नर पिशाच को सज़ा-ए-मौत

शुक्रवार 28 फरवरी का दिन था। कोटा के पोक्सो कोर्ट संख्या पाँच के विशिष्ठ न्यायाधीश कैलाश चंद्र मिश्रा की अदालत खचाखच भरी थी। अदालत के बाहर भी लोगों की भीड़ उमड़ी पड़ रही थी। मामला साइको किलर की दहशतज़दा कर देने वाली दरिन्दगी से जुड़ा हुआ था। इसलिए लोगों की उत्कंठा उसको मिलने वाली सज़ा से कहीं ज़्यादा उसे देखने में थी। पुलिस ने अपनी जाँच पूरी कर चार्जशीट न्यायालय में पेश कर दी थी। निश्चित समय पर न्यायाधीश कैलाश चंद्र मिश्रा अदालत में पहुँचे। न्यायाधीश मिश्रा ने नौ महीने पहले महिला की नृशंस हत्या के मामले में आरोपी मोहन सिंह उर्फ महावीर को भारतीय दंड संहिता की धारा-302, 376 और 379 के तहत फाँसी की सज़ा सुनायी। न्यायाधीश मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा- ‘यह व्यक्ति इतना खतरनाक हो चुका है कि इसको सभ्य समाज में नहीं रहने दिया जा सकता। पहले ही तीन महिलाओं की हत्या कर चुका यह अपराधी चौथी हत्या करने से भी नहीं हिचका। स्पष्ट है कि यह अपनी क्रूर और आपराधिक मानसिक स्थिति बदलने को तैयार नहीं था। इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है। आरोपी मोहन सिंह उर्फ महावीर मानवता के नाम पर धब्बा है। एक गरीब महिला को मज़दूरी के बहाने निर्माणाधीन मकान में दुष्कर्म की नीयत से ले गया। महिला के विरोध किये जाने पर जघन्य तरीके से उसकी हत्या कर लाश की भी दुर्गति की। यह विरल से विरलतम अपराध है। मोहनसिह का जुर्म इतना संगीन है कि इसे अधिकतम सज़ा मिलनी चाहिए। अत: यह अदालत मुल्जिम मोहन सिंह उर्फ महावीर को सज़ा-ए-मौत का हुक्म देती है। इसे मृत्यु होने तक फाँसी के फंदे पर लटकाया जाए।’

फाँसी की सज़ा सुनाये जाने पर मुल्जिम को काँप उठना चाहिए था, लेकिन उसके चेहरे पर तो पछतावा तक नज़र नहीं आया। अदालत ने जैसे ही उसे फाँसी की सज़ा सुनायी, उसने निर्लज्जता दिखाते हुए कहा कि साब! मुझे फैसले की कॉपी दिलवा दो। मैं हाईकोर्ट में अपील करूँगा। न्यायालय ने मुजरिम को मनोरोगी नहीं माना। चिकित्सीय परीक्षण में उसमें मानसिक रोग के कोई लक्षण नहीं पाये गये। मुजरिम विकृत व्यक्ति है ओर महिलाओं से सम्बन्ध बनाने की टोह में रहता था। विरोध करने पर वह बड़े ही पैशाचिक ढंग से महिलाओं की हत्या कर देता था! आिखर क्यों करता था ऐसे?

