प्रेरणास्रोत निकहत

विश्व बॉक्सिंग चैंपियन की नज़र अब पेरिस ओलंपिक पर

जब भारत जैसे देश में आईपीएल की धूम हो और सुर्ख़ियों में अचानक एक ग़ैर-क्रिकेट खिलाड़ी आ जाए, तो ख़ुशी भी होती है और आश्चर्य भी। बात निकहत ज़रीन की है, जिन्होंने मई में तुर्की के इस्तांबुल में महिला वल्र्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के 52 किलो वर्ग कैटेगरी का स्वर्ण पदक जीत लिया। निकहत तेलंगना के जिस समाज से आती हैं, वहाँ महिलाएँ बुर्क़े में ही ज़्यादा दिखती हैं। उनके पिता जमील अहमद ने कहा था कि उनके लिए दोस्तों, रिश्तेदारों को निकहत के खेल के दौरान शॉर्ट्स पहनने पर ऐतराज़ था; लेकिन उन्होंने हमेशा बेटी को सपोर्ट किया। निकहत ने स्वर्ण पदक (गोल्ड मेडल) जीतकर पिता के विश्वास को ज़िन्दा रखा है और देश के खेल प्रेमियों में नयी उम्मीद जगायी है। निश्चित ही निकहत दुनिया, ख़ासकर देश की नयी खेल सनसनी हैं। निकहत देश के युवाओं के लिए प्रेरणा भी हैं। उनकी नज़र अब 2024 के पेरिस ओलंपिक पर है।
हाल के एक दशक की बात करें, तो महिला खिलाडिय़ों में हमारे जेहन में मैरीकॉम, सानिया मिर्ज़ा, साइना नेहवाल, पी.वी. सिंधु, मीराबाई चानू और लवलीना बोरगोहाई जैसे नाम उभरते हैं। निकहत उसी कड़ी की नयी खेल उम्मीद हैं। विश्व चैम्पियनशिप में निकहत का गोल्ड महान् मैरीकॉम की परम्परा को आगे बढ़ाने की एक मज़बूत कड़ी है। वो विश्व बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली पाँचवीं भारतीय हैं। टूर्नामेंट में भारत के 12 सदस्यीय दल में से मनीषा मोन (57 किलो) और पहली बार इस चैम्पियनशिप में उतरीं परवीन हुड्डा (63 किलो) ने कांस्य पदक जीतते हुए भविष्य की उम्मीद जगायी। इस बार फाइनल में पहुँचने वाली निकहत एकमात्र भारतीय रहीं।

निकहत की ख़ासियत उनके मुक्कों की स्ट्रेंथ है। जब ज़रूरत पड़ती है, तो वह प्रतिद्वंद्वी से ख़ुद को दूर करके अचानक आक्रमण करती हैं। विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में थाईलैंड की जिटपोंग जुटामस के ख़िलाफ़ निकहत ने अपनी इसी रणनीति से जीत हासिल की थी, क्योंकि 5-0 से जीत के बावजूद निकहत को उनसे कड़ी टक्कर मिली थी। निकहत की एक और ख़ासियत है, उनका अद्भुत स्टेमिना। वह आख़िर में भी ऊर्जा से भरी दिखती हैं, जिससे प्रतिद्वंद्वी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है। यदि 24 साल की निकहत अपनी ऊर्जा बनाये रखती हैं और कुछ और तकनीक सीख लेती हैं, तो विश्व बॉक्सिंग में उनका अलग ही दर्जा होगा।

लड़कियों, ख़ासकर मुस्लिम लड़कियों के लिए बॉक्सिंग जैसे खेल में आगे आना इतना आसान नहीं है; लिहाज़ा निकहत ने अपनी लगन और दृढ़ निश्चय से जो मुकाम हासिल किया वह निश्चित ही सराहनीय है। महिला विश्व चैंपियनशिप के फ्लाइवेट (52 किलो) भार वर्ग के फाइनल में जब थाईलैंड की जिटपोंग जुटामस को 5-0 से हराया, तो उनके गृह राज्य तेलंगना में उनके घर माता-पिता को बधाई देने वालों की भीड़ थी। इनमें वो लोग भी शामिल रहे होंगे, जिन्होंने कभी उनके पहनावे को लेकर विपरीत टिप्पणी की होगी।

यहाँ यह बताना भी दिलचस्प है कि निकहत की दो बड़ी बहनें डॉक्टर हैं। उनके पिता चारों बेटियों में से कम-से-कम एक को एथलीट बनाना चाहते थे। हालाँकि निकहत ने बॉक्सिंग को पिता के नहीं, बल्कि चाचा के कहने पर चुना था। यह फ़ैसला तब फला, जब 14 साल की उम्र में निकहत वल्र्ड यूथ बॉक्सिंग चैम्पियन बन गयीं। निकहत जब इस्ताम्बुल में फाइनल मुक़ाबला खेलने उतरीं तो बहुत-से बॉक्सिंग जानकारों के ज़ेहन में 2019 में थाईलैंड ओपन का मुक़ाबला भी था, जिसमें उन्होंने जुटामस को हराया था।

