नक्सल अभियान में 17 लोगों की जुडिशियल किलिंग की जांच से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान आदिवासियों की जुडिशियल किलिंग (न्यायेतर हत्या) की स्वतंत्र जांच करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका 2009 में दायर की गयी थी। सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

मामले के सुनवाई पूरी होने के बाद 19 मई को सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। फैसले में सर्वोच्च अदालत ने इस चीज की जांच की भी अनुमति दी है कि कुछ लोग और संगठन न्यायालय का इस्तेमाल कथित तौर पर वामपंथी चरमपंथियों के बचाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की तरफ से दाखिल याचिका पर गुरुवार को फैसला सुनाया। अदालत ने याचिकाकर्ता कुमार को चार हफ्ते के भीतर 5 लाख रुपये जुर्माना जमा करने का आदेश दिया। राशि जमा नहीं करने की स्थिति में कुमार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

याद रहे याचिकाकर्ता को माओवादियों के साथ सहानुभूति रखने वाले के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने ने दंतेवाड़ा में साल 2009 में तीन अलग-अलग घटनाओं में 17 आदिवासियों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी। कुमार ने मौत को लेकर अपनी तरफ से रिकॉर्ड गए बयानों के आधार पर याचिका दायर की थी।