पंचतत्व में देह, और अमर हो के नारे

देश के शहीदों को अश्रुपूर्ण विदाई

देश आज गमजदा है। इस माटी के ४० लाल आज खामोश थे, कफ़न के बीच तिरंगे में लिपटे। उसी तिरंगे में जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन की कुर्बानी दे दी। बचपन से जिन्होंने चुहल की, शरारतें कीं, कागज़ के जहाज उड़ाए और जवानी में जिनकी गरजती बंदूकों ने दुश्मनों के कलेजे में सिहरन पैदा कर दी, वे आज हमेशा के लिए विदा हो गए।

शहीदों की चिताओं से उठता धुंआ मानों आसमां में उनकी वीरता की इबारत लिख रहा था। उनकी जय-जयकार के नारे थे। उनकी वीर विधवाओं की आँखों में आंसू थे तो उनकी कुर्बानी के प्रति गौरव की चमक भी थी। उनके नन्हें बच्चे, जिन्हें मौत का अर्थ भी मालूम नहीं, कहीं अपने चाचू तो कहीं ताऊ के काँधे पर बैठे सामने चिता से उठती लपटों में समझने का प्रयास कर रहे थे कि नारे गुंजाती भीड़ क्यों इन लपटों को देखकर आँखों में अश्रु भर रही है।

बहुत बहनों ने अपने भाई खो दिए और बहुत भाइयों ने अपने भाई। माओं ने अपने लाल और पिताओं ने अपने बुढ़ापे की लाठी। पीटीए की अगली मीटिंग में पिता को शामिल करने के टीचर से किये अपने वादे को बच्चे अब कैसे पूरा करेंगे।

किसी की आँखों में किसी अपने के त्यौहार पर आने का इन्तजार था। कुछ ने होली पर अपने पति, बेटे, भाई या पिता के आने की अभी से तैयारी की होगी। लेकिन वो तो देश के लिए खून की होली खेल गया।

बस के शीशों से बाहर झांकता जब वो कश्मीर में अपनी ड्यूटी पर जा रहा होगा तो सड़क के किनारों पर हवा में हिलते पेड़ के पत्तों को देख उसे अपने गाँव की याद आ रही होगी। किसी बच्चे को सड़क के पार दौड़ते हुए देख गाँव में अपने बच्चे की याद आई होगी।

किसी अल्हड़ को सर पर थैला उठाये जाते देख गाँव में अपनी नवयौवना पत्नी की याद आई होगी या फिर किसी बूढ़ी को लाठी का सहारा लिए जाते देश अपनी मां को याद कर बचपन में उससे मिली ममता याद आई होगी। कहीं ढोल-नगाड़ों की ध्वनि ने गाँव के मेले की याद दिलाई होगी।

और यादों के इन्हीं झुरमुटों में अचानक कान फोड़ देने वाले शोर के बीच उसकी चीखें ”भारत मां के जयकारे” में बदल गयी होंगी। चारों तरफ धुएं के उस गुब्बार में उनकी हस्ती फिर भी नहीं खोई। दुश्मन ने अपने नापाक इरादे से उनकी जान ले ली लेकिन जांबाज कभी मरते नहीं।

मरते होते तो देश आज उनके लिए इतना बाबला न होता। उनके जयघोष नहीं हो रहे होते। जो उनसे कभी मिले भी नहीं, वो क्यों उनके लिए रो रहे होते। और क्यों उनकी विधवा हो गयी पत्नियां कलेजे पर पत्थर रखकर उनकी शहादत को ”जय हिन्द” कह रही होतीं। क्यों इन सपूतों के सजदे में हर सर झुक रहा होता।

देश के लिए यह कुर्बानी किताबों में लिखी जाने वाली गाथा मात्र नहीं है। यह प्रेरणा की महागाथा है। आने वाली पीढ़िओं के लिए रास्ता और ऊर्जा है। आज जब आप चिताओं में बैठे अपने शौर्य पर आसमां के किसी कोने में इतरा रहे थे, हम आपकी शहादत पर अपने आंसुओं को बह देने को आपकी वीरता के लिए अपना सलाम मान रहे थे।

जाओ हिन्द के लालो, जाओ। आपने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया। लेकिन आप हमेशा हमारे बीच रहेंगे। अपनी वीरता की महागाथाओं के साथ। आपके परिजनों की हिम्मत को देखकर हम इस बात का रश्क करेंगे कि क्यों नहीं हम भी आप की तरह बहादुर हो पाए। लेकिन सच यह भी है कि देश के लिए अपना जीवन भी कुर्बान कर देने का यह जज़्बा हर किसी का नहीं हो सकता। देश के यह लाल तो किसी ख़ास मिट्टी के बने होते हैं ! ”तहलका” का आपको सलाम !

अश्रुपूर्ण नेत्रों के साथ जांबाजों को विदाई 

पुलवामा में गुरुवार को हुए आतंकी हमले में शहीद हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के ४० जवानों को आज देशभर में अंतिम विदाई दी गयी। शहीद जवानों के पार्थिव शवों को शुक्रवार को कश्‍मीर से दिल्‍ली लाया गया था। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मंत्रियों सहित सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों ने श्रद्धांजलि दी। इसके बाद शहीदों के पार्थिव शव उनके घर भेजे गए। उनके अपने-अपने गृह राज्‍यों में इन जवानों का अंतिम संस्‍कार पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया गया।