परदे के पीछे कौन है !

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के खुलासे से केंद्र की फ़ज़ीहत

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पहले कहा कि यदि वे प्रदेश में सरकार बनाने की बाबत दिल्ली की तरफ देखते तो उन्हें ”सज्जाद लोन की सरकार बनानी पड़ती” और अब कहा है कि मेरी कुर्सी पक्की नहीं, पता नहीं कब तबादला हो जाये। क्या सज्जाद लोन की सरकार न बन पाने और उनके तबादले की ”आशंका” के बीच कोइ डोर है? राज्यपाल के इन बयानों ने केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला बड़ा सवाल यह कि क्या मोदी सरकार ने अनुभवी एनएन बोहरा, जो जम्मू कश्मीर की स्थिति से कहीं बेहतर तरीके से परिचित थे, को हटाकर मलिक को जम्मू कश्मीर भेजकर उनसे ”अपनी पसंद की सरकार” बनाने की उम्मीद की थी? मलिक न तो संघ की पृष्ठभूमि वाले नेता रहे हैं न खांटी भाजपाई, भले वे राज्यपाल बनने से पहले भाजपा के उपाध्यक्ष थे।
दिलचस्प यह है कि वे कभी कांग्रेस में भी रहे हैं और समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे हैं। हालाँकि इसमें कोइ दो राय नहीं कि मलिक बहुत अनुभवी और मंझे राजनेता माने जाते हैं। उनकी जम्मू कश्मीर में बतौर राज्यपाल नियुक्ति से आतंक से ग्रस्त इस सूबे को कोइ दो दशक के बाद राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला राज्यपाल मिला है। नहीं तो नौकरशाह और सेना की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति ही पिछले सालों में राज्यपाल का जिम्मा सँभालते रहे हैं।
राज्यपाल बनने के बाद प्रशासन पर उनकी पकड़ भी दिखी है। कुछ बेहतर फैसले भी मलिक ने किये। स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव शान्ति से करवा सकने का श्रेय भी उनके खाते में ही जाएगा। ऐसा लग रहा था कि सूबे में फिलहाल राज्यपाल शासन ही चलेगा क्योंकि सरकार बनाने का कोइ दावा सामने नहीं आ रहा था। हाँ, यह चर्चा कुछ दिन से तेजी से चल रही थी कि भाजपा सज्जाद लोन को आगे करके सरकार बनाने की उधेड़बुन में है।
पीडीपी के कुछ विधायकों के सज्जाद लोन को समर्थन की ख़बरें भी तेजी से मीडिया में आने लगी थीं। यहाँ तक कि पीडीपी के फाउंडर मेंबर और वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग ने खुलेआम कह दिया था कि वे सज्जाद लोन को समर्थन देने के लिए तैयार हैं। एनसी और कांग्रेस को भी लग रहा था कि उनके विधायकों को भी तोड़ा जा सकता है।
इन सब घटनाओं के बीच अचानक पीडीपी (जमा एनसी-कांग्रेस) और सज्जाद लोन (जमा भाजपा, अन्य) के २१ नवम्बर को सरकार बनाने के दावे पेश कर दिए। पहले महबूबा मुफ्ती के पीडीपी की तरफ से राज्यपाल को सरकार बनाने सम्बन्धी चिट्ठी लिखने की बात सामने आई। अभी इस चिट्ठी पर मीडिया हेडलाईन्स बन ही रही थीं कि ऐसी ही चिट्ठी सज्जाद लोन की तरफ से राज्यपाल को भेजने की खबर आ गयी। जब तक मीडिया यह कयास लगाता कि राज्यपाल किसे सरकार बनाने के लिए पहले बुलाएँगे, खबर आ गयी कि राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी।
