प्रकृति का बदला!

दुनिया में गहरी निराशा और कयामत जैसे हालात के बीच एक सुखद घटना भी हुई है। लॉकडाउन ने प्रकृति को खुद को फिर से सँवारने का अवसर दिया है। धरती और आसमान के बीच प्रदूषण से बनने वाले धुएँ और धुन्ध की परत कहीं गुम हो चुकी है और नीला आसमान फिर से चमकने लगा है। समुद्री जीवन मानो फिर से जीवंत हो उठा है। पक्षियों का कलरव प्रकृति में नया रंग भरने लगा है और जंगली जीव भी बिना भय के विचरण करने लगे हैं। उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरें बताती हैं कि प्रकृति पुन: जीवंत होने के संकेत दे रही है। कोविड-19 आँखें खोलने वाली घटना है, जो यह संकेत देती है कि यदि हम मानव अपना लालच त्याग दें, तो माँ स्वरूप पृथ्वी कैसे अपना शृंगार कर सकती है, जो कि हमारे लिए ही हितकारी है।

अब यह दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है कि पशु व्यापार ने संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ा दिया है। हाल के वर्षों में इबोला, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मेर्स), रिफ्ट वैली बुखार, गम्भीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (सार्स), वेस्ट नाइल वायरस और ज़ीका वायरस सभी जानवरों से मनुष्यों तक पहुँचे। ये पशु जनित रोग हैं। माना जाता है कि यह संक्रमण (कोरोना वायरस) भी चीन के वुहान में उस बाज़ार से निकला, जहाँ जानवरों का व्यापार किया जाता है। यह सच्चाई सामने आने लगी है कि यह वायरस जानवरों में था और उनका मांस, खासतौर से कच्चा मांस खाने से मनुष्यों में पहुँच गया। यूँ तो कई जानवरों और अन्य वन प्रजातियों में खतरनाक वायरस हैं, लेकिन जैव विविधता इन्हें जंगलों तक सीमित और मानव परिवेश से दूर रखने का मार्ग खोलती है।

भेडिय़ों के पिल्लों से लेकर चूहों, लोमडिय़ों से लेकर ऊदबिलाव और बिल्ली, घोड़ों से लेकर सूअर तथा चमगादड़ जैसी वन्य प्रजातियों के व्यापार के चलते मानव में यह वायरस प्रविष्ट हुआ है। वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि निपाह और हेंड्रा जैसे घातक विषाणु चमगादड़ से सूअर, घोड़े और फिर इंसान में पहुँचे हैं। कोविड-19 ने फिर एक बार चेतावनी दी है कि यदि हमने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया और भोजन के लिए वन्य प्राणियों को मारा, तो हमें ऐसे ही भयंकर नतीजों के लिए तैयार रहना चाहिए। मौज़ूदा महामारी ने बड़ी संख्या में मानव जीवन का नुकसान के साथ-साथ ही आर्थिक तबाही भी की है। संकेत साफ हैं कि हमें वनों और वन्यजीवों से छेड़छाड़ बन्द कर देनी होगी। हालाँकि, कोरोना नामक महामारी किसी को नहीं छोड़ रही, परन्तु यह भी एक तथ्य है कि गरीब इससे सबसे अधिक पीडि़त हुए हैं। किसान, श्रमिक और व्यवसाय सभी गम्भीर त्रासदी की चपेट में हैं, लेकिन हम उन अदृश्य हाथों को भूल गये हैं, जो कपड़े इस्त्री करते हैं; सीमांत दुकानदार हैं; कोने पर पान आदि बेचने वाले हैं; मोची, दर्जी, नाई, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, माली हैं; रिक्शा, कैब और ऑटो रिक्शा चालक हैं; सेविकाएँ (मेड्स) हैं; ऐसे व्यक्ति जो हमें चलती बसों, ट्रेनों और गलियों में गाकर मनोरंजन या दूसरी सेवाएँ प्रदान करते हैंं। करोड़ों हाथ, जो पुरुष और महिलाओं के रूप में अर्थ-व्यवस्था के सबसे निचले स्तर के मज़बूत पहिये हैं; गायब हो गये हैं। ये सब सरकारों और किसी सहायता समूह की मदद के बिना हैं। यह वो वर्ग है, जो रोज़ कमाता है और गुज़ारा करता है। आज यही वर्ग वास्तविक संकट में है। लेकिन हमने इन लोगों द्वारा अपने बच्चों, महिलाओं या बीमार परिजनों के लिए भीख माँगने का कोई उदाहरण नहीं देखा। आइए, इन लोगों को खयाल रखें, जो सच में हमारे शहरी जीवन की गाड़ी के वास्तविक पहिये हैं।