नक़ली दवाइयों का काला धंधा

हिमाचल में नक़ली दवाइयों के एक और पर्दाफाश पर उच्च न्यायालय का स्वत: संज्ञान

हिमाचल में एक करोड़ रुपये से ज़्यादा मूल्य की नक़ली दवाइयाँ और कच्ची सामग्री की बरामदगी ने अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की दवा कम्पनियों और राज्य की साख को बट्टा लगाया है। बाहरी राज्यों को भेजे जाने वाली तैयार दवाइयों के अलावा 30 किलो से ज़्यादा दवा बनाने की कच्ची सामग्री के साथ चार लोगों की गिरफ़्तारी लेख लिखे जाने तक हो चुकी थी। यह मामला बेहद गम्भीर है और लाखों-करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा है। मामले की गम्भीरता के महत्त्व को इसी से समझा जा सकता कि राज्य उच्च न्यायालय ने इस बाबत प्रकाशित ख़बरों को आधार मानते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस गम्भीर मुद्दे पर राज्य के मुख्य सचिव, प्रधान सचिव स्वास्थ्य और गृह (दोनों) निदेशक स्वास्थ्य सेवाएँ, सोलन के ज़िला उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में इस बाबत शपथ-पत्र देने को कहा है। ज़ाहिर है तीन सप्ताह के दौरान पुलिस और स्वास्थ्य विभाग को बहुत कुछ ठोस करना पड़ेगा।

बद्दी की इकाई में तैयार सप्लाई के लिए भेजे जाने वाले हज़ारों कैप्सूल और टेबलट की बरामदगी से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि कितने बड़े स्तर पर यह धंधा चल रहा था। जाँच में बद्दी में बनी कुछ दवाइयाँ उत्तर प्रदेश के आगरा और अलीगढ़ भेजी जाती थी। इनका वहाँ इस्तेमाल होता रहा है; लेकिन कब से और किन-किन शहरों और क़स्बों में यह विस्तृत जाँच में स्पष्ट होगा। इससे पहले भी राज्य में नक़ली दवाइयाँ बनाने के मामले सामने आते रहे हैं। नामचीन दवा कम्पनियों के लेबल वाली इन दवाओं का निर्माण प्रदेश में ख़ूब हो रहा है। इसे राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग की नाकामी कहा जाएगा। स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर कार्रवाई करता है, बावजूद इसके नक़ली दवा बनाने का धंधा बदस्तूर चल रहा है।

हिमाचल में बनी स्तरहीन नक़ली दवाओं के इस्तेमाल का सबसे बड़ा उदाहरण दो साल पहले का है। दिसंबर, 2019 से जनवरी, 2020 के दौरान राज्य के सिरमौर ज़िले के कालाअंब की दवा कम्पनी, डिजिटल विजन कम्पनी के कफ सीरप से अकेले जम्मू क्षेत्र में एक दर्ज़न से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई थी। इनमें से ज़्यादातर बच्चों को हल्की खाँसी-जुकाम हुआ और कम्पनी के कफ सीरप के उपयोग के बाद उनकी दर्दनाक मौत ही हुई। इस मामले को उजागर करने वाले समाजसेवी सुकेश खजूरिया के मुताबिक, वह कफ सीरप नहीं, बल्कि मौत की दवा थी, जिसने नौनिहालों को उनके माँ-बाप से छीन लिया। जम्मू में एक दर्ज़न बच्चे-बच्चियों की आँकड़ा तो रिकॉर्ड पर है, और न्यायालय के आदेश पर मृतक बच्चे-बच्चियों के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये का मुआवज़ा मिल चुका है। इस मामले में न्यायालय की प्रताडऩा के बावजूद फिर नया मामला सामने आ गया है। पिछले पाँच साल में ही आधा दर्ज़न से ज़्यादा ऐसे मामले सामने आ चुके हैं।

