पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं पर विवाद

स्वास्थ्य केंद्रों का विकल्प बन रहे आम आदमी क्लीनिक

पंजाब में आम आदमी क्लीनिक अब सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और डिस्पेंसरियों का विकल्प बन गये हैं। सरकार इस प्रयोग को अच्छा बता रही है, वहीं काफ़ी लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। बठिंडा ज़िले के काहनगढ़ और बख़्शीवाला की डिस्पेंसरियाँ 27 जनवरी से बन्द हैं और इन्हें शुरू कराने के लिए ग्रामीण धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (उग्राहाँ-एकता) के जोगिंदर सिंह दयालपुरा के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्पेंसरियाँ ठीक काम कर रही हैं। लोग वहाँ की सेवाएँ से सन्तुष्ट हैं। फिर इन्हें बन्द क्यों रखा जा रहा है? सरकार लोगों की सुविधा के लिए चाहे जितने क्लीनिक खोल ले; लेकिन पहले से चल रहे केंद्रों को बन्द करना ग़लत है। सरकार इन्हें पहले की तरह चालू रखे। गाँव गोविंदपुरा के ग्रामीण भी इसी तर्ज पर बन्द डिस्पेंसरी को फिर से शुरू करने के लिए आन्दोलनरत हैं।

उधर, भगवंत मान सरकार प्रदेश में आम आदमी क्लीनिक खोलने की केजरीवाल गारंटी पूरी करने का दम भर रही है। दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक है, तो पंजाब में आम आदमी क्लीनिक। नाम अलग-अलग लेकिन मक़सद एक ही कि व्यक्ति को घर के आसपास ही छोटी-मोटी तकलीफ़, बीमारी और विभिन्न प्रकार की जाँच (टेस्ट) की सुविधा मिल जाए।

छोटे और बड़े अस्पतालों में लोड को कम करने के लिए यह योजना ठीक है, पर पहले से चल रहे प्राथमिक केंद्र और डिस्पेंसरियों को बन्द या कमज़ोर करना सही क़दम नहीं है। ये भी तो वही काम कर रहे हैं, जो आम आदमी क्लीनिक में होते हैं, फिर इन्हें नया विकल्प बनाने की ज़रूरत क्यों हुई? इन्हीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और डिस्पेंसरियों को अतिरिक्त सुविधाओं से लैस किया जा सकता है। अगर वादे के मुताबिक, मोहल्ला या आम आदमी क्लीनिक खोलने ही हैं, तो इन्हें अतिरिक्त के तौर पर लिया जाना चाहिए।

पंजाब में क़रीब 600 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। सरकार के नए प्रयोग से इनकी सेवाएँ प्रभावित होने लगी हैं। कुछ स्थानों पर इन केंद्रों पर उपचार के लिए आने वालों को आम आदमी क्लीनिक जाने की बात कही जाती है। डॉक्टरों और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ को आम आदमी क्लीनिकों में शिफ्ट किया जा रहा है। सिविल अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी होने लगी है। पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन (पीसीएमएस) के मुताबिक, इमरजेंसी मेडिकल अफ़सरों को आम आदमी क्लीनिकों में लगाये जाने से काम प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञ डॉक्टरों को सामान्य ड्यूटी करनी पड़ रही है।

स्वास्थ्य विभाग में पिछले दिनों 271 डॉक्टरों की नियुक्तियाँ हुई हैं। बावजूद इसके बहुत-से पद ख़ाली पड़े हैं। अगर नये वजूद में आये आम आदमी क्लीनिकों को सफल बनाना है, तो नयी भर्तियाँ करनी होगी, वरना सही प्रबंधन न होने से छोटे-बड़े अस्पतालों में कामकाज और भी ज़्यादा प्रभावित होगा। स्वास्थ्य निदेशक सेवाएँ रणजीत सिंह भी मानते हैं कि जल्द ही अस्पतालों में इमरजेंसी डॉक्टरों की तैनाती को विश्वसनीय बनाया जाएगा। मोहल्ला या आम आदमी क्लीनिक का कहीं विरोध नहीं हो रहा, बल्कि पहले से चल रहे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, डिस्पेंसरियों और सिविल अस्पतालों की सेवाएँ कुछ हद तक बाधित होने का है।

सरकार ने बजट में आम आदमी क्लीनिक योजना के लिए 77 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा है। यह राशि बड़ी योजना के लिए पर्याप्त नहीं है। अगर सरकार को योजना के तहत लोगों को घर के पास स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराना ही था, तो इसके लिए ज़्यादा बजट राशि और स्टाफ की व्यवस्था का प्रावधान रखना चाहिए था। सवाल यह है कि क्या प्रदेश में पहले से चल रहे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और डिस्पेंसरियों का लाभ आम आदमी तक नहीं पहुँच पा रहा था? अगर सेवाओं में कुछ कमी थी, तो इसे दूर और इन्हें मज़बूत किया जा सकता था।

दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक योजना की तर्ज पर पंजाब में मोहल्ला या पिंड (गाँव) क्लीनिक खोलने की ज़रूरत क्यों हुई? नये प्रयोग के तहत वजूद में आये क्लीनिकों में कई तरह के टेस्ट और दवाइयाँ मुफ़्त में मिलती है। यह सुविधा तो पहले से चल रहे स्वास्थ्य केंद्रों पर मिल ही रही थी। आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मोहल्ला क्लीनिक योजना को स्वास्थ्य सेवाओं में एक नयी पहल मानते हैं। निश्चित ही योजना से वहाँ लोगों को अस्पताल जाने की बजाय घर के पास स्वास्थ्य सेवाएँ मिल रही है। वह इस प्रयोग को पंजाब में पार्टी की जीत के बाद लागू करना चाहते थे। भगवंत मान भी दिल्ली में ऐसे कई मोहल्ला क्लीनिकों का दौरा कर प्रभावित हो चुके थे।

