पंजाबी सिंगर मूसेवाल की मुसीबत बने हथियार

शुभदीप के लिए समय का मौज़ूदा बिल्कुल शुभ नहीं। उनके खिलाफ आम्र्स एक्ट की धारा जैसे मामले दर्ज हो चुके हैं। फिलहाल वह अंतरिम जमानत पर हैं। शुभदीप सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला। पंजाबी के उभरते हुए गायक और देश-विदेश में खूब चर्चित हो रहे हैं। जितनी जल्दी उन्हें शोहरत मिली है, उतनी ही तेज़ी से वह विवादों में फँसते जा रहे हैं। यह किसी कलाकार के लिए बिल्कुल भी बेहतर नहीं; शुभदीप के लिए तो बिल्कुल ही नहीं। फिर भी वह ऐसे विवाद पैदा कर रहे हैं, जिनकी वजह से उनका करियर तबाह हो सकता है और जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।

पंजाब के ज़िला मानसा के गाँव मूसा के शुभदीप के नाम से नहीं, बल्कि सिद्धू मूसेवाला के नाम से ज़्यादा मशहूर है। ज़मीन से जुड़े इस युवा पंजाबी गीतकार और गायक को अंदाज़ा नहीं कि हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने वाले गाने उन्हें शोहरत दिलाने से ज़्यादा मुसीबत में डाल सकते हैं। पहले के दर्ज मामलों में सशर्त अंतरिम जमानत के बाद उन्होंने संजू नाम का एलबम बनाया, जिसके गीत से वह फिर विवाद में फँस गये और मोहाली में उनके खिलाफ चौथी प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है। किसी भी कलाकार के लिए ऐसी स्थिति अनुकूल नहीं होती; क्योंकि इससे उसका काम प्रभावित होगा।

आज वह पंजाबी गायकों में सबसे चर्चित और विवादास्पद बन गये हैं। फायरिंग रेंज में पुलिस के संरक्षण में वह एके-47 और रिवॉल्वर से गोलियाँ चलाने का अभ्यास करते दिखे हैं। वह भी ऐसे दौर में, जब कोरोना वायरस के चलते पंजाब में कफ्र्यू था। पुलिस कफ्र्यू का उल्लंघन करने वालों को सडक़ों और गलियों में बेरहमी से पीट रही थी। वहीं मूसेवाला बेखौफ सरकारी फायरिंग रेंज में गोलियाँ दाग रहे थे। जब इस तरह के वीडियो वायरल हुए, तो हंगामा हुआ, शिकायतें आयीं। कुछ समय तक उन पर कार्रवाई नहीं हुई, तो आरोप लगे कि उसका रसूख पुलिस में ऊपर तक है। भारी दवाब के चलते पुलिस को मूसेवाला समेत आठ लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ी। इनमें एक एएसआई, दो हेड कांस्टेबल और दो कांस्टेबल भी हैं। फायरिंग रेंज में सब बंदोबस्त कराने के पीछे एक पुलिस अधिकारी के बेटे की भूमिका रही। जाँच के बाद डी.एस.पी. दलजीत विर्क को निलंबित कर दिया गया।

मूसेवाला ने 80 से ज़्यादा गीत गाये हैं, जिनमें कई काफी लोकप्रिय हुए हैं। देश-विदेश में उनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में है। उनके कुछ गीत हथियारों से जुड़े हुए हैं; जिन्हें लेकर वह विवादों में फँस चुके हैं। मूसेवाला पहले गायक नहीं, जिनके गानों के शब्दों में हथियारों का इस्तेमाल हुआ है। पंजाबी के कई गाने गाये गये हैं और जो अच्छे खासे चलन में रहे हैं; लेकिन उन्हें लेकर कभी विवाद नहीं हुआ। ऐसे गायकों पर हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने के आरोप भी नहीं लगे और वे गाने भी खासे लोकप्रिय रहे। तो फिर मूसेवाला पर ही हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने की तोहमतें क्यों लग रही हैं, उनके खिलाफ ही क्यों मामला दर्ज हुआ? तो इसकी वजह पुलिस की मौज़ूदगी में गोलियाँ चलाने का अभ्यास और मामला दर्ज होने के बाद संजू का वह गीत, जिसके शब्द खुलेआम चुनौती देने वाले जैसे हैं।

