नागरिकता संशोधन कानून पर देश भर में बवाल

नागरिकता संशोधन कानून बनते ही देश भर में तनाव का माहौल पैदा हो चुका है। इस तनाव के बढऩे का बड़ा कारण रहा है- जामिया छात्रों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज। इस मुद्दे में आिखर ऐसा क्या हुआ कि माहौल इतना गरमा गया, आइए जानते हैं

नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के िखलाफ जैसे ही दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस बर्बरता की घटना हुई, देश भर के छात्र इसके विरोध में सडक़ों पर उतर आये। पीडि़त छात्रों के समर्थन में अन्य छात्र भी सडक़ों पर उतर आये। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक से लेकर पश्चिम बंगाल तक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं। जबसे नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 संसद में पेश होकर पास हुआ है, असम और पूरा पूर्वोत्तर हिंसा भरे विरोध-प्रदर्शनों की जकड़ में है। इसके बाद यह हिंसा भरे विरोध-प्रदर्शन असम और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक देखने को मिले हैं।

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस की कार्रवाई और नागरिकता संशोधन कानून, जिसे वे असंवैधानिक और क्रूर कानून के रूप में परिभाषित करते हैं;  के िखलाफ गुस्सा देश के कई हिस्सों में फैल गया और इसे राजनीतिक दलों और समाज के कई वर्र्गों का समर्थन हासिल हो गया। दिल्ली का इंडिया गेट एक बार फिर प्रदर्शनों का केन्द्र बन गया है, जहाँ लोग जुटकर समाज को बाँटने वाले इस कानून के िखलाफ मुखर विरोध कर रहा है। लोकपाल और निर्भया मामले के बाद अब इस कानून के िखलाफ राज्यों और राजधानी में विरोध-प्रदर्शन बढ़े हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 17 दिसंबर को छात्रों की गिरफ्तारी पर रोक और सीएए के िखलाफ जामिया मिल्लिया  इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय  में छात्र आंदोलन पर पुलिस कार्रवाई की न्यायिक जाँच को लेकर दािखल याचिकाओं को स्वीकार करने इन्कार कर दिया और याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे हिंसा की घटना वाले क्षेत्रों के सम्बन्धित उच्च न्यायालयों में जाएँ।

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) ने एक बयान जारी करके कहा कि जामिया मिल्लिया  के छात्रों के िखलाफ जो पुलिस हिंसा की अपराधी है, उसके िखलाफ कड़ी कार्रवाई की ज़रूरत है। पुलिस के िखलाफ कार्रवाई की माँग को लेकर हज़ारों छात्र सडक़ों पर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्र जामिया मिल्लिया  की लाइब्रेरी में विश्वविद्यालय प्रशासन की मंज़ूरी के बिना घुसकर पुलिस द्वारा आँसू गैस इस्तेमाल करने और लाठीचार्ज करने को लेकर जाँच की माँग कर रहे हैं। देश भर के छात्र पुलिस की इस बर्बरता के िखलाफ भडक़े हुए हैं।

इसके बाद दिल्ली के सीलमपुर में भी 17 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून के िखलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए और फिर हिंसा भी भडक़ी। हालाँकि जल्द ही इस पर काबू पा लिया। इस दौरान प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गये थे। कई जगह पत्थरबाज़ी को देखते हुए पुलिस ने उन्हें खदेडऩे के लिए आँसू गैस का इस्तेमाल किया। इन विरोध-प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली के सीलमपुर में एक पुलिस स्टेशन क्षतिग्रस्त हुआ। दिल्ली पुलिस ने कहा कि शुरुआत में विरोध-प्रदर्शन शान्तिपूर्ण था; लेकिन जब लोग वहाँ से हट रहे थे, तभी अचानक हिंसा भडक़ गयी।

वहीं, झारखंड में 17 दिसंबर को ही एक चुनाव रैली को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस राजनीतिक कारणों से मुस्लिमों को नागरिकता संशोधन कानून के िखलाफ उकसा रही है। उन्होंने दोहराया कि यह कानून किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाले  देश के नागरिकों को प्रभावित नहीं करता है। उन्होंने हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण और बहुत निराशानजक करार दिया। विपक्ष पर हमला करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ दल छात्रों को उकसा रहे हैं और उन्हें अपने तुच्छ राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश की जनता को गुमराह कर रहा है। पूरा विपक्ष देश के लोगों को गुमराह कर रहा है। मैं दोहराना चाहता हूँ कि किसी भी अल्पसंख्यक की नागरिकता वापस लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता। बिल में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि वे कहना चाहते हैं कि कांग्रेस, जो नेहरू-लियाकत समझौते का हिस्सा थी; ने इसे 70 साल तक लागू ही नहीं किया। क्योंकि वह एक वोट बैंक बनाना चाहती थी। हमारी सरकार ने समझौते को लागू किया है और लाखों लोगों को नागरिकता प्रदान की है।