क्या है कहानी

कोटा की विज्ञान नगर कॉलोनी भी महानगरों की अन्य कॉलोनियों की तरह है। सुबह पाँच बजे के लगभग यहाँ भी लोगों का सैर पर जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ज़्यादातर लोग समूहों में घर से निकलते हैं। 24 मई, 2019 को सुबह जब सेक्टर-6 के लोग घरों से निकलकर रास्ते में पडऩे वाले सरकारी स्कूल की तरफ से गुज़रे, तो उन्हें विकट बदबू आयी। नतीजतन उन्होंने नाक को रुमाल से ढककर चाल तेज़ कर दी। अपने आगे जाने वालों की टोली की तरफ उनकी नज़र पड़ी, तो उनको भी उन्होंने नाक को रुमाल से ढके ही देखा। जैसे-तैसे साँस रोककर अब तक काफी आगे निकल चुके लोग बाते करते रहे कि लगता है कोई जानवर मर गया। सभी की सोच यही थी। बता दें कि विज्ञान नगर का सरकारी स्कूल कॉलोनी के छोर पर है। एक-चौथाई आबादी पिछवाड़े होस्टल के लिए छोड़ी गयी ज़मीन के बाद शुरू होती है। बाकी तीन-चौथाई आबादी अगले हिस्से में खेल मैदान के बाद शुरू होती है। करीब 8:00 बजे कॉलोनी निवासी पवन अपने दो तीन साथियों के साथ उधर से गुज़रा, तो मेन गेट पर ही ठिठककर रह गया। एकाएक उसे तेज़ बदबू आयी, तो नाक दबाता हुआ बड़ी तेज़ी से पीछे पलटा। थोड़े फासले पर जाकर उसने स्कूल की तरफ नज़र दोड़ायी, तो उसे चहारदीवारी के पास कुत्तों का झुण्ड नज़र आया। उनकी हरकतों से लगता था, वे किसी चीज़ को नोंचने-खसोटने में जुटे थे। पवन भी इतना ही अंदाज़ा लगा पाया कि ज़रूर कोई जानवर मर गया होगा? कुत्ते उसी को भँभोडऩे में लगे होंगे। लेकिन गरम हवा के झोंकों के साथ माहौल में बदबू बढ़ती ही जा रही थी, तभी उसे स्कूल की इमारत से सफाई कर्मचारी राजू हड़बड़ाता निकलता दिखायी दिया; तो पवन से पूछे बिना नहीं रहा गया- ‘क्यों रे राजू! यह बदबू कहाँ से आ रही है?’ सफाई कर्मचारी राजू गुस्से से लाल-पीला होता हुआ बोला- ‘स्कूल में तो घुसना मुश्किल है। बदबू के मारे नाक फटी जा रही है। दीवार के पास कोई जानवर मरा पड़ा होगा।’ उसने हाथ उठाकर कुत्तों की तरफ इशारा किया- ‘उधर देखो, लगता है लाश को कुत्ते नोच रहे हैं।’

पवन ने थोड़ा आगे बढ़कर नज़र दोड़ायी, असहनीय बदबू एक बार फिर उसे आयी, तो वह फौरन पीछे पलटा। राजू की बात गलत नहीं थी। भयंकर बदबू आ रही थी। कुत्ते लाश को भँभोड़ते नज़र आ रहे थे। राजू की बात पर सहमति जताते हुए उसने कहा कि इसका फौरन कोई इंतज़ाम करना पड़ेगा। मैं कमेटी के सफाई दस्ते को फोन करता हूँ।

कॉर्पोरेशन की सफाई टोली पहुँची, तो स्कूल की दीवार के पास बड़ा वीभत्स दृश्य देखने को मिला। कुत्तों को भगाने के बाद मुँह पर ढाटा लगाये सफाई टोली ने जो देखा, तो उनके हाथ-पाँव फूल गये। लाश किसी जानवर की नहीं, बोरे में कोई इंसानी शव बन्द था। एक बार तो सफाईकर्मी घबराकर फौरन वहाँ से भाग खड़े हुए। उन्होंने अपने ओवरसीयर सुरेश लखेरा को खबर की। उन्होंने मौके पर पहुँचने से पहले विज्ञान नगर पुलिस को इत्तला कर दी। थाना प्रभारी मुनीन्द्र सिंह ने स्टेशन डायरी में सूचना दर्ज करने के साथ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश मील को भी वाकये की जानकारी दी। दोनों पुलिस अधिकारी लगभग आगे-पीछे ही घटनास्थल पर पहुँचे। पुलिस अधिकारी भी असहनीय बदबू की वजह से बमुश्किल ही वहाँ खड़े रह पा रहे थे। सिपाहियों ने नाक पर ढाटे बाँधकर बोरे को खोला। किसी स्त्री का नग्न शव था। युवती 25 से 30 वर्ष की दरमियानी उम्र की रही होगी।

