पीओके पर बढ़ेगी रार?

पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) हमेशा चर्चा में रहा है, लेकिन आजकल इसकी चर्चा इसलिए ज़्यादा है कि इसे लेकर अचानक बहुत बयान देश के बड़े नेताओं या सेना अधिकारियों की तरफ से आये हैं। तो क्या मोदी सरकार अब पीओके को लेकर कुछ गम्भीर सोच बना रही है? इसकी सम्भावनाओं को लेकर राकेश रॉकी की विशेष रिपोर्ट

हाल में देश के नये सेना अध्यक्ष और सत्तारूड़ दल के कुछ बड़े नेताओं के पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर दिए बयान गौर करने लायक हैं। सेना अध्यक्ष मुकंद नरवणे ने पद सँभालने के बाद कहा कि यदि संसद चाहती है, तो उस क्षेत्र (पीओके) को भी भारत में होना चाहिए। जब हमें इस बारे में कोर्ई आदेश मिलेंगे, तो हम उचित कार्रवाई करेंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब अगर पाकिस्तान के साथ किसी मुद्दे पर बात हुई, तो वह पीओके होगा।

यहाँ जानना ज़रूरी है कि अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने भारत-पाक के वर्तमान तनाव पर क्या कहा है? इस मुद्दे पर रटगर्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है कि आने वाले समय में इन दो पड़ोसी मुल्कों के रिश्ते और खराब होंगे और 2025 तक दोनों देशों के बीच युद्ध हो सकता है। तो क्या सच में दक्षिण एशिया के यह दो देश भविष्य में किसी बड़े घटनाक्रम की तरफ बढ़ रहे हैं? आपको एक दिलचस्प तथ्य यह भी बता दें कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में ऐसी 24 सीटें हैं, जिन पर कभी चुनाव नहीं हुआ। लेकिन वे विधानसभा का हिस्सा हैं। यह सीटें पीओके की हैं, जिन्हें खाली रखा जाता है; क्योंकि पीओके भी पूरे जम्मू-कश्मीर का हिस्सा माना जाता है। यही नहीं देश की संसद एक प्रस्ताव पास कर चुकी है, जिसमें कहा गया है कि पूरा जम्मू-कश्मीर हमारा है।

राजनाथ सिंह और सेना अध्यक्ष नरवणे के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह का पाँच महीने पहले का बयान भी याद कीजिए। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक लाते हुए उन्होंने कहा था- ‘जब भी मैं जम्मू-कश्मीर कहता हूँ, तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और अक्साई चीन भी इसके अंदर आता है। हम इसके लिए जान भी दे देंगे।’

हाल के वर्षों में, खासकर जबसे मोदी सरकार सत्ता में आयी है, तबसे पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति कुछ ज़्यादा गम्भीर हुई है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से ऐन पहले पुलवामा में 40 से ज़्यादा सैनिकों की आतंकवादियों के हाथों शहादत हुई और मोदी सरकार ने पाक के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकी ठिकानों पर हमला किया। लिहाज़ा यह मानना बिल्कुल अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भविष्य में भी ऐसा हो सकता है, भले इस बार पीओके के लिए।

