नयी आबकारी नीति और दिल्ली मॉडल

राजनीति में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे दिल्ली मॉडल को नयी आबकारी नीति से जैसे ग्रहण लग गया है। नयी नीति से जहाँ सरकारी राजस्व में बड़ा घाटा हुआ, वहीं इसमें भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप लगे हैं। आरोप यह है कि इस आबकारी नीति में पारदर्शिता नहीं बरती गयी। ज़ाहिर है जहाँ पारदर्शिता नहीं होती, वहाँ गड़बड़ी की आशंका प्रबल होती है। मुख्य सचिव नरेश कुमार की इस रिपोर्ट के बाद कि ‘आबकारी नीति में नियमों की अनदेखी कर भ्रष्टाचार किया गया है और चहेते लोगों को लाभ पहुँचाया गया है;’ उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने तत्कालीन आबकारी आयुक्त आरव गोपीकृष्ण समेत 11 अधिकारी और कर्मचारी निलंबित कर दिये गये थे।
अब इसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय भी कूद पड़ा है। उप मुख्यमंत्री व आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया समेत एक दर्ज़न लोगों के नाम प्राथमिकी दर्ज हो चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि भ्रष्टाचार सिद्ध हो सकेगा? क्योंकि अभी तक सिर्फ़ आरोप हैं। इसीलिए इस मामले में किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है। भाजपा के लोगों का कहना है कि देर-सबेर इस प्रकरण में बड़े स्तर पर गिरफ़्तारियाँ होंगी। क्योंकि हर जगह दिल्ली मॉडल को सफलता से लागू करने की बात कहने वाले आबकारी नीति पर बग़ले झाँकते हुए नज़र आ रहे हैं। दरअसल यह आबकारी नीति दिल्ली सरकार के गले की फाँस बन गयी है। शराब से मिलने वाला राजस्व साल-दर-साल बढ़ता है; लेकिन दिल्ली में इस नीति के चलते बहुत कम राजस्व सरकार को प्राप्त हुआ है। सवाल यह है कि इस नुक़सान की ज़िम्मेदारी किसकी है? नयी नीति जब बनी थी, तो इससे क़रीब 10,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के राजस्व का अनुमान लगाया गया था। लेकिन नवंबर में जारी इस नीति के तहत जुलाई अन्त तक 2,000 करोड़ रुपये भी सरकारी खाते में नहीं आये।
चार माह के दौरान 10,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाना सम्भव नहीं था। मतलब दिल्ली सरकार को बड़ा घाटा हुआ। फिर शराब की बढ़ती खपत से कौन लोग मुनाफ़ा कमा रहे थे? निश्चित ही कुछ लोग मोटी कमायी कर रहे होंगे। ये लोग कौन है? सीबीआई इसी की जाँच में जुटी है। हालाँकि सिसोदिया के घर सीबीआई छापेमारी करके उनका मोबाइल, कम्प्यूटर और कुछ फाइल्स सीबीआई टीम ले जा चुकी है। लेकिन ख़ामोश बैठी है। ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग का कोई मामला नहीं मिला। माना जा रहा है कि नयी आबकारी नीति में बिचौलियों की भूमिका सामने आएगी। हो सकता है कि इन बिचौलियों में कुछ लोग सरकार के क़रीबी हों। जिन 15 लोगों पर आरोप हैं, उनमें से दो अभी देश से बाहर हैं। लुकआउट नोटिस के बाद अब उनमें से किसी का बाहर जाना मुश्किल है।

