पराली न जलाकर पैसे कमाएँ किसान होने से बचेंगे कई नुकसान

पराली जलाने से होता है आर्थिक और शारीरिक नुकसान, आग से मर जाते हैं जैविक कीड़े, खेतों की घटती है उर्वरा शक्ति

उत्तर भारत में हर साल की तरह बहुत-से किसान फिर से खेतों में पराली जलाने लगे हैं। जागरूकता की कमी और अगली समय पर अगली फसलें बोने की वजह से किसान खेतों में ही पराली जलाते हैं। लेकिन वह भूल जाते हैं कि इससे वातावरण दूषित होने के कारण लोगों को तो नुकसान होता ही है, किसानों को काफी नुकसान होता है। इतना ही नहीं, पराली के धुएँ से फैले प्रदूषण को कम करने के लिए राज्य सरकारों को हर साल काफी खर्चा करना पड़ता है। पराली को जलाने से वातावरण में बेहद नुकसानदायक ज़हरीला धुआँ फैलता है, जिससे वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी गैसों की परत छाई रहती है।

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के एक अनुमान के मुताबिक, उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को हर साल करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है, जो कि केंद्र सरकार के स्वास्थ्य बजट से करीब तीन गुना ज़्यादा है। यह नुकसान वायु प्रदूषण को कम करने, बीमारियों पर लगने वाले खर्च और किसानों को होने वाले नुकसान का योग है। पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में श्वास सम्बन्धी रोगों से हर वर्ष लाखों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है। पराली जलने से पैदा होने वाली गैसें ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को बढ़ाती हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन पर अंत:सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की तीसरी विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भारत के हिमालय क्षेत्र को काफी नुकसान हो रहा है; जिसका भविष्य में लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

कई विशेषज्ञों का मानना है कि पराली या अन्य कृषि अवशेषों को जलाने से फसलों की पैदावार बड़ी मात्रा में घट सकती है। इससे देश में खाद्य सुरक्षा का संकट बढ़ सकता है। जब देश की एक-चौथाई से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रही हो और अपनी खाद्य ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रही हो, तो खाद्यान्न पैदावार में कमी सरकार के समक्ष गम्भीर समस्या खड़ी कर सकती है। हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 में भारत को 107 देशों में 94वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जो देश की कुपोषण स्थिति को बखूबी बयाँ करता है।

रिपोट्र्स की मानें, तो सबसे ज़्यादा पराली कृषि में अग्रणी दो राज्यों पंजाब और हरियाणा में जलायी जाती है। आईएफपीआरआई ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अकेले पंजाब में हर साल करीब 44 से 51 मिलियन मीट्रिक टन धान की पराली जलायी जाती है। वहीं हरियाणा में करीब 12 मिलियन टन पराली जलायी जाती है। इससे हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है, जिससे हर साल अनेक लोगों की मौत होती है। आईएफपीआरआई के अध्ययन के मुताबिक, केवल धान की पराली जलाने से हर साल सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। गाँव की अपेक्षा शहर में लोगों को ज़्यादा तकलीफ होती है। शहरों में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चे तथा 59 वर्ष से अधिक के बुजुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। पराली जलाने से दिल्ली, एनसीआर समेत उत्तर भारत के सभी बड़े शहर सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। पराली जलने से दिल्ली में अक्टूबर के पहले सप्ताह के आखिर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 से भी ऊपर चला गया था, जिसमें हर दिन बढ़ोतरी होती है।