सहायक पुलिस महानिदेशक अर्पित शुक्ला की राय में लगातार ऐसे ही आरोपों के घिरे रहने के बावजूद फिर उसी ढर्रे का गीत बताता है कि उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशकों को स्पष्ट निर्देश है कि शराब, नशा और हिंसा जैसे विषयों को उभारने और उन्हें प्रमोट करने जैसे गीतों या अन्य किसी प्रचार सामग्री को रोका जाए। लिहाज़ा पुलिस को कार्रवाई करनी ही थी; इसलिए उसके खिलाफ मामला दर्ज करना ज़रूरी था।

गीत की एक बानगी देखें- ‘चैनलां ते चर्चा बाली चलदी, गबरू दे नाल सन्तालीस (एके-47) जुडग़ी, घट्टो घट्ट सज़ा पंज साल वट दी, गबरू उत्ते केस जेड़ा संजय दत्त दे…।’ इस गाने को हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने के आरोप में पुलिस ने उन पर मामला दर्ज कर लिया; लेकिन मूसेवाला को अब भी शब्दों में ऐतराज़ योग्य कुछ भी नहीं लगता। वह कहते हैं कि जो उनके साथ हुआ, वही तो गाने में है। एके-47 उनके साथ जोड़ी गयी, तो गाने में इसका उल्लेख है।

संजय दत्त को ऐसे ही ऑटोमेटिक हथियार घर में छिपाने के आरोप में पाँच साल का सज़ा हुई थी। जो हकीकत है, उन्होंने वही दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया। जो उनकी ज़िन्दगी में हो चुका होता है; जिसे वह हकीकत में देख चुके होते हैं; वह गानों के माध्यम से उसे रखने का प्रयास करते हैं। उनकी मंशा नहीं कि युवा उनके गानों से कोई सीख लें और हथियार उठा लें। वह उदाहरण देते हैं कि हिन्दी फिल्म ‘संजू’ में क्या है? फिल्म स्टार संजय दत्त की ज़िन्दगी पर आधारित हैं, उसमें वहीं तो सब कुछ है जो उन्होंने गाने में है। अगर उनका यह गाना हिंसा को हवा देने या फिर हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने वाला है, तो फिर फिल्म संजू पर भी तो कार्रवाई होनी चाहिए। उनसे पहले कई नामी गायक ऐसे ही गाने गा चुके हैं; तब कभी विरोध में कोई आवाज़ नहीं उठी। वह गाने की लोकप्रियता का हवाला देते हैं कि लगभग दो करोड़ लोग इस गाने को शुरुआत में ही देख चुके हैं। देश-विदेश में उनकी बढ़ती लोकप्रियता से ईष्र्या भी उन्हें ऐसे मामलों में फँसाने की साज़िश है। उन्हें साज़िश के तहत ऐसे गम्भीर मामलों में फँसा रहे हैं, ताकि वह पुलिस और अदालतों में उलझे रहें। इस पंजाबी कलाकार को हथियारों का शौक भी है। उनके पास लाइसेंसी हथियार भी हैं। गानों में हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने और युवाओं को इस ओर मोडऩे के आरोपों को वह गलत मानते हैं। उनके गानों को सुनकर क्या कोई बन्दूक उठा लेगा? लोगों को समझ है और वे केवल मनोरंजन के लिए गाने सुनते हैं। अगर उनके गानों से पंजाब में हिंसा बढ़ी है, तो वह जेल जाने को तैयार हैं। अगर उनके चार-छ: माह जेल में रहने से पंजाब में अपराध कम होते हैं, तो वह इसके लिए तैयार हैं।

वह अपने को साधारण इंसान मानते हैं। उनके पास दिखावे जैसी कोई बात नहीं है। इतनी लोकप्रियता के बाद वह अपने गाँव मूसेवाल में खेती-बाड़ी करते हैं। उनकी माँ चरण कौर सरपंच हैं और पिता सेना से सेवानिवृत्त है। अभिनय, गीत लिखना और गाना उनका शौक है और अब तो करियर भी इसे बना लिया है। उनका मकसद किसी की भावनाएँआहत करना नहीं, बल्कि गानों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करना है।