विधानसभा भंग करने के तुरंत बाद राज्यपाल मलिक ने अपने हिसाब से तर्क दिए। सबसे बड़ा यही कि ऐसी परिस्थिति में उन्हें ”हार्स ट्रेडिंग” का भय था और उन्होंने विधानसभा को भंग करना बेहतर समझा ताकि ”लोकतंत्र को बचाया जा सके।” यहाँ तक तो ठीक था। पीडीपी ने भी साफ़ कर दिया था कि वह राज्यपाल के विधानसभा भंग करने के फैसले के खिलाफ कोर्ट में नहीं जाएगी। न ऐसा रुख सज्जाद लोन ने दिखाया। राज्यपाल का निंदा-पुराण ज़रूर हुआ। लगा मामला ख़त्म और अब सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुट जाएंगी।
लेकिन इसके दो दिन बाद राज्यपाल मलिक का जम्मू कश्मीर से बाहर के एक कार्यक्रम में यह सनसनीखेज ब्यान आ गया कि यदि मैं दो पार्टियों के दावे आने के बाद दिल्ली की तरफ देखता तो मुझे सज्जाद लोन की सरकार बनानी पड़ती। यानि राज्यपाल मलिक को अंदेशा था कि उन पर केंद्र की सरकार से भाजपा की मदद वाले सज्जाद लोन की सरकार बनाने का दबाव होता। राज्यपाल का यह अंदेशा छोटी बात नहीं है और इससे केंद्र की मोदी सरकार पर गंभीर सवाल उठते हैं।
जानिए राज्यपाल ने आन रेकार्ड क्या कहा था –  ”यदि मैं प्रदेश में सरकार बनाने की बाबत दिल्ली की तरफ देखता तो मुझे सज्जाद लोन की सरकार बनानी पड़ती। इतिहास में मुझे बेइमान इंसान करार दिया जाता। जिन्हें गाली देनी है, वे देंगे। लेकिन मैं कन्विंस हूं कि मैंने सही काम किया।” बाद में मलिक ने सफाई दी कि उनके कहने का वो मतलब नहीं था जो मीडिया ने छापा।
लेकिन इसके एक दिन बाद ही राज्यपाल ने अपने तबादले की ”आशंका” जता दी। भला चार महीने पहले आये राज्यपाल का तबादला क्योंकर होगा। क्या मलिक की यह आशंका इसलिए है कि वे भाजपा के मुताबिक नहीं कर पाए? या इसलिए उन्हें ”सजा” मिल सकती है क्योंकि उन्होंने यह ”सच” दुनिया के सामने ला दिया कि उन पर सज्जाद और भाजपा की सरकार बनाने का ”दबाव” था।
अब कांग्रेस का दबाव तो राज्यपाल पर हो नहीं सकता। जाहिर है ऐसा दबाव भाजपा (या मोदी सरकार) की तरफ से ही हो सकता है। घटनाओं को देखने और राज्यपाल के चौंकाने वाले बयानों से यह आशंका होती है कि भाजपा ने एक सुनयोजित तरीके से पीडीपी से गठबंधन तोड़ा।
नहीं भूलना चाहिए कि सज्जाद लोन को भाजपा ने अपने कोटे से महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा सरकार में मंत्री बनवाया था। तो क्या यह मानें कि सज्जाद लोन के साथ मिलकर सरकार बनाने की स्क्रिप्ट भाजपा ने बहुत पहले लिख दी थी? पीडीपी से गठबंधन तोड़ने के बाद  मलिक को राज्यपाल बनाकर जम्मू कश्मीर भेजा गया। इस दौरान जिस तरह से पीडीपी को तोड़ने की कोशिशें हुईं (उसके विधायक टूटे भी और बेग जैसे नेता ने सज्जाद के समर्थन की बात की) से जाहिर होता है कि दरअसल भाजपा के मन में क्या चल रहा था।
राज्यपाल मालिक ने साफ़ बात कही है। यह उनकी ईमानदारी हो सकती है। उन्होंने खुद कहा है कि यदि वे सज्जाद लोन की सरकार बनाते तो इतिहास में उन्हें बेइमान इंसान करार दिया जाता। मलिक ने यदि यह बोलने की हिम्मत की कि ”उनका तबादला हो सकता है” तो इसके पीछे उनका डर नहीं, उनका अपने काम के प्रति जवाबदेह होने वाला चरित्र है। उनका यह साफ़ चरित्र उन्हें ख़ास दल की सरकार बनाने का दबाव देने वालों और तबादले का खौफ दिखने वालों का चेहरा ”एक्सपोस” करता है !