हत्यारे ने महिला के पेट को काटकर उसमें कपड़े भरकर पेट को जीआई तार से सिल दिया था। शव को जिस तरह मोड़कर जीआई तार से सिला गया था। पुलिस अधिकारी इस निर्णय पर पहुँचे बिना नहीं रहे कि हत्यारा निश्चित रूप से विकृत मानसिक अवस्था वाला कोई बड़ा ही क्रूर और पेशेवर रहा होगा। मौके की स्थिति देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे युवती की हत्या किसी दूसरी जगह की गयी और फिर बदमाश उसे बोरे में डालकर यहाँ पटककर चले गये। ज़रूर इस वारदात में दो या दो से अधिक व्यक्ति शामिल रहे होंगे? लाश को जिस बोरे में बन्द करके फेंका गया था, वो सीमेंट का खाली कट्टा लगता था। कट्टे पर कई जगह जलने के निशान भी थे। अलबत्ता उस पर कोई ऐसा निशान नहीं था, जिससे मामले की तह तक पहुँचने में मदद मिल सकती? जिस तरह शव नग्न अवस्था में मिला था, पुलिस के अंदेशों को बल देने वाला था कि सम्भव है उसके साथ दुष्कर्म हुआ हो? उसके बाद उसकी हत्या करके शव यहाँ फेंक दिया गया। पुलिस ने डाग स्कवॉयड और एफएसएल टीम को भी सुबूत जुटाने के लिए बुलाया; लेकिन कोई खास बात सामने नहीं आयी। घटनास्थल पर अब तक काफी भीड़ जुट गयी थी। पुलिस के आग्रह पर कुछ लोगों ने हिम्मत जुटाकर युवती का चेहरा देखा। लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं पाया। शिनाख्त न हो पाने पर सीआई मुनीन्द्र सिंह ने शव का पंचनामा करवाया। शव का फोटो लिया गया। बाद में पोस्टमार्टम के लिए शव को एमबीएस अस्पताल के मोर्चरी में भिजवा दिया गया।

युवती का शव जिस अवस्था में मिला था। पुलिस की निगाह में यह मामला काफी रहस्यमय हो गया था। शारीरिक सौष्ठव से युवती किसी मज़दूरी पेशे वाली मालूम होती थी। मामले की टोह लेने के लिए पुलिस ने इलाके के सीसीटीवी कैमरे भी खँगाले और कुछ लोगों से पूछताछ भी की। लेकिन कोई भी कोशिश सिरे नहीं चढ़ी। कोटा में बढ़ते अपराधों के कारण पहले ही पुलिस की नाकामी को लेकर भरे बैठे लोगों का गुस्सा इस सनसनीखेज़ वारदात से और भड़क उठा।

भाजपा सांसद ओम बिरला ने तो यहाँ तक चेतावनी दे दी कि हत्यारों को दो दिन में नहीं पकड़ा गया, तो आन्दोलन छेड़ दिया जाएगा। भाजपा विधायक मदन दिलावर ने भी बिरला के सुर में सुर मिलाते हुए अंदेशा ज़ाहिर किया कि महिला की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी होगी। नतीजतन इस मामले की कमान पुलिस महानिरीक्षक विपिन कुमार पांडे ने अपने हाथ में ले ली। उन्होंने पुलिस अधीक्षक दीपक भार्गव अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश मील, एएसपी मुख्यालय हर्ष रत्नू, सहायक पुलिस अधीक्षक डॉ. अमृता दुहन, आरपीएस महावीर प्रसाद, विज्ञान नगर थाना प्रभारी मुनीन्द्र सिंह के नेतृत्व में अलग-अलग टीमों का गठन किया। इस टीम में साइबर सेल के कांस्टेबल सुरेश कुमार, राकेश कुमार और श्याम सुंदर को भी शामिल किया गया। मृतक की पहचान नहीं हो पायी, तो विज्ञान नगर पुलिस ने समाचार पत्रों में मृतका का ब्यौरा प्रकाशित करवाने का निर्णय लिया। साथ ही अज्ञात युवती के शव की बरामदगी का वायरलैस संदेश भी प्रसारित करवा दिया कि जिस थाने में इससे सम्बन्धित जानकारी मिले वह विज्ञान नगर थाने को सूचित करे। घटना के दो दिन बाद 26 मई, 2019 को अनंतपुरा पुलिस थाने से मिली सूचना के अनुसार रिपोर्ट कोटा के नज़दीकी लखावा मारूका घाटी नामक का गाँव के गुलाब बंजारा की पत्नी गीता की गुमशुदगी से सम्बन्धित थी।

