पाकिस्तानी भाषा बोल रहा ओआईसी

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

भारत के ख़िलाफ़ हमेशा उग्र रहने वाला इस्लामिक सहयोग संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को ऑपरेशन (ओआईसी) ने एक बार फिर पाकिस्तानी भाषा बोली है। भारत से अचानक रिश्तों में मधुरता का ज़िक्र इस्लामिक देशों में हो रहा है। पाकिस्तान इससे बहुत हैरान है। दरअसल 10 से 12 दिसंबर के बीच ओआईसी सेक्रेटरी जनरल हिसेन ब्राहिम ताहा ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) का दौरा किया था और उसे इस्लामिक सहयोग संगठन का हिस्सा बताया था। जबकि भारत ने कश्मीर मुद्दे पर हमेशा ओआईसी को दख़ल न देने की हिदायत दी है। इसके बावजूद हिसेन ब्राहिम ताहा ने कहा कि ‘हमारे ऊपर कश्मीर मुद्दे का हल ढूँढने की सामूहिक और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है।’ ताहा के इस बेतुके बयान के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अगले ही दिन साफ़ किया कि ओआईसी को कश्मीर पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है, संगठन के सेक्रेटरी जनरल ताहा पाकिस्तान के प्रवक्ता न बनें। ओआईसी और ताहा का भारत के आंतरिक मामलों में दख़ल का प्रयास पूरी तरह से अस्वीकार्य है। ओआईसी साम्प्रदायिक, पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से $गलत नज़रिया अपनाकर पहले ही अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुका है। उम्मीद है पाकिस्तान द्वारा वहाँ से आतंकवाद को बढ़ावा देने में हिस्सा लेने से ताहा बचेंगे।

बता दें कि मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्रों वाला संगठन ओआईसी पाकिस्तान के उकसावे में आकर भारत पर हमेशा ज़ुबानी हमले करता रहा है। वह पाकिस्तान की तरह ही हमेशा से चोरी और सीनाजोरी वाला व्यवहार करने की कोशिशें करता रहा है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के बाद ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा 57 देशों वाला संगठन है, जिसका गठन मोरक्को के रबात में एक शिखर सम्मेलन के बाद सितंबर 1969 में हुआ था। अब इसका मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दाह में है। इस संगठन को मुस्लिम जगत की सामूहिक आवाज के तौर पर जाना जाता है। यही कारण है कि इस संगठन के सदस्य देशों की आँखों पर इस्लामिक पक्षपात का चश्मा चढ़ा रहता है। ओआईसी का उद्देश्य इस्लामिक मूल्यों और प्रतीकों की सुरक्षा, मुसलमानों के हितों की रक्षा और मुस्लिम देशों के बीच शान्ति स्थापित करना था; लेकिन दुनिया की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस संगठन का राजनीतिक महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि अब यह किसी मुस्लिम देश की सही या $गलत नीतियों के आड़े आने वाले देशों को धमकी देने से भी पीछे नहीं हटता।

ख़ास बात यह है कि इस संगठन में कई ऐसे देश भी सदस्य की हैसियत से शामिल हैं, जिनमें सभी मुस्लिम नहीं हैं; लेकिन भारत मुस्लिम आबादी में दूसरा सबसे बड़ा देश है। लेकिन भारत या भारत का कोई मुसलमान इस संगठन का हिस्सा नहीं है। जबकि ओआईसी के गठन के व$क्त भारत को भी रबात में आमंत्रित किया गया था। मुस्लिम आबादी के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश भारत ओआईसी में शामिल हो यह पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा। लेकिन उससे पहले ही भारत ने ओआईसी का सदस्य देश बनने से साफ़ इनकार कर दिया।

संगठन के गठन के बाद 2003 में भी ओआईसी ने अपनी बैठक में भारत को शामिल करने से मना कर दिया था। इसके से 2006 में सऊदी अरब ने भारत को पर्यवेक्षक बनने का निमंत्रण दिया। 2018 में बांग्लादेश ने तो ओआईसी से यहाँ तक कहा कि भारत को संगठन का पर्यवेक्षक बनाने को कहा।

लेकिन पाकिस्तान के ओआईसी के सदस्य होने के कारण यह मुस्लिम संगठन भारत से हमेशा तल्ख़ रवैया अपनाये रहता है। पाकिस्तान ने ओआईसी की स्थापना के बाद से ही भारत को दबाने के लिए इस संगठन की आड़ ली है और इसे भारत के ख़िलाफ़ भडक़ाता रहा है। कश्मीर से अनुच्छेद 2019 हटाने से लेकर तीन तलाक़ और हिजाब वाले विवाद को लेकर भी ओआईसी ने भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगला था। इसके बाद भी भारत ने ओआईसी की ग़ुस्ताख़ियों को हर बार माफ़ किया है।