पराली जलने से होने वाले नुकसान

पराली के जलने से होने वाले नुकसानों की अगर बात करें, तो इससे तकरीबन पाँच तरह के मुख्य नुकसान होते हैं। पहला प्रदूषण फैलता है। दूसरा, फेफड़ों, त्वचा, आँखों के रोग फैलते हैं। तीसरा प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सरकार को आर्थिक नुकसान होता है। चौथा खेतों में जैविक कीड़े मर जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वर क्षमता घट जाती है और पैदाबार कम होती है और पाँचवाँ किसानों को वह आर्थिक नुकसान होता है, जो उन्हें पराली बेचकर मिल सकता था। इसके अलावा पेड़ पौधों और बाकी फसलों को भी प्रदूषण को नुकसान होता है। इसके अलावा पराली जलाने से खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है। ऐसे में अगली फसल के अच्छे उत्पादकता के लिए किसान और ज़्यादा मात्रा में रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। इससे उनका खर्च बढ़ता है।

कार्रवाई और ज़ुर्माने का प्रावधान

पराली जलाने से हर साल देश भर में सैकड़ों किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है। उन पर ज़ुर्माना भी लगाया जाता है; लेकिन किसान पराली जलाने से नहीं चूकते। इसके पीछे उनकी कई दलीलें होती हैं। पहली यह कि पराली खेत में रहेगी, तो वह खेतों की जुताई ठीक से नहीं होने देगी, जिससे अगली फसल ठीक से पैदा नहीं हो सकेगी। दूसरी बात यह कि पराली खेत में पड़ी रही, तो रबी की फसल की बुआई में देरी हो जाएगी। तीसरी बात यह कि पराली का करें क्या? अगर किसानों से यह कहो कि वे इसे बेचकर पैसा कमा सकते हैं, तो उनका जवाब होता है कि सरकारों ने सिर्फ दिखावे के लिए ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने को कह तो दिया, पर ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिससे किसान अपनी पराली की बिक्री कर सकें।

उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से रोकने के लिए पिछले साल राज्य सरकार ने प्रत्येक ज़िले में बॉयो फ्यूल प्लांट लगाने को कहा था। सरकार ने कहा था कि इन केंद्रों पर अपनी पराली बेचकर किसान लाभ कमा सकते हैं। लेकिन सरकार की यह योजना ठीक से परवान नहीं चढ़ सकी। बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 10 दिसंबर, 2015 को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में फसल अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं राज्य सरकारों द्वारा पराली जलाने पर ज़ुर्माने का प्रावधान भी किया है; लेकिन इसके बावजूद पराली जलाने वालों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आयी है।

किसान बना सकते हैं खाद

पराली को न जलाकर किसान उससे जैविक खाद बना सकते हैं। जो कि आगामी फसलों की पैदावार बढ़ाने में काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगी। इससे किसानों को उर्वरक खाद का इस्तेमाल काफी कम करना पड़ेगा, जिससे खाद्यान्न शुद्ध और स्वादिष्ट होंगे। इससे स्वास्थ्य में भी सुधार होगा और पराली जलने से होने वाले प्रदूषण से होने वाले नुकसानों में भी कमी आयेगी। किसान इस जैविक खाद को बेचकर पैसा भी कमा सकते हैं। आजकल जैविक खाद काफी महँगी बिकती है।

केंद्र सरकार के प्रयास

पराली जलाने को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पराली के उचित प्रबंधन हेतु हैप्पी सीडर जैसी मशीनों में और अधिक करीब 50 से 80 फीसदी तक सब्सिडी बढ़ा दी है।

पराली प्रबंधन में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और अन्य एजेंसियों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया है; जिसमें प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव, सम्बन्धित राज्यों के मुख्य सचिव और पर्यावरण सम्बन्धी अधिकारी शामिल हैं।