नयी आबकारी नीति में एकमुश्त 10 फ़ीसदी कमीशन बढ़ाने का क्या औचित्य था? अब बोलीदाताओं की सुरक्षा राशि वापस करना भी सन्देह के घेरे में है। आबकारी नीति को मंत्रिमंडल ने मंज़ूरी दी थी; लेकिन इसके बाद भी इसमें अतिरिक्त संशोधन किये गये। पूर्व उप राज्यपाल अनिल बैजल ने उसे पास किया। मंत्रिमंडल समूह में आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और कैलाश गहलोत थे। सवाल यह भी है कि जब पुरानी नीति के तहत शराब की बिक्री चल रही थी, तो नयी नीति की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या इसका उद्देश्य किसी को लाभ पहुँचाना था? या सरकारी राजस्व में बढ़ोतरी करने का था? नयी नीति में स्पष्ट अंकित है कि उत्पादक, वितरक और ख़ुदरा विक्रेता तीनों अलग-अलग होने चाहिए। किसी का किसी के साथ कोई तालुल्क़ नहीं होना चाहिए। आरोप है कि इसकी अनदेखी हुई है। दो कम्पनियाँ ऐसी हैं, जो उत्पादक, वितरक और ख़ुदरा में शामिल हैं। जहाँ-जहाँ ऐसा होता है, वहाँ सरकार को राजस्व नाम मात्र की कमायी होती है, जबकि बोली दाता को मोटी कमायी। बोलीदाताओं पर यह दरियादिली दिखाने का कुछ तो मक़सद रहा होगा। जाँच में ऐसे कई राज़ खुल सकते हैं। सवाल यह है कि यह सब सरकार की जानकारी में रहा; लेकिन इसकी जाँच उसने नहीं करायी।

शराब से मिलने वाला राजस्व राज्य सरकारों के लिए जीएसटी के बाद सबसे बड़ा होता है। सरकारें इस राजस्व को बढ़ाने के लिए हर वर्ष नीति में बदलाव करती हैं, ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा राजस्व प्राप्त हो सके। हालाँकि दिल्ली सरकार ने भी यही किया। लेकिन ज़्यादा के चक्कर में उसे घाटा उठाना पड़ गया। पहली तालाबंदी में उसने शराब पर टैक्स भी बढ़ाया था। लेकिन बाद में शराब पर मुफ़्त की योजना लागू कर दी।

दिल्ली में सस्ती शराब के चलते इसकी खपत बहुत ज़्यादा बढ़ी। एक ख़रीदो, दो ले जाओ (बोतल या पेटी) की स्कीम भी चली। पर इसका फ़ायदा सरकार को नहीं हुआ। क्योंकि नयी नीति में सरकार की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं थी। आबकारी मंत्री होने के नाते मनीष सिसोदिया प्राथमिकी में पहला आरोपी बनाया गया है; लेकिन इसकी आँच केजरीवाल तक भी पहुँच सकती है। ज़ाहिर है मसौदे मंत्रिमंडल में पास होने और फिर अलग से मंत्रिमंडल समूह में अतिरिक्त संशोधन जैसे फ़ैसलों की जानकारी मुख्यमंत्री को भी होगी ही। सत्येंद्र जैन पर ईडी का शिकंजा कसे जाने के बाद अब कौन-कौन मंत्री निशाने पर आएँगे? ऐसी चर्चा है।
संगीन आरोपों से घिरे मनीष सिसोदिया ने हर सवाल और आरोप का जवाब देते हुए दहाड़ लगा दी है और चुनौती दी है कि उनके ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं मिलने वाला, क्योंकि वह निर्दोष हैं। वह आरोपों को झूठ का पुलिंदा बता रहे हैं। उनका कहना है कि 800 करोड़ के घोटाले से भाजपा एक करोड़ के घोटाले के आरोप पर आ गयी है। यह झूठ साफ़ दिख रहा है। बता दें कि सत्येंद्र जैन के मामले में भी एक न्यायालय ने ईडी की कड़ी फटकार लगायी थी कि वह इस तरह किसी को आरोपी कैसे बना सकता है, जब उनके नाम कम्पनी तक नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा के एक बड़े नेता ने उन्हें फोन पर आम आदमी पार्टी को तोडक़र भाजपा में शामिल होने का ऑफर दिया है। अगर यह आरोप सही है, तो यह कोई छोटी बात नहीं है। कोई भले ही खुलकर नहीं बोल रहा हो; लेकिन भाजपा किस तरह से लोगों को अपने ख़ेमे में करने या उन्हें नष्ट करने में लगी है, यह किसी से छिपा भी नहीं है।