लेकिन 2019 में जब ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में संयुक्त अरब अमीरात ने जब भारत को गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में एक बार फिर आमंत्रित किया, तो पाकिस्तान के कान खड़े हो गये। लेकिन वह समृद्ध इस्लामिक देशों और $खुद कमज़ोर होने के चलते इसका विरोध खुलकर दर्ज नहीं कर सका। इसका कारण यह भी है कि भारत के रिश्ते कच्चे तेल की समृद्धि वाले पश्चिम एशियाई मुस्लिम देशों से काफ़ी मज़बूत हैं, जिसके चलते ओआईसी द्वारा भारत पर दबाव देने की पाकिस्तान की इच्छा पूरी नहीं हो पाती। इन इस्लामिक देशों से भारत के सम्बन्ध पिछले दो-तीन साल में और मधुर हुए हैं, क्योंकि वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के बीच गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 87.4 बिलियन डॉलर से बढक़र 154.7 बिलियन डॉलर हो गया है। जीसीसी यह भी जानता है कि भारत इस्लामिक देशों का एक बहुत बड़ा निर्यातक और आयातक है, इसलिए उससे बिगाडक़र कोई $फायदा नहीं होने वाला। इसके अलावा पाकिस्तान के मंसूबे इसलिए भी नाकाम रहे हैं, क्योंकि ओआईसी के दो सदस्य मालदीव और बांग्लादेश हमेशा से भारत के साथ खड़े रहे हैं।

इससे पहले भी ओआईसी ने भारत पर जम्मू कश्मीर को लेकर भडक़ता रहा है, जिससे पाकिस्तान का हौसला बढ़ता रहा है। ओआईसी की पाकिस्तान की भाषा को भारत अच्छी तरह समझता है और वह इस बंदर घुडक़ी का जवाब देना भी जानता है। पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहा था कि भारत का लक्ष्य पीओके के गिलगिट और बाल्टिस्तान जैसे हिस्सों को एक बार फिर वापस अपनी सीमा में शामिल करना है। रक्षा मंत्री के इस बयान के बाद ताहा ने पीओके का दौरा किया और उसे पाकिस्तान तो दूर की बात ओआईसी का हिस्सा तक बता डाला। लेकिन फिर भी ओआईसी के सेक्रेटरी जनरल की हिम्मत कोई छोटी बात नहीं है।

हिसेन ब्राहम ताहा ने यहाँ तक कहा कि ‘कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत का एक ज़रिया ढूँढना सबसे आवश्यक है। हम पाकिस्तानी सरकार और अन्य देशों के साथ मिलकर इसके लिए एक खाका भी तैयार करने में जुटे हुए हैं। इसी वजह से हमें इस मामले में संगठन के सदस्य देशों का साथ चाहिए और हमें यह पता होना चाहिए कि कूटनीतिक मुद्दों पर चर्चा सडक़ पर खड़े होकर नहीं की जा सकती है। हम यहाँ अपने सहयोगियों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संगठन के सदस्यों की ओर से भारत और पाकिस्तान के बीच लम्बे समय से चल रहे कश्मीर विवाद को सुलझाने का रास्ता ढूँढने के लिए ओआईसी की एकजुटता, सहानुभूति और दृढ़ संकल्प व्यक्त करने आए हैं। ताहा ने यह बात पीओके राष्ट्रपति सुल्तान महमूद, प्रधानमंत्री सरदार तनवीर इलियास, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, कश्मीर मामले में सलाहकार क़मर ज़मान कायरा के सामने कही।

ओआईसी और ताहा की यह हिम्मत तोडऩे के लिए भारत ने तत्काल मुँहतोड़ जवाब दिया और उसे आगे से कश्मीर मामले पर चुप रहने की सलाह दी। क्योंकि पीओके न तो पाकिस्तान का हिस्सा है और न वहाँ के लोग पाकिस्तान के अधीन $खुश रहते हैं। फिर भी पाकिस्तान कश्मीर को अपना हिस्सा बताता है, जिस पर भारत ने हमेशा कड़ी प्रतिक्रिया दी है। यही कारण है कि पिछले दिनों भारतीय सेना के बयान से भी पाकिस्तान बौख़ला गया था।

सन् 1965 और सन् 1971 के भीषण युद्ध के बाद कारगिल युद्ध में भी भारत से मुँह की खाने के बाद पाकिस्तान बौख़लाहट से आज तक भन्नाया हुआ है और वह सीमा पार से भारत में आतंकी गतिविधियों का सबसे बड़ा पैरोकार बन चुका है, जिसके पीछे उसका मक़सद भारत में असंतोष, तबाही और जम्मू-कश्मीर पर अवैध क़ब्ज़ा करना है, जिसे भारत किसी भी हाल में पूरा नहीं होने देगा। हद तो यह है कि जम्मू-कश्मीर को हड़पने और भारत को आतंकी गतिविधियों से तबाह करने की चाहत में पाकिस्तान ओआईसी के अलावा चीन से भी लगातार मदद ले रहा है, जिसके लिए वह चीन को बड़ी कीमत चुका रहा है।