पटरी वालों से परेशान स्थायी दुकानदार!

रोज़गार छिनने से स्थायी बाज़ारों में बढ़ रही रेहड़ी-पटरी वालों की संख्या, कुछ बड़े व्यापारियों पर बढ़ावा देने का आरोप

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कोरोना-काल में दिल्ली के बाज़ारों का हाल बेहाल है। कोरोना वायरस से बचाव के लिए धरातल पर दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। कोरोना-काल में माफिया-राज का बोलबाला बढ़ा है, जो बाज़ारों में अपने तरीके से सारे नियम-कायदों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। तहलका संवाददाता ने बाज़ारों में व्यापारियों से बात की, तो उन्होंने बताया कि अब बाज़ारों में दिल्ली-एनसीआर के लोग शासन-प्रशासन के साथ साठ-गाँठ करके अवैध रूप से पटरी लगा रहे हैं। उन्हें दबंग लोग निजी स्वार्थ के लिए आसरा दे रहे हैं। अगर कोई दुकानदार इसका विरोध करता है, तो दबंग लडऩे को तैयार रहते हैं। मतलब बड़े व्यापारी पटरी वालों से डरकर व्यापार करने को मजबूर है। दिल्ली के सदर बाज़ार, चाँदनी चौक, लाजपत नगर बाज़ार और सरोजनी नगर मार्किट के स्थायी व्यापारियों का कहना है कि कोरोना-काल के पहले भी पटरी लगती रही हैं। लेकिन इस बार पटरी वालों की संख्या बढ़ गयी है। अगर यह सिलसिला यूँ ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में वर्षों से महँगी दुकानों में स्थायी व्यवसाय करने वालों का धंधा-पानी चौपट कर सकता है। व्यापारियों का कहना है कि त्यौहारों में ही उनका कुछ काम चलता है, रेहड़ी-पटरी वालों के चलते वह भी ठप-सा हो गया है। व्यापारियों का कहना है कि कोरोना-काल में जिनकी नौकरी गयी है, काम-धन्धे कमज़ोर हुए और जिनके पास काम नहीं है; दिल्ली के कुछ स्थानीय नेता स्थापित बाज़ारों में प्लानिंग के तहत उनका कब्ज़ा करवाने में लगे हैं। सरोजनी मार्केट के अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि कोरोना-काल में छोटे-बड़े व्यवसायों में मंदी आयी है। त्यौहारी सीज़न में व्यापारियों को उम्मीद जगी कि कुछ काम चलेगा; पर अब उम्मीद इसलिए कम है, क्योंकि शासन-प्रशासन और पुलिस महकमे में पहुँच रखने वालों की मदद से दिल्ली-एनसीआर के बहुत-से नये-पुरने व्यापारी बाज़ारों में अवैध रूप से घुसकर पटरी लगा रहे हैं।

फेडरेशन ऑफ सदर बाज़ार ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार यादव का कहना है कि वह पटरी वालों के विरोध में नहीं हैं। क्योंकि पटरी वाले तो पहले भी पटरी लगाते रहे हैं; लेकिन अब बाज़ारों में माफियाराज की तरह लोगों ने आकर रेहड़ी-पटरी लगायी हैं, उससे उनका धंधा पनपेगा, या नहीं? ये तो नहीं कहा जा सकता है, मगर कोरोना ज़रूर पनपेगा और स्थायी व्यापारियों, दुकानदारों का धंधा चौपट होगा। क्योंकि अब पटरी वालों का कारोबार एक प्रकार से गोरखधंधे के रूप में पनप रहा है। चाँदनी चौक के व्यापारी रामदेव शर्मा का कहना है कि इसे सरकार की अनदेखी कहें या मिलीभगत; लेकिन इससे बाज़ारों में पटरी वालों का बोलवाला बढऩे के साथ-साथ देश की अर्थ-व्यवस्था को भी बट्टा लग रहा है। क्योंकि स्थायी व्यापारी जीएसटी काटकर बिल देते हैं, जो सरकारी खाते में जाती है। वहीं रेहड़ी-पटरी वाले बिना बिल और जीएसटी के सामान बेचते हैं और खुद मोटा मुनाफा कमाते हैं।

पटरी वालों ने तहलका संवाददाता को बताया कि कोरोना-काल में छोटे गाँवों में धंधा कम हो रहा है। उनको मजबूरी में आकर दिल्ली जैसे शहर में पटरी लगाने को मजबूर होना पड़ रहा है। पटरी लगाने वाले संजीव कुमार और संतोष वर्मा का कहना है कि वे गाज़ियाबाद से आकर दीपावली के पर्व तक ही यहाँ पटरी लगाएँगे। हालाँकि यहाँ पर भी जैसे व्यापार की उम्मीद थी, वैसा व्यापार नहीं हो रहा है, पर करें क्या? दादरी से आकर सदर बाज़ार में पटरी लगाने वाले रमाकांत ने बताया कि सदर बाज़ार के बड़े व्यापारियों द्वारा जो विरोध किया जा रहा है, वह पूरी तरह से गलत है। क्योंकि उनके व्यापार पर किसी भी प्रकार का कोई आघात नहीं किया जा रहा है; बल्कि वह सदर बाज़ार से ही सामान खरीदकर पटरी पर बेच रहे हैं। रमाकांत ने बताया कि गाँवों में किसानों और गरीबों के पास नकदी के अभाव के चलते वहाँ पर काम नहीं है, जिसके कारण वह दिल्ली में पटरी लगा रहे हैं।

लाजपत नगर के व्यापारी बॉबी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को आगाह कर रहे हैं, नसीहत दे रहे हैं कि न लॉकडाउन गया, न कि कोरोना का वायरस गया है। अभी सावधानी और सतर्कता की ज़रूरत है; फिर भी बहुत-से लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। बिना मास्क के लोग घूम रहे हैं। पहले त्यौहारों में व्यवसाय ठीक-ठाक चलता था, तो कोई किसी का विरोध नहीं करता था। पर अब बिक्री कम होने के साथ-साथ रेहड़ी-पटरी वालों की भीड़ बढ़ गयी है, जो चिन्ता करने को मजबूर करती है। उनका कहना है कि कोरोना-काल में शहर, कस्बे और गाँवों में साप्ताहिक बाज़ार बन्द होने से वहाँ अपना व्यवसाय करने वाले अब दिल्ली के बाज़ारों में कब्ज़ा-सा कर चुके हैं, जो किसी भी तरह सही नहीं माना जा सकता। व्यापारी नेता विजय प्रकाश जैन का कहना है कि सरकार को कोई ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे बाज़ारों आराजकता न पनपे; क्योंकि मुश्किल से 10 फीसदी पटरी वाले ही जीएसटी बिल के साथ सामान खरीदते हैं। बाकी अन्य पटरी वाले खुला माल बिना बिल के खरीदकर औने-पौने दामों में बेंच रहे हैं। चाँदनी चौक से सलीम ने बताया कि साप्ताहिक बाज़ारों के बंद होने से पटरी लगाने वालों के बीच रोज़गार का संकट गहराया है, जो अब बड़े बाज़ारों में घुसपैठ करके काम-धंधा चला रहे हैं। सलीम का दावा है कि समस्या की जड़ यह है कि कई बड़े व्यापारियों ने अपने सामान को हर हाल में बेचने के लिए छोटे व्यापारियों और साप्ताहिक बाज़ार वालों से मिलकर बाज़ारों में पटरी लगवाने की तरकीब निकाली है; जो अपने आपमें एक नया ट्रेंड बनकर उभरी है। इसका छोटे दुकानदार और कुछ व्यापारी विरोध कर रहे हैं।