फोन हैक होने पर नहीं रहता स्पाइवेयर का उपयोग निजी

एक चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन में व्हाट्सएप ने कहा कि भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता विश्व-भर में उन 1,400 लोगों में शामिल हैं, जिनके फोन को स्पाइवेयर ‘पेगासस’ का उपयोग करके हैक किया गया था। व्हाट्सएप लोकप्रिय सोशल मीडिया इंजन फेसबुक के स्वामित्व के तहत है। अब इसने इज़राइली निगरानी कम्पनी एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि अप्रैल और मध्य मई के बीच उपयोगकर्ताओं की निजता को प्रभावित करने वाले साइबर हमलों के पीछे यही ग्रुप था। तहलका ब्यूरो विशेष

फेसबुक के स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप के अमेरिकी अदालत में मुकदमा दायर करने के बाद यह खुलासा हुआ है कि भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी के लिए इज़राइल के एक समूह ने स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया। इस खुलासे से देश-भर में हडक़म्प मच गया है और ज़ाहिर है कि साइबर स्पेस में गोपनीयता को लेकर गम्भीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। भारतीय संविधान निजता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है और इसे सर्वोच्च न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने बरकरार रखा था। उस समय अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि निजता के अधिकार की कोर्ई संवैधानिक गारंटी नहीं है।

एक चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन में व्हाट्सएप ने कहा कि भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता विश्व-भर में उन 1,400 लोगों में शामिल हैं, जिनके फोन को स्पाइवेयर ‘पेगासस’ का उपयोग करके हैक किया गया था। व्हाट्सएप लोकप्रिय सोशल मीडिया इंजन फेसबुक के स्वामित्व के तहत है। अब इसने इज़राइली निगरानी कंपनी एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि अप्रैल और मध्य मई के बीच उपयोगकर्ताओं की निजता को प्रभावित करने वाले साइबर हमलों के पीछे यही ग्रुप था।

विशेषज्ञों के अनुसार, स्पाइवेयर पेगासस किसी उपयोगकर्ता के डिवाइस को या तो क्लिक करने योग्य लिंक भेजकर या केवल फोन पर कॉल करके संक्रमित कर सकता है। यदि कॉल अनुत्तरित है, तो भी फोन डिवाइस हैक हो जाएगा। पेगासस अब तक के सबसे परिष्कृत मोबाइल मालवेयर में से एक है, जो हैकर्स को एक टारगेट के डिवाइस की संख्या को रिंग करके फोन की तमाम गतिविधियाँ नियंत्रित कर सकता है।

एक बार स्थापित होने के बाद यह लक्षित उपयोगकर्ता के निजी डाटा- जिसमें पासवर्ड, सम्पर्क सूची, कैलेंडर ईवेंट, टैक्स्ट मैसेज और लोकप्रिय  एप से की गयी लाइव वॉयस कॉल शामिल हैं; को उस पार्टी को भेज देता है, जिसने डिवाइस इस्तेमाल किया है। मालवेयर हैक किये गये फोन को एक तरह के जासूस में बदल देता है। इसका कैमरा अपने आप सक्रिय हो जाता है और पूरी गतिविधि को ऑडियो और विजुअल के रूप में लाइव कैप्चर किया जा सकता है। स्पाइवेयर उपकरणों का पूर्ण नियंत्रण ले सकता है और स्नूपिंग के साथ-साथ डाटा का इंजेक्शन सम्भव कर देता है।

फोन किसने हैक किया?

भारत में फोन हैक करने के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग किसने किया? यह एक बड़ा सवाल है और इसका जवाब एनएसओ के पास है, जिसने कहा है कि ‘यह अपने स्पाइवेयर को विशेष रूप से सरकारी ग्राहकों को बेचता है।’ विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि इस गम्भीर मुद्देे को पचा जाने और व्हाट्सएप को इस पर जवाब देने से आगे जाकर जनता को यह बताना चाहिए कि निगरानी सॉफ्टवेयर की खरीद के लिए कौन अधिकृत है और किस सरकारी एजेंसी ने इसे अनुमति दी है? कांग्रेस ने एक बयान में कहा है- ‘भारत के नागरिकों की अवैध, असंवैधानिक और अनधिकृत निगरानी के मुद्दे को पचाने के बजाय सम्बन्धित मंत्री को यह बताना चाहिए कि निगरानी सॉफ्टवेयर की खरीद के लिए कौन अधिकृत है और किस सरकारी एजेंसी ने इसे अनुमति दी?’ स्नूपिंग की खबरों ने विपक्ष को नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधने के लिए नया हथियार दे दिया है।

