पहाड़ की नदियों में ‘नीला सोना’

हिमाचल में रोज़गार के साधन काफी सीमित हैं। पहाड़ी राज्य में निजी क्षेत्र को रोज़गार का एक बड़ा प्लेटफार्म बनने में अभी बहुत वक्त लगेगा। ऐसे में युवाओं की रुचि ऐसे काम-धंधे की तरफ बढ़ी है, जिसमें •यादा पैसा न लगे, लेकिन परिवार का अच्छा भरणपोषण भी हो सके और मछली पालन इनमें से एक है। प्रदेश सरकार भी ‘नील क्रान्ति’ का नारा लगा चुकी है और इसकी तरफ बढ़ चुकी है। कैसे प्रदेश में यही ‘नीला सोना’ रोज़गार का बड़ा ज़रिया बन रहा है, इस पर राकेश रॉकी की विशेष रिपोर्ट।

हिमाचल प्रदेश की नदियाँ दशकों से बिजली उत्पादन के लिए जानी जाती रही हैं, लेकिन अब इन्हें ‘नील क्रान्ति’ के लिए भी जाना जाएगा। नील क्रान्ति अर्थात् मछली उत्पादन। सेब के उत्पादक की पहचान वाले राज्य हिमाचल में निजी क्षेत्र बहुत सीमित है। किसी समय पहाड़ी राज्य के लोगों में रोज़गार के लिए बहुत लोकप्रिय सार्वजनिक क्षेत्र में भी बेरोज़गारों की खपत अब बहुत कम हो गयी है। ऐसे में लोगों, खासकर युवाओं ने स्वरोज़गार के लिए जिन उपायों को अपनाया है, उसमें मछली पालन एक है।

मछली पालन को प्रोत्साहन का ही असर है कि हिमाचल जैसे अपेक्षाकृत छोटी नदियों वाले राज्य में स्वर्ण माहशीर जैसी प्रजाति, जिसे देश में लुप्तप्राय मान लिया गया है, को बचाने में कामयाबी हासिल हुई है।

मछली उत्पादन हिमाचल में कितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मछलियों को मार्केट तक पहुँचाने के लिए मोबाइल वैन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे मोबाइल फिश बाज़ार का नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों के मछली उत्पादन पर नये शोध पर मंथन कर उसे प्रदेश में मछली उत्पादन में लागू करने का ही नतीजा है कि धीरे-धीरे यह एक बड़े व्यवसाय के रूप में विकसित हो रहा है।

बिलासपुर में इस व्यापार से जुड़े घनश्याम चंदेल ने तहलका संवाददाता से बातचीत में कहा कि शुरू में उन्हें इस व्यवसाय में कदम रखते हुए कुछ हिचक थी। घनश्याम ने कहा- ‘लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ बेहतर होता गया। पिछले 8 साल से इस काम में हूँ। सरकार की कोशिशें भी मछली पालन को एक उद्योग के रूप में स्थापित करने में बहुत कारगर रही हैं।’

शिमला ज़िले के सुन्नी में नयी माहशीर हैचरी और कार्प प्रजनन इकाई स्थापित करने का काम लगभग पूरा होने वाला है। सुन्नी की इस महाशीर इकाई पर करीब 2.9। करोड़ की लागत आयी है। माहशीर को प्रदेश सरकार ने अपने अधीन ही रखा है और इसे निजी क्षेत्र से नहीं जोड़ा गया है।

पिछले कुछ साल में ही हिमाचल में करीब 16,।03 परिवार इस व्यवसाय से जुड़ गये हैं। महाशीर के अलावा सभी अन्य प्रजातियों को निजी क्षेत्र और रोज़गार से जोड़ा गया है। दिलचस्प यह है कि पड़े-लिखे युवा भी मछली पालन से जुड़ रहे हैं। मंडी ज़िले के सुमिन्दर मल्होत्रा ने एमएससी (बॉटनी) की है। वे इस व्यवसाय से जुडऩे को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे होने से हमारी योजना मछली पालन में आधुनिक तकनीक अपनाने की है। इससे व्यवसाय को तेज़ गति से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री, विरेन्द्र कँवर, जो सुन्नी के दौरे पर आये हुए थे; ने तहलका संवाददाता से बातचीत में कहा कि माहशीर पर सरकार बहुत फोकस कर रही है। कँवर के पास ही मछली पालन का विभाग भी है। उन्होंने बताया कि वाशिंगटन के इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज तक ने माहशीर प्रजाति को खतरे में पड़ी प्रजाति घोषित किया है। लेकिन हमारी सरकार ने स्वर्ण माहशीर का कृत्रिम प्रजनन कर इसे लुप्त होने से बचाने की बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कँवर ने कहा कि मंडी ज़िले के मछियाल में भी कृत्रिम प्रजनन से माहशीर का सफल उत्पादन हो रहा है।  हम यह कह सकते हैं कि हिमाचल माहशीर के उत्पादन का गढ़ बन गया है।