दिल्ली सरकार के प्रयास

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली सरकार कई सराहनीय कदम उठा चुकी है। इसके लिए दिल्ली सरकार दिल्ली के एनसीआर किनारे वाले गाँवों के साथ-साथ पूरे राज्य में हर साल पानी का छिडक़ाव कराती है। ऑड-इवन से भी प्रदूषण काफी कम होता है। इस साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने युद्ध प्रदूषण के विरुद्ध कैंपेन की शुरुआत की है, जिसमें सरकार की तरफ से कई बड़े कदम उठाये जाने की घोषणा की गयी है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हर साल हम पराली जलने से पैदा हुए प्रदूषण की समस्या से जूझते हैं, जिससे निपटने के लिए दिल्ली के पास के राज्यों की सभी सरकारें और केंद्र सरकार कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि हमें इससे पूरी तरह निपटना होगा। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने इसके लिए एक घोल तैयार किया है। किसान इस घोल का छिडक़ाव पराली पर करें, तो इससे वह जल्दी गलकर खाद में तब्दील हो जाएगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इस बार दिल्ली सरकार इस घोल का पराली पर छिडक़ाव करके प्रयोग कर रही है। अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो अन्य राज्यों को भी इस बारे में बताया जाएगा।

 किसानों को किया जाए जागरूक लाभों से कराया जाए अवगत

किसानों में जागरूकता की कमी के चलते वे पराली जला देते हैं। ऐसे में उन्हें जागरूक किया जाए और उन्हें पराली बेचकर या उसका खाद बनाकर उसके लाभों से अवगत कराया जाए। वैसे सरकारों के सहयोग से सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों और अन्य सामाजिक समूहों की भूमिका को बढ़ाया जा रहा है, साथ ही साथ किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में और अधिक पारदर्शिता लाने पर बल दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण घटाने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू किया है। इसके तहत खुले में कचरा जलाने, डीज़ल जनरेटर, ढाबों-रेस्तरों में लकड़ी व कायेले के इस्तेमाल आदि पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।

पराली से बनायीं जैविक ईंटें

कहा जाता है कि अगर उपयोग की दृष्टि से देखा जाए, तो दुनिया की हर चीज़ उपयोगी साबित हो सकती है। पिछले दिनों आईआईटी हैदराबाद और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने शोधकर्ताओं ने पराली व अन्य कृषि-कचरे से जैविक ईंटें बनायी हैं; जिनका उपयोग चिनाई यानी भवन निर्माण में किया जा सकता है।

बिक रही पराली

मालवा में बेलरों द्वारा पराली काटने और उसके बंडल बनाने का काम किया जाता है। किसानों से इसकी कटाई और गाँठ बँधायी के बदले में 2000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से पैसे लिये जाते हैं। इन गाँठों को किसान 125 से 130 रुपये प्रति क्विंटल बेच सकते हैं। इस तरह एक एकड़ मे करीब साढ़े तीन हज़ार से चार हज़ार रुपये तक की पराली निकलती है। देश में कई चीनी मिलें हैं, जो पराली खरीद रही हैं। इसके अलावा किसान पराली से गत्ता और कागज़ बनाने वाली फैक्ट्रियों को भी पराली बेच सकते हैं।

पटाखों से भी होता है बहुत प्रदूषण और बड़ा नुकसान

भारत में पराली के अलावा सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाने में पटाखे जलाने वाले इज़ाफा करते हैं। आईएफपीआरआई की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, पराली और पटाखे जलाने से भारत को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। आईएफपीआरआई की मानें तो भारत को केवल पटाखे जलाने से हर साल करीब 50 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

केंद्र सरकार बनायेगी कानून

इसी अक्टूबर महीने के दूसरे सप्ताह में पराली जलाये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे ने कहा कि यह (पराली जलाना) एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है; नहीं तो हवा बहुत खराब हो जाएगी। 16 अक्टूबर को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोकुर की अगुवाई में पैनल बनाकर एनसीसी, राष्ट्रीय सेवा योजना और भारत स्काउट्स की तैनाती का आदेश दिया है और कहा है कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव पराली जलाने की गतिविधियों पर पूरी नज़र रखें। जस्टिस लोकुर समिति हर 15 दिन में पराली जलाने की घटनाएँ रोकने के मामले में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट देगी। 26 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने इस मामले पर सख्त रवैया अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह वायु प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक कानून लाने जा रही है। केंद्र के इस फैसले का सुप्रीम कोर्ट ने स्वागत किया है।