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता ने एक ट्वीट में कहा- ‘मोदी सरकार जासूसी करते पकड़ी गई। भयावह, लेकिन आश्चर्य की बात नहीं! आिखरकार, भाजपा सरकार हमारी निजता के अधिकार के िखलाफ लड़ी है और सर्वोच्च न्यायालय के बन्द करने वाले एक आदेश से पहले ही उसने एक मल्टी करोड़ की निगरानी वाली संरचना स्थापित कर दी। सर्वोच्च न्यायालय को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और भाजपा सरकार को एक नोटिस जारी करना चाहिए।’

व्हाट्सएप की प्रतिक्रिया

सारा विवाद व्हाट्सएप के यह कहने के बाद कि ‘भारत में पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता निगरानी के निशाने पर हैं;’ के बाद शुरू हुआ। व्हाट्सएप ने इज़राइल की साइबर खुिफया कम्पनी एनएसओ ग्रुप के िखलाफ कैलिफोर्निया की संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है, जिसने आरोपों से इनकार किया है। हालाँकि, एनएसओ समूह ने अतीत में स्वीकार किया है कि वह अपना सॉफ्टवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचता है। हालाँकि हमेशा उनसे अनुरोध करता है कि इसका दुरुपयोग न करें।

कैसे संचालित होता है पेगासस?

रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत में लगभग दो दर्जन पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और वकीलों को निशाना बनाया गया था। विश्व स्तर पर 1,400 ऐसे उपयोगकर्ताओं की संख्या थी, जिनमें राजनयिक, राजनीतिक विरोधियों के साथ-साथ वरिष्ठ सरकारी अधिकारी भी शामिल थे। पेगासस स्काइप, टेलीग्राम, वाइबर, एसएमएस, फोटो, ईमेल, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, फाइल्स से लेकर ब्राउजिंग हिस्ट्री के अलावा माइक्रोफोन और कैमरा रिकॉर्डिंग सहित पूरे सेल तक का डाटा हैक कर सकने में माहिर है। लक्ष्य के फोन नम्बरों का उपयोग करके पेगासस स्थापित किया जा सकता है। यह डाटा एकत्र करने के लिए लक्ष्य के कैमरा और माइक को सक्रिय कर सकता है। इसे स्थापित करने के लिए किसी व्यक्ति का फोन नम्बर मात्र ही काफी है। सबसे आम तरीका एसएमएस या फ्लैश एसएमएस है।

केंद्र ने एक अजीब-सी प्रतिक्रिया में व्हाट्सएप को जवाब देने के लिए कहा और एक तरह से पिछली कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाकर वर्तमान मामले को दबाने की कोशिश की। मंत्री ने आरोप लगाया कि अतीत में स्नूपगेट ‘कांग्रेस की उत्पत्ति’ थी। केंद्र ने विवाद को निपटाने की कोशिश की; लेकिन मुख्य मुद्दे को पृष्ठभूमि में डाल दिया। इज़राइली फर्म का दावा है कि वह अपनी पेगासस स्पाइवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचता है। सरकार के प्रति संदेह के इस बिन्दु के रूप में यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि भारत में किस एजेंसी ने इसे खरीदा है? सरकार की अभी तक एकमात्र कार्यवाही व्हाट्सएप से जवाब माँगने तक सीमित रही है, जिसके करीब 40 करोड़ सक्रिय यूजर्स हैं। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने व्हाट्सएप से उल्लंघन पर स्पष्टीकरण माँगा। एक ट्वीट में मंत्री ने कहा- ‘हमने व्हाट्सएप से कहा है कि किस तरह का उल्लंघन हुआ है और वह लाखों भारतीय नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए क्या कर रहा है?’