स्वरोज़गार का एक फायदा यह भी हुआ है कि सरकार के ऊपर इससे रोज़गार उपलब्ध करवाने का दबाव कुछ घटा है। सरकार के रोज़गार दफ्तरों में प्रदेश भर में इस समय करीब 8.35 लाख बेरोज़गारों के नाम दर्ज हैं। प्रदेश की आबादी के हिसाब से यह बड़ी संख्या है। हज़ारों ऐसे हैं, जो कम पड़े-लिखे हैं, लेकिन रोज़गार दफ्तरों में पंजीकृत नहीं हैं। ऐसे में मछली उत्पादन रोज़गार में एक बड़ा रोल अदा कर रहा है।

सहकारी सभाओं को भी इससे जोड़ा गया है और उनके सदस्यों की पकड़ी मछलियाँ ठेकेदारों को दे दी जाती है, ताकि उनका इन केंद्रों में विपणन किया जा सके। प्रदेश के 2019-20 के बजट में प्रदेश में 100 ट्राउट इकाइयों के निर्माण का प्रस्ताव किया गया था, जिसमें से कुछ बन चुकी हैं और बाकी पर काम चल रहा है। 10 हैक्टेयर में नये तालाबों का निर्माण किया गया है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिल पाया है। इसके अलावा पिछले बजट में सरकार और निजी क्षेत्र की सहभागिता से दो ट्राउट हैचरी स्थापित करने के अलावा निजी क्षेत्र की भागीदारी से कुल्लू में स्मोक्ड ट्राउट एंड फिले कैनिंग सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव किया था, जिन पर काम चल रहा है। इसके अलावा मछुआरों को बाज़ार में उत्पाद का सही मूल्य दिलाने के लिए काँगड़ा, चंबा और शिमला ज़िलों में, निजी क्षेत्र की भागीदारी से, मत्स्य खुदरा विक्रय केंद्रों का काम भी शुरू किया गया है।

बिलासपुर में मतस्य विभाग के उप निदेशक मुख्यालय और एक्स-ऑफिसो विजिलेंस, महेश कुमार ने बताया कि प्रदेश की नदियों में मछियाल नामक कई प्राकृतिक महाशीर अभयारण्य हैं, जहाँ लोग आध्यात्मिक रूप से इनका संरक्षण करते हैं। उन्होंने कहा कि विभाग मत्स्य अधिनियम और नियमों को कड़ाई से लागू करके मछली संरक्षण के लिए प्रयासरत है।

राज्य के मुख्य जलाशयों में करीब 6098 मछुआरों को पूर्णकालिक स्वरोज़गार प्रदान किया गया है, जिसमें 2054 लोगों को गोविंद सागर में, 26।4 को पौंग बाँध, 129 को चमेरा, 42 को महाराजा रणजीत सागर और 112 को कोल बाँध में रोज़गार उपलब्ध करवाया गया है। इन मछुआरों की तरफ से 8.52 करोड़ रुपये की लागत से 659.98 मीट्रिक टन मछली उत्पादन किया गया।

महकमे के मंत्री वीरेंद्र कँवर ने बताया कि सरकार की कोशिश खासकर युवाओं को इस व्यवसाय से जोडऩे की है। उन्होंने इस संवाददाता को बताया कि सूबे में मत्स्य इकाइयाँ स्थापित करने के लिए सामान्य वर्ग को 40 फीसदी, जबकि अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं को 60 फीसदी अनुदान का प्रावधान किया गया है। यह पूछने पर कि क्या महिलाएँ भी प्रदेश में इस कार्य से जुड़ रही हैं, उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में महिलाएँ जुड़ी हैं। खासकर ऐसे इलाकों में, जहाँ झीलें हैं।