गुलाब अपने  बच्चों  और पत्नी गीता के साथ मंगलवार 21 मई को रोज़ाना की तरह लखावा से कोटा स्थित गोबरिया बावड़ी चैराहे पर मज़दूरी की तलाश में आया था। गुलाब को तो काम मिल गया था। वह बच्चों को लेकर काम कराने वाले ठेकेदार के साथ चला गया। लेकिन पत्नी गीता की ज़िद पर उसे इस ताकीद के साथ छोड़ गया कि मज़दूरी नहीं मिले तो घर लोट जाना। लेकिन पत्नी जब रात ढले तक घर नहीं पहुुची, तो चिन्ता होनी स्वाभाविक थी। नतीजतन गुलाब के साथ सभी परिजनों ने उसे हर जगह तलाशा। आिखर थक-हारकर अनंतपुरा थाने जाकर गीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवायी। विज्ञान नगर पुलिस ने इस रिपोर्ट के मद्देनज़र इस इत्तला के साथ गुलाब को बुलाया कि एक महिला का शव मिला है। आकर उसकी शिनाख्त कर लो। गुलाब को बुलाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसके लिए उन्हें लखावा मारू का भाटी गाँव के करीब 50 बंजारा परिवारों से सम्पर्क करना पड़ा। आिखर 28 मई की सुबह वह विज्ञान नगर थाने पहुँचा। उसके साथ उसका भाई मनोज और परिजन भी थे। शव काफी फूल चुका था। उससे शव की शिनाख्त करवायी गयी। लेकिन गुलाब ने यह कहते हुए शव को उसकी पत्नी गीता का होने से इन्कार कर दिया कि उसके हाथ पर तो टेटू था। जबकि शव के हाथ पर ऐसा कोई निशान नहीं था। थाना प्रभारी का कहना था कि गुलाब ने गले की माला पहचानने से भी इन्कार कर दिया। शव को अधिक दिनों तक रखना सम्भव नहीं था। इसलिए पुलिस ने महिला के बाल कपड़े दाँत और फोटो शिनाख्त के लिए रख लिये थे। एहतिहात के तौर पर पुलिस ने गुलाब के बच्चों का खून जाँच के लिए लेने के बाद इन सभी चीज़ों के साथ डीएनए टेस्ट के लिए जयपुर भेज दिया था। अगले दिन दोपहर बाद पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया।

