फल राज्य बन रहा हिमाचल

आर्थिकी का मुख्य आधार बनी बाग़वानी 7 तक़रीबन 12 लाख लोगों को मिल रहा रोज़गार

पर्यटन राज्य के रूप में मशहूर हिमाचल प्रदेश बाग़वानी राज्य के रूप में विकसित हो रहा है। भले सेब राज्य की आर्थिकी का बड़ा आधार रहा हो; लेकिन अन्य फलों के उत्पादन के साथ बाग़वानी प्रदेश के क़रीब 12 लाख लोगों के रोज़गार का ज़रिया बन गया है। प्रदेश में बाग़वानी का क्षेत्र बढक़र ढाई लाख हेक्टेयर होने वाला है और प्रदेश सरकार का लक्ष्य अब फल कारोबार को बढ़ाकर 6,000 करोड़ करने का है।

जहाँ तक सेब की बात है, हिमाचल को सेब उत्पादक राज्य बने 106 साल हो गये हैं। प्रदेश में सेब का पहला पौधा सत्यानंद स्टोक्स ने कोटगढ़ के थानाधार में सन् 1916 में अमेरिका के लुसियाना से लाकर रोपा था और बाद में इसका पूरा बग़ीचा तैयार किया था। सेब की व्यावसायिक खेती के 100 साल पूरे होने पर बाक़ायदा कार्यक्रम किया गया था।

जानकारों का कहना है कि बाग़वानी हिमाचल में आय के विभिन्न स्रोत उत्पन्न कर लोगों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध हो रही है। इस समय राज्य में 2.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाग़वानी के अधीन है। इस साल मार्च तक पिछले चार साल में प्रदेश में 31.40 लाख मीट्रिक टन फल उत्पादन हुआ है। इस अवधि में बाग़वानी क्षेत्र की वार्षिक आय औसतन 4575 करोड़ रुपये रही और औसतन 12 लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से रोज़गार मिला है। गर्म जलवायु वाले निचले क्षेत्रों में बाग़वानी की अपार सम्भावनाओं के दृष्टिगत, बाग़वानी क्षेत्र के समग्र विकास और राज्य के लोगों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में उपोष्णकटिबंधीय बाग़वानी, सिंचाई और मूल्य संवर्धन परियोजना (एचपी शिवा) प्रदेश सरकार की इस दिशा में बड़ी पहल है। परियोजना के तहत बीज से बाज़ार तक की संकल्पना के आधार पर बाग़वानी विकास किया जाएगा। इसमें नए बग़ीचे लगाने के लिए बाग़वानों को उपयुक्त पौध सामग्री से लेकर सामूहिक विपणन तक की सहायता और सुविधाएँ प्रदान की जाएँगी। हाल के वर्षों में बाग़वानी के वैश्विक बाज़ार में राज्य के योगदान में कई गुणा वृद्धि दर्ज की गयी है।

हिमाचल के बाग़वानी मंत्री महेंद्र सिंह ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘हिमाचल अब फल राज्य बनने की ओर अग्रसर है। परियोजना के अंतर्गत बीज से बाज़ार तक की संकल्पना के आधार पर बाग़वानी विकास किया जाएगा। परियोजना का लक्ष्य अधिक-से-अधिक बेरोज़गार युवाओं और महिलाओं को बाग़वानी कार्य से जोडऩा है।’

एशियन विकास बैंक के सहयोग से क्रियान्वित की जा रही कुल 975 करोड़ रुपये लागत की इस परियोजना में 195 करोड़ रुपये सरकार का अंशदान है। हिमाचल सरकार ने परियोजना के क्रियान्वयन के लिए अब तक 48.80 करोड़ रुपये प्रदान किये हैं, जिसमें से मार्च तक 37.31 करोड़ रुपये व्यय किये जा चुके हैं।

इस परियोजना के अन्र्तगत सिंचाई सुविधा के साथ-साथ फलों की बेहतर क़िस्मों से बाग़वानी क्षेत्र में क्रान्ति लाने के उद्देश्य से अमरूद, लीची, अनार और नींबू प्रजाति के फलों के पायलट परीक्षण के लिए एशियन विकास बैंक मिशन द्वारा क़रीब 75 करोड़ रुपये से वित्तपोषित योजना तैयार की गयी, जिसमें बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी और कांगड़ा ज़िलों के 12 विकास खण्डों के 17 समूहों के तहत क़रीब 200 हेक्टेयर क्षेत्र के किसानों का चयन कर सभी समूहों में पौधरोपण का कार्य किया गया है।