प्रसाद ने कहा कि सरकार चिंतित है और हमने व्हाट्सएप से उल्लंघन को रोकने और लाखों भारतीयों की निजता की रक्षा के लिए कहा है। प्रसाद ने कहा- ‘सरकार सभी भारतीयों की निजता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। सरकारी एजेंसियों के पास इंटरसेप्शन के लिए बेहतर तरीके से स्थापित प्रोटोकॉल है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के उच्च रैंक वाले अधिकारियों से मंजूरी और निगरानी शामिल है।’

सरकार ने फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप से भारतीय पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों पर एक इज़राइली स्पाइवेयर वाले स्नूपिंग ऑपरेशन की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए कहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सरकार पर जासूसी को लेकर उठते सवालों को ‘भ्रामक’ बताया और कहा यह सरकार की छवि खराब करने की कोशिश है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक बयान में कहा- ‘भारत सरकार मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप पर भारत के नागरिकों की गोपनीयता भंग करने से चिन्तित है। हमने व्हाट्सएप से पूछा है कि किस तरह का निजता उल्लंघन हुआ है और वह लाखों भारतीय नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए क्या कर रहा है?’

आरोप-प्रत्यारोप

मंत्री ने विपक्ष, जिसने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप का आग्रह किया है; को याद दिलाने की कोशिश की कि कांग्रेस (यूपीए) के तत्कालीन शासन में क्या हुआ? मंत्री ने कहा- ‘इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करने वालों को यूपीए के शासनकाल में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के कार्यालय में हुई घटना को याद रखना चाहिए। साथ ही तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह की जासूसी के आरोप भी याद रखने चाहिए।’ प्रसाद ने कहा कि असल में ये प्रतिष्ठित व्यक्तियों की निजता के उल्लंघन के उदाहरण हैं।

व्हाट्सएप स्नूपिंग विवाद के मद्देनज़र, गृह मंत्रालय ने सफाई दी है कि उसे इज़राइल के स्पाइवेयर पेगासस को खरीदने के लिए दिये किसी ऑर्डर की कोर्ई जानकारी नहीं है। साथ ही कहा कि सरकार नागरिकों की गोपनीयता भंग करने के लिए जि़म्मेदार किसी भी व्यक्ति के िखलाफ सख्त कार्यवाही करेगी।

निशाने पर कौन?

अभी तक की रिपोट्र्स के मुताबिक, 10 भारतीय कार्यकर्ताओं ने फेसबुक के स्वामित्व वाले चैटिंग  एप से उनकी जासूसी किये जाने वाला संदेश मिलने की पुष्टि की है। भीमा कोरेगाँव मामले से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया और निहाल सिंह राठौड़-एक वकील ने व्हाट्सएप से इस मामले में अलर्ट मिलने की पुष्टि की है। उनके मुताबिक, उन्हें बताया गया कि उनके फोन दो सप्ताह की अवधि के लिए मई 2019 तक अत्याधुनिक निगरानी में थे।

रिपोट्र्स के मुताबिक, अन्य आठ हैं- जगदलपुर लीगल एड ग्रुप की शालिनी गेरा, दलित अधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान, अकादमिक आनंद तेलतुम्बड़े, छत्तीसगढ़ के शुभ्रांशु चौधरी, दिल्ली से पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के आशीष गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सरोज गिरि, पत्रकार सिद्धांत सिब्बल और स्वतंत्र पत्रकार राजीव शर्मा।

एक्टिविस्ट, वकील और शिक्षाविद् व्हाट्सएप हैकिंग के शिकार हैं। उनमें से कुछ हाशिये के समुदायों आदिवासी और दलितों के साथ काम कर रहे थे। दलित समुदाय के एक वकील जगदीश मेश्राम, जो गडलिंग के साथ काम कर चुके हैं; भी उनमें शामिल हैं, जिन्हें व्हाट्सएप ने सम्पर्क किया था। मेश्राम ने मार्च और अप्रैल, 2019 के बीच गुमनाम नम्बरों से वीडियो कॉल करने की सूचना दी। वह उस समय मुंबई में थे, जब उनका फोन हैक हुआ था। छत्तीसगढ़ की मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया को भी फोन और डाटा हैकिंग की जानकारी वाले वीडियो कॉल प्राप्त हुए।

रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत में लगभग दो दर्जन पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और वकीलों को निशाना बनाया गया था। विश्व स्तर पर ऐसे लोगों की संख्या 1,400 है, जिनमें राजनयिक, राजनीतिक विरोधियों के साथ-साथ वरिष्ठ सरकारी अधिकारी भी शामिल थे।

पेगासस स्काइप, टेलीग्राम, वाइबर, एसएमएस, फोटो, ईमेल, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, फाइल्स से लेकर ब्राउजिंग हिस्ट्री के अलावा माइक्रोफोन और कैमरा रिकॉॄडग सहित पूरे सेल के डाटा को चोरी कर सकता है।