उधर जन चर्चा और अखबारी खबरों ने ज़ोर पकड़ा, तो गुलाब अगले दिन अपने भाई मनोज और परिजनों के साथ एक बार फिर पुलिस स्टेशन पहुँचा। गुलाब ने अपना बयान बदलते हुए कहा कि शिनाख्त में उससे चूक हुई। शव उसकी पत्नी गीता का ही था। उसे दिखाये गये कपड़े, पायल और माला भी उसकी पत्नी गीता के ही थी। लेकिन वह इस बात को लेकर फट पड़ा कि कल उसे यह क्यों नहीं बताया गया कि यह सब चीज़ें पोस्टमार्टम के दौरान उसकी पत्नी के पेट से निकाली गयी थीं। गुलाब और उसके परिजन एक बार फिर गीता का शव दिखाने पर अड़ गये। लेकिन जब पुलिस अधिकारियों ने बताया कि तुम्हारे इन्कार के बाद तो शव की अंत्येष्टि करनी ही थी। शव इस कदर सड़ चुका था कि उसे और रखना सम्भव भी नहीं था। लेकिन वे उल्टे पुलिस पर अपराधी को बचाने का इल्जाम लगाते हुए प्रदर्शन पर उतर आये। कांग्रेस और भाजपा नेताओं का गुस्सा भी इन आरोपों के साथ फूट पड़ा कि पुलिस जघन्य हत्या जैसे गम्भीर अपराध को लेकर लुका-छिपी का खेल कर रही है। लोगों का आक्रोश नहीं थमा, तो थाना प्रभारी ने यह कहकर लोगों की समझाइश की  कि इस तथ्य को उजागर करने से कि कपड़े आदि पोस्टमार्टम के दौरान मृतका के पेट से निकाले गये थे, आरोपी को फायदा पहुँच सकता था।

इससे पहले कि पुलिस तहकीकात आगे बढ़ाती? वायरल हुए एक वीडियो ने पुलिस जाँच पर नये सवाल खड़े कर दिये। वायरल हुए वीडियो में बुधवार 22 मई को तड़के 4:24 बजे पर एक शख्स कन्धे पर सफेद रंग का बोरी का कट्टा लेकर गोबरियाबावड़ी की तरफ से आता नज़र आ रहा था। इस शख्स पर संदेह होने की वजह भी साफ थी। यह कैमरा उसी जगह लगा हुआ था, जहाँ से पुलिस ने शव बरामद किया था। बरामद हुए बोरी के कट्टे का रंग भी सफेद ही था। जो शख्स कन्धे पर कट्टा लेकर जाता नज़र आ रहा था, उसने सफेद रंग की शर्ट, हल्के कलर की पेंट और पैरों में चप्पल पहन रखी थी। लेकिन उसका चेहरा साफ नज़र नहीं आ रहा था। लोगों का कहना था कि जब वारदात का वीडियो वायरल हो गया, तो सीसीटीवी खँगालने में पुलिस खाली हाथ कैसे रह गयी? पुलिस ने इसे सामान्य चूक तो माना; लेकिन जाँच की दिशा ने एक नया मोड़ ले लिया था। पुलिस ने गोबरिया बावड़ी के क्षेत्र के करीब 200 कैमरों को खँगाला, तो 22 मई को महावीर सिंह गीता के साथ ही नज़र आया। पुलिस ने तब पहला काम आरोपी के चेहरे को सर्च करने का शुरू किया।

किसी स्त्री की इतनी जघन्य हत्या का रहस्य क्या रहा? कौन था यह नर पिशाच? शव जहाँ पाया गया था, वहीं होस्टल की इमारत का आधा-अधूरा निर्मित ढाँचा खड़ा हुआ था। शव जिस अवस्था में पाया गया था, उसके हिसाब से हत्यारे ने महिला की चाकू से हत्या करके उसके पेट में उसी के कपड़े ठूँस कर जीआई तार से सिल रखा था। महिला के श्रमिक होने, प्लास्टिक का कट्टा और जीआई तार मिलने से एक बार तो पुलिस को हत्या के सूत्र निर्माणाधीन इमारत से जुड़े होने का शक हुआ। लेकिन बात इसलिए सिरे नहीं चढ़ी, क्योंकि निर्माणाधीन इमारत का काम तो अर्से से बन्द पड़ा था। किन्तु जिस निर्ममता से हत्या की गयी थी, उससे साफ लगता था कि निश्चित रूप से यह किसी सनकी और मानसिक रूप से विक्षिप्त आदमी का ही काम हो सकता था।