सरकार के मुताबिक, एचपी शिवा परियोजना के तहत एएफसी इंडिया लिमिटेड के सहयोग से बाग़वानों को संगठित कर सहकारी समितियों का गठन करके इन्हें पंजीकृत किया जा रहा है। ये समितियाँ परियोजना के तहत स्थापित किये जा रहे बग़ीचों के सामूहिक प्रबन्धन, सामूहिक उत्पादन, उत्पादित फ़सलों के मूल्य संवर्धन, प्रसंस्करण और सामूहिक विपणन हेतु कार्य करने के साथ ही फलों से सम्बधित अन्य व्यवसायिक गतिविधियों का संचालन भी करेंगी, जिसके लिए उद्यान विभाग द्वारा इन समितियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और इनका क्षमता विकास किया जा रहा है। इन समितियों को बहु-हितधारक मंच के माध्यम से विभिन्न सेवा प्रदाता संस्थाओं और बाज़ार से जोड़ा जाएगा, जिससे बाग़वानों को तकनीकी मागदर्शन व सेवाओं के साथ ही विपणन में सहयोग प्रदान किया जा सके।

उत्पादित फ़सलों के मूल्य संवर्धन हेतु मुख्य परियोजना में विभिन्न संरचनाओं जैसे पैकिंग, सॉर्टिंग और ग्रेडिंग हाउस, वातानुकूलित भण्डार गृह (सीए स्टोर), प्रसंस्करण इकाइयाँ, पैकेजिंग सामग्री आदि के विकास का प्रावधान किया जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं कि बाग़वानों को उनके बाग़ानों में ही फ़सल का उचित मूल्य मिल सके।

 बाग़वानी का बजट बढ़ा

हिमाचल सरकार ने 2022-23 बजट में बाग़वानी क्षेत्र के लिए 540 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। कृषि क्षेत्र के लिए 583 करोड़ रुपये रखे गये हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि बाग़वानी के लिए कृषि क्षेत्र के लगभग बराबर ही राशि रखी गयी है। मार्च में विधानसभा में बजट चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ने कहा था कि बाग़वानी क्षेत्र में उत्पादन और  उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक बाग़वानी नीति तैयार की जाएगी। मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि सत्यानंद स्टोक्स के व्यक्तित्व और योगदान को ध्यान में रखते हुए उनकी कर्मभूमि शिमला ज़िला के कोटगढ़ थानाधार और आसपास के क्षेत्र को ‘सत्यानन्द स्टोक्स ट्रेल’ बनाया जाएगा। इसका बहुआयामी स्वरूप बाग़वानी, पर्यटन, भाषा और संस्कृति विभागों के समन्वय से विकसित किया जाएगा। पराला मंडी को आदर्श मंडी के रूप में विकसित किया जा रहा है। फलों और सब्ज़ियों के भण्डारण की सुविधाओं में और अधिक बेहतरी के लिए इस मंडी में 60.93 करोड़ रुपये की लागत से 5,000 मीट्रिक टन क्षमता का एक नया कोल्ड स्टोर स्थापित किया जाएगा। इसके साथ ही 1,500 मीट्रिक टन क्षमता का फ्रीजिंग चैंबर, 10 मीट्रिक टन प्रति घंटा क्षमता की ग्रेडिंग पैकिंग लाइन और एक मीट्रिक टन प्रति घंटा क्षमता की आईक्यूएफ लाइन स्थापित की जाएगी। इसके अलावा बाग़वानी विकास परियोजना के अंतर्गत शिलारू और पालमपुर में दो उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये जाएँगे, जिसके लिए 18 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रास्तावित है। बाग़वानी क्षेत्र में चलायी जा रही विभिन्न लघु सिंचाई योजनाओं का निर्माण कार्य विभिन्न चरणों में है। माली साल 2022-23 में लगभग 9,000 हेक्टेयर अतिरिक्त खेती युक्त भूमि में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी जाएँगी। इस पर 198 करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे।

उधर पराला की फल प्रसंस्करण इकाई में उत्पादन इस साल से शुरू हो रहा है। माली वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 91 करोड़ रुपये की लागत से पराला में बन रहे फल प्रसंस्करण इकाई में उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा और परवाणु और जड़ोल में स्थित फल प्रसंस्करण इकाई का 17 करोड़ रुपये की लागत से उन्नयन किया जाएगा। इसके साथ ही पांवटा साहिब, कांगनी और शाट में बन रहे मार्केट याड्र्स (बाज़ार अहाते) सितंबर, 2022 तक किसानों व बाग़वानों को समर्पित कर दिये जाएँगे। परवाणु में बन रहे मार्केट यार्ड को भी मार्च, 2023 से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इन पर 35 करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे।