पंजाब सीएम भगवंत मान

कोई भी योजना चाहे कहीं भी क्यों न हो उसे आम लोगों की सुविधा के लिए लागू करना अच्छी बात है; लेकिन पंजाब में आम आदमी क्लीनिकों की वजह से राज्य की स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित नहीं होनी चाहिए पर ऐसा हो रहा है। पिछले साल अगस्त से राज्य में 100 आम आदमी क्लीनिक काम कर रहे हैं। पिछले माह 400 नये क्लीनिक खुलने से अस्पतालों के स्टाफ की कमी तो आएगी ही। योजना के तहत क्लीनिकों के लिए अलग से नियुक्तियाँ नहीं हुई है। डॉक्टरों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जा रहा है। छोटे-बड़े अस्पतालों में बाधित हो रही स्वास्थ्य सेवाओं के आरोपों के बीच स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह ने धूरी के सरकारी अस्पताल का दौरा कर जायज़ा लिया।

उन्होंने दावा किया किया आम आदमी क्लीनिक से लोगों को बहुत फ़ायदा मिल रहा है यही नहीं सरकार प्रदेश के लोगों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत-सी मुफ़्त मुहैया कराएगी। अगले छ: माह के दौरान राज्य के छोटे बड़े अस्पतालों में दवाइयों की कोई क़िल्लत नहीं रहेगी। मुख्यमंत्री भगवंत मान घोषणा कर चुके हैं कि कार्यकाल के दौरान राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। आम आदमी क्लीनिक से इसकी शुरुआत पहले ही हो चुकी है। अब कोई पैसे की कमी से कोई उपचार से वंचित नहीं रहेगा।

मुख्यमंत्री मान के मुताबिक, राज्य में 100 आम आदमी क्लीनिक की पायलट परियोजना बहुत सफल रही है। इसे देखते हुए एक साथ 400 ऐसे केंद्र खोले गये हैं। जहाँ-जहाँ ऐसे क्लीनिकों की ज़रूरत होगी खोले जाएँगे। सिविल अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, सरकार के आम आदमी क्लीनिकों की वजह से स्टाफ की कमी महसूस होने लगी है। संबंधित अधिकारियों को इस बारे में अवगत कराया जा चुका है; लेकिन अभी समस्या जस की तस ही है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से लोगों को वापस भेजना पड़ता है। नौकरी में रहने वालों को सरकारी आदेशों का पालन करना ही होता है; लेकिन इससे आमजन को पीड़ा होती है।

आम आदमी क्लीनिक क्षेत्र के कुछ लोगों की राय में सरकार की यह योजना बहुत अच्छी है। अब अस्पताल की बजाय उनके विभिन्न प्रकार के टेस्ट आसानी से हो रहे हैं। यहाँ ज़्यादा भीड़भाड़ भी ज़्यादा नहीं होती। सब कुछ टोकन सिस्टम से हो रहा है, बैठने की अच्छी व्यवस्था है। अब छोटी मोटी तकलीफ़ के लिए घर से दूर अस्पताल जाने की ज़रूरत ही नहीं है। अस्पताल जाने के लिए न केवल पैसा लगता है, बल्कि समय भी बहुत $खराब होता है। मोहल्ला या आम आदमी क्लीनिकों में 200 से ज़्यादा टेस्ट की मुफ़्त सुविधा है; लेकिन कई जगह ऐसा नहीं हो रहा है। आवश्यक संसाधनों की कमी कई क्लीनिकों में देखने को मिल रही है।

राज्य में आप सरकार के इस नये प्रयोग पर जहाँ लोगों को क़रीब में ही स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल रही हैं, वहीं विपक्षी दल इसे राजनीति फ़ायदा लेने के आरोप लगा रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल कहते हैं कि उनके कार्यकाल में बनाये गये ऐसे 100 से ज़्यादा सूचना सेवा केंद्रों को और सैकड़ों ग्रामीण डिस्पेंसरियों को क्लीनिकों में बदल दिया गया है। राजनीति से इतर मुख्यमंत्री भगवंत मान कहते हैं कि पहले की सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं की घोर उपक्षा की है। उनकी सरकार न केवल बड़े अस्पतालों की कायाकल्प करेगी वरन् लोगों को घर के असापास ही स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराएगी।

सरकार ने पाँच साल के दौरान 500 मोहल्ला क्लीनिक खोलने का वादा किया था; लेकिन सरकार ने एक साल के भीतर ही इसे पूरा कर दिया है। राज्य के हर क्षेत्र में ज़रूरत के मुताबिक इन्हें खोला गया है; लेकिन जहाँ-जहाँ इनकी ज़रूरत होगी, सरकार आगे बढक़र काम करेगी।

काम के साथ-साथ नाम भी

सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उपकेंद्र, डिस्पेंसरी या अस्पताल आम आदमी के लिए ही विशेष होते हैं। पहुँच वाले लोग तो निजी अस्पतालों में जाते हैं, फिर इसका नामकरण पार्टी विशेष पर क्यों किया गया? दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक है, तो पंजाब में इसे आम आदमी क्लीनिक का नाम दिया गया है। इसे एक तीर से दो निशाने वाला माना जा सकता है। एक, जहाँ लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलेंगी, दूसरा, वहीं इससे पार्टी का नाम भी कहीं-न-कहीं मुँह पर आएगा। सरकार की योजना ठीक है। लेकिन पहले से कार्यरत स्वास्थ्य केंद्र भी बदस्तूर चलते रहे, तो ज़्यादा बेहतर होगा।