पुलिस महानिरीक्षक पांडे का मानना था कि यह व्यक्ति निश्चित रूप से जेलबर्ड होना चाहिए। उन्होंने इस िकस्म के फितरती शख्स ही तलाश के लिए प्रदेश की सभी जेल अधिकारियों से सम्पर्क किया, तो उन्हें अपनी कोशिश कामयाब होती नज़र आयी। पता चला कि इस िकस्म का सनकी हत्यारा मोहन उर्फ महावीर 10 जुलाई, 2016 को जयपुर की सांगानेर खुली जेल से पेरोल के बाद से फरार है। जेल अधीक्षक द्वारा भेजी गयी सूचना में कहा गया कि मोहन कभी अपने को कोटा के केबल नगर तथा कभी अजमेर के केकड़ी का रहने वाला बताता रहा है। आईजी पांडे के लिए सूचना उत्साहवद्र्धक थी। उन्होंने छानबीन में सहूलियत के लिए मोहन का फोटो भी मँगवा लिया।

एक बात तो निश्चित हो चुकी थी कि मोहन कोटा में हो सकता है। पुलिस छोटी-से-छोटी बात पर भी नज़र गड़ाये हुए थी। पुलिस टोलियों को सतर्क किया, तो एक टीम को केकड़ी भी भेजा। केकड़ी पहुँची पुलिस टीम को मिली जानकारी के अनुसार मोहन का परिवार 50 साल पहले केकड़ी छोड़कर कोटा आ गया था और केवल नगर में बस गया था। इस बीच पुलिस ने महत्त्वपूर्ण सुबूत हासिल किया। विज्ञान नगर के सेक्टर-3 में चल रहे निर्माण कार्य में जुटे एक कारीगर ने फोटो देखकर उसे पहचान लिया। लेकिन वह  इससे ज़्यादा कुछ नहीं बता सका कि यह आदमी एक महिला श्रमिक को लेकर यहाँ आया था। लेकिन बाद में उसे नहीं देखा गया। पुलिस के इस सवाल पर कि क्या कोई मोबाइल भी उसके पास था? कारीगर ने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि होगा भी, तो उसने नहीं देखा। पुलिस  का मानना था कि मोहन ज़रूर किसी निर्माणाधीन काम पर अथवा मण्डियों में मज़दूरी करता मिलना चाहिए। पुलिस ने इन सभी जगहों को खँगालने की कोशिश की। यहाँ तक कि फुटपाथों पर सोने वाले करीब 2000 से ज़्यादा लोगों की जाँच की। लेकिन पुलिस को कोई कामयाबी नहीं मिली।

आिखर पुलिस की भागदौड़ 10 जून को रंग लायी। छानबीन के सिलसिले में करीब सुबह 11:00 बजे जब थाना प्रभारी मुनीन्द्र सिंह पुलिस टोली के साथ कुन्हाड़ी इलाके से गुज़र रहे थे। पेट्रोल पम्प के पास उन्हें आरोपी से मिलते-जुलते हुलिये का शख्स नज़र आया। सीआई मुनीन्द्र सिंह ने आव देखा, न ताव; फौरन उसके करीब जिप्सी रोककर उसे सवालों के घेरे में ले लिया। ताबड़तोड़ सवालों ने हक्का-बक्का हुए शख्स को इस कदर बदहवास किया कि नाम पूछने पर ना-नुकर करने की बजाय सीधा बोल पड़ा- ‘महावीर हूँ साब!’

उस शख्स का हुलिया भी पूरी तरह आरोपी से मिल रहा था। इतनी मशक्कत के बाद ब्लाइंड मर्डर की तह तक पहुँच जाने की खुशी सीआई मुनीन्द्र सिंह के चेहरे से साफ झलक रही थी। पुलिस की गिरफ्त में आ जाने का भान होतेे ही, वह बुरी तरह काँपते हुए कहने लगा- ‘साब! मैंने किया क्या है? और मेरा नाम तो मोहन है। महावीर तो गलती से मँुंह से निकल गया…।

