बँटवारे की माँग

भाषा और जनसंख्या के आधार पर अलग राज्य की माँग कर रहे कई राज्यों के लोग

हाल में दिल्ली के जंतर-मंतर पर अलग मिथिला राज्य बनाने की माँग को लेकर मिथिलांचल के लोगों ने धरना प्रदर्शन किया। मैथली भाषा संविधान की अष्टम अनुसूची में दर्ज है और उत्तरी बिहार और झारखण्ड के एक हिस्से में अलग मिथिला राज्य की माँग काफ़ी पहले से रही है। मिथिला ही नहीं देश भर में एक दर्ज़न के क़रीब अलग राज्य की माँगें हैं और इन्हें लेकर आन्दोलन भी चल रहे हैं।

अगस्त में संसद के सत्र के दौरान सरकार ने भले कहा था कि फ़िलहाल उसका नये राज्य बनाने का अभी कोई इरादा नहीं है, वरिष्ठ भाजपा नेता उमेश कट्टी, जो कर्नाटक सरकार में केबिनेट मंत्री भी हैं; ने कुछ समय पहले दावा किया था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में 50 राज्य बनाने का फ़ैसला किया है। उनके मुताबिक, मोदी इस पर विचार कर रहे हैं। देखें तो भारत में राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हुआ था और वर्तमान में जिन राज्यों में अलग राज्य बनाने की माँग उठ रही है, वह भी भाषा के आधार पर ही रही है। यह माना जाता है की बड़े राज्यों की अपेक्षा छोटे राज्य बेहतर विकास करते हैं। हालाँकि राज्यों का बँटवारा वहाँ की स्थितियों पर भी निर्भर करता है। देखें तो उत्तर से लेकर दक्षिण और पश्चिम तो उत्तर पूर्व तक अलग राज्यों की माँग चल रही हैं। वैसे हाल के दशकों में देखा गया है कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक लाभ के हिसाब से अलग राज्यों को लेकर अपना रुख़ रखते रहे हैं।

वर्तमान में देश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। देश की आज़ादी के समय भारतीय भूभाग में मौज़ूद 565 रियासतों का एकीकरण कर राज्यों का गठन किया गया था। तब देश में 17 राज्य बनाये गये थे। इसके बाद समय-समय पर पुनर्गठन के ज़रिये नये राज्य बनाये जाते रहे हैं। ख़ासतौर पर भाषाई आधार पर बँटते-बँटते 65 साल में 28 राज्य हो गये हैं। देश में आख़िरी बार 2019 में जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कर दो केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लद्दाख़ बनाये गये थे।

‘तहलका’ की जुटायी जानकारी के मुताबिक, गृह मंत्रालय के पास आज की तारीख़ में राज्यों का पुनर्गठन कर अलग राज्य बनाने की माँग वाले एक दर्ज़न से ज़्यादा प्रस्ताव लम्बित हैं। राज्यों का मसला काफ़ी संवेदनशील भी है, क्योंकि एजेंसियों के इनपुट्स के मुताबिक ही इसका फ़ैसला होता है। कारण है देश की सुरक्षा और अस्थिरता का रिस्क, ख़ासकर सीमावर्ती राज्यों में। पहले बात हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) की माँग की। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छ: मंडलों आगरा, अलीगढ़, बरेली, मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर के 22 ज़िलों को जोडक़र अलग राज्य की माँग है। दिसम्बर, 2009 में तब प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अलग हरित प्रदेश के गठन का समर्थन कर चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में ही पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) की भी माँग है। उत्तर में नेपाल, पूर्व में बिहार, दक्षिण में मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड और पश्चिम में उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र से घिरे क्षेत्र हैं। यहाँ सबसे ज़्यादा भोजपुरी बोलने वाले लोग हैं और 23 लोकसभा और 117 विधानसभा क्षेत्र इस इलाक़े के तहत पड़ते हैं।
दक्षिणी गुजरात में अलग सौराष्ट्र राज्य की माँग है और इसके लिए आन्दोलन सन् 1972 में ही शुरू हो गया था। सौराष्ट्र संकलन समिति, यह आन्दोलन कर रही है और सौराष्ट्र क्षेत्र के 300 से अधिक संगठन उसके साथ हैं। समिति का आरोप रहा है कि सौराष्ट्र काफ़ी अविकसित क्षेत्र है और अलग राज्य बनकर ही वह विकास कर सकता है। वहाँ पानी की सुविधाओं के अलावा रोज़गार मुख्य माँग है और बड़ी संख्या में क्षेत्र के युवा रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों को पलायन करते हैं। सौराष्ट्र क्षेत्र में गुजरात के अन्य हिस्सों के विपरीत भाषा भी भिन्न है।

पूर्वी महाराष्ट्र में विदर्भ, जिसमें अमरावती और नागपुर सम्भाग शामिल हैं, के लिए अलग राज्य की माँग है। सन् 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम में विदर्भ बॉम्बे स्टेट में शामिल था। बाद में राज्यों के पुनर्गठन आयोग ने नागपुर को राजधानी बनाकर अलग विदर्भ राज्य की स्थापना की सिफ़ारिश की; लेकिन इसे महाराष्ट्र में शामिल कर दिया गया। महाराष्ट्र का गठन 1 मई, 1960 को किया गया था।उत्तरी असम में पुनर्गठन करके अलग बोडोलैंड राज्य की माँग तो बहुत लम्बी है। इसके लिए बड़ा आन्दोलन हो चुका है। आन्दोलन के ही कारण केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स के बीच 10 फरवरी, 2003 को एक समझौता हुआ जिसके बाद बोडो-बहुल चार ज़िलों के 3,082 गाँवों में शासन व्यवस्था को बेहतर तरीक़े से चलाने के लिए बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् (बीआरसी) गठित की गयी।