भारत यह आरोप अरसे से लगाता रहा है कि पाकिस्तान पीओके का इस्तेमाल आतंकियों को ट्रेनिंग देने और उनके लॉन्चिंग पैड बनाने के लिए कर रहा है। मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक और उससे पहले कांग्रेस राज में हुई सीमित सैनिक कार्रवाइयाँ इस बात का पुख्ता सुबूत हैं कि भारत इसे सहन करने के लिए कतई तैयार नहीं है। चूँकि, मोदी सरकार इस मामले में ज़्यादा अग्रेसिव अप्रोच दिखाते रही हैं, यह सम्भावना बहुत ज़्यादा है कि आने वाले समय में पीओके को लेकर कोई बड़ी कार्रवाई हो। दक्षिण एशिया में पीओके का रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है। चीन को लेकर कहा जाता है कि निर्माण परियोजनाओं के बहाने उसका पीओके में दखल बड़ा है। कहा तो यह भी जाता है कि पीओके में चीन सेना की पिछले महीनों में उपस्थिति हुई है। पाकिस्तान चीन से अलग हो नहीं सकता लिहाज़ा यह घटनाएँ भारत को चिन्ता में डालती हैं। लिहाज़ा भारत पीओके को लेकर बहुत संवेदनशील ही नहीं, आक्रमक भी बना रहना चाहता है।दरअसल भारत के लिए चिंता में डालने वाली यह अपुष्ट रिपोट्र्स भी हैं कि गम्भीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा पाकिस्तान पीओके का एक हिस्सा चीन को बेच सकता है। चीन पीओके को लेकर बहुत ज़्यादा दिलचस्पी दिखाता रहा है। भले भारत-चीन के 1962 युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच कुछ घटनाओं को छोडक़र बहुत तनाव पूर्व सम्बन्ध न रहे हों, बहुत से रक्षा जानकार यह राय रखते हैं कि चीन पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं किया जा सकता।

हालाँकि, यह स्थितियाँ हाल िफलहाल में नहीं, पिछले कुछ वर्षों से ही बननी शुरू हो गयी थीं। मोदी सरकार के सत्ता सँभालने के बाद पीओके का नहीं, गिलगिट बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान की भी चर्चा हुई है। लाल किले की प्राचीर से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका ज़िक्र किया था और वहाँ के हालात पर चिन्ता जतायी थी। यह उनके पिछले कार्यकाल (15 अगस्त, 2016) की बात है। तब मोदी ने पीओके, गिलगिट बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में लोगों पर हो रहे अत्याचारों का ज़िक्र किया था।

यह माना जाता है कि पीओके मोदी-शाह के एजेंडे में शामिल है। भाजपा में कुछ बड़े नेता यह मानते हैं कि पाकिस्तान पर उसके ही हिस्सों को लेकर दबाव बनाये रखना ज़्यादा बेहतर रणनीति है। पिछले शासन के दौरान भाजपा ने मोदी के लाल िकले वाले भाषण के बाद इस पर ज़्यादा चर्चा नहीं की, लेकिन अब पिछले पाँच-छ: महीनों से इस पर जैसी तेज़ी से चर्चा चल रही है, उससे ज़ाहिर होता है कि इसके बहाने एक माहौल बनाया जा रहा है। ऐसे में पीओके यदि भारत की राजनीति के केंद्र में दिखने लगा है, तो यह अचानक हुई घटना नहीं है। रणनीति के अलावा देश की राजनीति में भी पीओके की खास अहमियत है। सत्तारूड़ भाजपा की जैसी राजनीतिक विचारधारा है, उसे वैसे भी इस तरह के तनाव और मुद्दे रास आते हैं। बहुत से जानकार यह अनुमान व्यक्त करते हैं कि यदि अगले लोकसभा चुनाव तक भारत में आर्थिक संकट गहराता है और देश की जनता मोदी सरकार से बिमुख होने लगती है तो भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बडऩे की ज़्यादा संभावनाएँ होंगी।

किसी सेनाध्यक्ष का यह कह देना छोटी बात नहीं है कि यदि उन्हें (पीओके को लेकर सरकार से) ऐसे आदेश मिलते हैं, तो उचित कार्रवाई की जाएगी। कार्रवाई के क्या मायने हैं? ज़ाहिर है युद्ध। भले ही सीमित। सभी जानते हैं कि पीओके में पाकिस्तान की सेना है। चीन की सेना के कुछ संख्या में होने के अनुमान भी लगाये जाते रहे हैं। ऐसे में ज़ाहिर है यह कोई सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ऑपरेशन तो होगा नहीं। एक तरह का पूरा युद्ध होगा या फिर वाजपेयी सरकार के समय हुए कारगिल के ऑपरेशन विजय जैसा भी हो सकता है। पीओके को लेकर चर्चा को बल जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने से भी मिला है। वहाँ अब केंद्र का सीधा हस्तक्षेप है और धारा 370 खत्म कर दी गयी है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर एक्शन लेने की आज सबसे ज़्यादा सम्भावनाएँ हैं। पीओके को लेकर जब नये सेनाध्यक्ष का बयान आया था, तो उसके बाद केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाईक ने उनके बयान का समर्थन किया था। और उन्होंने कहा था कि इनका तो ज•बा यही है और इनका ये बोलना गलत नहीं है; पर सरकार इस बात पर निश्चित तौर से विचार करेगी।