युवाओं के लिए योजना के तहत हैचरिज, मछली फॉर्म, छोटे और बड़े मत्स्य तालाब और ट्राउट इकाइयाँ स्थापित करने को प्रोत्साहित करके युवाओं को इससे जोड़ा जा रहा है। निजी क्षेत्र की सहभागिता से कुल्लू में ‘स्मोकड ट्राउट’ और ‘फिलेट केनिन’ सेंटर स्थापित किये जा रहे हैं। काँगड़ा, चंबा और शिमला ज़िलों में एक-एक आउटलेट भी स्थापित करने का काम लगभग पूरा हो चुका है। इससे विपणन सुविधा को बेहतर करने में बहुत मदद मिलेगी।

इसके अलावा नोर्वेजन तकनीक की सहायता और रेनबोट्राउट के सफल प्रजनन को देखते हुए राज्य में सात अतिरिक्त ट्राउट इकाइयाँ कुल्लू, शिमला, मंडी, किन्नौर, काँगड़ा, चंबा और सिरमौर में स्थापित की जा रही हैं। राज्य के 12,650 किसान और मछुआरों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमवाईबीवाई) के तहत लाया गया है, ताकि उनके मन में इस व्यवसाय के प्रति रिस्क की सोच न बने। ऑफ सीजन के दौरान सरकार ने मछुआरों को करीब एक करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी है। मौसम के दौरान तीन हज़ार रुपये की तीन-तीन िकश्तें मछुआरों को दी गयीं, जिससे उनमें व्यवसाय के प्रति भरोसा बढ़ा है।

हिमाचल में आदर्श मछुआ आवास योजना भी लागू की गयी है, जो केंद्र प्रायोजित योजना है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले तमाम मछुआरों को 100 फीसदी आर्थिक सहायता दी जा रही है। इसके अलावा मछुआरों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सभी मछली फार्मों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है और निजी क्षेत्रों में भी हैचरी तैयार की जा रही है, ताकि मछली के बीज की ज़रूरत को पूरा किया जा सके।

राज्य मछली उत्पाद के क्रय-विक्रय के लिए केंद्रीय मछली तकनीकी संस्थान, कोच्चि केरल के सहयोग से फिश मार्केट इंफॉरमेशन सिस्टम (एफएमआईएस) के तहत ऑनलाइन प्रणाली विकसित की जा रही है। यह ऑनलाइन पोर्टल खरीदारों को अपनी माँग के अनुरूप और विक्रेताओं को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने की सुविधा से युक्त है।

ट्राउट उत्पादन पर भी ज़ोर

हिमाचल सरकार ने ट्राउट मछली उत्पादन के लिए 2020-21 में 800 मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य अभी से तय कर लिया है। इसका मकसद क्षेत्र में लोगों की आय और रोज़गार अवसर बढ़ाना है। इसके लिए जो योजना बनायी गयी है उसमें शिमला, चंबा और काँगड़ा में ट्राउट मछली के आउटलेट खुलेंगे, जहाँ लोगों को रोज़गार भी मिलेगा। प्रदेश में सात ज़िलों कुल्लू, मंडी, शिमला, किन्नौर, चंबा, काँगड़ा और सिरमौर में ट्राउट मछली का उत्पादन होता है। इसकी फाॄमग को बढ़ावा देने के लिए सरकार इन ज़िलों में निजी क्षेत्र में 29 ट्राउट हैचरी स्थापित करेगी। आने वाले वर्षों में यह हैचरी सीएसएस-बीआर और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत खुलेंगी। प्रत्येक हैचरी में हर साल दो लाख की ट्राउट ओवा उत्पादन की क्षमता होगी। ट्राउट मूल्य शृंखला में उत्पादन प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने के लिए पतलीकूहल फार्म में स्मोक्ड ट्राउट कैनिंग सेंटर भी तैयार किया जा रहा है। उत्पादकों को ट्राउट बीमा भी मिलेगा। ट्राउट की बिक्री के लिए 940 ट्राउट इकाइयाँ विकसित की जाएँगी, जिसके लिए बाकायदा मार्केटिंग पॉलिसी तैयार कर ली गयी है। फिश वैन के माध्यम से ट्राउट मछली के विपणन के लिए ट्राउट क्लस्टर स्थापित होंगे।