पेगासस का संदेहास्पद अतीत

यह पहली बार नहीं है कि पेगासस राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं पर निशाना साधने के लिए सरकारों की तरफ से एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किये जाने के लिए चर्चा में आया है। पिछले साल एक रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि पेगासस का इस्तेमाल एक सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की निगरानी के लिए भी किया गया था, जिसकी सऊदी सरकार के गुर्गों ने तुर्की में हत्या कर दी थी। कनाडा स्थित संगठन सिटीजन लैब, जो साइबर सुरक्षा पर शोध करता है; के अनुसार पेगासस और व्हाट्सएप हैक का उपयोग भारत में एक समूह ने किया, जो खुद को पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को लक्षित करने वाला गैंग कहता था।

साल 2016 में सिटीजन लैब ने संयुक्त अरब अमीरात सरकार के पेगासस के माध्यम से मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर के फोन को संक्रमित करने के प्रयास का खुलासा किया था। साल 2018 में सऊदी पत्रकार और वाशिंगटन पोस्ट स्तम्भकार जमाल खशोगी के दो सक्रिय मित्रों के डिवाइस पेगासस स्पाइवेयर की तरफ से संक्रमित पाये गये थे।

फोब्र्स की एक जाँच के मुताबिक, सऊदी अधिकारी इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में खशोगी की हत्या की अगुवाई करने वाले कार्यकर्ताओं की महत्त्वपूर्ण जानकारी का पता लगाने में सक्षम थे। पिछले साल, एक रिपोर्ट ने संकेत दिया कि पेगासस का इस्तेमाल जमाल खशोगी की निगरानी के लिए किया गया था।

22 नवंबर से ट्विटर पर राजनीतिक विज्ञापन नहीं

सोशल साइट के सीईओ ने कहा, करोड़ों ज़िंदगियों पर पड़ता है असर

सोशल साइट ट्विटर ने अपने प्लेटफॉर्म पर 22 नवंबर से राजनीतिक विज्ञापनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। दुनिया-भर के यूजर अब इस प्लेटफॉर्म पर पॉलिटिकल एड नहीं देख सकेंगे।  ट्विटर की इस नई पॉलिसी का ऐलान कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैक डॉर्सी ने स्वयं किया। अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाने के कई कारण भी गिनाये। ट्विटर पर विज्ञापन पर रोक लगाने को लेकर भरपूर सर्मथन मिला है।

जैक पैेट्रीक ने गिनाये कारण

जब राजनीतिक विज्ञापन या मैसेज लोगों तक पहुँचता है, तब उस अकाउंट को फॉलो किया जाता है। साथ ही री-ट्वीट से भी लोगों तक पहुँच बनती है।

इंटरनेट विज्ञापन देने वालों के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म बन चुका है। राजनीतिक विज्ञापनों से वोटरों को प्रभावित किया जा सकता है। इससे करोड़ों लोगों की ज़िंदगियाँ प्रभावित होती हैं।

यह अभिव्यक्ति की बात नहीं है। यहाँ पैसा देकर राजनीतिक भाषण को आगे बढ़ाने से लोगों पर बहुत असर होता है।

अब तक इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था भी तैयार नहीं हुई है।

लोग वोटर के रजिस्ट्रेशन के लिए विज्ञापन दे सकेंगे। साथ ही नयी पॉलिसी में विज्ञापन देने वालों को नया नोटिस पीरियड मिलेगा।

भारत में लागू होंगे नए नियम

पॉलिटिकल विज्ञापनों से निपटने के मुद्दे पर भारत भी जूझ रहा है। इससे पहले भी केंद्र सरकार ने इन विज्ञापनों को लेकर नियम बनाने को कहा था।

फेसबुक का रोक लगाने से इन्कार

ट्विटर की प्रतिद्वंद्वी कम्पनी फेसबुक ने ऐसे किसी भी राजनीतिक विज्ञापन पर रोक लगाने से इन्कार किया है। उसका मानना है कि इससे लोकतंत्र और मज़बूत होता है। बता दें कि अमेरिका समेत दुनिया-भर के कई देशों के आम चुनाव में ट्विटर और फेसबुक से वोटरों को खासा प्रभावित करते हैं और लोगों तक पहुँच बनाते हैं।

