धड़ल्ले से हो रही नक़ली बीजों और कीटनाशकों की कालाबाज़ारी

इन दिनों नये कृषि क़ानूनों को लेकर आन्दोलन कर रहे किसानों के साथ कई तरह की ठगी वर्षों से हो रही है। बीज, खाद और कीटनाशकों के मामले में यह ठगी बड़े पैमाने पर होती है। किसान गोविन्द दास का कहना है कि कहने को तो हम कृषि प्रधान देश में रहते हैं। लेकिन मौज़ूदा वक़्त में अगर दुर्दशा किसी की है, तो वो है किसान। किसानों को केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें सिर्फ़ वोट बैंक के तौर पर ही उपयोग करती है। गोविन्द दास का कहना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच आपसी तालमेल न होने की वजह से किसानों को तमाम झंझावातों से जूझना पड़ता है। ये पीड़ा सिर्फ़ गोविन्द दास की नहीं है, बल्कि देश के उन किसानों की भी है, जो केवल किसानी करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है।

किसानों को बेहतरीन कीटनाशकों और असली बीजों के नाम पर बहुत कुछ नक़ली बेचकर लूटा जा रहा है। और तो और किसानों को अलग-अलग राज्यों में खाद विक्रेता सीधे-साधे मेहनतकश किसानों को महँगे दामों पर खाद बेच रहे हैं। ऐसा नहीं है कि किसानों के ठगे जाने वाले खेल में सिर्फ़ खाद विक्रेता ही शामिल हैं। इसमें ज़िला स्तर से लेकर तहसील स्तर का प्रशासनिक तंत्र शामिल है। इन्हीं तमाम पहलुओं पर ‘तहलका’ ने देश के अलग-अलग राज्यों के किसानों से बात की, तो उन्होंने कहा कि कोरोना-काल में अगर सबसे कारोबार पनपा है, तो नक़ली बीज और नक़ली कीटनाशक दवा कम्पनियों वालों का। क्योंकि किसानों से जुड़े कारोबार पर बहुत ही कम लोगों की नज़र पड़ती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों के कृषि मंत्रालय में आपसी ताममेल न होने की वजह तो राजनीति हो सकती है; लेकिन किसानों के हित में जो योजनाएँ सरकारी बनती हैं, उन पर अमल क्यों नहीं होता? नक़ली बीजों और नक़ली कीटनाशकों का जो खेल चल रहा है, उसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारियों का एक तबक़ा किसानों का जमकर दोहनकर रहा है।

बतातें चलें नक़ली बीजों और नक़ली कीटनाशकों के कारोबार में किसानों को भ्रमित कर मल्टीनेशनल दवा कम्पनियों वाले अपने-अपने उत्पादों को बेबसाइट के ज़रिये बेच रहे हैं। इस कारोबार को अंजाम देने में देश के बड़े-बड़े सियासतदानों का हाथ होने से कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। मध्य प्रदेश के ज़िला टीकमगढ़ के किसान राजेश का कहना है कि देश में अगर सरकारें किसानों के हित सही मायने सरकार सुधार लाना चाहती हैं, तो ज़िला स्तरीय बीज भण्डारण वालों पर कार्रवाई करें। नक़ली बीज, वो भी महँगे दामों पर बेच रहे हैं। ये लोग न सिर्फ़ किसानों की फ़सल से खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। क्योंकि नक़ली बीजों, नक़ली कीटनाशकों से जो फ़सल पैदा होती है। उस फ़सल से चाहे अन्न पैदा हो या फल उनका सेवन करने वालों को हृदय, लिवर, किडनी समेत कैंसर जैसी तमाम बीमारियाँ पनप रही हैं, जो जानलेवा साबित हो रही हैं। इसी वजह से देश दुनिया में भारतीय कृषि उत्पाद की बिक्री ही कम नहीं हो रही है, बल्कि छवि भी ख़राब हो रही है। लोगों में एक शंका पैदा होती है कि नक़ली खाद और नक़ली बीज से उपजी पैदावार का सेवन लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर सकता है। ज़हरीले खाद्य पदार्थों की पैदावार बढऩे के चलते भारतीय खाद्य पदार्थों का विदेशों में निर्यात भी कम हुआ है।