गौरतलब है कि दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई जैसे महानगरों के पाँच सितारा होटल्स में 50 फीसदी तक ट्राउट मछलियों की सप्लाई हिमाचल से होती है। इनकी माँग को पूरा करने के लिए हिमाचल में ट्राउट मछलियों के उत्पादन को और बढ़ाने की तैयारी है। इसके अलावा हिमाचल गुणवत्ता बढ़ाकर बड़े शहरों में इसकी मार्केटिंग की तैयारी कर रहा है।

प्रदेश सरकार ने इसे नील क्रान्ति नाम दिया है। इस योजना के तहत सूबे में किसानों को आय के अतिरिक्त साधन सृजित करने और स्थानीय युवाओं को स्वरोज़गार के अवसर उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से मत्स्य पालन को व्यापक बढ़ावा देना है। सूबे के जलाश्यों में मत्स्य पालन, विशेषकर प्रदेश की ठंडी नदियों में ट्राउट पालन को बढ़ावा देने की योजना का खाका खींचा गया है। इस योजना के तहत मत्स्य पालन से जुड़े परिवारों को ट्राउट पालन अपनाने के प्रति प्रेरित किया जा रहा है और उन्हें अनेक प्रोत्साहन भी प्रदान किये जा रहे हैं। प्रदेश में ट्राउट मछली के बीज की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र में दो ट्राउट हैचरी भी स्थापित की जा रही हैं।

साल 2019-20 में रदेश के सभी जल स्रोतों से करीब 1।1.5। करोड़ रुपये की मूल्य की करीब 13,402 टन मछली का उत्पादन हुआ है। विभागीय ट्राउट फार्मों से 8.34 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन अलग से हुआ है। निजी क्षेत्र में लगभग 25.21 करोड़ रुपये मूल्य की 560 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन किया गया। प्रदेश में रेनबो ट्राउट के सफलतापूर्वक प्रजनन के परिणामस्वरूप अब कुल्लू ज़िले के अलावा शिमला, मंडी, कांगड़ा, किन्नौर, चंबा और  सिरमौर ज़िलों में भी निजी क्षेत्र में ट्राउट इकाइयों की स्थापना की गयी है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में मछली पालन गतिविधियों में लोगों की रुचि पिछले कुछ वर्षों में बहुत बढ़ी है। पतलीकूहल में फिश फाॄमग से जुड़े रजत ठाकुर कहते हैं कि फिशिंग का एक बड़ा बाज़ार है। उन्होंने कहा कि  निश्चित ही लोगों का इस व्यवसाय के प्रति आकर्षण बढ़ा है। हैचरिज, मछली फॉर्म, छोटे और बड़े मत्स्य तालाब और ट्राउट इकाइयाँ स्थापित करने को सरकार जिस तरह प्रोत्साहित कर रही है, उसी के कारण हमने इस क्षेत्र में आने का फैसला किया।

विभाग के निदेशक और हिमाचल एक्वाकल्चर, फिशिंग एंड मार्केटिंग सोसायटी के सीईओ सतपाल मेहता बताते हैं कि मछलियों को बाज़ार तक पहुँचाने के लिए मोबाइल फिश बाज़ारों में मोबाइल वैन का उपयोग किया जा रहा है। जलाशय मछुआरों को इंसुलेटेड बॉक्स भी प्रदान किये गये हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के जल निकाय 85 मछली प्रजातियों के घर हैं। इनमें रोहू, कैटला और मृगल और ट्राउट शामिल हैं। पिछले माली साल के दौरान हिमाचल ने करीब 492.33 मीट्रिक टन  मछली राज्य के बाहर विपणन की गयी, जो बहुत उत्साहित करने वाले आँकड़े हैं; क्योंकि इस साल के दौरान यह आँकड़ा और ज्यादा बढ़ा है।

