पंजाब में भ्रष्टाचार पर अंकुश की क़वायद

पंजाब में प्रचंड बहुमत वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार राज्य की व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की इच्छाशक्ति दिखा रही है। मतदाताओं ने इसी उम्मीद से उन्हें वोट देकर सत्ता सौंपी है, ताकि ख़राब हो चुकी व्यवस्था को नया बनाया जा सके, जिसमें आम आदमी सरकारी तंत्र से प्रताडि़त न हो। सरकार को न केवल इच्छाशक्ति, बल्कि धरातल पर ठोस करके दिखाना होगा; क्योंकि इससे पहले की सरकारों ने तो सत्ता मिलने पर व्यवस्था में बदलाव लाने की घोषणाएँ करते रहे हैं।

राजनीतिक दलों को सत्ता में आने के लिए वादे बहुत करने पड़ते हैं; लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए जैसी कार्य योजना चाहिए, नहीं बन पाती है। फिर आम आदमी पार्टी ने तो एक-से-एक लोक लुभावन और मुफ़्त के वादे कर डाले हैं। ऐसे में उसके सामने चुनौतियाँ अपेक्षकृत ज़्यादा हैं। रोज़गार देने से लेकर राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त करना इतनी बड़ी चुतनौती नहीं, जितनी राज्य को क़र्ज़ से मुक्ति दिलाने की है। रोज़गार का मतलब केवल सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि युवा को रोज़गार से जोडऩा भी है।

सभी को रोज़गार सरकारी क्षेत्र में मिले, यह सम्भव नहीं है। इसे हर सरकार भली-भाँति जानती है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को पूरा ज़ोर स्वरोज़गार पर रहता है। पंजाब में भी स्वरोज़गार से जुड़ी कई योजनाएँ आने वाले समय में सामने आएँगी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शपथ लेने के बाद 25,000 सरकारी नौकरियाँ निक़लाने की घोषणा की है; लेकिन मौज़ूदा बेरोज़गारी की दर को देखते हुए यह ऊँट के मुँह में जीरे के समान ही है। हाँ, इसे अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है, जिससे युवाओं में रोज़गार मिलने का कुछ भरोसा ज़रूर पैदा होगा। रही बात भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने या राज्य को इससे मुक्त करने की, तो यह सम्भव है।

पंजाब में भ्रष्टाचार किस क़दर है? इसे पीडि़त लोग बख़ूबी जानते हैं। सरकारी दफ़्तरों में अपनी फाइल को आगे बढ़ाने, राशन कार्ड में नाम जुड़वाने से लेकर तहसील में रजिस्ट्री कराने आदि से लेकर घोर भ्रष्टाचार है। एक निजी सर्वे में पाया गया है कि पंजाब में 65 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों को अपने सरकारी कार्य कुछ ले देकर ही करवाने पड़ते हैं। बाक़ी 35 फ़ीसदी में सिफ़ारिश, जान पहचान या दबाव काम में आते हैं। यह आँकड़ा पंजाब का है, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, राजस्थान में 70 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों को अपने सरकारी काम घूस देकर पूरा कराने को विवश है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक की राय में पंजाब में 99 फ़ीसदी सरकारी कर्मचारी ईमानदार हैं; केवल एक फ़ीसदी में खोट है, जिन्हें ठीक किया जा सकता है। उनकी राय में सख़्ती से नहीं, बल्कि एक फ़ीसदी अधिकारियों और कर्मचारियों को समझाने-बुझाने से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है। एक फ़ीसदी भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों से 65 फ़ीसदी लोग प्रभावित नहीं हो सकते। इसे केजरीवाल को नहीं, बल्कि भगवंत मान को समझना होगा; क्योंकि दिल्ली और पंजाब में बहुत फ़र्क़ है। 23 मार्च को हुसैनीवाला (फ़िरोज़पूर) में शहीदी दिवस के मौक़े पर मुख्यमंत्री मान ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए मोबाइल नंबर 9501200200 जारी कर दिया, जिस पर व्हाट्स ऐप के माध्यम से भ्रष्ट सरकारी कर्मी की जानकारी आडियो-वीडियों के माध्यम से दी जा सकती है।

