मिलनी चाहिए, ताकि बच्ची और उसके परिजनों को न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि वह समय-समय पर दलित बस्ती से लेकर महिलाओं के बीच जाकर इस बात के लिए जागरूक करती हैं, ताकि किसी भी प्रकार की कोई घटना समाज में न घट सके। उन्होंने कहा कि आज भी समाज में महिलाओं को कुछ लोग गंदी मानसिकता से देखते हैं। इस तरह की घटनाएँ मानव समाज के लिए कलंक हैं।
बाल्मीकि समाज की महिला सुमन का कहना है कि यहाँ का पुजारी और उसके साथी पहले भी महिलाओं के साथ अभद्रता और अनाचार जैसी घटनाओं में शामिल रहे हैं। इस बाबत उनकी शिकायतें भी की गयी हैं; लेकिन कार्रवाई नहीं होने से उनका मनोबल बढ़ा हुआ था और उन्होंने दिल दहला देने वाली इस घटना अंजाम दे दिया। यह घटना हमारे समाज के लिए बेहद दु:खद और पूरे मानव समाज के लिए कलंक है।
बाल्मीकि समाज के युवाओं ने बाइक रैली निकालकर भाजपा, कांग्रेस, आम आपमी पार्टी के साथ-साथ आरएसएस को ललकारा है। उनका कहना है कि राजनीतिक दल दलितों को वोट बैंक तौर पर उपयोग करते हैं, लेकिन उनकी तकलीफ़ों में उनका साथ नहीं देते। बाल्मीकि समाज के युवा दिलीप कुमार का कहना है कि दलित बहन-बेटियों के साथ आये दिन यहाँ पर छेडख़ानी की घटनाएँ होती रहती हैं; लेकिन कार्यवाई के नाम पर कुछ नहीं होता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जैन का कहना है कि देश में ऐसे अपराधों को रोकने और अपराधियों से निपटने के लिए क़ानून पहले से मौज़ूद है। लेकिन सियासी तिकड़बाजी और वोट बैंक के चलते ऐसे मामलों को दबाने की कोशिशें की जाती हैं। इसी सियासी हेराफेरी के चलते दोषियों को सज़ा नहीं मिल पाती और पीडि़त को न्याय नहीं मिल पाता। क़ानून तो है पर क़ानूनी व्यवस्था लचर है; जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बच्ची के परिजनों से मिलकर दिलासा दिया और 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस और क़ानून व्यवस्था को दुरस्त करने की ज़रूरत है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने पीडि़त परिजनों से मुलाक़ात करके हर सम्भव सहायता देने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह बच्ची को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते रहेंगे।
वहीं वामपंथी नेता वृंदा करात ने घटना स्थल पर पहुँचकर पीडि़त परिजनों का दर्द सुना और कहा कि देश में क़ानून व्यवस्था को सुधार की ज़रूरत है। उन्होंने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज भी देश की राजधानी दिल्ली में महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं, जो कि बेहद शर्मनाक है।
भीम पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण आज़ाद ने कहा कि केंद्र और दिल्ली, दोनों सरकारों की उदासीनता का नतीजा है, जो आज भी ऐसी आमानवीय घटनाएँ घट रही हैं।
वहीं घटना से ग़ूस्साए लोगों ने दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता का उस समय जमकर विरोध किया, जब वह परिजनों से मिलने पहुँचे। लोगों ने उनके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की। आदेश गुप्ता ने पीडित परिजनों को आश्वासन दिया कि वह दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट तक संघर्ष करेंगे, ताकि वे बच न पाएँ।