पद्म सम्मान -2021 ग्रामीण विभूतियों ने रचा इतिहास

ईमानदार, मेहनती और परिस्थितियों से लडऩे वालों के प्रेरणास्रोत है पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

देश के बड़े सम्मानों में गिने जाने वाले पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री मिलना गौरव की बात है। साल 2021 के लिए दिये जाने वाले इन पुरस्कारों में सबसे ख़ास बात यह रही कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने शहर में रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पुरस्कार प्राप्त किये। लेकिन दु:खद यह है कि इन सम्मानों पर कुछ नाम वे भी लिख दिये जाते हैं, जो असल में उनके हक़दार नहीं होते। लेकिन कुछ विभूतियाँ वास्तव में ये सम्मान पाने की हक़दार होती हैं। ख़ैर, हम इस समय इस बहस में नहीं पड़ेंगे। हम हाल ही में मिले इन सम्मानों से नवाज़ी गयी विभूतियों का संक्षिप्त परिचय देकर आज उस विभूति का ज़िक्र करेंगे, जिसने अपने जीवन में कला को जीवंत करने की नीयत से जीवन की परेशानियों की परवाह किये बग़ैर दिन-रात मेहनत की, जिसे यह भी पता नहीं था कि जीवन में उसे कोई सम्मान भी मिलेगा।

हाल ही में मिले इन 119 सम्मानों में सात पद्म विभूषण से सम्मानित विभूतियों में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को सार्वजनिक मामलों के लिए, तमिलनाडु के संगीत निदेशक, गायक एस.पी. बालासुब्रमण्यम को मरणोपरांत कला के क्षेत्र में, कर्नाटक डॉक्टर बेले मोनप्पा हेगड़े को चिकित्सा के क्षेत्र में, संयुक्त राज्य अमेरिका के नरिंदर सिंह कपनी को विज्ञान एवं तकनीक में मरणोपरांत क्षेत्र में, दिल्ली के मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान को अध्यात्म के लिए, दिल्ली के बी.बी. लाल को पुरातत्व के क्षेत्र में और ओडिशा के सुदर्शन साहू को मूर्तिकला के क्षेत्र में सम्मान दिया गया।

इसके अलावा 10 पद्म भूषण- केरल की कृष्णन नायर शांताकुमारी को कला (पाश्र्व गायन) के क्षेत्र में, असम के तरुण गोगोई को मरणोपरांत, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान (बिहार) को मरणोपरांत, गुजरात के केशुभाई पटेल को मरणोपरांत, हरियाणा के तरलोचन सिंह और मध्य प्रदेश की सुमित्रा महाजन को सार्वजनिक मामलों के लिए, कर्नाटक के चंद्रशेखर कंबरा को साहित्य एंव शिक्षा के क्षेत्र में, उत्तर प्रदेश के नृपेंद्र मिश्र को नागरिक सेवाओं के लिए, उत्तर प्रदेश के कल्बे सादिक को मरणोपरांत अध्यात्म के क्षेत्र में एवं महाराष्ट्र के रजनीकांत देवीदास को उद्योग के क्षेत्र में सम्मानपूर्वक महामहिम राष्ट्रपति के हाथों दिये गये।

इसी तरह पद्मश्री पाने वाले 102 लोगों में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कर्नाटक की तुलसी गौड़ा, महाराष्ट्र की राहीबाई सोमा पोपेर और राजस्थान के हिम्मताराम भांभू जी को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, मंजम्मा जोगतन को कला के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में मंगलोर के हरेकाला हजब्बा, समाज कल्याण के लिए अयोध्या के मोहम्मद शरीफ़, कला के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के गुलफाम अहमद के अलावा करतार पारस राम सिंग, बॉम्बे जयश्री, बालन पुठेरी, अंशु जमसेनपा, श्रीकांत डालर, दुलारी देवी, भूपेंद्र कुमार सिंह संजय, चरन लाल सपरू, मंगल सिंह हाजोवेरी, करतार सिंह, अली मानिकफन, सुब्बु अरुमुगम, क़ाज़ी सज्जाद अली ज़ाहिर, मौमा दास, पी.वी. सिंधु, मेरी कॉम, आनंद महिंद्रा, पंडित छन्नूलाल मिश्र, कंगना रनोट और सिंगर अदनान सामी के अलावा अन्य 75 लोग शामिल रहे।

ग़ौरतलब हो की विभिन्न क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वालों को देश के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से, असाधारण और प्रतिष्ठित सेवा के लिए पद्म भूषण एवं उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा और किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जाता है।

पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

भारत देश के दक्षिण के 7 तालुका वाले ज़िला बेल्लारी है। कुल 8,461 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल और दो लाख 63 हज़ार से अधिक आबादी वाले इस ज़िले में 13 क़स्बे और 552 गाँव हैं। प्रति 1000 पुरुषों पर 983 महिलाओं वाले इस ज़िले में एक बड़ी आबादी अनपढ़ और पिछड़ी है।

ऐसे ही लोगों में से बेल्लारी ज़िले के कल्लुकम्बा गाँव में हनुमंतैया और जयलक्ष्मी के परिवार में 18 अप्रैल, 1964 में जन्मीं एक जोगतीन (जोगनिया ) मंजम्मा जोगती उर्फ़ मंजुनाथ शेट्टी ने भारतीय कन्नड़ थिएटर अभिनेत्री, गायिका और उत्तरी कर्नाटक के लोकनृत्य जोगती नृत्य में ख़ुद को स्थापित किया। लेकिन उन्होंने जिन परिस्थितियों में ख़ुद को स्थापित किया, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।  एक भगोड़े भिखारी से लेकर लोक कला के राज्य के शीर्ष संस्थान का नेतृत्व करने तक की मंजम्मा की असाधारण जीवन कहानी अब  स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है।

पद्मश्री मिलने के बाद ख़ुशी के आँसू आँखों में भरकर मंजम्मा बोलीं कि इस प्यार और प्रशंसा ने मुझे अभिभूत कर दिया है। मैंने अपना पूरा जीवन इस स्वीकृति और प्यार के लिए तरसते हुए बिताया है। वह कहती हैं जब मैं पहली बार इस कुर्सी पर (पद्मश्री सम्मान के लिए) बैठी तो मेरे हाथ काँप रहे थे। मैं वहाँ विपरीत दिशा में बैठी थी और तत्कालीन राष्ट्रपति को नमस्ते सर! कहने में भी घबरा जा रही थी। मेरे जैसे किसी ने कभी इस तरह आसमान तक पहुँचने का सपना कैसे देखा होगा?