मज़ेदार बात यह कि नंबर जारी होने के बाद पहली शिकायत लगभग एक घंटे बाद ही उन तक पहुँच भी गयी। बठिंडा गौशाला के सचिव साधू राम ने बताया कि दान में दिये गये भूमि के टुकड़े को गौशाला भूमि में शामिल करने के लिए कैसे तलवंडी साबो के एक राजस्व अधिकारी ने 3,000 रुपये की घूस ली। शिकायत पर ज़िला राजस्व अधिकारी ने कोई कार्रवाई नहीं की। मामला जनवरी 2022 का है। काम गौशाला का था, और किसी भी तरह ग़ैर-क़ानूनी नहीं था; इसलिए सस्ते में निपट गया। वरना पंजाब में ज़मीन-ज़यदाद आदि की रजिस्ट्री के लिए घूस के रेट बहुत ज़्यादा हैं; लेकिन तय हैं। फाइलें अपने आप आगे बढ़ती जाती हैं। सभी का अपना-अपना हिस्सा होता है। घूसख़ोरी भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के ख़ून में रच-बस गयी है। इसे वे पहले-से चलती आ रही व्यवस्था का हिस्सा मानते हैं। सरकारी दफ़्तर से काग़ज़ की नक़ल निक़लवाने से लेकर बिजली ख़रीद अनुबंध तक में घूस और कमीशन तय रही है।

व्यवस्था को बदलना आसान नहीं होता; लेकिन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष से सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी सरकार को नयी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें आम से लेकर ख़ास व्यक्ति तक भ्रष्ट सरकारी तंत्र से राहत महसूस करे। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सतर्कता (विजिलैंस) विभाग ज़्यादातर मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते हैं। बाक़ायदा हर सरकारी दफ़्तर में बोर्ड पर सतर्कता विभाग के अधिकारियों के दूरभाष और मोबाइल नंबर आदि लिखे होते हैं।

पंजाब में भ्रष्टाचार पर रोक के लिए मुख्यमंत्री का जारी नंबर क्या बेहतर नतीजे दिखाएगा? आने वाले समय में क्या घूस लेने वालों पर सरकार शिकंजा कसेगी? यह समय बताएगा। लेकिन फ़िलहाल उसने एक अच्छी शुरुआत कर दी है। लेकिन यह चुनौती बड़ी है। क्योंकि रोज़ हज़ारों शिकायतें मिलेंगी। ऐसा नहीं कि शिकायत मिलते ही तुरन्त कार्रवाई हो जाएगी; क्योंकि सीधे तौर पर मुख्यमंत्री इसे देख रहे हैं। बाक़ायदा तौर पर उनकी जाँच होगी और सही पाये जाने पर कोई कार्रवाई होगी। राज्य के सबसे बड़े मुद्दे रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि हैं। 18 वर्ष से ज़्यादा की आयु की लड़कियों और महिलाओं को 1,000 रुपये प्रतिमाह देने के अलावा 300 यूनिट बिजली मुफ़्त देने जैसी योजनाओं से हज़ारों करोड़ रुपये का ख़र्च सरकार पर आएगा। इसकी व्यवस्था काग़ज़ी है, हक़ीक़त में कितना राजस्व मिल सकेगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

अगर आप सरकार पहले से ज़्यादा राजस्व कमाने और सब्सिडी कम करने में सफल होती है, तो नतीजे अच्छे निक़ल सकते हैं। राज्य के कुल राजस्व का बड़ा हिस्सा क़र्ज़ के ब्याज, सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन आदि में ख़र्च हो जाता है। पंजाब पर क़रीब तीन लाख करोड़ रुपये का भारी भरकम क़र्ज़ है। लगभग चार दशक से यह क़र्ज़ दिन-दुने, रात-चौगुने के हिसाब से बढ़ रहा है। हर वर्ष यह क़र्ज़ 20,000 रुपये बढ़़ रहा है। पूर्व की सरकारों ने इसमें कटौती करने की दिशा में बहुत ठोस प्रयास नहीं किये। लेकिन भगवंत मान सरकार को इस दिशा में काम करना पड़ेगा। हज़ारों करोड़ रुपये के रेत और बजरी आदि के धंधों को रोक दिया गया, तो इससे बहुत बड़ा राजस्व मिल सकता है।