समाज से जुड़े विषयों पर उनके गानों को लोगों ने बहुत पसन्द किया है। वह सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लेते हैं। आम आदमी हैं और उनके सरोकारों से मतलब रखते हैं; लेकिन उन्हें अब दूसरे रूप में पेश किया जा रहा है। उन्होंने कैंसर से बचाव के लिए कैंप का आयोजन किया; लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। कुछ लोग उनके खिलाफ गहरी साज़िश के तहत उनकी छवि खराब करने में लगे हैं, जबकि वह ऐसे नहीं हैं।

मीडिया से उन्हें खासी शिकायतें हैं। वह कहते हैं कि मीडियाकर्मी उनसे जुड़ी छोटी-छोटी बातों को भी सनसनीखेज बनाकर पेश करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे से प्रतिक्रिया लिए बिना बहुत-सी खबरें ऐसी भी प्रकाशित या चलायी गयीं, जो सच से कोसों दूर थी। मामलों से डरकर वह कहीं भागने वाले नहीं। लेकिन खबरें चलने लगीं कि मूसेवाला घर से गायब हो गया है; जबकि वह गाँव में ही रहे। उन्होंने कहा कि वह हर जाँच का सामना करेंगे; क्योंकि उनका पुलिस और न्यायपालिका में पूरा भरोसा है।

वैसे अपने को सही साबित करने के लिए उनके पास तर्क हैं; लेकिन सवाल यह है कि क्या वह अदालत को इससे सन्तुष्ट कर सकेंगे? उनके खिलाफ पहला मामला उनके गृह ज़िला मानसा में दर्ज किया गया। मई के पहले सप्ताह में बरनाला ज़िले में बडबार पुलिस फायरिंग रेंज में एके-47 से फायरिंग करने और बाद में संगरूर ज़िले में लड्डा कोठी फायरिंग रेंज में नौ एमएम पिस्तौल से गोलियाँ चलाने के सन्दर्भ में मामले दर्ज है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में इस बाबत एक जनहित याचिका भी दायर हुई थी, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार और पंजाब कला परिषद् के अध्यक्ष सुरजीत पातर चाहते हैं कि अश्लील, हिंसा, नशा, हथियार और शराब को बढ़ावा देने वाले गाने समाज के लिए ठीक नहीं हैं। जो चीज़ समाज के हित में नहीं, वह क्यों आनी चाहिए? फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) जैसा संस्थान है। हर फिल्म को इसकी कसौटी पर कसा जाता है। आपत्तिजनक होने पर उसमें कट या रोकी भी जाती है। पंजाबी एलबम या गानों के लिए ऐसा कोई सरकारी संस्थान नहीं है। पंजाब में इसके लिए प्रयास हुए; लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। जब तक कोई ऐसा संस्थान नहीं बनता, ऐसे विवाद पैदा होते रहेंगे।

देश के लिए निशानेबाज़ी में नाम कमा चुकी डीएसपी अवनीत कौर की राय में लोकप्रियता के लिए कुछ भी परोसना क्या सही है। हर फिल्म या गाना ज़रूरी नहीं कि समाज को कोई संदेश दे। बहुत कुछ लोगों के मनोरंजन के लिए होता है; लेकिन उसमें भी किसी की भावनाएँ आहत नहीं होनी चाहिए।

पंजाबी गानों में अश्लीलता के पुट को लेकर कई विवाद होते रहे हैं। दोहरे अर्थों वाले कई गाने खूब लोकप्रिय होते रहे हैं; लेकिन ऐसे गायक लम्बे समय तक टिके नहीं रह सके। सिद्धू मूसेवाला कहते रहे हैं कि जिस तरह से पंजाबी गायकी में उन्होंने मकाम हासिल किया है, वह बहुत लम्बे समय तक बरकरार नहीं रहेगा। जिस तरह से उन्होंने किसी की जगह ली है, आने वाले समय में उनकी जगह कोई और ले लेगा। इतनी जानकारी रखने वाले इस गीतकार और गायक को यह सब पता है, तो फिर जब तक उनका समय है, वह यादगार काम करें; ताकि लोग उन्हें लम्बे समय तक याद रख सकें। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी एच.सी. अरोड़ा की राय में पंजाब की समृद्ध संस्कृति रही है। उसे ही आगे बढ़ाये जाने की ज़रूरत है। अश्लीलता, हिंसा और हथियार संस्कृति को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने सिद्धू मूसेवाला मामले में पंजाब के पुलिस महानिदेशक और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि ऐसे मामलों में भारतीय दण्ड संहिता की धारा-124 (ए) राजद्रोह को जोड़ा जाना चाहिए; ताकि उन्हें कड़ा दण्ड मिल सके।

