पुलिस अफसर से क्यों करायी आतंकियों की मदद?

जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह को दो शीर्ष हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों के साथ पकड़ा गया था, जो गणतंत्र दिवस से पहले दक्षिण कश्मीर के त्राल से नई दिल्ली के लिए निकले थे। हिज्बुल मुजाहिदीन का चर्चित रहा कमांडर बुरहान वानी का गृहनगर रहा है। हालाँकि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि सिंह और वानी एक-दूसरे को जानते थे; लेकिन नवीद बाबू, हिज्ब के नम्बर-2 के साथ सिंह की गिरफ्तारी से यह पता चलता है कि इस संगठन के साथ उसके सम्पर्क काफी गहरे और लम्बे समय से रहे हैं।

त्राल एक और वजह के लिए भी महत्त्वपूर्ण  है। यहाँ से है कि नयी उम्र का उग्रवाद 2015 में शुरू हुआ और पूरे दक्षिण कश्मीर में फैल गया। यह पुलवामा ज़िले के अंतर्गत आता है, जहाँ दविंदर सिंह पिछले तीन वर्षों में दो बार तैनात रह चुके हैं। दोनों मौकों पर आतंकी बड़े पैमाने पर हमले को अंजाम दे चुके हैं। अगस्त, 2017 में आतंकियों ने पुलवामा में पुलिस लाइंस पर धावा बोल दिया था। 19 घंटे तक चली गोलीबारी में सीआरपीएफ के जवानों व पुलिसकर्मियों पर तीन आतंकियों ने हमला किया था। सुबह तडक़े जब हमला हुआ, उस समय दविंदर सिंह वहीं पर थे। सिंह मई, 2017 से 8 अगस्त, 2018 तक पुलवामा में तैनात थे। इसी तरह सिंह की दोबारा पुलवामा में तैनाती के दौरान ही सुरक्षा बलों के कािफले पर आत्मघाती हमला किया गया था, जिसमें सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवान शहीद हो गये थे।

2001 के संसद हमले में अपनी भूमिका के लिए फाँसी पर लटकाये गये अफज़ल गुरु ने सिंह पर आरोप लगाया था कि वह नई दिल्ली में एक हमलावर मोहम्मद के साथ गये और उसके लिए रहने का इंतज़ाम किया। संसद पर हमले के दौरान हमलावर को बाद में मार दिया गया था। हालाँकि इस सनसनीखेज़ आरोप की जाँच कभी नहीं की गयी। 2006 में मीडिया को दिये एक साक्षात्कार में दविंदर सिंह ने अफज़लगुरु को हिरासत में यातना देना स्वीकार किया था; लेकिन उनके साथ किसी भी आतंकी को भेजे जाने की बात से इन्कार कर दिया था।

बता दें कि दविंदर सिंह 1994 में जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए थे। उन्होंने श्रीनगर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। बाद में वह पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) में शामिल हो गये, जिसे विशेष रूप से आतंकियों से निपटने के लिए काम सौंपा गया था। लेकिन जबरन वसूली की शिकायतों के बाद दविंदर सिंह को एसओजी से हटा दिया गया था। 2003 में वह एक साल के लिए कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र के शान्ति मिशन का हिस्सा रहे।

अब आतंकियों के साथ डीएसपी की गिरफ्तारी ने जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा प्रतिष्ठान में न केवल खतरे की घंटी बजायी है, बल्कि देश में आतंकवाद के िखलाफ लड़ाई में भी सवालिया निशान लगेगा, जिस पर नई दिल्ली भी शामिल होगी। इससे गम्भीर सवाल खड़े होते हैं। दविंदर सिंह कौन हैं? वह किसके लिए काम कर रहा था? क्या वह आतंकियों गणतंत्र दिवस से पहले नई दिल्ली में सनसनीखेज़ हमले करने में मदद कर रहा था? पिछले साल की बमबारी सहित पुलवामा में दो बड़े हमलों में उसकी क्या भूमिका थी? या संसद हमले में उसकी क्या भूमिका थी?  वे किससे प्रेरित थे? क्या वह आतंकियों के लिए काम कर रहा था या आतंकी उसके लिए काम कर रहे थे? इन सवालों के जवाब तो मिलने ही चाहिए। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने दविंदर सिंह को दो आतंकियों और एक वकील के साथ गिरफ्तार करके एक बड़ी सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं, आतंकी दविंदर सिंह के हाई सिक्योरिटी क्षेत्र में मौज़ूद आवास पर ठहरे भी थे। उनकी भूमिका की शुरुआती जाँच से पता चला है कि उन्होंने पहले भी अपने घर पर आतंकियों को शरण दी थी। संयोग से गिरफ्तार आतंकी नवीद बाबू भी इनमें शामिल है, जो खुद एक पुलिस डकैत था। वह 2017 में चार राइफल के साथ फरार होकर आतंकी बन गया था।

इसे महज़ संयोग कह सकते हैं कि आतंकियों के साथ पकड़े जाने के कुछ दिन पहले दविंदर सिंह उस सुरक्षा टीम का हिस्सा था, जो घाटी में हालात का जायज़ा लेने पहुँचे 16 देशों के राजदूतों से श्रीनगर एयरपोर्ट पर मिले थे। उनकी राजदूतों के साथ एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। मामले की जाँच अब राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गयी है, जिससे दविंदर सिंह मामले की गम्भीरता का पता चलता है। यह एनआईए द्वारा लम्बे समय में जाँच किये जाने वाले सबसे संवेदनशील मामलों में से एक है। लोगों को उम्मीद होगी कि एजेंसी मामले की तह तक जाएगी और सबसे बड़े रहस्य से परदा हटायेगी कि आतंकियों की मदद के लिए एक सज़ायाफ्ता पुलिस अधिकारी के साथ अब क्या सुलूक होना चाहिए? और कौन किसका उपयोग कर रहा था?