पार्टी के अध्यक्ष को सौंपी बोलने की जिम्मेदारी !

तो यह है नरेंद्र मोदी का मीडिया सिस्टम। अपनी ही पार्टी के मुख्यालय में प्रधानमंत्री के बहाने बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री ने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया। यह पहली बार था कि प्रधानमंत्री मोदी 22 मिनट तक चुप बैठे और 22 मिनट तक पार्टी अध्यक्ष को सुनते सबने देखा। अमित शाह 22 मिनट बोलते रहे।

अमित शाह ऐसा कुछ भी नहीं बता रहे थे जो भाजपा कवर करने वाले पत्रकारों को पता नहीं रहा होगा। चुनाव शुरू होने से पहले की जो जानकारियां थीं उन्हें वे चुनाव खत्म होने के बाद बता रहे थे। प्रधानमंत्री उन्हें इस तरह से सुन रहे थे मानों उन्हें पहली बार पता चल रहा हो।

इसके बाद दोनों ने प्रेस कांफ्रेंस की गरिमा समाप्त कर दी। बता दिया, आपके सामने हैं प्रधानमंत्री। यही न्यूज टीवी चैनेलों पर भी चली कि प्रधानमंत्री की है यह पहली प्रेस कांफ्रेंस। यों भी पांच साल में उन्होंने एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की।

इस प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री को कवर करने गया था प्रेस, लेकिन अमित शाह प्रधानमंत्री को कवर करने आए थे। अमित शाह ने पहले 22 मिनट और बाद में 17 मिनट बोल कर प्रधानमंत्री को खूब कवर किया। अपने नोट्स से लगातार 22 मिनट बोल कर उन्होंने बताया कि उनके दिमाग में राजनीति की रेखाएं कितनी साफ हैं। उन्होंने राजनीति को निर्जीव बना दिया है उसमें प्रमुख है सिर्फ संख्या। अमित शाह खुद को प्रमाणित कर रहे थे कि उन्होंने एक अच्छे प्रबंधक की भूमिका निभाई है। जिस तरह वे बूथों की संख्या गिना रहे थे, मुझे उम्मीद हुई कि वे शामियाने में लगे हैंगर्स और उनमें लगी बल्लियों की संख्या भी बता देंगे। वहां पंखे कितने लगे और कुर्सियां कितनी लगी। मैं थोड़ा निराश हुआ। उन्होंने नहीं बताया कि प्रधानमंत्री की सभाओं में गेंदे की माला पर कितना खर्च आया। जो जानकारी अमित शाह दे रहे थे वह नई नहीं थी।

फिर आपने कब देखा कि पत्रकारों ने अपनी तरफ से सवाल की बौछार की हो। जो काम पांच साल से बंद रहा, वह अचानक कैसे शुरू हो जाता। भाजपा ने अपने पत्रकारों को रैलियों की संख्या और उनका विश्लेषण करने वाले संपादकों में बदल दिया है। मुझे 17 मई को लगा कि इन दोनों का भाव कुछ ऐसा था कि आप लोगों को पता ही नहीं चला कि हमने चुनाव कैसे लड़ा। मोदी ने भी कहा कि हम बहुत पहले से तैयारियां करते हैं। आपको पता नहीं चलता। दोनों ने औपचारिक और सार्वजनिक रूप से प्रमाणित किया कि आप भाजपा कवर तो करते हैं, लेकिन भाजपा के बारे में खबर नहीं रखते। क्योंकि खबर तो हम देते ही नहीं हैं।

प्रधानमंत्री बारह मिनट बोले। सट्टा बाजार से लेकर चुनाव के समय ही आईपीएल होने तक। फिर रमजान और हनुमान जयंती भी हुई। पत्रकार ‘कंफ्यूज’ हुए कि यह सब मोदी सरकार करा रही थी। चुनाव तो पहले भी हुए और चुनावों के दौरान पहले भी यह सब राजनीतिक रहा होगा। इसमें नया क्या है। मोदी शाह ने 17 मई को ज़रूर साबित किया कि उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस खत्म कर दी है। तो क्या करें। वे प्रेस डिक्टेशन देते हैं। कांफ्रेंस तो करते नहीं। हैरानी यह है कि सवाल न पूछे जाने की गारंटी के बाद भी प्रधानमंत्री ने सवालों को प्रोत्साहित नहीं किया।