अमेरिका में 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में माइक्रोब्लॉगिंग साइट का खास असर है।  प्रतिबंध को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव प्रचार अभियान के मैनेजर बै्रड पारुकेल ने इस प्रतिबन्ध को ट्रम्प और रूढि़वादियों को शान्त कराने के लिए वामपंथियों का एक प्रयास करार दिया।

आई.टी. पर संसदीय स्थायी समिति ने जतायी ‘गम्भीर चिन्ता’

सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने 5 नवंबर, 2019 को अपने सदस्यों को एक परिपत्र जारी किया और समिति के अध्यक्ष शशि थरूर के जारी किये एक बयान पर उनकी टिप्पणी माँगी। थरूर ने बयान में कहा था कि ‘सरकार व्हाट्सएप से स्पष्टीकरण माँग रही है, जो खुद को हैकिंग का शिकार मानता है; न कि एनएसओ से, जो आरोपी प्रतीत होती है। इससे असली उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा।’ समिति ने सदस्यों से उनके विचार बताने की बात कहते हुए कहा कि इस मसले पर अगली बैठक में ‘सिटीजन डेटा सिक्योरिटी एंड प्राइवेसी’ विषय पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

थरूर के बयान में कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में, मुझे एक इज़राइली फर्म, एनएसओ द्वारा स्थापित सॉफ्टवेयर के माध्यम से व्हाट्सएप का उपयोग करने वाले भारतीय नागरिकों पर जासूसी के हालिया खुलासे पर टिप्पणियों के लिए कई अनुरोध प्राप्त हुए हैं। मीडिया ने भारतीय नागरिकों के कई नाम जारी किये हैं, जो इसके शिकार हुए हैं। यह भी लगता है कि मीडिया के माध्यम से जारी की गयी सूची पूरी नहीं है और स्नूपिंग का दायरा कहीं बड़ा हो सकता है।

हालिया रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है कि पेगासस नामक स्पाइवेयर के ज़रिये दो दजऱ्न से अधिक भारतीयों समेत करीब 1400 लोगों की जासूसी की गयी। व्हाट्सएप ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों से सम्पर्क किया है। इस बारे में व्हाट्सएप का मानना है कि ऐसे लोग भी जासूसी के शिकार हुए जो किसी भी आपराधिक या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे की सूची में शामिल नहीं थे। पेगासस ने व्हाट्सएप के वीडियो कॉलिंग तन्त्र के ज़रिये इन उपभोक्ताओं तक पहुँच बनायी। भारत सरकार ने व्हाट्सएप से इस बारे में स्पष्टीकरण माँगा है।

मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एनएसओ समूह ने केवल सरकारी निकायों को यह तकनीक प्रदान की है, निजी नागरिकों को नहीं। अब सवाल यह उठता है कि व्हाट्सएप से स्पष्टीकरण की माँग करना, जो खुद को हैक का शिकार मानता है। एनएसओ जो स्वयं शिकारी हो, वह कैसे कम्पनी से किसी तरह की सफाई माँग सकता है, संदेह पैदा करता है।

सरकार की ओर से कहा गया कि किसी भी निर्णय को पारित करने से पहले, हमें मीडिया में बतायी गयी जानकारी की सत्यता का पता लगाना चाहिए। ये रिपोर्ट और तकनीक का कथित इस्तेमाल एक गम्भीर चिन्ता का विषय है।

स्थायी समिति की अगली बैठक में इस पर विचार होगा। अगर ये आरोप सही हैं, तो यह पुष्टि करना बेहद ज़रूरी है कि क्या इस तरह की डाटा इंटरसेप्शन तकनीक का इस्तेमाल भारत सरकार के इशारे पर किया गया और इसका कानून में किया औचित्य है। आईटी मामले की स्थायी समिति के अध्यक्ष की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि जासूसी विदेशी संस्था के ज़रिये की गयी हो या देशी संस्था के ज़रिये; ऐसे में तो कोई भी सरकार के ज़रिये तकनीक का दुरुपयोग कर सकता है। चुने हुए प्रतिनिधियों के नाते यह सुनिश्चित करना हमारी ज़िम्मेदारी है कि कार्यपालिका के कार्यों में इन सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए। लोकतंत्र में हमें कार्यपालिका की शक्तियों के किसी भी दुरुपयोग को अनधिकृत तरीके से या बाहरी उद्देश्यों को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने निजता के मौलिक अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता दी है, और इस अधिकार का उल्लंघन करने वाली किसी भी कार्यवाही की वैधता का विश्लेषण करने की ज़रूरत है।