राजनीतिक हलकों में बहुत-से लोग यह मानते हैं कि वर्तमान सरकार, खासकर पीएम मोदी, खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जिन्हें इंदिरा गाँधी की तरह याद किया जाए, जिन्होंने बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कर स्वतंत्र देश बनवा दिया था। हो सकता है मोदी चाहते हों कि उन्हें पीओके को भारत में मिलाने के लिए याद रखा जाए। उनकी यह सोच इंदिरा गाँधी के बांग्लादेश बनाने के कारनामे से प्रभावित हो सकती है। कांग्रेस आज तक आज़ादी के आन्दोलन में अपने नेताओं के रोल और इंदिरा गाँधी के बांग्लादेश बनाने जैसे बड़े राजनीतिक और रणनीतिक कदम को एक उपलब्धि के रूप में देश के सामने रखती रही है। इंदिरा गाँधी के ऑपरेशन बांग्लादेश में तो 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय फौज के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था, जो बहुत बड़ी सैन्य घटना थी।

इसके विपरीत मोदी के समय में सर्जिकल स्ट्राइक या बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन किये गये हैं, जो वस्तुता आतंकियों के िखलाफ की गयी सीमित सैन्य कार्रवाई थी। हालाँकि, सच यह भी है कि इनसे ज़्यादा चर्चा वाजपेयी के समय में कारगिल ऑपरेशन की रही है, भले इसे सुरक्षा की चूक का नतीजा भी माना जाता रहा हो।

हो सकता है भाजपा पीओके को पार्टी की एक सैन्य उपलब्धि के रूप में हासिल करना चाहती हो। उसके पास ऑपरेशन के बहुत कारण भी हैं, जिनमें सबसे बड़ा तो यही है कि भारत के िखलाफ आतंकी गतिविधियों का पीओके सबसे बड़ा गढ़ है। ट्रेनिंग से लेकर तमाम आतंकी कैंप पीओके के ही बड़े हिस्से में हैं। भारत पाकिस्तान को अपनी जिस धरती से आतंकी गतिविधियाँ नहीं चलाने की चेतावनी देता रहा है, उसका बड़ा हिस्सा पीओके में ही है। सबसे अहम यह कि भारतीय संसद का प्रस्ताव है कि पीओके भारतीय जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है।

कहानी पीओके की

विभाजन के बाद पाकिस्तान के अलग देश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर वास्तव में डोगरा रियासत थी और इसके महाराजा हरि सिंह थे। अगस्त 1947 में पाकिस्तान बना और कोई दो महीने बाद करीब 2.06 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली जम्मू और कश्मीर रियासत भी बँट गयी। यह क्षेत्र जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के रूप में भारत का हिस्सा बना और एक पूर्ण रियासत भी। हालाँकि, 6 अगस्त, 2019 को इस राज्य का पुनर्गठन कर दिया गया, जिससे लद्दाख का हिस्सा जम्मू-कश्मीर के नये बने केंद्र शासित प्रदेश से अलग केंद्र शासित प्रदेश हो गया। विभाजन से पहले जब यह सारा हिस्सा महाराजा हरिसिंह की रियासत थी, तब इसमें गिलगित-बाल्टिस्तान का  बड़ा हिस्सा भी था। इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने 1935 में इस हिस्से को गिलगित एजेंसी को 60 साल की लीज पर दे दिया था।

