पुलिस अत्याचार से बचा सकती हैं 10 जानकारियाँ

कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि सभी पुलिस वाले खराब या गलत होते हैं। पुलिस वाले भी सामाजिक होते हैं और उससे पहले इंसान। लेकिन अमूमन देखा जाता है कि कुछ पुलिसकर्मी लोगों को बिना मतलब तंग करते हैं और लोग हाथ-पैर जोड़कर, यहाँ तक कि कई बार रिश्वत देकर उनसे अपनी जान छुड़ाते हैं। यही वजह है कि आम समाज की नज़रों में आज तक पुलिस अपनी बहुत अच्छी छवि नहीं बना पायी। कई मामलों में बेकुसूर भी पुलिस अत्याचार की भेंट चढ़ जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि पुलिस वाले किसी मामले में अचानक किसी को भी घर से उठा लेते हैं या लॉकअप में बन्द कर देते हैं या फिर जो खता व्यक्ति ने की ही नहीं होती है, उसमें उसे फँसा देते हैं या फिर उस थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल यह सब लोगों को कानून की जानकारी न होने की वजह से होता है। अगर देश के हर नागरिक को कानून की सही जानकारी की जानकारी हो, तो उसे कोई भी पुलिसकर्मी बिना किसी जुर्म के प्रताडि़त नहीं कर सकता। पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए है और देश के हर नागरिक का यह मानवाधिकार है कि वह ज़रूरत पडऩे पर पुलिस की सुरक्षा की माँग कर सकता है। लेकिन अधिकतर लोगों में पुलिस का एक डर बना रहता है, जो कानून की समझ न होने के चलते बना हुआ है। कुछ कानूनों की जानकारी रखने पर लोगों को पुलिस से डर नहीं सुरक्षा मिलेगी। इन कानूनों में निम्नलिखित प्रमुख हैं :-

  1. अगर पुलिस किसी को गिरफ्तार करने आयी है, तो उसे यह जानने का अधिकार है कि उसे किस जुर्म में उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। इस पर पुलिस वाला उसे उसका जुर्म बतायेगा और गिरफ्तारी वारंट भी दिखायेगा। अगर किसी ने कोई गम्भीर अपराध किया है, तभी पुलिस धारा-41 और धारा-151 का उपयोग करते हुए उसे बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है; लेकिन धारा-43 के हिसाब से इसका उल्लेख करना होगा। अगर पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट नहीं है, तो पुलिस को मौके पर अरेस्ट मेमो बनाना पड़ेगा, जिसमें पुलिस को गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति का नाम-पता और गिरफ्तारी का कारण लिखने के साथ-साथ अपना नाम, पद और पोस्टिंग थाना, गिरफ्तारी का स्थान, समय और तारीख आदि सब कुछ लिखना होता है। अधिकतर पुलिसकर्मी थाने में यह मेमो तैयार करते हैं, लेकिन कानूनन यह मेमो गिरफ्तारी की जगह पर ही बनाया जाना चाहिए। अगर बिना जुर्म के, बिना किसी कारण के पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है, तो वह व्यक्ति पुलिस से अदालत के ज़रिये हर्ज़ाना वसूल सकता है।
  2. पुलिस जब किसी को गिरफ्तार करती है, तो उसे बताना होगा कि उसका जुर्म क्या है? क्या वह जमानती है या गैर-जमानती? अमूमन यह सब पुलिसकर्मियों से पीडि़त या मुल्जिम (जिस पर आरोप तो हो, पर अदालत ने आरोप तय न किया हो या आरोप सिद्ध न हुआ हो) पूछते नहीं हैं और पुलिस उन्हें बताती नहीं है। लेकिन पुलिस अरेस्ट मेमो में लिखती है कि उसने गिरफ्तार व्यक्ति को पहले ही सब कुछ बता दिया था।
  3. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने पर धारा-41 (डी) में पीडि़त या मुल्जिम को वकील से मिलने का अधिकार है।
  4. गिरफ्तारी के 12 घंटे के अन्दर गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार को सूचना देना भी पुलिस की ज़िम्मेदारी होगी।
  5. धारा-51 के हिसाब से पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर कोर्ट में पेश करना ही करना है। अगर न्यायालय की छुट्टी है, तो पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के घर पर पेश करे। अगर एक मजिस्ट्रेट नहीं है, तो किसी अन्य न्यायाधिकारी के समक्ष पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को पेश करना ही करना पड़ेगा। यदि पुलिस ऐसा नहीं करती है, तो वह कानूनी तौर पर गलत मानी जाएगी। और अगर पुलिस बिना न्यायिक अधिकारी के समक्ष किसी को 24 घंटे से अधिक रिमांड पर रखती है, तो पीडि़त या मुल्जिम के परिजन एसपी या अन्य उच्चाधिकारी के पास जाकर इसकी शिकायत कर सकते हैं।
  6. धारा-46 के अनुसार, पुलिस किसी पर बल प्रयोग तभी कर सकती है, जब वह काबू में नहीं आ रहा हो या उसे पकडऩे या रोकने आदि के लिए। अगर व्यक्ति यह कह देता है कि वह अब पुलिस को पूरी तरह से सहयोग करेगा और वह भागेगा नहीं, वह उसके साथ है; तो धारा-49 के अनुसार, पुलिस उस पर बल प्रयोग नहीं करेगी।
  7. धारा-53 के अनुसार, पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति का मेडिकल करायेगी। इसमें भी अलग-अलग तरह के मेडिकल होते हैं। मसलन अगर किसी व्यक्ति ने मारपीट की है, तो उसका मेडिकल धारा-53 के तहत होगा। अगर उसने बलात्कार किया है, तो उसका मेडिकल धारा-53 (ए) के तहत होगा। मान लिया कि ऐसा कुछ नहीं है, तो भी गिरफ्तार व्यक्ति खुद माँग कर सकता है कि उसका मेडिकल कराया जाए। क्योंकि अगर पुलिस ने बाद में उसकी पिटायी की, तो वह मजिस्ट्रेट के सामने दोबारा मेडिकल की माँग करके इसे सिद्ध कर सकता है। इसके अलावा अगर पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति का मेडिकल नहीं कराती है, तो धारा-54 में उसे अधिकार है कि वह मजिस्ट्रेड के सामने मेडिकल की गुहार लगा सकता है।
  8. अगर किसी महिला को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस आती है, तो केवल महिला पुलिसकर्मी ही उसे गिरफ्तार कर सकती है। इसके अलावा सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी महिला की गिरफ्तारी पुलिस नहीं कर सकती। अगर यह बहुत ज़रूरी हुआ, तो भी महिला पुलिस ही किसी महिला को गिरफ्तार कर सकती है।
  9. अगर किसी नाबालिग को पुलिस गिरफ्तार करने जाती है, तो पुलिस उस पर बल प्रयोग नहीं कर सकती। उसे उसके साथ नरमी और प्यार से ही पेश आना पड़ेगा।
  10. किसी भी गिरफ्तार नागरिक को पुलिस भूखा नहीं रख सकती, उसे लघु शंका और दीर्घ शंका जाने से नहीं रोक सकती। अगर पुलिस ऐसा करती है, तो वह कानून तौर पर जवाबदेह मानी जाएगी, जिसके लिए दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।