पहले सरकार की शह पर यह सब होता रहा है। जब बाड़ (खेत की बाड़बंदी) ही खेत को खाने लगे, तो खेत में कुछ नहीं बचेगा। पूर्व की सरकारों पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं। बेनामी नामों से मंत्री और सत्ता पक्ष के लोग रेत की खदानों के काम लेते और ख़ूब चाँदी काटते रहे हैं। आप सरकार का लक्ष्य रेत खनन में पारदर्शिता लाकर इससे हज़ारों करोड़ रुपये का राजस्व पैदा करने का है। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है कि हर वर्ष 20,000 करोड़ रुपये के बढ़ते क़र्ज़ में कमी की शुरुआत कैसे हो पाएगी? अगर यह और न बढ़े और इसमें धीरे-धीरे कमी आती जाए, तो भी बड़ी बात होगी। सन् 1981 में पंजाब प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से देश का पहले नंबर का राज्य था और तब राज्य पर क़र्ज़ नहीं, बल्कि अतिरिक्त धन होता था।

वर्ष 2001 में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से राज्य चौथे स्थान पर रहा, पर उसके बाद तो पंजाब जैसे क़र्ज़ की दलदल में फँसता ही चला गया। चार दशक में राज्य की आर्थिक स्थिति कहाँ से कहाँ पहुँच गयी। पंजाब अब दिल्ली की राह पर चलेगा या फिर उससे बेहतर प्रदर्शन करेगा। दिल्ली मॉडल वहाँ की जनता और आम आदमी पार्टी के लिए आदर्श है; ठीक वैसा ही, जैसा भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह के लिए गुजरात मॉडल। राज्य में आम आदमी पार्टी की ज़ोरदार सफलता के पीछे कहीं-न-कहीं दिल्ली मॉडल का भी प्रभाव रहा है।

मुख्यमंत्री भगवंत मान दिल्ली मॉडल से बेहद प्रभावित रहे हैं; लेकिन उन्हें दिल्ली मॉडल से इतर भी बहुत कुछ नया करना होगा, जिसका पंजाब की जनता को इंतज़ार है।

 

“उनकी सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफल होगी। अब राज आम आदमी पार्टी का है। जनता जब तय कर लेती है, तो सब ठीक हो जाता है। जिस जनता ने हमें इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी दी है, उसी के सहयोग से हम भ्रष्टाचार रूपी जिन्न को भी क़ाबू कर लेंगे। हम सख़्ती से नहीं, बल्कि नये प्रयोग से व्यवस्था में बदलाव लाएँगे।’’

भगवंत मान

मुख्यमंत्री, पंजाब

 

“पंजाब में 99 फ़ीसदी सरकारी मुलाज़िम ईमानदार हैं। एक फ़ीसदी व्यवस्था को बिगाडऩे वाले और घूस लेने वाले हैं। वे लोग भी हमारे अपने ही हैं। जिस तरह से हमने दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प शिक्षकों के सहयोग से किया, उसी तरह का प्रयोग पंजाब में भी होगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान शपथ लेने के बाद बेहतर काम कर रहे हैं। अब भ्रष्ट अफ़सरों और कर्मचारियों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन शिकायतें की जा सकेंगी। यह देश में नया प्रयोग है। मुझे पूरी उम्मीद है कि पार्टी लोगों की कसौटी पर खरी उतरने में सफल रहेगी।’’

अरविंद केजरीवाल

मुख्यमंत्री, दिल्ली