फूड लाइसेंस वाली इकाइयाँ यहाँ विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर करने वाल कैप्सूल और टेबलेट बना रही है। इसी साल सितंबर में बद्दी के धर्मपुर गाँव में आर्य फार्म नामक कम्पनी यही कर रही थी। कम्पनी मालिक के पास फूड सेफ्टी एंड स्टैडर्ड अथॉरटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) का लाइसेंस बना था और दवाइयाँ सप्लाई कर रही थी। बिना लाइसेंस वाली ऐसी कम्पनियाँ कैसी दवाइयाँ बनाएगी और उनका क्या और कैसा असर होगा इस समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। बिना लाइसेंस या दूसरे के लाइसेंस पर काम करने वाली इकाइयाँ भी काम कर रही है; लेकिन इन्हें चिह्नित कर कार्रवाई करना राज्य सरकार के लिए मुश्किल काम बना हुआ है। हिमाचल में 1,500 से ज़्यादा दवा निर्माता कम्पनियाँ पंजीकृत हैं। इनमें से आधी सोलन ज़िले के बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) में हैं। यह क्षेत्र जहाँ उपेक्षित है, वहीं स्वास्थ्य विभाग भी पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। इतने बड़े क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए एक पुख़्ता सिस्टम की ज़रूरत है, जिसकी शुरुआत से ही कमी है। अगर सिस्टम मज़बूत और कार्रवाई कारगर हो, तो ऐसे मामलों में कमी आती; लेकिन यह संख्या तो बढ़ रही है।

हिमाचल जैसे छोटे से पहाड़ी राज्य में देश की 30 प्रतिशत से ज़्यादा दवाइयाँ बनती है। यहाँ 45,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का वार्षिक कारोबार होता है। यहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर की दवा कम्पनियाँ भी हैं, जिनके उत्पाद बाहरी देशों में भी जाते हैं। बीबीएन एक तरह से देश का बहुत बड़ा फार्मा हब है, जिससे हिमाचल की पहचान देश-विदेश में है। लगातार नक़ली दवा के मामले सामने आने से साख गिर रही है और इसे बचाने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है। कई बार यहाँ बनी दवाइयों के नमूने दूसरे राज्यों में मानकों पर खरे भी नहीं उतरे हैं। नामी कम्पनियों के नाम वाली दवाइयाँ यहाँ से बाहर जा रही है और ख़ूब बिक रही है।

नामी कम्पनियों वाली नक़ली और स्तरहीन दवाइयाँ जिन राज्यों में चोरी छिपे या मिलीभगत से भेजी जा रही है, उनकी वहाँ पूरी खपत हो रही है। मतलब ऐसा धंधा करने वालों का काला कारोबार लोगों की जान की क़ीमत पर ख़ूब फल-फूल रहा है। बद्दी के नक़ली दवा मामले में गिरफ़्तार मोहित बंसल आगरा का रहने वाला है। कभी दवाइयों की थोक (होलसेल) की दुकान में काम करने वाला यह शख़्स काफ़ी समय से बद्दी में एक दवा इकाई को किराये पर लेकर निर्माण में लगा हुआ है। उसकी बद्दी इकाई के गोदाम से 30 किलो से ज़्यादा की कच्ची सामग्री बताती है कि वह कितने बड़े पैमाने पर काम कर रहा था। उसके अलावा अतुल गुप्ता, विजय कौशल और कर्मचारी नरेश कुमार हैं। मोहित बंसल की इकाई में कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने के लिए रोजडे-10, एंटी बायोटिक दवा ग्लीमीसेव-एम2 और अस्थमा में आराम के लिए मोंटेयर-10 और दर्द निवारक दवा जोरोडोल टीएच-4 जैसी विभिन्न प्रकार के कैप्सूल और टेबलेट बनती थी। ऐसी दवाइयाँ देश की जानी-मानी दवाइयाँ बनाती है और जिनकी माँग देश में बहुत है।

