प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, बदल रही या बन्द की जा रही?

केंद्र सरकार ने अपने बड़े फैसले में फसल बीमा योजनाओं के कार्यान्वयन में मौज़ूदा चुनौतियों को दूर करने के लिए ‘प्रधानमंत्री बीमा योजना’ और मौसम आधारित फसल बीमा योजना’ को बदले जाने जाने का निर्णय लिया है। 19 फरवरी 2020 को कैबिनेट की बैठक में लिये गये फैसले के बाद विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा कि ‘सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को पूरी तरह से बन्द किये जाने की ओर कदम बताया है। इसी का विश्लेषण करती भारत हितैषी की यह रिपोर्ट :-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्र्रीय मंत्रिमंडल ने पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस की चल रही योजनाओं के कुछ मापदंडों / प्रावधानों को संशोधित करने का प्रस्ताव दिया है। नये प्रावधानों के तहत बीमा कम्पनियों को व्यवसाय का आवंटन तीन साल के लिए किया जाएगा। वित्त या ज़िला स्तर पर औसतन मूल्य का चयन करने के लिए प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह विकल्प दिया जाएगा कि वे बीमा राशि का किसी भी ज़िले के फसल संयोजन के लिए किसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) क्या है? ऐसी फसलें जिनका एमएसपी घोषित नहीं किया गया हो उनके लिए फार्म गेट की कीमत पर विचार किया जाएगा। संशोधित योजना में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव यह होगा कि पीएमएफबीवाई/ आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत केंद्रीय सब्सिडी असिंचित क्षेत्रों / फसलों के लिए 30 फीसदी और सिंचित क्षेत्रों / फसलों के लिए 25 फीसदी तक सीमित हो जाएगी। 50 फीसदी या अधिक सिंचित क्षेत्र वाले ज़िलों को सिंचित क्षेत्र माना जाएगा।

राज्यों / केंद्र्रशासित प्रदेशों के लिए यह विकल्प खुला रहेगा कि योजना लागू करने के लिए अतिरिक्त जोखिम कवर / सुविधाओं का चयन कर सकेंगे। जैसे कि बुआई, स्थानीय आपदा, मध्य-मौसम प्रतिकूलता, और कटाई के बाद के नुकसान को शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा, राज्य-केंद्र शासित प्रदेश पीएमएफबीवाई के तहत विशिष्ट एकल जोखिम या बीमा कवर, जैसे ओलावृष्टि आदि की पेशकश किसानों के लिए कर सकते हैं। राज्यों द्वारा अपेक्षित बीमा कम्पनियों से सम्बन्धित प्रीमियम सब्सिडी जारी करने में राज्यों के अधिक विलम्ब के मामले में फसल के सीजन के बाद इस योजना को लागू करने की अनुमति निर्धारित समय सीमा से इतर नहीं मिलेगी। खरीफ और रबी की फसल के लिए इस प्रावधान को लागू करने के लिए कट-ऑफ की तारीखें दोनों बीमा योजनों के लिए क्रमश: 31 मार्च और 30 सितंबर होंगी।

बीमा के तहत फसलों के नुकसान / स्वीकार्य दावों के आकलन के लिए तय डेविएशन मैट्रिक्स के आधार पर दो स्तर की प्रक्रिया अपनायी जानी है। सामान्य सीमाओं और अन्य क्षेत्र के साथ ही मौसम के संकेतक, उपग्रह संकेतक आदि जैसे विशिष्ट उपाय अपनाये जाएँगे। पैदावार के नुकसान के आकलन के लिए नुकसान वाले क्षेत्रों को केवल फसल काटने के प्रयोगों (सीसीई) के अधीन किया जाएगा।

स्मार्ट सैंपलिंग तकनीक (एसएसटी) जैसे प्रौद्योगिकी समाधान और सीसीई (पीएमएफबीवाई) के संचालन में सीसीई की संख्या इन्हीं के अनुकूल बनायी जाएगी। कट-ऑफ तारीख से इतर फसल की उपज के आँकड़े न मिल पाने की स्थिति में राज्यों द्वारा बीमा कम्पनियों को उपज समाधान के तरीके अपनाने के लिए प्रौद्योगिकी समाधान (सिर्फ पीएमएफबीवाई) का उपयोग लागू किया जाएगा। इस योजना की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह सभी किसानों (पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस) के लिए स्वैच्छिक होगी। दोनों ही बीमा योजनाओं के वर्तमान 50:50 के मौज़ूदा हिस्सेदारी को में पूर्वोत्तर के राज्यों में केंद्रीय हिस्सेदारी को बढ़ाकर 90 फीसदी कर दिया गया है।

