परंपरा के नाम पर प्रदूषण का खेल

चंडीगढ़। पवित्र कही जाने वाली तीर्थ नगरी हरिद्वार में 28 जुलाई से 9 अगस्त तक कांवड़ मेला चला। 25 जुलाई से6 अगस्त तक हरकी पैड़ी और शहर के अन्य हिस्सों में घूृमने का अवसर मिला। कांवड मेले के दौरान जहां हरकी पैड़ी मेला क्षेत्र में शोरगुल और गंदगी का आलम पसरा रहा, वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग से लगती शहर की मुख्य सड़कें कांवडिय़ों से अटी रहीं। हाल यह था कि स्थानीय लोग तो असुविधा झेल ही रहे थे कि बाहर से आने वाले संवेदनशील श्रद्धालु और पर्यटक भी व्यवस्था का आलम देखकर दांतों तले उंगली दबाते।

गौरतलब है कि कांवड़ लाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो आज से बीस-पच्चीस साल पहले तक काफी हद तक श्रद्धा-भक्ति का उदाहरण पेश करती थी लेकिन इसके बाद कांवड़ यात्रा की सच्चाई दिनों-दिन दूषित होती चली गई। हालांकि सच्चे श्रद्धालुओं की संख्या अब भी काफी है लेकिन परंपरा और कर्मकांड के नाम पर ध्वनि प्रदूषण और गंदगी फैलाने वाले भारी पड़ रहे हैं।

शास्त्रों के मुताबिक गंगा में मल-मल कर स्नान करने, साबुन-तेल का इस्तेमाल करने, स्नान के बाद उतारे हुए कपड़े और अन्य वस्तुएं न डालने का सख्त निर्देश किया गया है। इसके बावजूद कांवड़ मेले में चारों तरफ गंदगी फैली रही। ऊपर से लगातार बरसात होने से कीचड़ के चलते मेला क्षेत्र और मुख्य सड़कों पर जगह-जगह कचरे के ढेर लगे दिखाई दे रहे थे। जगह-जगह टूटी सड़कें दुर्घटनाओं को न्योता दे रही हैं। कहा जाए तो शासन व्यवस्था काफी कमज़ोर दिखाई देती है। निगम कर्मचारी भी कहीं-कहीं सफाई करते हुए मिल जाते हैं।

स्वच्छ -निर्मल गंगा का सपना अधूरा:

गंगा में मिलते बरसाती नाले, सीवर, पब्लिक द्वारा गिराया जाता कचरा, गंदे कपड़े और प्लास्टिक के चलते गंगा को स्वच्छ-निर्मल बनाने के सरकारी नारे खोखले दिखाई देते हैं। अगर कहीं कुछ काम हुआ भी हो तो वो समुद्र में बूंद के समान ही होगा। शहर के संवेदनशील और बुद्धिजीवी लोग गंगा की इस दयनीय अवस्था से काफी दुखी और चिंतित हैं। कांवड़ मेले के बारे में उनका कहना है कि कांवडि़ए कहीं भी जहां-तहां गंदगी फैलाते चलते हैं, नतीजा यह होता है कि मेले के बाद शहर में कोई न कोई बीमारी फैल जाती है। हालांकि वो इस बात से भी इन्कार नहीं करते कि गंगा में गंदगी फैलाने वाले स्थानीय लोगों की संख्या भी काफी है जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है।

कांवडिय़ों का संदेश

कांवड़ मेले में विश्राम करते हुए और चलते हुए बहुत से कांवडिय़ों से जब कुछ मुद्दों पर बात की गई तो उन्होंने एकमत से स्वीकारा है कि बहुत से कांवडि़ए कानून का पालन नहीं करते। ज़ोर-ज़ोर से डीजे बजाते हुए चलते हैं। दिल्ली से आए राहुल, अमित और राजू पहली बार आए हैं। लेकिन ये युवा बाहरी कर्मकांड पर ज्य़ादा विश्वास नहीं रखते। वे कहते हैं उन्हें सिर्फ भोले से प्यार है। मानते हैं कि बाबाओं के चक्कर में उनका धार्मिक विश्वास कम हुआ है। हरियाणा-पंजाब से आने वाले बहुत से कांवडि़ए मानते हैं कि इस दौरान लड़की छेडऩे की घटनाएं होती हैं जबकि महिलाओं का सम्मान करना चाहिए। कांवड़ यात्रा की श्रद्धा के नाम पर शोरगुल और अन्य प्रदूषण हावी हुआ है, ऐसा ज्य़ादातर कांवडि़ए स्वीकार करते हैं।

पुलिस के लिए चुनौती नशे का बढ़ता चलन

ज्य़ादातर कांवडि़ए बस, ट्रेन या फिर अपनी गाड़ी से आते हैं और जाते पैदल हैं। कोई तीन सौ, साढ़े तीन सौ तो कोई चार सौ किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। देखने में आता कि बहुत से कांवडि़ए बीड़ी, भांग, गांजा पीते हुए चलते हैं। महेश-सुरेश, बलवंत, काका और अमरकांत कांवड़ लेकर भिवानी जा रहे थे। उन्होंने माना कि यात्रा के दौरान अक्सर कांवडि़ए बीड़ी-सिगरेट, गांजा, सुल्फा, भांग का सेवन करते हैं। कहते हैं वे अपने को शिव के भक्त से ज्य़ादा भूत-प्रेत मानते हैं। ड्यूटी पर तैनात कई पुलिसकर्मी बताते हैं कि कई कांवडि़ए शराब भी साथ लाते हैं। नशे का बढ़ता चलन पुलिस के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है।