दूसरी ओर एनडीए सरकार के सहयोगी दल विरोधी बन चुके हैं। इन दलों की तरफ से ही सरकार इस मामले में विरोध सह रही है। शिवसेना के प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, जिन्होंने पहले नागरिकता विधेयक पर सहमति जतायी थी; ने जामिया में छात्रों पर पुलिस बर्बरता घटना की निंदा करते हुए इसकी तुलना जलियांवाला बाग से करके भाजपा को बड़ा झटका दिया है।

कानून और जामिया की घटना के िखलाफ देशव्यापी प्रदर्शनों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के नेतृत्व में विपक्ष के कई नेता 17 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले। उन्होंने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वे देश के संविधान को बचाने के लिए कदम उठाएँ और सरकार को सलाह दें कि वह यह कानून वापस ले। उन्होंने यह भी माँग की कि एक कमीशन का गठन करके तमाम घटनाओं की जाँच करवायी जाए, ताकि दोषी लोगों के िखलाफ कार्रवाई हो सके।

विपक्ष के राष्ट्रपति को दिये ज्ञापन में कहा गया है कि यह जानना ज़रूरी है कि नागरिकों की इतनी क्षमता नहीं है कि सत्ता को चुनौती दे सकें। वे शान्तिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करके ही अपना विरोध दर्ज करवा सकते हैं। यदि उनका यह अधिकार भी इस तरीके से कुचलने की कोशिश की जाती है, तो देश का लोकतंत्र नष्ट करने वाली बात होगी। प्रतिनिधिमण्डल ने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वे यह सुनिश्चित किया जाए कि भारत सरकार सत्ता की ताकत से देश के संघीय ढाँचे को तहस नहस न करे।

इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में सोनिया गाँधी, ए.के. एंटनी, गुलाम नबी आज़ाद, अहमद पटेल, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, जय राम रमेश (सभी कांग्रेस), टीआर बालू (डीएमके), डेरेक ओ ब्रायन (टीएमसी), राम गोपाल यादव और जावेद अली खान  (सपा),  सीताराम येचुरी (माकपा), डी. राजा (भाकपा), शरद यादव (एलजेडी), प्रो. मनोज झा (आरजेडी), मोहम्मद बशीर (आईयूएमएल), जस्टिस हसनैन मसूदी (जेकेएनसी), सरजुद्दीन अज़मल (एआइयूडीएफ) और शत्रुजीत सिंह (आरएसपी) शामिल हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा कि पूर्वोत्तर की स्थिति, जो अब राष्ट्रीय राजधानी सहित देश भर में दिख रही है; बहुत गम्भीर है और हमें भय है कि आने वाले समय में यह •यादा फैल सकती है। हम इस बात से खफा हैं कि जिस तरह पुलिस ने जामिया में जबरन प्रवेश किया और छात्र-छात्राओं को हॉस्टल से बाहर खींचा और उनकी निर्ममता से पिटाई की, वह बिलकुल भी जायज़ नहीं है। आप सभी ने देखा है कि कैसे मोदी सरकार कानून लागू करने के लिए जनता की आवाज़ दबाने में ज़रा भी नहीं हिचक रही।

इससे पहले कांग्रेस के नेताओं गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, सीताराम येचुरी (माकपा), डी राजा (भाकपा), मनोज झा (आरजेडी), जावेद अली खान (सपा) और शरद यादव ने जामिया में सीएए के िखलाफ छात्रों पर पुलिस कार्रवाई की घटना की कड़ी निन्दा की। आज़ाद ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पुलिस कैसे एक विश्वविद्यालय में बिना उसकी मंज़ूरी के प्रवेश कर सकती है और छात्रों पर ऐसा ज़ुल्म कर सकती है। जामिया में पुलिस की छात्रों पर बर्बरता की न्यायिक जाँच होनी चाहिए।

इस मामले की न्यायिक जाँच की माँग करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट करके सभी समुदायों से अपील की है कि वे शान्ति बनाये रखें। जामिया और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में नागरिकता कानून के िखलाफ छात्रों के विरोध-प्रदर्शन जहाँ मासूम छात्रों और आम लोगों को निशाना बनाये जाने की घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। बसपा इसके शिकार लोगों के साथ खड़ी है।

