‘नव केरल’ बनाने के सिवा कोई चारा नहीं

केरल एक महीने से ज़्यादा समय तक बारिश और बांध से हुई बाढ़ को झेलता रहा। पूरे प्रदेश के लिए यह महाप्रलय था। इसमें काफी बड़ी तादाद में मवेशी मरे। खेतों में फसलें और कॉफी, काजू, मसालों की फसलें बर्बाद हो गई। जान-माल का नुकसान अलग। पूरा प्रदेश ही तबाह। हर कहीं गंदगी। कीचड़। बदबू।

बाढ़ का पानी हटा तो डेंगू, रैट फीवर और ढेरों बीमारियों ने धर दबोचा। राहत शिविरों में तैनात डाक्टरों ने सहयोग किया। अब ‘नव केरल’ के निर्माण की चुनौती है। एक बात तो साफ है कि पूरे देश में सबसे ज़्यादा शिक्षित कहलाने वाले इस प्रदेश में दो-तीन मंजिल से ज़्यादा ऊँचे मकानों की अब ज़रूरत ही नहीं, क्योंकि यहां हमेशा बारिश, बाढ़ और सुनामी का खतरा रहता ही है। प्रदेश के नवनिर्माण की अब चुनौती है। राज्य की सत्ता में है वामपंथी और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार। इनमें आपस में कितना तालमेल संभव होगा यह आने वाले दिनों में ही जाहिर होगा। केरल की तबाही में पूरे भारत ने आगे आकर मदद दी।

नव केरल के निर्माण में जिसमें कम से कम दस साल लगेंगे, 50,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। उसके लिए क्या जतन होंगे और यह कैसे संभव होगा। इस पर विवाद है। देश में साख वाली निर्माण एजेंसियां मसलन टाटा कंस्ट्रक्शन लिमिटेड वगैहरा अभी से अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर रही है। काम चल रहा है भले ही कुछ देर हुई। बारिश और बांधों से छोड़े गए पानी से लगभग पूरे प्रदेश में प्रलय के बाद नए केरल के निर्माण की अब चुनौती है। जो भी नुकसान हुआ वह हुआ। अब नया केरल कैसे बने यही सबकी चिंता है। एक अनुमान के अनुसार 30,000 करोड़ रुपए मात्र पुल, बांध, खेती आदि के लिए ही और 20,000 करोड़ रुपए मात्र सड़क, गली, सफाई स्कूलों की मरम्मत और प्रयोगशाला के लिए ही चाहिए। फिर जिन के पास काम-धंधा नहीं है उन लोगों की मदद के लिए 10,000 करोड़ रुपए मात्र चाहिए।

राज्य सरकार ने जिनके पास आज काम नहीं है उनके लिए रुपए छह हजार मात्र और कोई और काम कराने के लिए रुपए चार हजार मात्र की व्यवस्था की है। केरल सरकार ने मासिक लाटरी की योजना बनाई है जिससे कुछ पैसा इकटठा हो। भारतीय खेती वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन कोट्नार के ही हैं। उनका कहना है कि हम इस प्रलय का सामना करने के लिए कतई तैयार नहीं थे। फिर भी जो कुछ मदद और राहत का काम केरल प्रशासन ने किया है वह अभूतपूर्व है। उन्होंने कहा कि ऐसा नया केरल बनाए जिसमें पर्यावरण, उद्योग, जेंडर समानता और कचरे के प्रबंधन का ध्यान रहे।

नव केरल का मुख्य काम है कि कैसे इसे बनाएं। जिन्हें मकान का नुकसान हुआ, उन्हें वहीं मकान दें या कहीं और। इस सबकी योजना बनानी है। इस प्रलय में हजारों मकान, 16 हजार किलोमीटर नेशनल सड़क, 82 हजार एप्रोच रोड, 124 पुल आदि का नुकसान हुआ है। उसके निर्माण के लिए अभी व्यवस्था होनी है। मेटल और मिट्टी से पहले रोड बनाने का काम होता था अभी इसका मिलना कठिन है। यानी मिट्टी कीचड़ बनी हुई है। कंक्रीट आदि कहां से लें। सड़क बनाने का तरीका ढंूढना चाहिए। एक आदमी स्वस्थ रहे उसके लिए उसे काम चाहिए। 54,000 हेक्टेयर की खेती का नुकसान हो चुका है। हजारों छोटे-छोटे उद्योग और दुकानें बर्बाद हो गई हैं। 50,000 मवेशी मरे जिनमें बैल भी हैं। दो लाख मुर्गी और बत्तख वगैरहा मारे गए।