वैसे इस भारतीय मुक्केबाज़ ने पूरी विश्व चैम्पियनशिप के दौरान प्रतिद्वंद्वियों पर अपना दबदबा बनाये रखा था और फाइनल में थाईलैंड की खिलाड़ी को सर्वसम्मत फ़ैसले में 30-27, 29-28, 29-28, 30-27, 29-28 से हराया। दोनों में कड़ी टक्कर रही; लेकिन ज़रीन के मुक्के अधिक दमदार और दर्शनीय थे। जब उन्हें रेफरी ने विजेता घोषित किया, तो ज़रीन भावनाओं पर क़ाबू नहीं रख सकीं और आँखों में भर आये आँसुओं के साथ ख़ुशी में कूदने लगीं। निकहत बेहतरीन फॉर्म में हैं और फरवरी में प्रतिष्ठित स्ट्रेंजा मेमोरियल में दो स्वर्ण पदक जीतकर पहले ही अपने-अपने दमख़म का प्रदर्शन कर चुकी हैं।

वल्र्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में निकहत और अन्य दो महिला मुक्केबाज़ों के मेडल जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों से दिल्ली में मुलाक़ात की। प्रधानमंत्री ने अपने ट्विटर अकाउंट पर फोटो ट्वीट करते हुए तीनों के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की। प्रधानमंत्री ने ट्वीट में लिखा- ‘मुक्केबाज़ निकहत ज़रीन, मनीषा मौन और परवीन हुड्डा से मिलकर अच्छा लगा, जिन्होंने भारत को वल्र्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गौरवान्वित किया है। उनकी लाइफ जर्नी और खेल के प्रति उनके जुनून के अलावा उनकी ज़िन्दगी की अन्य बातों पर हमने बातचीत की। उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएँ।‘ जीत के बाद तेलंगना सरकार ने निकहत को दो करोड़ रुपये देने का ऐलान किया। यही नहीं तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस समिति ने भी उन्हें अपनी तरफ़ से पाँच लाख रुपये की राशि इनाम के तौर पर देने की घोषणा की है।

कम नहीं थीं अड़चनें

यह सन् 2019 की बात है। जब विश्व महिला बॉक्सिंग चैम्यिनशिप के लिए भारत में ट्रायल शुरू हुए, तब निकहत बहुत जोश में थीं। लेकिन अचानक बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का ट्रायल्स को लेकर ऐसा फ़ैसला आया कि निकहत का दिल टूट गया। फेडरेशन ने तय किया कि चूँकि मैरीकॉम फार्म में हैं, उन्हें बिना ट्रायल चुन लिया जाए। हालाँकि इस फ़ैसले से का$फी बवाल मचा और फेडरेशन को ट्रायल करवाने पड़े। निकहत तब भले मैरीकॉम से हार गयीं; लेकिन आज वह चैम्पियंस की उसी कतार में आ खड़ी हुई हैं, जहाँ मैरीकॉम खड़ी हैं।
निकहत का बॉक्सिंग करियर निजामाबाद से शुरू हुआ। एक समय तो प्रशिक्षण लेने वालों में वह अकेली लड़की थीं, बाक़ी सब लड़के थे। सपना पूरा करने के लिए निकहत ने इन तमाम बाधाओं को पार किया। उन्हें विशाखापट्टनम में स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में द्रोणाचार्य सम्मान जीतने वाले आई. वेंकटेश्वर राव से प्रशिक्षण का अवसर मिल गया। इसके एक साल बाद ही इरोड नैशनल्स में उन्हें गोल्डन बेस्ट बॉक्सर चुना गया। आने वाले वर्षों में एक नयी निकहत सबके सामने थी- उत्साह और आत्मविश्वास से भरपूर निकहत। अगले साल उनके करियर को नयी ऊँचाई देने वाले साबित हुए। सन् 2011 में उन्होंने महिलाओं की जूनियर एंड यूथ वल्र्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। बुल्गारिया में हुई चैंपियनशिप में भी मेडल जीतीं। उनकी हिम्मत और प्रतिभा का मिश्रण उन्हें ओलंपिक में पदक जितवा दे, तो कोई हैरानी नहीं होगी।

भारत की गोल्डन गल्र्स

अलग-अलग भार वर्ग में एमसी मैरीकॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में विश्व चैम्पियनशिप जीती, जबकि लैशराम सरिता देवी (52 किलो), जेनी आर.एल. (63 किलो) और लेखा केसी (75 किलो) ने 2006 में विश्व ख़िताब जीता। वैसे 2018 के बाद भारत का बॉक्सिंग में यह पहला स्वर्ण पदक है, जब मैरीकॉम ने विश्व ख़िताब जीता था।


“जब मैंने खेलना शुरू किया, तब कुछ लोग थे, जो मेरे कपड़ों (शॉर्ट्स) को लेकर बोलते थे। लेकिन जब मेडल जीत लिया है, तो वे लोग भी ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं। बॉक्सिंग एक ऐसा खेल है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन आपको हिजाब पहनकर खेलने की अनुमति देता है। इसलिए हिजाब पहनकर बॉक्सिंग भी की जा सकती है। हालाँकि खेल में कोई धर्म नहीं होता है, क्योंकि हर खिलाड़ी का लक्ष्य अपने देश के लिए मेडल जीतना होता है। यह जीत मेरे माता-पिता के लिए है। जब मैं अपनी माँ (परवीन सुल्ताना) को फोन करती थी, तो वह नमाज़ पढ़कर आ रही होती थीं। वह मेरी जीत के लिए दुआ करती थीं। सभी को पता है कि मेरे पिता ने मुझे कितना सपोर्ट किया। यह जीत उन्हीं को समर्पित है।“

निकहत ज़रीन
(जीत के बाद)