‘…यह तो तुम्हीं अभी गा-गाकर बताओगे कि तुमने किया क्या है?’ -सीआई बोले।

कोर्ट में 11 जून को पेश करके रिमांड पर लेने के बाद पुलिस पूछताछ में मोहन सिंह उर्फ महावीर जल्दी ही टूट गया। पुलिस ने उसके कब्ज़े से एक चाकू, खून सना जीआई वायर और वारदात के वक्त के कपड़े भी बरामद कर लिये। उसने 22 मई को महिला की नृशंस हत्या को करना और शव कन्धे पर रखकर करीब 200 मीटर दूर स्कूल की दीवार के पास फेंकना भी स्वीकर कर लिया। पुलिस ने मोहनसिंह उर्फ महावीर से गहन पूछताछ की। पुलिस को बताये गये मुद्दों और लेखकीय छानबीन में प्राप्त तथ्यों के आधार पर एक ऐसे सनकी और पैशाचिक  प्रवृति के व्यक्ति की दहशतज़दा करने वाली गाथा सामने आयी। जो साइकोकिलर (मनोरोगी हत्यारे) से भी एक कदम आगे थी। शराब पीते ही यह आदमी राक्षस बन जाता था। नशा इसे बेलगाम कर देता था। शराब पीने के बाद इसे औरत चाहिए ही चाहिए थी। ऐसी औरत, जो इसे मनमानी करने दे। नशे में धुत्त इस आदमी के साथ कोई औरत सम्बन्ध बनाने से इन्कार कर दे तो इसके अन्दर का जानवर बाहर निकल पड़ता फिर यह उसे भेडिय़े की तरह नोचता। उसकी हत्या कर शरीर को बुरी तरह क्षत्-विक्षत् कर देता। गीता के मामले में भी यही हुआ। सम्बन्ध बनाने से इन्कार करने के बाद चाकू से गोदते हुए बड़ी बेरहमी के साथ उसे मौत के घाट उतार दिया। उसका पेट चीरकर आँते और आमाशय बाहर निकालकर फेंक दिये। वहशी नर-निशाच के बारे में आज भी ढेरों सवाल है, जो माँझे की गिट्टी की तरह उलझे हुए हैं। महावीर उर्फ मोहनसिंह का पूरा ब्यौरा आज भी अज्ञात है। लगभग 50 वर्षीय महावीर युवावस्था में परिवार के साथ अजमेर ज़िले के केकड़ी से कोटा आकर केवल नगर में बस गया था। करीब 25 बरस पहले उसका परिवार उसे छोड़कर केकड़ी लौट गया। तबसे वह अकेला रह गया। आिखर महावीर से उसे परिजनों ने क्या देखा कि उसका संग-साथ छोडऩा ही बेहतर समझा। क्या परिवार उसकी खुराफातों को भाँप गया था? न कोई दोस्त, न संगी-साथी। रिश्तेदार का तो सवाल ही नहीं। वह मेहनत-मज़दूरी और हलवाई-गीरी के पेशे से खा-कमा रहा था। एक खानाबदोश की तरह रहने वाले महावीर के पास मोबाइल भी नहीं था। सन् 1985 से सन् 2015 के बीच उसने चार हत्याएँ की। उसकी शिकार सभी महिलाएँ थी। सभी परिचयहीन दीन-दरिद्र लोग। सभी हत्याएँ पूरी दरिन्दगी के साथ इस तरह की गयी, ताकि शव पहचाने तक नहीं जा सके। कितनी महिलाओं के साथ यह दुष्कर्म कर चुका है? इसकी ठीक संख्या तो इसको भी याद नहीं। अलबत्ता, जो बचीं मौत के पंजों से क्योंकर बच गयी? इस बाबत महावीर का कहना था, दुष्कर्म के बाद शोर मच जाने से मुझे भागना पड़ा।