कोल डैम पर नज़र

इस साल प्रदेश में जल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए में बिलासपुर के कोल डैम जलाशय में खेल और मत्स्य आखेट गतिविधियाँ शुरू होने वाली हैं। प्रदेश का मत्स्य विभाग कोल डैम जलाशय में स्पोट्र्स फिश महाशीर के बीजों का भंडारण और उत्पादन को बढ़ावा देगा, ताकि देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके। वर्तमान में मानव निर्मित जलाशयों में कार्प, सिल्वर कार्प, महाशीर और ग्रास कार्प जैसी प्रजातियाँ पाली जा रही हैं। विभाग की बिलासपुर, सोलन, मंडी और शिमला ज़िलों में लगभग 1302 हेक्टेयर जल संग्रह क्षेत्र में स्पोर्टस फिशरीज शुरू करने की तैयारी है। कोल-डैम जलाशय में मत्स्य आखेट को बढ़ावा देने के लिए एंगलिंग हट्स भी स्थापित की जाएँगी। इसका मकसद एंगलिंग में रुचि रखने वाले पर्यटकों को राज्य में आकर्षित कर नये पर्यटन गंतव्य विकसित करना है। पिछले साल रिकॉर्ड 5.595 मीट्रिक टन मछली उत्पादन के बाद 2019-20 में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक वहाँ।.045 मीट्रिक टन मछली उत्पादन किया जा चुका था। रोज़गार के नज़रिये से पाँच सहकारी सभाओं का गठन किया गया है, जिनमें डैम के विस्थापितों, नदी के पुराने मछुआरों और नदी तट के गरीब परिवारों को प्राथमिक सदस्य के रूप में पंजीकृत किया गया है। सतलुज नदी में साईजोथोरैक्स (गुगली मछली) महाशीर, छोटी कार्प, कैट फिश और इसमें ऊपरी क्षेत्रों ट्राउट मछली पाई जाती है। गोबिंद सागर से भी सिल्वर कार्प मछली प्रजनन के लिए सतलुल नदी के ऊपरी क्षेत्र की ओर जाती है, जहाँ पानी का तापमान इसके अनुरूप होता है।

माहशीर का संरक्षण और इको टूरिस्म

हिमाचल में माहशीर मछली राज्य की कुल 3000 किलोमीटर नदियों में से करीब एक चौथाई अर्थात् 500 किलोमीटर क्षेत्र में मौज़ूद है। राज्य के जलाशयों में विशेष रूप से काँगड़ा के पोंग जलाशय में यह ज्यादा पायी जाती है। माहशीर को आखेट की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। माहशीर के कृत्रिम प्रजनन का एक बड़ा उद्देश्य इस पर्यटक राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। देश के नहीं, विदेश के मतस्य आखेट शौकीन भी हिमाचल में बड़ी संख्या में इसके लिए आते हैं। हिमाचल में माहशीर की दो प्रजातियाँ टोर प्यूस्टोरा और टो टोर खास हैं।

महाशीर को बचाने की हिमाचल की उपलब्धि इसलिए भी बड़ी है कि इसे देश से लगभग विलुप्त मान लिया गया है; क्योंकि स्वर्ण माहशीर की संख्या में तेज़ी से गिरावट दर्ज की गयी है। हिमाचल सरकार के माहशीर को बचने के लिए शुरू की गयी संरक्षण योजना जलाशयों और नदियों में इस प्रजाति की संख्या बढ़ाने में सफल रही है। राज्य में मछली फार्म के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने की सरकार की कोशिश है। इस मछली के संरक्षण में एक कोशिश ऑफ सीजन के दौरान पनबिजली शक्ति से 15 फीसदी पानी का बहाव जारी करना भी है। नियमित गश्त से भी मछली संरक्षण किया जाता है, ताकि इनका अवैध शिकार न हो।

तहलका द्वारा जुटायी जानकारी के मुताबिक, प्रदेश ने माहशीर उत्पादन में लम्बी  छलाँग लगायी है। साल 2019 में अब तक करीब 11,000 रिकॉर्ड उच्चतम हैचिंग हुई है। यदि पिछले आँकड़े देखें, तो 2016-1। में 19,800, 201।-18 में 20,900 और 2018-19 में 28,।00 अण्डे की गोल्डन माहशीर का उत्पादन किया। साल 2019-20 के वर्तमान वर्ष में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक रिकॉर्ड 41,450 माहशीर अण्डों का उत्पादन दर्ज किया। इको टूरिज्म के तहत प्रदेश मतस्य आखेट को भी प्रोत्साहित कर रहा है। राज्य में साल 2018-19 में सबसे अधिक 45.311 मीट्रिक टन माहशीर कैच दर्ज किये गये। भारतीय ही नहीं विदेशी खिलाडिय़ों के लिए भी यह एक मनोरंजक आखेट है। यदि माहशीर उत्पादन की बात की जाए, तो 2018 में गोबिंद सागर में 16.182 मीट्रिक टन, कोल डैम में 0.2।5 मीट्रिक टन, पौंग झील (बाँध) में 28.136 मीट्रिक टन, जबकि रणजीत सागर डैम में 0.।18 मीट्रिक टन माहशीर का उत्पादन दर्ज किया गया।