बच्चों और महिलाएं भी आगे

कांवड़ लेकर जाने में बच्चों और महिलाओं की संख्या भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इस बार भी युवा और बूढ़ी महिलाएं तक कांवड़ लेकर चलती रहीं। हरिद्वार से साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक पैदल कांवड़ ले जाना शीला को मुश्किल नहीं लगता। उसने पुत्र कामना से कांवड़ लाने की प्रतिज्ञा की थी जो पूरी हुई। दिल्ली में रहने वाली यूपी के सुल्तानपुर की ललिता का बेटा छत से गिर गया था। अस्पताल ले जाते समय उसने मन्नत मांगी थी, पुत्र सकुशल था। संतोषजनक बात यह है कि महिलाएं स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत योजना को महत्वपूर्ण मानती है और उसकी पक्षधर हैं।

बिजनेस को लग चुके हैं पंख

कांवड़ मेले के दौरान हर तरह का व्यापार फला-फूला है। स्थानीय लोगों की मानें तो इस आयोजन से यहां का व्यापार कई सौ गुना बढ़ गया है वो चाहे तरह-तरह के कांवड़ हों, गंगाजल भरने की प्लास्टिक बोतलें, धातुओं के बर्तन, शिव की तस्वीरों वाली टी-शर्ट, गमछे, पतलून, घुंघरू, छाते, सजावट का सामान और खाना-पीना। यही कारण है कि रु पया-पैसा श्रद्धा और परंपरा पर हावी हो गया है। खुले में बिकने वाला खाने-पीने का सामान इस्तेमाल के बाद गंदगी और बीमारी फैलाने की वजह बनता जा रहा है। व्यापारियों और कांवडिय़ों के लिए कहीं कोई नियम-कानून लागू होते नज़र नहीं आते। जुर्माने के बावजूद प्लास्टिक का खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। कहीं कोई चैक करता दिखाई नहीं देता।

जलपान की व्यवस्था

कांवडिय़ों के लिए शहर में कई धार्मिक संस्थाओं ने जलपान और भण्डारे की व्यवथा कर रखी थी। लेकिन ज्य़ादातर कांवडि़ए खा-पीकर दोने पत्तल वगैरह रखे गए डस्टबिन में डालने की बजाए इधर उधर फेंक कर चलते बनते थे। शहर के दुकानदार बताते थे कि राह चलते कांवडि़ए शौच के लिए कहीं भी इधर उधर चले जाते हैं। कई कांवडि़ए आश्रमों में शौच के लिए जाते रहे तो कई नहाने के लिए शरण मांगते देखे जा सकते थे।

शहर में बढ़ी अव्यवस्था

तीर्थ नगरी को वर्षों से जानने समझने वाले गंगा सभा के महासचिव आर.के. मिश्रा बताते हैं कि 25-30 साल पहले लेटने वाले (सैंकड़ों में) कांवड़ और उठक कांवड़ (हज़ारों में) होते थे जो बांस के कांवड़ में शीशे की बोतलों मेें गंगाजल भरकर ले जातेे थे। धीरे-धीरे प्लास्टिक और धातुओं ने उनकी जगह ले ली। अब मोटरसाइकिल, गाडिय़ों में खाने का सामान भरकर लाते हैं, खाकर बचा-खुचा कचरा वहीं छोड़ जाते हैं। पहली श्रेणी वालों से इनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। लेटकर जाने वाले श्रद्धालू कांवडि़ए इक्का-दुक्का ही बचे हैं। इसलिए शहर में बदतमीजी और छेडख़ानी की घटनाएं बढ़ गई हैं। कुछ दिनों के लिए शहर में अघोषित कफ्र्यू जैसी स्थिति हो जाती है। स्थानीय लोगों को असुविधा होती है।

पुलिस व्यवस्था फिर भी ठीक

हज़ारों-लाखों कांवडिय़ों की निगरानी छोटी बात नहीं, फिर भी कांवड़ मेले में पुलिस प्रशासन की व्यवस्था चुस्त नज़र आई। जगह-जगह पुलिसकर्मी ट्रैफिक की व्यवस्था संभालते नज़र आए। कई जगह तो सड़कों पर गड्ढे भरते भी नज़र आए। पुलिसकर्मियों का कहना था कि इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर कांवड़ मेला ठीक-ठाक रहा। कावंड़ मेला प्रकोष्ठ के मोहन सिंह का कहना है कि कांवडिय़ों की संख्या में हर साल दस-बारह फीसदी की बढ़ौतरी हो रही है। पिछले वर्ष मेले में साढ़े तीन करोड़ के आसपास कांवडि़ए आए थे। उन्होंने बताया कि केवल

हरिद्वार में पांच हज़ार पुलिसकर्मी तैनात किए गए। प्रकोष्ठ में उपस्थित पुलिसकर्मियों का कहना है कि यदि सभी विभाग मिलकर काम करें तो हरिद्वार की पवित्रता को दूषित होने से बचाया जा सकता है।