बोडो राज्य की माँग को लेकर आन्दोलनकारियों ने हिंसक आन्दोलन चलाया था, जिसमें बड़ी संख्या में लोग भी मरे। बोडो आदिवासी इलाक़ों को अलग राज्य बनाने का यह आन्दोलन आज भी है। बिहार में मिथिलांचल की माँग भाषाई आन्दोलन के समय से है। मैथिली भाषा बोलने वाले उत्तरी बिहार और उससे सटे झारखण्ड राज्य के इलाक़ों को मिलाकर मिथिलांचल बनाने की माँग अब फिर तेज़ी पर है। मैथिली भाषी लोगों की बात की जाए, तो सात करोड़ से अधिक लोग मैथली बोलते हैं। हाल में दिल्ली में भी इस माँग को लेकर धरना-प्रदर्शन लोगों ने किया। यह लोग उत्तरी बिहार और झारखंड के मैथिली भाषा बोलने वाले ज़िलों को जोडक़र मिथिलांचल की माँग कर रहे हैं।
उत्तरी पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड की माँग भी काफ़ी पुरानी है। पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में दार्जिलिंग पहाडिय़ों के निवासी गोरखा (नेपाली) हैं और अलग राज्य की माँग उठाते रहे हैं। इस आन्दोलन और माँग के पीछे कारण स्थानीय लोगों की जातीय-भाषाई-सांस्कृतिक भावना है। वैसे क्षेत्र को अलग प्रशासनिक क्षेत्र की मान्यता की माँग 1907 में ही हो गयी थी। गोरखालैंड को अलग राज्य बनाने का बड़ा आन्दोलन 80 के दशक में शुरू हुआ, जब सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने हिंसक आन्दोलन किया।

दक्षिणी तमिलनाडु में कोंगूनाडू की माँग क्षेत्रीय भेदभाव से उपजी माँग है। पश्चिम तमिलनाडु, दक्षिण कर्नाटक और केरल के मध्य-पूर्व के इलाक़ों को एक करके कोंगूनाडु (कोंग देशम) राज्य की माँग कई बार उठ चुकी है। राज्य की अर्थ-व्यवस्था का घर कहलाये जाने वाले कोंगूनाडू क्षेत्र को अलग राज्य बनाने के लिए कोंगूनाडु मक्कल देसिया काची, कोंगू वेल्लाला ग्वार्थवर्गाल पेरावईम, तमिलनाडु कोंगू इलाग्नार पेरावई जैसे संगठन सक्रिय हैं।

कर्नाटक में दो नये राज्य बनाने की माँग के लिए भी आन्दोलन हुए हैं। कर्नाटक के गोवा से सटे तुलु भाषी क्षेत्र में तुलुनाडु के नाम से अलग राज्य की लोगों की माँग है। उधर कर्नाटक में ही दक्षिण-पश्चिम इलाक़े को कुर्ग राज्य बनाने की माँग होती रही है।
जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को धारा-370 हटाने के बाद देश में एक राज्य कम हो गया। जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्ज़ा ख़त्म हो गया और इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ नाम से दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया गया। देश में दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव, चंडीगढ़, पुडूचेरी भी अन्य केंद्र शासित प्रदेश हैं। इनमें से कई पूर्ण राज्य की माँग करते रहे हैं।

नये राज्य नहीं : केंद्र
केंद्र सरकार का फ़िलहाल कहना है कि देश में अब राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या नहीं बढ़ायी जा रही है। ज़ाहिर है नये राज्य बनाने की माँग को लेकर हो रहे आन्दोलनों को इससे झटका लगा है। संसद के मानसून सत्र में लोकसभा में कांग्रेस के सदस्य अदूर प्रकाश ने देश में नये राज्यों के गठन को लेकर एक सवाल पूछा था। इस सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सदन को बताया कि ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास विचाराधीन नहीं है। राय ने कहा- ‘नये राज्यों के निर्माण के लिए विभिन्न संगठनों, समुदायों या मंचों से सरकार को प्रस्ताव या आग्रह मिलते रहते हैं। फ़िलहाल ऐसा कोई भी प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है।’

“जनसंख्या में वृद्धि के मद्देनज़र मैं व्यक्तिगत रूप से नये राज्यों के गठन के विचार का समर्थन करता हूँ। कर्नाटक से दो राज्य, उत्तर प्रदेश से चार, महाराष्ट्र से तीन और इसी तरह के अन्य राज्य बनने चाहिए। नया उत्तर कर्नाटक राज्य गठित करने का सपना भी जल्द साकार होगा और देश में आने वाले तीन साल में राज्यों की कुल संख्या 50 हो जाएगी।’’
उमेश कट्टी
कर्नाटक के मंत्री का दावा