नक़ली दवा बनाने वाले इस गिरोह के इस काम में अन्य राज्यों से भी तार जुड़ हैं। बद्दी में बनने वाली स्तरहीन और नक़ली दवाइयों पर लेबल और प्रिंटिग का काम उत्तराखण्ड से कराया जाता था। यह ग़ैर-क़ानूनी काम है और इसे करने वाली इकाइयाँ भी जाँच के घेरे में रहेगी। दवा निर्माण में सबसे अहम इसकी कच्ची सामग्री होती है, जो बिना लाइसेंस आसानी से नहीं मिल सकती। ऐसे धंधे में लगे हुए लोगों के लिए शायद यह मुश्किल काम नहीं है। मोहित बंसल की इकाई को कच्ची सामग्री सप्लाई करने वाले अभी पुलिस पकड़ से बाहर है। शुरुआती पूछताछ से ख़ुलासा हुआ है कि नक़ली दवा का यह धंधा दो साल से चल रहा था। हिमाचल के ड्रग्स कंट्रोल एडमिनस्ट्रेशन (डीसीए) के पास सूचना थी कि बद्दी की एक इकाई ने एक बड़ी खेप उत्तर प्रदेश भेजी है। इसके बाद इकाई के कामकाज पर नज़र रखी जाने लगी।

हिमाचल सीमा पर ड्रग्स इंस्पेक्टर की टीम ने एक कार में रखी दवाइयों की जाँच की तो मामले का पर्दाफाश हो गया। इसके बाद इसी इकाई की ओर से आगरा (उत्तर प्रदेश) भेजे गये नक़ली दवाओं की जानकारी भी मिली। यह मामला बेहद गम्भीर है और राज्य सरकार को इस दिशा में बहुत कुछ ठोस काम करने की ज़रूरत है। यह लाखों-करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी बात है। तकलीफ़ होने के बाद आराम के लिए जो दवा ख़रीदी जा रही है, वह असली है या नक़ली इसका पता नहीं चल पाता। स्तरहीन दवा उल्टा असर भी कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक, राज्य सरकार को नक़ली दवा बनाने वाले लोगों और इनकी इकाइयों पर कड़ी कर्रवाई करनी चाहिए। लाइसेंस निलंबन, रद्द या इकाई को सील करने से ज़्यादा दोषियों को कड़ी सज़ा दिलवाने जैसी ठोस पहल करने की ज़रूरत है।

रैपर कुछ, दवा कुछ

हिमाचल के फार्मा हब बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, कालाअंब (ज़िला सिरमौर) आदि की कुछ इकाइयों से चोरी छिपे सिप्ला, इप्का लैब, कैडिला, मैकलियोड फार्मास्यूटिकल, सिंगोवा फार्मा और यूएसवी प्राइवेट लिमिटेड जैसी नामचीन दवा कम्पनियों के नाम पर स्तरहीन दवाइयाँ बाहर जा रही हैं। सरकार की स$ख्ती और कड़ी कार्रवाई के अलावा ऐसी कम्पनियों को भी नज़र रखनी होगी। इस काले धंधे में लगे लोग जहाँ लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं, वहीं नामी कम्पनियों की साख और भरोसे को तोड़ रहे हैं।

“जब तक घटना बड़ी न हो जाए, सरकारें जागती नहीं हैं। जम्मू क्षेत्र में कुछ दिनों के अंतराल के बाद जब बच्चों की मौत होने लगी, तो वजह कफ सीरप सामने आया। लेकिन उसके बाद भी दवा बिकती रही। बच्चों के लिए खाँसी और जुकाम से राहत के लिए तीन तरह के कफ सीरप बनाने वाली डिजिटल विजन कम्पनी हिमाचल के ज़िला सिरमौर के कालाअंब की ही थी। अब बद्दी में फिर नक़ली दवा के धंधे का पर्दाफाश हुआ है। जम्मू क्षेत्र में एक दर्ज़न मौतों के बाद हलचल शुरू हुई। क्या फिर वैसी किसी घटना का इंतज़ार है?’’

सुकेश खजूरिया

समाजसेवी, जम्मू