योजना के लिए कुल आवंटन का कम-से-कम 3 फीसदी का प्रावधान केंद्र और राज्य सरकारों के प्रशासनिक खर्च पर किया जाएगा। यह प्रत्येक राज्य (दोनों पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस) के लिए डीएसी और एफडब्ल्यू द्वारा निर्धारित ऊपरी सीमा के अधीन होगा। इसके अलावा अन्य हितधारकों / एजेंसियों के परामर्श से कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग प्रीमियम की उच्च दर वाले फसलों / क्षेत्रों के लिए राज्य विशिष्ट, वैकल्पिक जोखिम शमन कार्यक्रम को फिर से शुरू किये जाएँगे। चूँकि यह योजना सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक बनायी जा रही है, इसलिए 151 विशेष ज़िलों में फसल बीमा के माध्यम से वित्तीय सहायता और प्रभावी जोखिम का सहयोग प्रदान किया जा रहा है। इसके अलावा 29 ऐसे ज़िलों को चिह्नित किया गया है, जहाँ पानी की कमी है साथ ही वहाँ के किसानों की आमदनी भी कम है और सूखे जैसे हालात रहते हैं, वहाँ के लिए अलग योजना तैयार की जा रही है। योजना के सम्बन्धित प्रावधान / मापदंड दोनों बीमा योजनाओं को लागू करने के दिशा-निर्देशों को उपरोक्त संशोधनों को शामिल करने के लिए बदला जाएगा साथ ही 2020 की खरीफ की फसल से ही इसे लागू कर दिया जाएगा।

कितने फायदे?

सरकार ने दावा किया कि इन फसल बीमा से जुड़े इन बदलावों के बाद उम्मीद की जाती है कि किसान बेहतर तरीके से कृषि उत्पादन में जोखिम प्रबन्धन करने में सक्षम होंगे और कृषि आय की भरपाई करने में भी कामयाब होंगे। इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में इसका दायरा बढ़ेगा। सुदूर पूर्वोत्तर के किसान भी कृषि जोखिम का प्रबन्धन कर सकेंगे। इन परिवर्तनों को अपनाने के बाद त्वरित और सटीक उपज अनुमान भी लगाने में आसानी होगी, जिससे दावा निपटान में आसानी होगी। इन बदलावों को पूरे देश में इसी साल खरीफ की फसल के साथ ही लागू किये जाने का प्रस्ताव है।

कांग्रेस की ओर से 20 फरवरी को लिखित बयान जारी कर कहा कि फसल बीमा से निजी बीमा कम्पनियों को प्रीमियम और किसानों के छोटे दावों से बड़ा मुनाफा हुआ है। बताया गया कि एक या दो को छोडक़र इस क्षेत्र में बाकी सभी निजी बीमा कम्पनियाँ हैं और ये आँकड़े जो सरकार ने जारी किये हैं, वे अप्रामाणिक हैं। इसमें दिखाया गया है कि प्रीमियम के ज़रिये ही बीमारियों ने कुल 77,801 करोड़ रुपये की राशि जुटायी। तमाम भुगतान और दावों के बावजूद इसमें दावा किया गया है कि जो कम्पनियों को शुद्ध लाभ हुआ, उसकी राशि 19,200 करोड़ रुपये रही।  सोचने वाली बात यह है कि अब इस योजना को पूरी तरह से बन्द किया जा रहा है। किसान कहाँ होगा, भारत के किसान प्राकृतिक आपदाओं का सामना कैसे करेंगे। यह सवाल अनुत्तरित है और दुर्भाग्य की बात यह है कि कृषि मंत्री यह कहने का दुस्साहस कर रहे हैं कि उन्होंने एक बड़ा कदम उठाया है। तहलका ने भी कुछ समय पहले इस तथ्य को उजागर करते हुए एक रिपोर्ट छापी थी। तहलका की रिपोर्ट में बताया गया था कि योजना के लॉन्च होने के दो साल के भीतर सभी 18 कम्पनियों ने मिलकर 15,795 करोड़ का मुनाफा कमाया। ऐसा लगता है कि किसानों को आत्महत्या प्रदान करने के लिए सरकार ने यह बीमा योजना शुरू कीं, जो अपने मकसद से हार गयीं। पीएमएफबीवाई में कहा गया कि इसका उद्देश्य ‘मौसम के प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण बीमित किसानों को तत्काल राहत प्रदान करना है, जिससे अपेक्षित उपज 50 फीसदी से कम थी।’ इस योजना का लक्ष्य अंतिम उपज आँकड़ों की प्रतीक्षा किये बिना ऑन-अकाउंट आंशिक भुगतान (सम्भावित दावों का 25 फीसदी तक) प्रदान करना था और यह सभी किसानों के लिए एक अनिवार्य कवरेज था।