विवादों से नाता

मूसेवाला के कई पंजाबी एलबम काफी मकबूल-ओ-मशहूर रहे हैं। वह विभिन्न विषयों पर गाने गाते हैं और लोग उन्हें खूब पसन्द करते हैं। विडम्बना की बात यह कि जिन गीतों में उन्होंने  हथियारों को शामिल किया, ज़्यादा मशहूर वही हुए। फिल्म अभिनेता संजय दत्त की निजी ज़िन्दगी पर आधारित फिल्म ‘संजू’ काफी मशहूर हुई है। लोगों ने उसे सकारात्मक रूप से लिया। बचपन से लेकर अब तक उन्होंने जो ज़िन्दगी में अच्छा-बुरा किया, सब इसमें दिखाया गया है। नशे की गिरफ्त में आना, फिर प्रायश्चित करना और उससे मुक्ति पा लेना। उसके बाद मुम्बई दंगे से पहले दाऊद गैंग के कुछ सदस्यों से परिचय और घातक हथियार एके-56 घर में रख लेना। सब जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ? उन पर टाडा जैसी धारा लगी। अदालत ने उन पर कुछ नरमी दिखायी, इसलिए पाँच साल की कैद काटनी पड़ी थी। उसी फिल्म संजू से प्रेरित होकर मूसेवाला ने अपने गीत से क्या साबित करने की कोशिश की? समझ से परे है। वह गायक के अलावा गीतकार भी हैं। लेकिन उन्हें शब्दों की गम्भीरता का पता नहीं है। अगर होता, तो वह इस एलबम के मुख्य गीत में ऐसे शब्द कतई नहीं लेते, जो समाज को गलत संदेश देते हैं। वह गातें हैं कि जिस तरह से संजू को एके-56 रखने के आरोप में पाँच साल की सज़ा हुई थी, उन पर भी तो वैसा ही आरोप लगाया जा रहा है। तो सज़ा ज़्यादा-से-ज़्यादा पाँच साल की होगी, इससे ज़्यादा नहीं। यह युवा वर्ग को हथियारों के प्रति उकसाने जैसे शब्द हैं और निश्चित तौर पर आपत्तिजनक हैं। इसी के चलते उन पर इस सन्दर्भ में मामला पंजीकृत हुआ है।

‘फँसाने की साज़िश’

सिद्धू मूसेवाला विवादों में हैं; लेकिन वह इसके लिए अपने गीतों से ज़्यादा मीडिया वर्ग, कुछ राजनीतिक लोगों और उनके प्रतिद्वंद्वी पंजाबी गायकों को मानते हैं। वह नामों का खुलासा नहीं करते; क्योंकि इससे और भी विवाद के बढऩे का अंदेशा है। मीडिया तिल का ताड़ बनाकर पेश करता है। वह अपने पुश्तैनी घर पर हैं; लेकिन मीडिया वाले उन्हें फरार बता रहे हैं। उनका कहना है कि भला उन्हें फरार होने की क्या ज़रूरत है? उन्होंने कोई अपराध नहीं किया फिर वह क्यों फरार होंगे? उन्होंने पुलिस और न्यायपालिका पर भरोसा जताते हुए कहा कि उन्हें फँसाने की साज़िशें हो रही हैं। उनकी देश-विदेश में पहचान बनी है। लाखों लोग उनके प्रशंसक हैं। इसी वजह से विरोधी  उनके खिलाफ साज़िश कर रहे हैं। वहीं सरकारी फायरिंग रेंज में लाकडॉउन के दौरान गोलीबारी के अभ्यास में किसी की साज़िश पर मूसेवाला के पास कोई जवाब नहीं है। हथियारों का उन्हें शौक है और उनके पास लाइसेंसी है भी; लेकिन उन्हें सार्वजनिक करना क्या किसी कलाकार के लिए ठीक है? ऐसे मामलों में किसी की कोई साज़िश नहीं। इससे वह इन्कार नहीं कर सकते।