अकल्पनीय दर्द झेल चुकीं मंजूनाथ ने एक महिला के रूप में पहचान बनानी शुरू की, इससे पहले उनके पास न तो तन ढकने के लिए ठीक से कपड़े थे और न पेट भरने के लिए रोटी का इंतज़ाम था। वह एक तौलिया के बराबर कपड़ा लपेटकर रहती थीं। उन्हें कामों में अपनी माँ की मदद करना, स्कूल की लड़कियों के साथ रहना, नाचना और कपड़े पहनना पसन्द था। उनके जीवन में विकट कष्ट रहे, प्रताडि़त की गयीं और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने आत्महत्या तक की कोशिश की। एक समय ऐसा भी आया वह घर छोडक़र चली गयीं और पेट भरने के लिए भीख माँगने लगीं। एक दिन छ: लोगों ने उसके साथ बलात्कार करके लूट लिया। इस बार भी उनके मन में कई विचार कौंधे, कभी सोचा कि बलात्कारियों को मार दें, तो कभी सोचा कि आत्महत्या कर लें। लेकिन फिर दावणगेरे के पास एक बस स्टैंड पर उन्होंने एक पिता-पुत्र को लोकगीत गाते और नाचते देखा। बस यहीं से उन्होंने ठान लिया कि उन्हें नृत्य में कुछ बड़ा करना है। मंजम्मा को तब यह नहीं पता था कि कला उनके जीवन में अधिक परिवर्तनकारी भूमिका निभायेगी। एक साथी जोगप्पा ने उसे हागरिबोम्मनहल्ली के एक लोक कलाकार कलव्वा से मिलवाया। इस पर मंजम्मा का कहती है कि मुझे आज भी वह दिन याद है, जब कलव्वा ने मुझे उसके सामने नृत्य करने के लिए कहा था; जिसे आप लोग ऑडिशन कहते हैं। उसने मेरे चेहरे पर मेकअप करने के लिए किसी को लिया और मुझे याद है कि मैं आईने को देख रही थी और बहुत शर्मिंदगी  महसूस कर रही थी। मैं बहुत साँवली थी और इस मेकअप ने मुझे गोरा और सुन्दर बना दिया था। मैंने कलव्वा गाते हुए नृत्य किया। जल्द ही उसने मुझे नाटकों में छोटी भूमिकाओं के लिए और फिर बड़ी मुख्य भूमिकाओं के लिए भी आमंत्रित करना  शुरू कर दिया। मेरे जीवन को विस्तार देने में मेरे माता-पिता की बड़ी भूमिका रही है।

बता दें कि मंजम्मा को सन् 2010 में राज्योत्सव पुरस्कार से नवाज़ा गया। सन्  2019 में वह लोक कला के लिए मंजम्मा कर्नाटक जनपद अकादमी का नेतृत्व करने वाली पहली ट्रांसवुमन बनीं। जनवरी, 2021 में भारत सरकार ने लोक कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा की।

कंगना का बड़बोलापन

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने पद्मश्री सम्मान लेने के दौरान जिस तरह का बयान दिया, उसकी हर तरफ़ जमकर निंदा हो रही है। उन्होंने अपने बयान कि ‘1947 में तो भीख में आज़ादी मिली थी, असली आज़ादी तो 2014 में मिली है’ न केवल देश, बल्कि देश की आज़ादी के लिए लडऩे और शहीद होने वाले बलिदानियों का भी अपमान किया है। सबसे ज़्यादा दु:खद उनके इस बयान पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक चुप्पी साधे रहे। भला ऐसे बयान देने वाले व्यक्ति को देश के सर्वोच्च लोग सुन कैसे सके? यह सवाल उनसे ही पूछा जाना चाहिए।  हालाँकि जागरूक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, आम लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह घेरा है। वहीं भाजपा सांसद वरुण गाँधी ने कंगना को आड़े हाथों लेते हुए लिखा कि यह एक राष्ट्र विरोधी कार्य है और इसे इस तरह से बाहर किया जाना चाहिए। लेकिन कंगना ने उनके इस बयान पर पलटवार करते हुए उन्हें महात्मा गाँधी के कटोरे में भीख मिली जैसी बात कहकर उन्हें बहस के लिए उकसाने का काम किया। सवाल यह है कि आख़िर कंगना रनौत किससे बूते इतना उछल रही हैं कि वह यह तमीज़ भी भूल गयीं कि देश के बलिदानियों का सम्मान करना भी भूल गयीं? कंगना की इस हरकत के लिए आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रीति शर्मा मेनन ने कंगना के बयान को देशद्रोही और भडक़ाऊ करार देते हुए मुम्बई पुलिस को एक आवेदन प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504, 505 और 124(ए) के तहत अभिनेत्री के देशद्रोही और भडक़ाऊ बयानों के लिए कार्रवाई का अनुरोध किया है। कंगना के ख़िलाफ़ अन्य कई एफआईआर दर्ज करायी गयी हैं।