प्रवासियों के दु:खों की अन्तहीन दास्ताँ

प्रसिद्ध नाटककार विलियम शेक्सपियर ने ‘हेमलेट’ में लिखा है कि दु:ख जब आते हैं, तो वे अपने साथ और बहुत-सी समस्याएँ लाते हैं। यह बात प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा पर चरितार्थ होती है; जिनका लॉकडाउन से शुरू हुआ दु:ख अनलॉक के पहले चरण में भी जस-का-तस दिखता है। कई परिवारों ने अपनी जान और आजीविका खो दी। ऐसे में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस राष्ट्रीय संकट से निपटने में खामियों की मीडिया रिपोर्टों पर स्वत: संज्ञान लिया; यह देखते हुए कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से प्रवासी श्रमिकों के मामले में बहुत-सी कमियाँ रहीं और काफी चूक भी हुई। शीर्ष अदालत को दो बार हस्तक्षेप करना पड़ा। पहले उसने केंद्र और राज्यों को फँसे हुए प्रवासी कामगारों को तुरन्त मुफ्त परिवहन, भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए कहा और फिर उन्हें घर वापस करने और लॉकडाउन के उल्लंघन को लेकर उनके खिलाफ दायर किये गये आपराधिक मामलों को खत्म करने के लिए 15 दिन की समय सीमा तय की। एक अभूतपूर्व कष्ट आत्मनिरीक्षण का संदेश देता है।

आधिकारिक दावों के अनुसार, लगभग 60 लाख प्रवासी श्रमिक ट्रेनों से पहले ही अपने घर लौट चुके हैं। कई मज़दूरों और उनके परिवारों के अपनी जान खो देने, प्रवासियों के पैदल या साइकिल से बिना भोजन-पानी के अपने घर लौटने के वायरल वीडियो इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि वास्तव में कहीं बहुत भयंकर चूक हुई। यह इस कड़वी वास्तविकता को सामने लाता है कि इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र और राज्य कितने असहाय थे। रिपोर्टों से पता चलता है कि 9 और 27 मई के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए चलायी जा रही श्रमिक ट्रेनों में करीब 80 लोगों की जान चली गयी। क्या इन लोगों की उन बीमारियों के कारण जान गयी, जो इनको थीं? तथ्य यह है कि इनमें से कई लोगों की जान बचायी जा सकती थी, यदि अधिकारियों ने इन गरीब प्रवासियों के लिए यात्रा, भोजन और पानी का प्रबन्ध किया होता; जो सिर पर अपना बचा-खुचा सामान उठाकर अपनी पत्नियों, जिनमें से कुछ गर्भवती थीं और नंगे पाँव बच्चों के साथ सडक़ों पर पैदल चलने को मजबूर हो गये।

‘तहलका’ के इस अंक की कवर स्टोरी संकट में फँसे प्रवासियों के लिए रामबाण साबित हुई मनरेगा पर है; जो इस बात का संकेत देती है कि एक योजना परेशानी में कैसे जीविका दे सकती है। खुशी की बात यह है कि केंद्र ने इस योजना के लिए बजट आवंटन बढ़ा दिया है। हालाँकि विपक्षी कांग्रेस ने इस बात को भुनाने की कोशिश की कि यह यूपीए का प्रमुख कार्यक्रम था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस घोषणा के बाद बयानबाज़ी की जंग भी छिड़ गयी है कि उनका राज्य एक पलायन आयोग का गठन करेगा और जो भी राज्य उत्तर प्रदेश के मज़दूरों को लेना चाहेंगे; उन्हें इसकी अनुमति लेनी होगी। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा है कि प्रवासी श्रमिकों को महाराष्ट्र सरकार से अनुमति लेनी होगी और उस उद्देश्य के लिए पंजीकरण कराना होगा। लेकिन यह राजनीति करने का समय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को स्पष्ट संदेश दिया है कि उनकी (मज़दूरों की)  देखभाल करना आपके हाथ में है। एक राष्ट्रीय संकट से निपटने के लिए एकजुट प्रतिक्रिया की आवश्यकता है; जबकि राजनीति और एक-दूसरे पर दोषारोपण बाद में किये जा सकते हैं।