इधर जाँच में फँसे सिसोदिया केजरीवाल के साथ गुज़रात का चुनावी दौरे पर भी गये। बीच-बीच में केजरीवाल भी सिसोदिया की तरह अपनी गिरफ़्तारी की आशंका भी जताते रहते हैं। केजरीवाल सिसोदिया को ईमानदार, देशभक्त और देश का सबसे अच्छा शिक्षामंत्री बताते हैं। सवाल यह है कि अब तक बेदाग़ छवि के रहे सिसोदिया क्या अपनी प्रतिष्ठा को बचाये रखने में सफल होंगे? या फिर उन्हें भी सत्येंद्र जैन की तरह जेल जाना पड़ेगा? यह तो जाँच में मिले सुबूतों के आधार पर तय होगा। लेकिन जाँच निष्पक्ष होनी चाहिए, यह ज़िम्मेदारी जाँच एजेंसियों की बनती है।

एक दर्ज़न से ज़्यादा विभागों को सँभाल रहे सिसोदिया केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति हैं। लोगों में उनकी एक अच्छी छवि है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने सराहनीय काम किया है और उनके इस काम की तारीफ़ न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर दुनिया के कई बड़े अख़बारों, पत्रिकाओं और देशों मंन हुई है। हो सकता है कि शिक्षा की तरह वह आबकारी नीति में भी कुछ नया और बड़ा करना चाहते हों; लेकिन इससे आरोप तो यही लगे कि वह सरकार के चहेतों को लाभ पहुँचाना चाहते थे। इस नीति के तहत बिचौलियों के माध्यम से कोई बड़ा हेरफेर किया गया है। बहरहाल जब तक मामले का कोई फ़ैसला नहीं आ जाता, तब तक दिल्ली मॉडल से दिल्ली सरकार की आबकारी नीति को तो बाहर ही रखा जाना चाहिए।


“वे (भाजपाई) सिसोदिया को 22 साल से जानते हैं। वह ईमानदार और देशभक्त हैं। आबकारी नीति में नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की नीयत में खोट है। मैंने तीन माह पहले ही कह दिया था कि सत्येंद्र जैन के बाद अब निशाने पर मनीष सिसोदिया होंगे। मेरी बात सही साबित हो रही है। केंद्र सरकार को दिल्ली में आप सरकार खटक रही है।’’
अरविंद केजरीवाल
मुख्यमंत्री, दिल्ली


“मुझे आप छोडक़र भाजपा में आने का प्रस्ताव आया। इसके एवज़ में मेरे ख़िलाफ़ सभी मामले रफ़ा-दफ़ा करने का ऑफर है। इसका सुबूत मेरे पास है, जिसे समय आने पर पेश किया जाएगा। मेरे ख़िलाफ़ जाँच राजनीति से प्रेरित और दिल्ली सरकार को गिराने की साज़िश है। मैं बेदाग़ हूँ और रहूँगा। मैं जाँच में पूरा सहयोग करूँगा; क्योंकि मैंने कोई ग़लत काम नहीं किया है।’’
मनीष सिसोदिया
उप मुख्यमंत्री, दिल्ली

पंजाब में शराब पर घटा टैक्स
पंजाब में आबकारी नीति का मामला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में लम्बित है। वितरकों ने इसे सरकार की मोनोपोली (एकाधिकार) बताते हुए इसे रद्द करने की याचिका दायर की है। न्यायालय ने सरकार को नोटिस देकर इस बाबत जवाब माँगा है। वैसे पंजाब की आबकारी दिल्ली जैसी ही है। यहाँ भगवंत मान सरकार ने शराब पर कर (टैक्स) 350 फ़ीसदी से घटाकर 150 फ़ीसदी किया है। कांग्रेस राज में यह 6,156 करोड़ वार्षिक था, वहीं आम आदमी पार्टी ने अब 9,648 करोड़ से ज़्यादा का लक्ष्य रखा है। पहले पंजाब में चंडीगढ़ और हरियाणा से काफ़ी महँगी शराब थी; लेकिन अब 10 से 15 फ़ीसदी सस्ती हो गयी है। कम टैक्स पर ज़्यादा राजस्व शायद शराब की ज़्यादा खपत और अवैध शराब की बिक्री पर रोक से इकट्ठा होना सम्भव होगा।