वर्ष 2017-2018 की सालाना रिपोर्ट भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) जिसे आईआरडीएआई के चेयरमैन डॉ. सुभाष सी खुंटिया ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय को भेजी, उसमें इन तथ्यों पर मुहर लगायी है। यह रिपोर्ट 28 नवंबर, 2018 को सचिव के नाम भेजी गयी थी। पड़ताल में पता चला कि 2016-17 के दौरान 13 निजी कम्पनियों का लाभ 3,283 करोड़ रुपये था। वर्ष 2017-18 में यह और बढ़ गया, जो कुल मिलाकर 4,863 करोड़ हो गया। बीमा की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) 11 निजी क्षेत्र की बीमा कम्पनियों ने प्रीमियम के रूप में 11,905.89 करोड़ रुपये की राशि जमा की। हालाँकि, इन बीमा कम्पनियों ने किसानों को केवल 8,831.78 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया, जिससे इन्होंने तेज़ी से भारी मुनाफा कमाया।

पिछले साल राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि उपज आधारित योजना अर्थात् प्रधानमंत्री आवास बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और एक मौसम सूचकांक आधारित रिस्ट्रिक्टेड वेदर बेस्ड क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को खरीफ 2016 से शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी तरीके से प्राकृतिक क्षति से किसानों की फसलों के लिए व्यापक जोखिम कवर को सुनिश्चित करना था। इसके लिए एक सरल और सस्ती फसल बीमा उत्पाद प्रदान कराया गया।  बुआई पूर्व से लेकर फसल कटाई के बाद होने वाले जोखिम, पर्याप्त दावा राशि और दावों को तय समय पर निपटान को इसमें शामिल किया गया। मंत्री ने कहा कि बीमाकर्ता अच्छे सत्रों / वर्षों में प्रीमियम बचाते हैं और उच्च दावों का भुगतान करते हैं, यदि  खराब वर्षों में किसी भी बचत को अच्छे वर्षों में किया जाता है।’  मंत्री ने स्पष्ट किया कि 18 सामान्य योजना के कार्यान्वयन के लिए पाँच सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनियों सहित निजी बीमा कम्पनियों को सूचीबद्ध किया गया है। निजी और सार्वजनिक दोनों बीमा कम्पनियाँ पीएमएफबीवाई के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार द्वारा आमंत्रित निविदाओं में हिस्सा लेती हैं और बीमा कम्पनी के कार्यान्वयन का चयन सबसे कम बोली लगाने वाली को आधार के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, कुल फसल से पाँच सार्वजनिक क्षेत्र का बीमा एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड योजना का 50 फीसदी से अधिक का बीमा व्यवसाय कवर करती है।

अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि 2017-18 की सालाना रिपोर्ट में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बताया कि इसमें कुल कितने किसानों को कवर किया गया और कुल कितना प्रीमियम जमा हुआ साथ ही 31 मार्च, 2018 तक दावा करने वाले लाभार्थियों की संख्या का ज़िक्र किया गया है।  उन्होंने कहा कि जब सकल लिखित प्रीमियम पूरे वर्ष से जुड़ा हुआ है, तो दावा किये जाने वाली रिपोर्ट में पिछले वर्षों के दावे भी शामिल हो सकते हैं, जिससे लाभ-हानि के बारे में पुनर्बीमा लागत का भी ध्यान रखना होगा।

पीएमएफबीवाई के तहत पिछले तीन वर्षों के दौरान किसानों को सामान्य बीमा कम्पनियों द्वारा प्रीमियम के ज़रिये जुटायी गयी राशि का विवरण इस प्रकार है :-  (राशि करोड़ रुपये में)

वर्ष        कुल प्रीमियम      किसानों का हिस्सा           केंद्र का हिस्सा    राज्य का हिस्सा

2016-17           22,104 4,232   8,842   9,030

2017-18           26,163 4,488   10,798 10,877

2018-19*         20,923 3,196   8,783   8,944

* 2018 में सिर्फ खरीफ की फसल शामिल। खरीफ 2018 के कुछ दावे और रबी 2018-19 के अधिकांश दावे रिपोर्ट नहीं किये गये हैं। स्रोत : कृषि मंत्रालय

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) द्वारा प्रदान किये गये पिछले तीन वित्तीय वर्षों के लिए फसल बीमा के सकल अनुमानित दावे इस प्रकार हैं :-

वित्तीय वर्ष          सकल दावा (करोड़ रुपये में)

2016-17           17,687.75

2017-18           22,101.31

2018-19           27,550.00

स्रोत : आईआरडीएआई