हालाँकि पहली अगस्त, 1947 को यह लीज खत्म कर दी गयी और यह दोबारा महाराजा हरिसिंह की रियासत का हिस्सा बन गया। हालाँकि एक स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान ने इसके विरोध में विद्रोह भी किया। उसने एकतरफा रूप से 2 नवंबर, 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान को आज़ाद घोषित कर दिया; लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा; क्योंकि 48 घंटे पहले ही 31 अक्टूबर को महाराजा हरिसिंह रियासत के भारत में विलय को मंज़ूर कर चुके थे। लेकिन 21 दिन के बाद कबाइलियों की मदद से पाकिस्तान की सेना ने हमला कर इस हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान के अलावा जम्मू का हिस्सा शामिल था।

इस क्षेत्र को पाकिस्तान ने आज़ाद कश्मीर का नाम दे दिया। भारत इसे पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर कहता है। इसके बाद जब 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ, तो चीन ने लद्दाख के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जिसे आज अक्साई चिन कहते हैं। संसद में गृह मंत्री इस हिस्से को ही वृहद जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बताते हुए अपना (भारत का) बताया था।

मार्च 1963 में पाकिस्तान ने बदमाशी करते हुए पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान वाले हिस्से में से एक इलाका चीन को उपहार में दे दिया; को करीब 1910 वर्ग मील के आसपास है। भारत इसका सख्त विरोध करता रहा है। पाकिस्तान ने जो हिस्सा चीन को उपहार में दिया है, जहाँ चीन बड़े पैमाने पर सडक़ें और रेल लाइनें बना चुका है। साल 2009 में पाकिस्तान ने बाकी बचे हिस्से को दो हिस्सों में बाँट दिया, जिसमें से एक हिस्सा पीओके और दूसरा गिलगित-बाल्टिस्तान है। अक्साई चिन, गिलगित-बाल्टिस्तान और भारत के कश्मीर के बीच है और अपने अधिकार वाले इस हिस्से को भारत सियाचिन ग्लेशियर कहता है।

आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)  क्षेत्रफल करीब 5134 स्कवेयर माइल अर्थात् लगभग 13,296 स्क्वॉयर कि.मी. है। पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद है, जहाँ के लिए यूपीए सरकार के समय श्रीनगर से 2005 में बस सेवा भी शुरू हुई थी। तब मुफ्ती मोहम्मद सईद तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। पीओके में कुल 10 ज़िले हैं। यदि गिलगित बाल्टिस्तान की बात की जाए, तो उसका कुल क्षेत्रफल 28,174 स्क्वॉयर माइल अर्थात् 72,970 स्क्वॉयर कि.मी. इलाका है। वहाँ भी पीओके की तरह 10 ही ज़िले हैं और राजधानी गिलगित है।

पीओके में 2005 में आये भयंकर भूकंप में करीब पौने दो लाख लोगों की जान चली गयी थी। यदि दोनों की कुल आबादी की बात करें, तो यह करीब 61 लाख है। पाकिस्तान ने इसे अपना हिस्सा बताने के लिए वहाँ विधानसभाएँ बना दी हैं और उनके चुनाव होते हैं। तकनीकी रूप से दोनों पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं, लेकिन वहाँ पाक सरकार और सेना का शासन चलता है। इसके विरोध में आवा•ों भी उठती रही हैं और भारत वहाँ दमन करने के आरोप लगाता रहा है।

साल 2018 में जब पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान आदेश-2018 लेकर आया, तो भारत ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया। दरअसल, पाकिस्तानी पीएम शाहिद खान अब्बासी ने 21 मई को एक आदेश जारी कर इलाके की स्थानीय परिषद् के अहम अधिकार खत्म कर दिये, जिसे इस इलाके को पाकिस्तान का सूबा बनाने की साज़िश के रूप में देखा जाता है। वहाँ शिया आबादी ज़्यादा है और पाकिस्तान का विरोध भी वहाँ बहुत ज़्यादा है।

हालाँकि यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान के षड्यंत्र के चलते वहाँ शिया अब बहुमत की आबादी नहीं है।

