नागरिकता संशोधन बिल पर केबिनेट की मुहर

धर्म के आधार पर नागरिकता का विरोध कर रहे हैं तमाम विपक्षी दल  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दे दी है। मोदी सरकार इसे इसी हफ्ते संसद में पेश कर सकती है। यह गौरतलब है कि कमोवेश पूरा का पूरा विपक्ष ही नहीं सरकार के कुछ घटक दल भी इस बिल के संभावित प्रावधानों का सख्त विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

इस विधेयक को १९ जुलाई, २०१६ को लोकसभा में पेश किया गया था और १२ अगस्त, २०१६ को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने ७  जनवरी, २०१९ को अपनी रिपोर्ट सौंपी और ८ जनवरी को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है। अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा।

नागरिकता संशोधन बिल में नागरिकता संबंधी कानूनों में बदलाव होगा। इस विधेयक के जरिए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों के लिए बिना वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत की नागरिकता के लिए ११ साल देश में निवास करना जरूरी है, लेकिन इस संशोधन के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि को घटाकर छह साल करने का प्रावधान है। बिल में इस खास संशोधन को देश के अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के सरकार के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

यहां यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल ही नहीं भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का सख्त विरोध कर रहे हैं। इसे वे १९८५ के असम करार का उल्लंघ्न बता रहे हैं।