उधर, समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के परिवार में उभरे मतभेदों को खत्म करने की काफी कोशिशों के बाद भी अभी कोई हल नहीं निकला है। हालाँकि, नागरिकता कानून का सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव विरोध कर रहे हैं; जबकि मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव एनआरसी का समर्थन कर रही हैं। अपर्णा यादव ने ट्वीट करके कहा है कि इसमें क्या गलत है कि जो देश के नागरिक हैं, उनका नाम रजिस्टर में पंजीकृत हो। सपा ने सरकार से आग्रह किया कि वह संसद का विशेष सत्र बुलाये, ताकि उसमें संशोधन करके यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी तरह का भेदभाव न हो सके।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जामिया में छात्रों की पिटाई के बाद ट्वीट किया कि भाजपा सरकार ने एक खतरनाक कानून के ज़रिये देश को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि देश ने इससे पहले कभी भी भाजपा जैसी सत्ता की भूखी पार्टी नहीं देखी।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने 15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया  इस्लामिया हिंसा मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया है। हालाँकि उनमें से एक भी छात्र नहीं है। बाद में दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें 31 दिसंबर तक के लिए  न्यायिक हिरासत में भेज दिया। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कामरान खान ने पुलिस के इनके लिए 14 दिन की न्यायिक हिरासत माँगने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत दे दी।  इनमें मोहम्मद हनीफ, दानिश उर्फ जाफर, समीर अहमद, दिलशाद शरीफ अहमद, मोहम्मद दानिश शामिल हैं।

जामिया और एएमयू ही विश्वविद्यालयों को खाली करवाने के अलावा इन्हें 5 जनवरी, 2020 तक के लिए बंद कर दिया गया, ताकि तनाव घटाया जा सके और आंदोलन कर रहे छात्रों का गुस्सा ठंडा किया जा सके। एएमयू सहित उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन भडक़ाने के बाद डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि अलीगढ़, सहारनपुर, मेरठ में  इंटरनेट सेवा बंद कर दी गयी है। सरकार ने •िाला प्रशासनों को सोशल मीडिया पर निगाह रखने को भी कहा, ताकि किसी तरह की अफवाहों से बचा जा सके और इससे शान्ति भंग न हो।

जामिया में छात्रों पर पुलिस बर्बरता के िखलाफ देश भर के 16 विश्वविद्यालयों और आईआईटी में प्रदर्शन शुरू हो गये। छात्र माँग कर रहे थे कि नागरिक संशोधन कानून को वापस लिया जाए।

दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस में सामाजिक विज्ञान विभाग के सामने आंदोलन शुरू हो गया और बड़ी संख्या में छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार किया। उन्होंने जामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ एकजुटता दिखायी।

छात्रों ने नदवा कॉलेज लखनऊ, जो इस्लामिक अध्ययन का केन्द्र है; से प्रदर्शन शुरू किया और उनका पुलिस से हल्का प्रतिरोध हुआ। सैकड़ों की संख्या में नदवा कॉलेज के छात्र इकट्ठे हुए और ‘आवाज़ दो, हम एक हैं’ जैसे नारे लगाते रहे। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में कर लिया और प्रदर्शनकारियों को परिसर के भीतर धकेल दिया।

लखनऊ पुलिस ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलिमीन (एआईएमआईएम) के •िाला सचिव को नागरिकता कानून के िखलाफ प्रदर्शन करने के लिए पुराने लखनऊ इलाके में गिरफ्तार कर लिया। पुलिस दूसरे प्रदर्शनकारियों की भी तलाश कर रही है। ऐसे प्रदर्शन मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय हैदराबाद, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, जाधवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता, टाटा इंस्टीस्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुम्बई, केरल के केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कासरगोड और पांडीचेरी विश्वविद्यालयों में भी देखे गये। इसके आलावा मुस्लिम विश्वविद्यालयों के साथ-साथ पटियाला स्थित पंजाबी विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय में भी विरोध-प्रदर्शन हुए।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के आलावा कानपुर, मद्रास और बॉम्बे की आईआईटी, बेंगलूरु की आईआईएस, आईआईएम अहमदाबाद अन्य संस्थान हैं, जहाँ के छात्र विरोध-प्रदर्शनों में शामिल हुए और परीक्षाओं का वहिष्कार किया और आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जताया।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और कोलकाता में जाधवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने माँग की सरकार पुलिस की गुंडागर्दी के िखलाफ कार्रवाई करे। बेंगलूरु में नागरिक समाज ने टाउन हाल में जमा होकर जामिया हिंसा के िखलाफ फ्रीडम पार्क की तरफ प्रदर्शन शुरू किया; लेकिन पुलिस ने इसे रोक लिया। प्रदर्शनकारी कह रहे थे कि सरकार को इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह लिंग और धर्म के आधार पर हमें बाँटे।