पीओके मिलाकर बढ़ेंगी सीटें

तत्कालीन जम्मू कश्मीर 5 अगस्त के संसद में इसके पुनर्गठन विधेयक पास होने के बाद भले दो हिस्सों में बँट गया है और लद्दाख उससे अलग हो गया है, केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा रखी गयी है। तत्कालीन जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 87 सीटें थीं, जो लद्दाख (चार सीटें) के अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने से 83 रह गयी हैं। हालाँकि वहाँ विधानसभा की असल संख्या अब 107 है। दरअसल इसमें पीओके की 24 सीटें शामिल हैं, जिन्हें खाली रखा जाता है। उन पर चुनाव नहीं होते। यह सीटें खाली रखने का उद्देश्य यह बताना है कि पीओके भारत का ही हिस्सा है। दिलचस्प बात है कि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व अधिकारी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें माँग की गयी थी कि पीओके और गिलगिट की संसदीय सीटों को भी घोषित किया जाए। अर्थात् उसका भी चुनाव भारत में हो। हालाँकि, रॉ के इस पूर्व अधिकारी रामकुमार यादव की याचिका को सर्वोच्च अदालत ने तुरन्त खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर 50 हज़ार रुपये का ज़ुर्माना भी ठोक दिया। उस मामले की सुनवाई उस समय प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता, जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने की थी। याचिकाकर्ता यादव का याचिका में तर्क था कि पीओके और गिलगिट-बालटिस्तान में अभी भी 24 से अधिक विधानसभा सीटें हैं, लिहाज़ा यहाँ पर दो लोकसभा सीटें भी घोषित की जानी चाहिए। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लिए आरक्षित 24 सीटों को भरना इसलिए भी सम्भव नहीं, क्योंकि पीओके पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में है। जानकार मानते हैं कि हाँ, यदि कभी पीओके भारत का हिस्सा हो जाता है, तो इन सीटों को भरा जा सकता है; क्योंकि उस स्थिति में इन सीटों के लिए चुनाव करवाया जा सकता है, जो आज सम्भव नहीं है। वैसे जम्मू-कश्मीर कांस्टीट्यूएंट असेम्बली में सम्पूर्ण कश्मीर के लिए 100 सीटें निश्चित की गयी थीं। इनमें 75 सीटें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए और 25 सीटें पीओके के लिए आरक्षित की गयी थीं। उस समय के जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 48 के तहत यह व्यवस्था की गयी थी, हालाँकि बाद में जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन कर जम्मू-कश्मीर के लिए सीटें 76 कर दी गयीं और पीओके के लिए 24 सीटें शेष रह गयीं। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में 1988 में परिसीमन हुआ, जिससे सूबे की विधानसभा सीटें 76 से बढक़र 87 हो गयीं; हालाँकि पीओके की सीटों की संख्या 24 बनी रही। कारण यह था कि पीओके के पाकिस्तान का हिस्सा होने के कारण वहाँ परिसीमन किया नहीं जा सकता था। वैसे वहाँ दो सीटें अलग से मनोनीत सदस्यों के लिए भी हैं जिन्हें महिलाएँ भर्ती हैं और उनका मनोनयन गवर्नर करते हैं। जम्मू कश्मीर में अब फिर परिसीमन (डीलिमिटेशन) की चर्चा है, जिसके लिए कमीशन का गठन हो चुका है। परिसीमन के हिसाब से 7 सीटों की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे (पीओके की खाली सीटें मिलकर) कुल सीटें 114 तक पहुँच सकती हैं। सम्भावना है कि परिसीमन के बाद जम्मू की विधानसभा सीटें कश्मीर से ज़्यादा हो सकती हैं। अभी तक पीओके के भारत आने वाले नागरिकों को पाकिस्तान का परमिट लेना होता है। वैसे भी उनके पास पाकिस्तान का ही पासपोर्ट होता है। यहाँ यह दिलचस्प है कि भारतीय संसद ने 1994 में प्रस्ताव पारित कर पीओके को वापस लेने की बात कही थी। हालाँकि िफलहाल ठंडे बस्ते में ही रखा गया है।