पांच साल पहले की मोदी यात्रा याद कीजिए। उन्होंने यकीन दिलाया था कि वे बोलने वाले प्रधानमंत्री हैं। वे मौन मोहन नहीं हैं। किसी के बोलने की क्षमता का मजाक उड़ाया गया। कहा गया वे (मनमोहन) लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं। दस जनपथ से जो लिख कर आता है वही पढ़ते हैं। पांच साल खत्म होते-होते देश ने देखा, बोलने वाले प्रधानमंत्री की जगह मिला है बड़बोला प्रधानमंत्री। उनके जवाब के मजाक उड़े। बादलों और रडार से लेकर डिजिटल कैमरा और ईमेल के जवाब से साबित हुआ कि वे कुछ भी बोलते हैं। पूरे देश ने देखा, प्रधानमंत्री लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं। मगर मीडिया ने सिखा दिया कि कैसे मोदी की कमज़ोरी को ताकत और उनके झूठ को सत्य समझना है।

दोनों ने कहा, तीन सौ सीटें आएंगी। दोनों को शपथ लेने और सरकार बनाने से ही मतलब है। सवालों और जवाब से नहीं। किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि 22 मिनट बोल कर अमित प्रधानमंत्री मोदी के बॉस हो गए हैं। इन दोनों में वर्चस्व की लड़ाई देखने वाले इनके रिश्तों की गहराई नहीं जानते। प्रधानमंत्री भरी सभा में इस तरह अपने वर्चस्व की हार का ‘लाइव टेलिकॉस्ट’ कराने नहीं आएंगे।

देखिए अमित शाह का युग शुरू हो रहा है। मोदी का युग जा रहा है। ऐसा कुछ होगा नहीं। मोदी को आडवाणी समझने की भूल न करें।

मोदी और मीडिया की समझ बहुत ज़रूरी है। जैसे दिल्ली में सल्तनत कायम करने के लिए बलबन सिजदा और पायबोश की फारसी परंपरा लाया वैसे ही कांग्रेसी राज को सल्तनत कहने वाले मोदी खुद बादशाही मिजाज के हो गए। बलबन ऊँचाई पर बैठता था। उसके दरबार में आने वाला सिर झुका कर सलाम करता था। दूरी और ऊँचाई की रेखा उसने साफ खींच दी थी। मोदी सिस्टम में भी दूरी की अपनी जगह है। आप प्रधानमंत्री के सारे इंटरव्यू देखिए, दूरी और भव्यता दिखेगी। कुर्सियां कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ। सवाल पूछने वाला एक खास दूरी पर। हर इंटरव्यू का फ्रेम और शॉट एक सा।

मैं नहीं जानता तो नहीं कहूंगा कि रिकार्डिंग भी प्रधानमंत्री के कैमरे से ही होती होगी। अगर सारे चैनेल अपने कैमरे से करते हैं तो यह भी कमाल है कि हर किसी का फ्रेम एक सा है। आप ट्रंप की प्रेस कांफ्रेंस याद करें। प्रेस और राष्ट्रपति के बीच की दूरी कम होती है। लगता है राष्ट्रपति पे्रस के बीच हैं। आप प्रेस के सामने मोदी की मौजूदगी देखिए लगता है अवतार पुरुष हैं।

इंटरव्यू और प्रेस कांफ्रेंस मीडिया के ये दो आधार स्तंभ हैं। मोदी सिस्टम ने इन दोनों को समाप्त कर दिया। न्यूज चैनेल्स ने मोदी सरकार की योजनाओं की कमियों और धांधलियों की रिपोटिंग बंद कर दी। सवाल की हर संभावना कुचल दी गई। मोदी युग में मीडिया मालिकों की आज़ाद हैसियत अब समाप्त कर दी। मालिक और एंकर एक समान नजऱ आते हैं।

मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। यह तथ्य है। यह भी तथ्य है कि मोदी से पूछने वाला प्रेस नहीं है। होता तो प्रेस कांफ्रेंस की ज़रूरत नहीं होती। वह अपनी खबरों से मोदी को जवाब देने के लिए मज़बूर कर देता।

रवीश कुमार