दक्षिण के हैदराबाद (तेलंगाना) में मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय और उस्मानिया विश्वविद्यालय परिसरों में तिख्तयाँ लेकर धरना आयोजित किया गया। आईआईटी मद्रास के अलावा तमिलनाडु में भी लॉयल कॉलेज, चेन्नई और तिरुवरूर के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भी ऐसे प्रदर्शन आयोजित किये गये। उधर साबित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय, पुणे में भी 300 छात्रों और नागरिकों ने विरोध दर्ज किया। त्रिवेंद्रम में प्रदर्शनकारियों पर तब पानी की बौछार की गयी, जब वे कानून के िखलाफ और उसे खत्म करने की माँग के साथ प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने 70 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया।

एएमयू परिसर में सुरक्षा का ज़बरदस्त तामझाम किया गया है। इसे साम्प्रदायिक रूप से एक संवेदनशील जगह माना जाता है। एएमयू के रजिस्ट्रार अब्दुल हमीद ने कहा कि 15 दिसंबर को पुलिस परिसर में घुस गयी और भीतर से झड़पों की जानकारी आयी। पुलिस ने एएमयू में 21 लोगों को इसके आरोप में गिरफ्तार किया गया। अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुल्हारे के मुताबिक, 56 लोगों की पहचान के साथ और अन्य अनजान लोगों के िखलाफ एफआईआर दर्ज की गयी है। हॉस्टल खाली करने की प्रक्रिया जारी है और हॉस्टल खाली करा लिये गये।

नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताडऩा के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में शरणार्थी के रूप में आए छ: गैर-मुस्लिम समुदाओं हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता का रास्ता खोलता है। इसका इस आधार पर ज़बरदस्त विरोध हुआ है कि यह विभाजनकारी और मुस्लिम विरोधी है।

असम में प्रदर्शन के दौरान पाँच लोग पुलिस फायरिंग में अपनी जान गँवा चुके हैं। पूर्वोत्तर में कानून के िखलाफ सबसे •यादा विरोध देखने में आया है; क्योंकि उन्हें लगता है कि बाहर से आये लोगों को नागरिकता प्रदान करने से उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान खतरे में पड़ जाएगी। उन्हें यह भी लगता है कि यह कानून 1985 के असम समझौते का भी उल्लंघन है। असम में गैर-कानूनी गतिविधियाँ प्रतिबंध कानून (यूपीए) के तहत वहाँ के नेता अखिल गोगोई पर मामला दर्ज किया गया है, जिन्हें गिरफ्तार किया गया। नये कानून के तहत उन्हें केन्द्र बिना उनकी बात सुने उन पर आतंकवादी का ठप्पा लगा सकता है।

एनआईए की तरफ से दर्ज ताज़ा मामले के मुताबिक, किसान नेता और आरटीआई कार्यकर्ता गोगोई को जोरहाट •िाले में तब गिरफ्तार किया गया था। जब वे देश के िखलाफ जंग, षड्यंत्र और दंगों की तैयारी कर रहा था। वो नागरिकता कानून के िखलाफ प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे थे।

असम के दूसरे हिस्सों में नागरिकता कानून के िखलाफ प्रदर्शन जारी हैं। गुवाहाटी में असम इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट परिसर में कवियों, गायकों, लेखकों और अन्य की तरफ से आयोजित प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

असम में 15 दिसंबर को दो और लोग ज़ख्मी हो गये और जान गँवा बैठे। यह लोग पुलिस की फायरिंग में घायल हो गये थे। उदालगुरी के ईश्वर नायक, जो की स्थानीय रिटेल स्टोर में काम करता था; को उस समय गोली लगी जब काम से घर वापस लौट रहा था। उसे गम्भीर घायल अवस्था में अस्पताल में दािखल किया गया। एक अन्य व्यक्ति अब्दुल आलमीन की भी 15 दिसंबर को गोली लगने से मौत हो गयी। पुलिस ने उसे लालुन गाँव में गोली मार दी थी। वहीं असम के डीजीपी ने पुष्टि की है कि राज्य में पुलिस कार्रवाई में चार लोगों की मौत हुई है।