फल प्रसंस्करण इकाइयों के अलावा सीए स्टोर स्थापित किये जा रहे हैं। क़रीब 58 करोड़ रुपये की लागत से चच्योट, रिकांगपिओ, ज्ञाबोंग और चंबा में सीए स्टोर्स का निर्माण इसी वित्त वर्ष 2022-23 में शुरू कर दिया जाएगा। इसके साथ ही रोहड़ू, गुम्मा, जड़ोल टिक्कर, टूटूपानी और भुंतर में बन रहे सीए स्टोर और ग्रेडिंग और पैकेजिंग हाउस में का इसी वर्ष लोकार्पण कर दिया जाएगा। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 75 करोड़ रुपये का व्यय किया जाएगा।

सरकार के मुताबिक, उच्च घनत्व क़िस्मों का पौधरोपण और इम्युनिटी बूस्टर वाली फ़सलों की शुरुआत की जाएगी। जामुन और मेवों की खेती के लिए क्लस्टर बनाए जाएँगे। शिटाके और ढींगरी आदि मशरूम की क़िस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और मशरूम प्रसंस्करण और डिब्बाबंदी के लिए तीन करोड़ रुपये व्यय किये जाएँगे।

हिमाचल में सेब अभी भी आर्थिकी का सबसे बड़ा ज़रिया है। सेब की तीन क़िस्मों रेड, रॉयल और गोल्डन डिलिशियस से हुई शुरुआत के 100 साल बाद हिमाचल में 90 क़िस्मों की सेब प्रजातियों की खेती प्रदेश में हो रही है। प्रदेश में 1,10,679 हेक्टेयर क्षेत्र में 7.77 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा हो रहा है। शिमला, कुल्लू, मंडी, चम्बा, किन्नौर, लाहुल स्पीति और सिरमौर ज़िलों में सेब पैदा किया जाता रहा है। हालाँकि इसका विस्तार अब गर्म इलाक़ों की तरफ़ किया जा रहा है। वैसे हिमाचल के कुल सेब उत्पादन का 80 फ़ीसदी शिमला ज़िले में होता है। प्रदेश में सालाना तीन से चार करोड़ पेटी सेब का उत्पादन है।

क्या है एचपी शिवा परियोजना?

मुख्य परियोजना के लिए प्रदेश के सात ज़िलों- सिरमौर, सोलन, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी के 28 विकास खण्डों में 10,000 हेक्टेयर भूमि की पहचान की गयी है, जिससे 25,000 से अधिक किसान परिवार लाभान्वित होंगे। यह आत्मनिर्भर हिमाचल की संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम है। परियोजना के तहत बाग़वानी क्रान्ति लाने के लिए उच्च घनत्व वाली खेती को बढ़ावा दिया जाएगा और वैज्ञानिक प्रणाली से बग़ीचे का संरक्षण और देख-रेख की जाएगी। इसके अतिरिक्त फल-फ़सलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए कम्पोजिट सौर बाड़बंदी का प्रावधान किया गया है। उपलब्ध जल संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए टपक या ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने और क्लस्टरों के प्रबन्धन के लिए कृषि उपकरण और कृषि लागत पर भी सब्सिडी का प्रावधान है। परियोजना के तहत बाग़वानी में क्रान्ति लाने के लिए 100 सिंचाई योजनाओं का विकास किया जाएगा, जिनमें 60 फीसदी सिंचाई परियोजनाओं का मरम्मत कार्य और 40 $फीसदी नयी परियोजनाएँ शामिल हैं, ताकि वर्षा के पानी पर निर्भरता न रहे।

“प्रदेश में बाग़वानी कृषि क्षेत्र में विकास के प्रमुख कारकों में से एक बन रहा है। यह क्षेत्र प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान कर रहा है। बाग़वानी की फ़सलों, विशेष रूप से फल वाली फ़सलों पर मौसम में बदलाव का अपेक्षाकृत कम प्रभाव होता है। इस कारण प्रदेश के अधिकाधिक लोग बाग़वानी अपना रहे हैं। प्रदेश सरकार बाग़वानी को बढ़ावा देने के प्रयास से राज्य की कृषि अर्थ-व्यवस्था को एक नयी गति प्रदान कर रही है। हमें उम्मीद है कि हिमाचल फल राज्य के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने की तरफ़ बढ़ रहा है।’’

महेंद्र सिंह

बाग़वानी मंत्री, हिमाचल प्रदेश