पुलिस रोज़नामचे में दर्ज होने वाला उसका चौथा शिकार मारू भाट समाज गुलाब बंजारा की पत्नी गीताबाई थी। 21 मई की सुबह पति के साथ मज़दूरी के लिए निकली थी और गोबरिया बावड़ी चौराहे से लापता हो गयी थी। जिस समय गीता मज़दूरी की तलाश में थी। मोहन उसे ज़्यादा मज़दूरी दिलाने का प्रलोभन देकर विज्ञान नगर स्थित सेक्टर-3 में एक निर्माणाधीन मकान में ले आया। उसने पहले गीता से मकान की साफ-सफाई करवायी। फिर खाना बनवाया। इस बीच वह शराब पीता रहा। फिर खाना खाया और उसे भी खिलाया। शराब का नशा सिर पर चढ़कर बोलने लगा, तो उसने गीता से सम्बन्ध बनाने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। गीता इन्कार करते हुई भड़क उठी, तो मोहन बुरी तरह हिंसक हो उठा। उसने गीता को नीचे पटककर बेबस कर दिया और गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। बाद में पेट चीरकर आँते और आमाशय बाहर निकाल दिये। उसके बाद जीआई तार से पेट सिलकर उसे वहीं पड़े एक बोरे में बन्द कर दिया। तब तक सुबह के 4:00 बज चुके थे। अँधेरे का फायदा उठाते हुए बोरा लादकर विज्ञान नगर स्थित स्कूल के अहाते से जुड़ी दीवार के पीछे फेंक आया।

पुलिस रोज़नामचे में दर्ज हुई पहली वारदात उसने कोटा के उद्योग नगर थाना क्षेत्र के मंडाना में सन् 1985 में की थी। यह चोरी की वारदात थी। दूसरी वारदात भी उद्योग नगर में सन् 1996 में की। उस दिन आकाश में घने काले बादल छाये हुए थे। सर्द तेज़ हवाएँ रात को भयावह बना रही थी। ऐसे में जमकर पानी बरसने लगा था। मौके का फायदा उठाते हुए मोहन एक मकान में चोरी की नीयत से घुस गया। चोरी तो वह कर नहीं पाया। लेकिन परिवार की नाबालिग लड़की को दबोचकर उसके साथ दुष्कर्म कर डाला। लड़की शोर मचाने पर आमादा हुई, तो उसने गला दबाकर मार डाला। यह मुकदमा प्रकरण 146/96 के तहत दर्ज हुआ।

मोहन ने तीसरा अपराध भी उद्योग नगर थाना क्षेत्र में सन् 1997 में किया। यहाँ उसने जिस महिला की हत्या की उससे वह एकतरफा प्रेम करता था। एक रात महिला का पति बाहर गया हुआ था, मोहन उसके पास पहुँच गया। उसने जबरन महिला को उठाया और दूसरे कमरे में ले जाकर दुष्कर्म पर आमादा हो गया। महिला के इन्कार पर उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। हिंसक हुए मोहन ने तब अपना क्रोध महिला की बेटी पर भी उतारा और उसके साथ दुष्कर्म करके उसकी भी हत्या कर दी।

उद्योग नगर के दोहरे कांड के बाद मोहन चित्तौडग़ढ़ के निंबाहेड़ा कस्बे में चला गया। वहाँ एक मज़दूर महिला को काम दिलाने का बहाना कर ले आया और उसके साथ दुष्कर्म कर डाला। महिला ने शोर मचाने का प्रयास किया, तो गला घोंटकर उसको मार डाला। सन् 2016 में जब वह जयपुर की सांगानेर जेल में था, तो पेरोल पर फरार होकर कोटा आ गया था। इस मामले में उसके विरुद्ध सांगानेर थाने में प्रकरण संख्या-589/16 के तहत मुकदमा दर्ज था। गीताबाई प्रकरण को पुलिस ने अफसर स्कीम के तहत लिया था। प्रकरण में केस अफसर विज्ञान नगर थाने के पुलिस निरीक्षक अमर सिंह को नियुक्त किया गया था। चार्जशीट में आरोपी के विरुद्ध धारा-376 के तहत आने वाला शरीर से अंग निकालने का अपराध साबित नहीं हो सका, इसलिए इस धारा को हटा दिया गया।