प्रेम और प्रेम विवाह से तौबा

वैलेंटाइन-डे के दिन महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के चांदूर रेलवे स्थित महिला कॉलेज की छात्राओं ने ली शपथ

14 फरवरी यानी अंग्रेजों के वैलेंटाइन-डे के दिन को आजकल दुनिया के अधिकतर देशों के लोग प्यार के दिन के रूप में मनाने लगे हैं। भारत में प्रेम करने का यह चलन कोई 10-12 साल में तेज़ी से बढ़ा है। इससे हमारी संस्कृति और परम्पराओं को ठेस पहुँच रही है। रिश्तों का महत्त्व घट रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के चांदूर रेलवे स्थित एक महिला कॉलेज में कॉलेज की लड़कियों को शपथ दिलायी गयी कि वे न तो प्रेम करेंगी और न प्रेम विवाह! शपथ का दूसरा पहलू यह भी है कि इन छात्राओं ने दहेज देकर विवाह न करने की भी शपथ ली।

अमरावती के विदर्भ यूथ वेलफेयर सोसायटी द्वारा महिला व कला महाविद्यालय में यह शपथ ली गयी है। कॉलेज के एक प्रोफेसर प्रदीप दंदे के अनुसार, समाज में बढ़ रहे प्रेम प्रकरण के चलते लड़कियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कहीं न कहीं ऐसे प्रण करने ज़रूरी हैं। इसलिए कॉलेज की छात्राओं से इस तरह की शपथ दिलायी गयी है।

क्या है शपथ?

‘मैं शपथ लेती हूँ कि मुझे अपने माता-पिता पर पूर्ण विश्वास है; इसलिए आसपास में और ही घटनाओं को देखते हुए मैं प्रेम व प्रेम विवाह नहीं करूँगी। साथ ही मैं ऐसे लड़के से भी विवाह नहीं करूँगी जो दहेज लेगा। सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए यदि आज मेरे परिवार ने दहेज देकर मेरा विवाह कर भी दिया, फिर भी मैं अपनी भावी पीढ़ी की एक माता के तौर पर अपने बहु से दहेज नहीं लूँगी और अपनी लड़कियों को दहेज नहीं दूँगी। समर्थ भारत के लिए, स्वस्थ समाज के लिए एक सामाजिक कर्तव्य के तौर पर मैं यह शपथ ले रही हूँ।’

प्रेम की पावनता को मलिन करते अंग्रेजी के ‘डे’

प्रेम की पराकाष्ठा और पवित्रता को हमारे ऋषियों-मुनियों, कवियों और विद्वानों ने आत्मा की पवित्रता और ईश्वर के पावन चिन्तन की तरह माना है। लेकिन भारत-भूमि पर जबसे विदेशी त्योहारों का चलन बढ़ा है, तबसे प्रेम की पावनता मलिन होती जा रही है।

आज ताज्जुब होता है कि जिस प्रेम का इज़हार करने के लिए प्रेमी-प्रेमिका झिझकते थे, डरते थे, संकोच करते थे। महीनों खत लिखने की कोशिशें करते थे और जब खत लिख जाता था, तो देने से डरते थे या किसी और के ज़रिये अपना खत या संदेश पहुँचाते थे। पहले इन ढाई अक्षरों के इज़हार में प्रेमी-प्रेमिका के पसीनें छूट जाते थे; लेकिन आज का प्रेम केवल सात दिन के अन्दर पनपकर ऐसे निपट जाता है, जैसे ज़िन्दगी पूरी हो गयी हो। यहाँ तक कपड़ों की तरह प्रेम के रिश्ते बदलने के बाद आज की पीढ़ी के बच्चे ज़रा भी अफसोस तक नहीं करते। सब कुछ नये िफल्मी गानों की तरह एक साथ सिर पर जुनून के जैसा सवार होता है और फिर चन्द दिनों में उतर जाता है। न बिछडऩे के बाद तन्हाई की घुटन, न कोई अफसोस। क्या यह क्षणभंगुुर प्रेम आज की पीढ़ी को दिली रिश्तों के ज़िद्दत वाले अहसास से दूर नहीं कर रहा?

हमारी पीढ़ी आज जिस तरह से करीबी रिश्तों से कटती जा रही है, वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि इससे न केवल मानवी रिश्ते, बल्कि पारिवारिक रिश्ते भी कमज़ोर हो रहे हैं।