नरेंद्र मोदी: लहर में कितना असर?

फ़ोटो: पीटीआई
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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से जिन चार राज्यों के चुनावी नतीजों को अगले लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा था उनमें से तीन में भारतीय जनता पार्टी की स्पष्ट जीत और एक में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभार को पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के अपने उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बढ़ते असर का नतीजा बताया. अगर इन राज्यों की सीटों को मिला दें तो पता चलता है कि जिन 589 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए उनमें से 407 पर भारतीय जनता पार्टी की जीत हासिल हुई. इसका मतलब यह हुआ कि तकरीबन 70 फीसदी सीटों पर भाजपा जीती. अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या विधानसभा चुनावों में भाजपा की यह जीत वाकई नरेंद्र मोदी की जीत है? इसे समझने के लिए यह जरूरी है कि राज्यवार चुनाव परिणामों को समझा जाए.

इन विधानसभा चुनावों में भाजपा को सबसे बड़ी जीत राजस्थान में मिली है. राजस्थान में जिन 199 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ उनमें से भाजपा को 162 सीटों पर जीत हासिल हुई है. यानी भाजपा को तीन चौथाई बहुमत मिला. जो लोग राजस्थान के विधानसभा चुनावों को करीब से देख रहे थे उनमें से ज्यादातर लोगों का यह मानना था कि प्रदेश में माहौल भाजपा के पक्ष में है लेकिन वे यह भी देख रहे थे कि कांग्रेस और खास तौर पर प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ कोई खास गुस्सा नहीं है. ऐसे में बराबरी या 19-20 के मुकाबले की उम्मीद जग रही थी. लेकिन अब राजस्थान के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जैसे-जैसे नरेंद्र मोदी की रैलियां प्रदेश में हुईं, वैसे-वैसे भाजपा के पक्ष में तेजी से माहौल बनता गया. खुद राजस्थान की नई मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी यह माना कि राजस्थान में उन्हें जो भारी बहुमत मिला है उसका श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है.

राजस्थान में मोदी का सबसे ज्यादा असर दिखने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि यह राज्य गुजरात से लगा हुआ है और यहां प्रदेश भाजपा नेताओं ने यह कहकर प्रचार किया कि अगर राजस्थान में उनकी सरकार बनती है कि यह प्रदेश भी गुजरात की तरह बन जाएगा. राजस्थान में जिन 21 सीटों पर नरेंद्र मोदी ने सभाएं की उनमें से 17 पर भाजपा को जीत हासिल हुई. लेकिन एक आंकड़ा यह भी है कि पूरे प्रदेश में भाजपा की जीत का जो प्रतिशत है वह मोदी की सभाओं वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा की जीत के प्रतिशत से कम नहीं बल्कि ज्यादा ही है. लेकिन जैसा कि ऊपर लिखा है कुछ जानकार मानते हैं कि यह भी मोदी के प्रभाव से ही संभव हो सका है.

मध्य प्रदेश में भाजपा को दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ. ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि इस जीत के लिए मोदी को श्रेय देना मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ बेईमानी होगी. इन लोगों का यह तर्क है कि शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में जिस तरह का काम किया था उसके चलते मोदी के बगैर भी वे इतनी सीटें हासिल करने में सफल होते. लेकिन खुद शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जीत में मोदी के योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया है. ऊपरी तौर पर अगर देखा जाए तो किसी को भी शिवराज सिंह द्वारा मोदी को श्रेय दिया जाना समझ में आ सकता है. नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की जिन 15 विधानसभाओं में चुनाव प्रचार किया उनमें से 14 पर भाजपा को जीत हासिल हुई. मगर 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में जिस तरह से चौहान को दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत मिला है उस हिसाब से 15 में से 14 विधानसभा की जीतें कुछ खास मायने नहीं रखतीं. यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश में मोदी की जनसभाओं में से ज्यादातर में बहुत कम जनता उन्हें देखने-सुनने के लिए आई. और शिवराज उन इलाकों में भी विजयी रहे जिनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा थी.

