पीछा नहीं छोड़ रहा कोरोना

देश भर में कोरोना को फैलने से रोकने के लिए मास्क और दो गज़ की दूरी वाली पाबंदियाँ ये सोचकर हटा दी गयी थीं कि अब कोरोना संक्रमण नहीं बढ़ेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि जब पाबंदियों को हटाया गया था, तब भी देश में कोरोना के मामले आ रहे थे। जैसे ही पाबंदियाँ हटीं, मामले फिर बढऩे लगे।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी संक्रमित बीमारी आसानी से नहीं जाती। ऐसे में पाबंदियों के हटाये जाने से संक्रमण का बढऩा स्वाभाविक था। दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, वो चिन्ता बढ़ाने वाले हैं। जाहिर है महामारी अभी ख़त्म नहीं हुई है, इसलिए सतर्क रहने की ज़रूरत है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना को लेकर लापरवाही घातक हो सकती है। कोरोना की चौथी लहर को लेकर आईआईटी शोध कानपुर का दावा कर चुकी है कि जून-जुलाई के महीने में कोरोना कहर बरपा सकता है। ऐसे में क्या बचाव किये जाएँ, जिससे कोरोना से बचा जा सके?

दिल्ली स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर (एनसीसीएचएच) के डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि जिस तरीक़े से शनै:-शनै: कोरोना के मामले दिल्ली-एनसीआर में बढ़ रहे हैं, वे चिन्ता ज़रूर बढ़ाने वाले हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि चौथी लहर आ चुकी है। इतना ज़रूर है कि कोरोना का प्रकोप बढ़ रहा है। ऐसे में हमें कोरोना से बचाव के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सामाजिक और शैक्षणिक के साथ आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रखना चाहिए, अन्यथा लोगों में भय का माहौल बनेगा और कोरोना के डर से लोग फिर से बीमार पडऩे लगेंगे। डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि स्वास्थ्य महकमे को कोरोना जैसी बीमारी से निपटने के लिए अभी से तैयार रहना चाहिए। 31 मार्च, 2022 को जब कोरोना के मामले कम होने पर मास्क लगाने से आजादी मिली थी। उसके 10 बाद ही कोरोना के मामले बढऩे लगे थे। 18 अप्रैल से दिल्ली-एनसीआर में हर दिन 1,000 से ज़्यादा मामले आने लगे। इससे यह साबित हो गया है कि कोरोना को लेकर बरती गयी ढील हमें मुसीबत में डाल सकती है।

साकेत मैक्स के कैथ लैब के डायरेक्टर व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि देश में हृदय रोगी के साथ-साथ दमा रोगी बहुत हैं। अगर उसको कोरोना होता है, तो मुश्किल होगी। इसलिए उन्हें विशेषतौर पर सावधानी बरतनी होगी। कोरोना के नये-नये स्वरूपों से हमें यह पता चला है कि कोरोना का कहर जब भी आता है और इसकी रफ्तार बढ़ती है, तब दो से तीन सप्ताह तक मामले बढ़ते हैं। फिर एक-दो सप्ताह में कोरोना के मामले कम होने लगते हैं। इसलिए कोरोना के मामले मई के पहले सप्ताह तक कम हो सकते हैं।

अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर आलोक कुमार का कहना है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, 21 अप्रैल से कोरोना के प्रतिदिन 2,000 से ज़्यादा नये मामले आ रहे हैं। अब तक कोरोना से संक्रमित होने वालों की कुल संख्या बढक़र 4,30,54,952 हो गयी है। जबकि उपचाराधीन रोगियों की संख्या 15,079 और कोरोना से मरने वालों की संख्या 23 अप्रैल, 2022 तक बढक़र 5,22,149 तक पहुँच गयी है। डॉक्टर आलोक का कहना है कि अब कोरोना का ग्राफ फिर बढ़ रहा है। लेकिन इससे घबराने की नहीं, बल्कि सतर्क रहने की ज़रूरत है। अगर डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ आम नागरिक सतर्क रहते हैं, तो निश्चित तौर पर कोरोना पर काबू पाया जा सकता है। उनका कहना है कि अब तक कोरोना के ओमिक्रॉन, बीए1, बीए2 और एक्स-ई जैसे कई स्वरूप सामने आये हैं। भारत में ओमिक्रॉन और इसकी उपवंश बीए.1 बीए.2 और एक्सई बीए.1 और बीए.2 का मिश्रण है। उनका कहना है कि कोरोना महामारी को लेकर देश में तमाम तरह से अफ़वाहों का दौर चलता है। कोई कहता है कि आने वाला कोरोना बच्चों के लिए घातक है, तो कोई कहता है कि इस बार का कोरोना सीधे हृदय पर अटैक करेगा। इन बातों पर ग़ौर न करें, बस सावधानी बरतें। बुख़ार, खाँसी और घबराहट होने पर योग्य डॉक्टर से इलाज करवाएँ।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि गत दो वर्षों से ख़ासतौर पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों को यह पता चल चुका है कि कोरोना का वायरस हमारे साथ हमेशा रहेगा। इसका नतीजा यह होगा कि आने वाले समय में नियमित अतंराल में कोरोना के मामलों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। ऐसे में हमें चिन्ता इस बात पर करनी होगी कि कैसे कोरोना के रोगी को तत्काल उपचार मिल सके। समय पर लोगों को कोरोना के टीके लगने चाहिए। बूस्टर डोज भी नि:शुल्क होनी चाहिए। डॉक्टर अनिल बंसल का मानना है कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली शहरों में तो मज़बूत है, लोगों की जाँच भी हो जाती है और जल्द ही पता चल जाता है कि उनमें से किसे कोरोना है और किसे नहीं है। लेकिन गाँवों में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह लचर है, जिसके कारण कोरोना के सही आँकड़े सामने नहीं आ पाते हैं। इससे रोगी स्वस्थ लोगों में संक्रमण फैला देता है और इस तरह कोरोना बढ़ता रहता है।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के अध्यक्ष डॉक्टर अश्विनी डालमिया का कहना है कि कोरोना को लेकर तरह–तरह की भ्रान्तियाँ फैलायी जा रही हैं। जबकि दिल्ली में अभी मिश्रित वेरिएंट यानी डेल्टा, ओमिक्रॉन आदि है। इनके सब-वेरिएंट भी हैं। ऐसे में दिल्ली में पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि कौन-सा वेरिएंट है। डॉक्टर डालमिया का कहना है कि कुछ स्वार्थी तत्व यह माहौल बनाने में लगे हैं कि कोरोना बढ़ रहा है, जो पहले ज़्यादा कहर बरपायेगा। इस तरह वे ज़ोर-शोर से हल्ला कर रहे हैं। जबकि कोरोना के मामले बढऩा अलग बात है। बात अगर महत्त्वपूर्ण है, तो यह है कि अस्पतालों में कितने मरीज़ भर्ती हैं। दिल्ली में कोरोना के इने-गिने लोग ही भर्ती हैं। उनका पर्याप्त उरचार हो रहा है।

बताते चलें कोरोना को लेकर और नये वेरिएंट एक्स-ई को लेकर दिल्ली सहित पूरे देश में जो माहौल बना है या बनाया गया है, वह लालची लोगों की साज़िश का हिस्सा है। सच यह है कि एक्स-ई वेरिएंट का कोई मामला अभी तक सामने नहीं आया है। डॉक्टर राजीव गर्ग का कहना है कि एक्स-ई वेरिएंट जितना ख़तरनाक बताया जा रहा है, उतना है नहीं। क्योंकि अभी तक देश में एक्स-ई वेरिएंट की कोई पुष्टि नहीं हुई है।

डॉक्टर राजीव गर्ग का कहना है कि कोरोना के नये-नये स्वरूप तो आते-जाते रहेंगे। ऐसे में अगर कोरोना से बचाव मास्क से होगा। भीड़-भाड़ वाली जगह पर जाएँ, तो मास्क ज़रूर लगाएँ। साथ ही जिन्होंने कोरोना टीके नहीं लगवाये हैं, वे देर न करें। अगर बूस्टर डोज की ज़रूरत हो, तो ज़रूर लगवा लें। क्योंकि सावधानी में ही सुरक्षा है।

डॉक्टर राजीव गर्ग का कहना है कि कोरोना के मामले बढऩे के बीच राहत की बात यह है कि अस्पतालों में भर्ती होने वाले कोरोना से पीडि़त रोगियों की संख्या बहुत कम है। मतलब साफ़ है कि कोरोना क़ाबू में है। समस्या यह है कि कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता तो बढ़ी है; लेकिन कुछ लोग लापरवाही बरतने से बाज़ नहीं आ रहे हैं, जिससे कोरोना के मामले बार-बार बढऩे लगते हैं। ऐसे में बचाव के तौर पर ‘दो गज़ की दूरी और मास्क है ज़रूरी’ की राह पर ही चलना होगा।

अस्पतालों में लापरवाही

कोरोना को लेकर चौकाने वाली बात तो यह है कि सरकारी और निजी अस्पतालों में आधे से ज़्यादा डॉक्टर और पैरामेडिकल कर्मचारी ख़ुद बिना मास्क के देखे जा सकते हैं। अस्पतालों में इस प्रकार का दृश्य इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि कोरोना को लेकर न घबराएँ, न ही चिन्ता करें। लेकिन डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की इस लापरवाही का नतीजा यह है कि अस्पताल में इलाज कराने आने वाले और इलाज कराकर जाने वाले बहुत-से लोग मास्क लगाने कतराने लगते हैं। दिल्ली में मास्क कोरोना के डर से नहीं, बल्कि चालान न कट जाए, इसलिए लोग मास्क लगाते हैं। दिक़्क़त यह है कि दिल्ली से सटे कुछ राज्यों में मास्क कोई भी नहीं लगाता है। इन राज्यों से हर रोज़ हज़ारों लोग दिल्ली आते-जाते हैं। इसलिए कोरोना पीछा नहीं छोड़ रहा है।