अब नई खेती सोचनी और करनी हैं। सबसे ज़्यादा नुकसान प्रलय का पर्यटन उद्योग पर हुआ। हर जि़ले में नई अथॉरिटी बनाएंगे। अब एक तय लक्ष्य के अंदर अगले विकास की रूपरेखा बनाई जा रही है। खेती को, छोटे तालाबों को सुरक्षित किया जाएगा। पहाड़ों के ऊपर भी विकास पर सोचा जा रहा है। छोटे उद्योग पर्यटन के अलावा भारी उद्योगों के विकास पर भी काम की योजना है। डैम के प्रबंधन और मौसम विभाग में अब विशेषज्ञों को तैनात कर नवीनतम सूचना लेते रहेंगे। कानून और व्यवस्था भी दुरुस्त की जाएगी।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लोग भी बड़ी तादाद में नव केरल के निर्माण में सहयोग देने आगे आए हैं। दुनिया का सबसे अच्छा नमूना इस प्रदेश को बनाने की योजना है। राष्ट्रीय स्तर पर विकास और जीवन स्तर बेहतर बनाना होगा। कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के तहत केरल में अब जो भी निर्माण कार्य होगा उसमें पर्यावरण का पूरा ध्यान रख कर ही अनुमति दी जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि 1343 किलोमीटर का दायरा पर्यावरण के लिहाज से इडुक्की जि़ले में छोडऩा ही होगा। जेबीसी से त्रिवर्ण पुल पर सबरीमाला मंदिर को दुरूस्त किया गया। वहां अन्नदान मंडप, शौचालय आदि बाढ़ में बह गए। अब ऐसी योजना बन रही है कि आगे आने वाले प्रलय के अंदेशे को ध्यान में रख कर एक विशाल पुल बनाने के काम को टाटा कंस्ट्रक्शन कंपनी अपनी ओर से ही कर रही है।

प्रलय के बाद ज़्यादातर जि़ले मसलन कालीकट, कोच्ची, पालघाट, त्रिवेंद्रम, मल्लपुरम, कन्नूर रैट फीवर के शिकार हुए है। राज्य स्वास्थ्य मंत्री ने कई जगह आपात चिकित्सा केंद्र बना दिए हैं। नव केरल निर्माण में कई कंपनियां ऐसी भी हैं जिन पर प्रशासन को संदेह है। बड़ी सावधानी रखी जा रही है। फिर भी मुंबई की कंपनी केपीएमजीए फिलहाल नव केरल निर्माण का अध्ययन करके सुझाव देगी। हालांकि यह संदेह के घेरे में है।

राज्य को मत्स्य पालन के लिए 24 करोड़ की मदद चाहिए। मछुआरों को फिर से काम पर जमाने के लिए 500 करोड़ चाहिए लेकिन 24 करोड़ ही मिले हैं। सांसद एनके प्रेमचंद्रन (आरएसपी-कांग्रेस) का कहना है कि सरकार बिलकुल लाचार हो गई है, इसलिए इतना बड़ा प्रलय हुआ। एक बांध जो समय के अनुसार खुलना था वह नही हुआ। दो फीट पानी छोडऩा था लेकिन बांध के जिम्मेदार कर्मचारियों ने 15 फीट छोड़ दिया। कोई भी आपात योजना फिलहाल नहीं है। हिमाचल की व्यास नदी में जब 14 जून 2014 को लारजी बांध खोला तब उसमें 25 इंजीनियरिंग छात्र बह गए। इसके बाद सेंट्रल वाटर कमीशन ने उस राज्य को मार्गदर्शिका दी थी और कहा कि हर एक प्रदेश में इमरजेंसी एक्शन प्लान बनना चाहिए। लेकिन केरल में कुछ नहीं किया। 2017 में सीएजी की रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख था फिर भी कुछ नहीं किया गया। प्रलय के बाद सभी नदियों में अब पानी घटने की घटनाएं है। इस समस्या के अध्ययन की जिम्मेदारी सेंट्रल वाटर (आरडीएम) के जिम्में सौंपी गई है। प्रलय में चार बिजली पावर स्टेशन क्षतिग्रस्त हुए। तथा 29 मेगावाट बिजली का नुकसान हुआ। सबसे ज़्यादा समस्या है पूरे प्रदेश में गंदगी हटा कर फेंकने की जगह का चयन। इसके कारण डेंगू, रैट फीवर और चिकनगुनिया आदि फैल रहे हैं।

वायनाड में प्रलय के बाद केंचुए और अन्य जनोपयोगी कीड़े मर रहे हैं। जिससे मछुआरों को काफी नुकसान हो रहा है। चालपुरी, त्रिशूर में एक कॉलेज है सैक्रेड हार्ट कॉलेज। चालपुरी जब डूब गया तो भी कॉलेज बचा रहा। कीचड़ वगैरह परिसर में जमा हो गया। 5.8 करोड़ की किताबें पानी में चौपट हो गई। कंप्यूटर, एकाउंट्स, प्रिसिपल कक्ष वगैरह बर्बाद हैं। इसे पिछले साल ‘ए’ एक्रिडेशन का पुरस्कार मिला था। प्रलय के बाद मरियूर में लहसुन की खेती चौपट हो गई है। एक किलो का दाम तेरह रुपए है। जबकि इसकी कीमत पहले 160 रुपए किलो थी। लहसुन की खेती बैंक लोन से की गई थी। अब समस्या यह है कि किसान कजऱ् की भरपाई कैसे करें।? वानासुरा डैम, मानेदावाडी, वायनाड जिले में है वहां डैम का शटर खोलने से खेती और पर्यटन दोनों का नुकसान हुआ। पर्यटन में 4.61 करोड़ का नुकसान हुआ। यह पहाड़ी स्टेशन है।

इस प्रदेश में 28 डैम यदि टूटे बर्बाद हुए तो केरल की स्थिति क्या होगी। यह अध्ययन कराया जाना है।