पढ़ाया जाए संविधान

किसी भी देश का कोई भी नागरिक तभी एक सभ्य नागरिक हो सकता है, जब वह अपने अधिकारों से पहले अपने कर्तव्यों के प्रति तत्पर होगा। लेकिन हम देखते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे देश में 99 फीसदी नागरिकों को या तो अपने कर्तव्यों और अधिकारों की सही जानकारी नहीं है, या फिर वे अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते। यही वजह है कि आज हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ आपसी टकराहट, कड़ुवाहट और बर्बादी के कितने ही रास्ते, कितने ही गड्ढे स्वत: तैयार होते जा रहे हैं।

हम दिन भर में कितनी गलतियाँ करते हैं, इस बात की जानकारी हमें भी नहीं होती। मसलन, अगर गन्दगी करने को ही ले लें, तो हममें से हर दूसरा आदमी गन्दगी करने का आदी हो चुका है। इसकी मूल वजह क्या है? इसकी मूल वजह हमारी शिक्षा में नैतिकता और कर्तव्यों का विकट अभाव है। इसके लिए हमें नैतिक होना पड़ेगा और नैतिक होने के लिए हमें मानव धर्म को अच्छी तरह समझना होगा, ताकि हम किसी के लिए नुकसान या कष्टकारक न बन सकें। सवाल यह है कि क्या इसके लिए धर्म पर चलना पर्याप्त नहीं है? इसका जवाब यही हो सकता है कि धर्म भी किसी को तभी सही रास्ता दिखा सकता है, जब उस इंसान में इंसानियत हो, धर्म के सही मर्म का ज्ञान हो और उसके संस्कार अच्छे हों। अन्यथा वह धर्मांध हो सकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ कई-कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं; धर्मांधता का पनपना इसका एक सटीक उदाहरण है। लेकिन एक ऐसा ग्रन्थ भी हमारे देश में है, जो सभी धर्मों के लोगों को एकसूत्र में बाँधे हुए है, और वह है- संविधान।

यह संविधान की ही ताकत है, जो आज भारत अखण्डता के सूत्र में बाँधे हुए है। लेकिन दु:खद यह है कि 99 फीसदी लोगों को अपने ही संविधान की सही-सही जानकारी नहीं है। इनमें 80 फीसदी तो ऐसे हैं, जिन्हें संविधान के बारे में कुछ भी नहीं मालूम।

यही वजह है कि लोग कानून से डरते तो हैं, पर कानून के बारे में कुछ नहीं जानते। जबकि कानून सभी के जानने-समझने की चीज़ है। क्योंकि कानून नहीं जानने वाले लोग उस अनपढ़ व्यक्ति की तरह हैं, जो समझदार तो हो सकता है, लेकिन जानकार नहीं। हमारी समझ में कोई देश तभी सबसे बेहतर दिशा में जा सकता है, जब उसके नागरिक बेहतर दिशा में चलें, और यह तभी सम्भव है, जब देश का हर नागरिक अपने कर्तव्यों और अधिकारों से बखूबी परिचित हो; सांस्कृतिक होने के साथ-साथ नैतिक और कानूनी दायरों में रहकर हर काम करता हो। लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े देश के सवा सौ करोड़ से भी अधिक लोगों को इसके लिए कैसे तैयार किया जाए? और यह ज़िम्मेदारी किसकी है? इसका सीधा-सा जवाब है- सरकार यह कर सकती है और यह उसी की नैतिक ज़िम्मेदारी है। सरकार को चाहिए कि वह देश के हर नागरिक तक संविधान की वो जानकारियाँ पहुँचाए, जो उनके लिए ज़रूरी हैं। माना कि यह काम एक-दो दिन या एक-दो महीने में नहीं हो सकता; लेकिन अगर सरकार कम-से-कम स्कूलों और कॉलेजों में संविधान पढ़ाने को अनिवार्य कर दे, तो आने वाले 10-12 साल में लोगों, कम-से-कम नयी पीढ़ी को अपने सभी कर्तव्यों, अधिकारों और स्वहित के साथ-साथ परहित तथा देशहित में काम करने की नैतिकता का भान हो जाएगा। इससे उनका दृष्टिकोण बदलेगा और वे सही मायने में देश के अच्छे नागरिक बनेंगे।