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने रमन सिंह की अगुवाई में वापसी करने में सफलता हासिल की. यहां की राजनीति जानने वालों की मानें तो यहां के बारे में पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि यहां मोदी का जादू चला है. इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क तो यह दिया जा रहा है कि यहां भाजपा को उतनी बड़ी जीत हासिल नहीं हुई जितनी बड़ी जीत उसे मध्य प्रदेश और राजस्थान में मिली. लेकिन इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि 90 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के बीच 10 सीटों का अंतर भी कम नहीं है. यहां भाजपा को 49 और कांग्रेस को 39 सीटें मिली हैं. यहां भाजपा ने एक ऐसे माहौल में वापसी करने में सफलता हासिल की जब उसके खिलाफ 10 साल की सत्ता विरोधी लहर थी, उसके कई बागी चुनावी मैदान में थे और कांग्रेस के नंदकुमार पटेल जैसे नेताओं की नक्सलियों द्वारा हुई हत्या के बाद यहां कांग्रेस के प्रति लोगों में थोड़ी सहानुभूति भी थी.

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विचित्र किंतु सत्य

मुखिया जीते लेकिन मंत्री हारे

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हैट्रिक के बावजूद शिवराज सिंह चौहान के 11 और रमन सिंह के पांच मंत्रियों को जनता ने नकार दिया. मध्य प्रदेश में मंत्रियों की हार इसलिए भी हैरान करने वाली है क्योंकि पिछली बार के मुकाबले भाजपा ने यहां इस बार अधिक सीटें हासिल की हैं. छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष समेत दोनों पार्टियों के 48 विधायक इस बार अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. ऐसा ही हाल दिल्ली और राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों का भी रहा. इन दोनों राज्यों में पार्टी के अधिकतर विधायकों को हार मिली.

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लेकिन इसके साथ यह भी एक तथ्य है कि यही वे नेता भी थे जिनके दम पर कांग्रेस दस साल बाद सत्ता में आने के सपने देख रही थी. भाजपा के लोग यहां की जीत को भी नरेंद्र मोदी के असर का नतीजा बता रहे हैं लेकिन अगर जमीनी हालत जानने वाले लोगों से बात करें तो उनमें से कई इसे रमन सिंह का अपना प्रभाव मानते हैं. लेकिन यहां मोदी के असर को सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता. क्योंकि जिन छह सीटों पर मोदी ने यहां चुनाव प्रचार किया उनमें से चार पर भाजपा जीती है जोकि भाजपा की जीत के प्रतिशत से 12 फीसदी ज्यादा है. मगर उतना ज्यादा भी नहीं.

दिल्ली में भले ही भाजपा सरकार बनाने लायक संख्या हासिल नहीं कर पाई हो लेकिन 31 सीटों के साथ वह दिल्ली विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. दिल्ली प्रदेश और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की मानें तो आम आदमी पार्टी की जिस तरह की लहर दिल्ली में थी उसमें अगर भाजपा को इतनी सीटें भी मिलीं तो इसके लिए मोदी और हर्षवर्धन ही जिम्मेदार हैं. जानकारों की मानें तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की लड़ाई को ईमानदारी बनाम बेईमानी की लड़ाई में तब्दील कर दिया था. यहां एक छोर पर केजरीवाल थे तो दूसरे पर शीला दीक्षित और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल. गोयल ने खुद को भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. लेकिन पार्टी नेताओं की मानें तो नरेंद्र मोदी को इस बात का अंदाजा हो गया था कि केजरीवाल जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उसमें गोयल के बूते चुनाव नहीं जीता जा सकता. इसलिए अंतिम समय में हर्षवर्धन की उम्मीदवारी की घोषणा भाजपा ने की.

इसके बाद मोदी ने लगातार दिल्ली में सभाएं कीं. मोदी ने दिल्ली की जिन छह सीटों पर चुनाव प्रचार किया उनमें से दो पर भाजपा ने जीत हासिल की. ये सीटें हैं- द्वारका और शाहदरा. भले ही यह सफलता कम दिखती हो लेकिन जिस तरह के चौंकाने वाले नतीजे दिल्ली विधानसभा चुनाव के आए हैं उसमें पार्टी के लोग इस बात में ही खुश हैं कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी और इसके लिए वे सबसे ज्यादा अगर किसी को श्रेय दे रहे हैं तो वे हैं नरेंद्र मोदी.