अमेरिकी यूनिवर्सिटी का दावा

हाल ही में अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी ने चौंकाने वाला दावा किया है। भारत-पाक कन्फ्लिक्ट पर रिसर्च करने वाली रटगर्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने अध्ययन के बाद दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 2025 के आसपास युद्ध हो सकता है। ऐसा ही दावा कुछ महीने पहले अमेरिका के एक थिंक टैंक ने भी किया था। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले रिसर्चर्स में ज़्यादातर वो लोग हैं, जो अमेरिका की बड़ी एजेंसियों से जुड़े रहे हैं।

यह दावा इसलिए भी चिन्ताजनक है कि दोनों ही देश परमाणु शक्तियाँ हैं। ऐसी में सम्भावित युद्ध की विभीषिका का अनुमान लगाया जा सकता है। रटगर्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की इस रिपोर्ट को इसलिए गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है कि इसमें भारत-पाकिस्तान के वर्तमान तनाव को पूरे तथ्यों के साथ साबित करके की कोशिश की गयी है। वैसे यह यूनिवर्सिटी दूसरे देशों में तनाव पर भी अध्ययन करती रही है और उसके अनुमान पूर्व में सटीक साबित हुए हैं। तो क्या यह माना जाए कि भारत-पाकिस्तान के बीच अगला युद्ध पीओके को लेकर होगा? अभी इसकी कल्पना ही की जा सकती है, क्योंकि युद्ध का समर्थन करने वाले बहुत कम लोग ही मिलेंगे।

बिक सकता है पीओके?

द यूरेशियन टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट पर भरोसा किया, तो पाकिस्तान अपनी कंगाली से बाहर आने के लिए पीओके के एक हिस्से को चीन को बेच सकता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान अपने कर्•ो उतारने के लिए पीओके के एक हिस्से को चीन को बेच (सौंप) सकता है। चीन की दशकों से पीओके पर नज़र रही है। ज़ाहिर है अगर पाकिस्तान सच में ऐसा करता है, तो इस पर भारत का रुख बहुत सख्त होगा, जो इसे भारत का हिस्सा बताता है। द यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान का चीन पर करीब 21.7 अरब डॉलर का कर्ज़ है। पाकिस्तान की इस कर्ज़ ने हालत खराब कर दी है। इसमें से 15 अरब डॉलर का कर्ज़ पाकिस्तान ने चीन सरकार और करीब 6.7 अरब डॉलर चीन के विभिन्न वित्तीय संस्थानों का चुकाना है। ऐसे में वह पीओके के एक हिस्से को चीन को देकर यह कर्ज़ चुकाना चाहता है, ऐसा इस पोर्टल की रिपोर्ट में दावा किया गया है। द यूरेशियन टाइम्स एक डिजिटल न्यूज पोर्टल है, जिसे साउथ एशिया एशिया पैसेफिक, यूरेशिया रीजन और मिडल ईस्ट के मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है।

एक संसदीय संकल्प है कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है। यदि संसद यह चाहती है, तो उस क्षेत्र (पीओके) को भी भारत में होना चाहिए। जब हमें इस बारे में कोई आदेश मिलेंगे, तो हम उचित कार्रवाई करेंगे। चीन के सीमावर्ती क्षेत्र में सैन्य बुनियादी ढाँचे के विस्तार की रिपोट्र्स पर हम यही कहेंगे कि हम उत्तरी सीमा पर उभरी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हैं।

जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, सेना प्रमुख

कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है और इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।  जब मैं जम्‍मू और कश्‍मीर की बात करता हूँ, तो इसमें पाकिस्‍तान के कब्•ो वाला कश्‍मीर और अक्‍साई चिन भी शामिल होता है। ये दोनों जम्‍मू-कश्‍मीर के भू-भाग के भीतर हैं। पीओके और अक्‍साई चिन जम्‍मू-कश्‍मीर का हिस्‍सा हैं। हम इसे गम्भीरता से लेते हैं और इसके लिए जान भी दे देंगे।

अमित शाह, गृहमंत्री