कुल मिलाकर इन दिनों देश एक दुरूह दौर से गुज़र रहा है। देश की अर्थ-व्यवस्था बुरी हालत में है। महँगाई लगातार बढ़ रही है और अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर है। ज़रूरी चीज़ों की कीमतें आसमान छू रही हैं। देश में अभियांत्रिकी उत्पादन नीचे जा रहा, जिसके नतीजे में लोगों के रोज़गार छिन रहे हैं। ऐसे में हम भीतरी द्वंद्वों से होने वाले नुकसान को नहीं झेल सकते न ही सदियों पुराने अपने सह-अस्तित्व को खतरा पहुँचा सकते हैं, जो हमारे संविधान के उद्देश्यों को पूर्ण करने के पीछे हमारी सबसे बड़ी ताकत रहा है और जो समानता, स्वतंत्रता और राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय का आधार है।

सीएए : मिथक और वास्तविकता

सवालों पर सरकार ने विभिन्न पहलुओं पर स्पष्टीकरण दिया है। अहम बिन्दुओं को ऐसे समझें :-

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून बंगाली हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान करेगा?

वास्तविकता : नागरिकता संशोधन कानून बंगाली हिन्दुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान नहीं करता है। यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के छ: अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के लिए बनाया जा रहा कानून है। यह बेहद मानवीय आधार पर प्रस्तावित किया गया है; क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय के ये लोग धार्मिक उत्पीडऩ के कारण इन तीन देशों से भागने को मजबूर हुए थे।

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून असम समझौते को कमज़ोर करता है?

वास्तविकता : जहाँ तक कटऑफ डेट का सवाल है। यह नागरिकता संशोधन कानून असम समझौते को कमज़ोर नहीं करता है।

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून असम के मूल निवासियों के हितों के िखलाफ है?

वास्तविकता : नागरिकता संशोधन कानून केवल असम पर केन्द्रित नहीं है। यह पूरे देश के लिए मान्य है। नागरिकता संशोधन कानून राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के िखलाफ नहीं है।

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून से बंगाली भाषी लोगों का वर्चस्व बढ़ेगा?

वास्तविकता : अधिकांश हिन्दू बंगाली आबादी असम के बराक घाटी में बसी हुई है, जहाँ बंगाली को दूसरी राज्य भाषा घोषित किया गया है। ब्रह्मपुत्र घाटी में हिन्दू, बंगाली अलग-थलग बसे हैं और उन्होंने असमी भाषा को अपना लिया है।

मिथक : बंगाली हिन्दू असम के लिए बोझ बन जाएँगे?

वास्तविकता : नागरिकता संशोधन कानून पूरे देश में लागू है। धार्मिक उत्पीडऩ का सामना करने वाले व्यक्ति केवल असम में ही नहीं बसे हैं। वे देश के अन्य हिस्सों में भी रह रहे हैं।

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून बांग्लादेश से हिन्दुओं के नये प्रवासन को बढ़ाने का काम करेगा?

वास्तविकता : अधिकांश अल्पसंख्यक पहले ही बांग्लादेश से पलायन कर चुके हैं। इसके अलावा, हाल के वर्षों में बांग्लादेश में उन पर अत्याचारों के मामलों में कमी आयी है। जहाँ तक शरणार्थियों को नागरिकता देने का सवाल है, तो 31 दिसंबर, 2014  की कटऑफ तारीख है और नागरिकता संशोधन कानून के तहत उन अल्पसंख्यक शरणार्थियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा, जो कटऑफ तारीख के बाद भारत आते हैं।

मिथक : ये कानून हिन्दू बंगालियों को समायोजित कर आदिवासी भूमि हड़पने का एक हथकंडा है?

वास्तविकता : अधिकांश हिन्दू बंगाली आबादी असम के बराक घाटी में बसे हुए हैं, जो आदिवासी इलाके से काफी दूर है। दूसरी अहम बात कि ये बिल आदिवासी भूमि संरक्षण के लिए कानूनों और नियमों में विरोधाभास पैदा नहीं करता है। नागरिकता संशोधन कानून उन क्षेत्रों में लागू नहीं होता, जहाँ आईएलपी और संविधान की छठी अनुसूची के प्रावधान लागू होते हैं।

मिथक : नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के िखलाफ भेदभाव करता है?

वास्तविकता : किसी भी देश का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। यदि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 के मौज़ूदा प्रावधानों के मुताबिक, ऐसा करने के लिए योग्य है। नागरिकता संशोधन कानून इन प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ नहीं करता है। इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये छ: अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।