कृषि विशेषज्ञ विमल कुमार ने बताया कि किसानों के साथ खिलवाड़ का खेल पुराना है, जो कोरोना-काल में और वर्तमान सरकार की अनदेखी के कारण एक भयंकर रूप ले चुका है। अगर सरकार इस नैक्सिस को तोडऩे लगे भी तो सालोंसाल लगेंगे और वे चेहरे सियासी सामने आएँगे, जो मौज़ूदा समय में किसानों के सबसे हिमायती बने हुए हैं।
क्योंकि बीज और कीटनाशक अधिनियम जो बने हैं, वे सब देखने और दिखावे के लिए बने हुए हैं। अगर इन अधिनियमों में व्यापक सुधार व संशोधन न किया गया, तो किसानों को ठगने का सिलसिला जारी रहेगा। क्योंकि अधिनियमों में नक़ली बीज और कीटनाशक के कारोबार के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज होने का प्रावधान होना चाहिए, वो भी क़ानून के तहत। अन्यथा कुछ हासिल नहीं होगा। क्योंकि नक़ली कीटनाशकों के कारोबार में जो लोग संलिप्त हैं, उनकी कम्पनी कहीं है और दवा में पता कहीं का है। इस सारे खेल में दवा का अवैध कारोबार करने वाले सबसेज़्यादा उत्तर प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और गुजरात में हैं। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जो किसानों को दवा के नाम भ्रमित करने वाले ब्राण्ड बेचे जा रहे हैं। उनमें पता कहीं का है तथा फोन नंबर कहीं और का।

खाद्य कंट्रोलर ऑर्डर सबसे दिखावे के साबित हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ के किसानों का कहना है कि सरकार किसी राजनीतिक दल की हो, लेकिन किसानों की समस्या जस-की-तस है। किसानों के जीवन-यापन में रत्ती भर सुधार नहीं हुआ है। सरकारी योजनाएँ और मदद के आँकड़े भले ही सरकार समय-समय पर कुछ ही पेश करें, लेकिन उनसे किसानों का कोई भला नहीं हुआ है।
कृषि विशेषज्ञ डॉ. गजेन्द्र चंद्राकर का कहना है कि देश भर में अपराधियों द्वारा नक़ली कीटनाशकों की बढ़ती मात्रा का उत्पादन, विपणन और बिक्री की जा रही है, जो एक गम्भीर संगठित अपराध है। नक़ली कीटनाशक आपके स्वास्थ्य, आपकी जेब और पर्यावरण के लिए ख़तरा है। इसलिए किसानों को सावधान रहने की ज़रूरत है। जब भी किसान किसानी से सम्बन्धित कोई उत्पाद ख़रीदें, तो पैकेजिंग, लेबल और उत्पाद की जाँच कर लें। अगर कोई नक़ली उत्पाद बेचता दुकानदार पाया जाता है, तो उसकी शिकायत पुलिस व सम्बन्धित विभाग में करें।

डॉ. चंद्राकर का कहना है कि नक़ली बीज और नक़ली कीटनाशक के कारोबार जैसी समस्या को अगर केंद्र और राज्य सरकारें विफल रहती हैं, तो वे अपनी कृषि अर्थ-व्यवस्था, व्यापार और निर्यात को ख़तरे में डाल रही हैं।
किसानों को नक़ली बीज और नक़ली कीटनाशक बेचकर ठगने के मामले पर किसान चंद्रपाल सिंह ने कहा कि मौज़ूदा दौर में तमाम कारोबार मंदी और बंदी के कगार में पहुँच गये हैं। लेकिन नक़ली कीटनाशक दवा और नक़ली बीज बेचने वालों का कारोबार ख़ूब फल-फूल रहा है। नक़ली चीज़ों का कारोबार एक सुनियोजित तरीक़े से फल-फूल रहा है। इसमें सिस्टम के तहत किसानों तक दुकानदारों कैसे किसानी का सामान और दवा को कैसे पहुँचाया जाता है? इस बारे में चंद्रपाल का कहना है कि नक़ली माल पर ब्रांड लेबल लगाकर अच्छी पैकेजिंग साम्रगी और $गैर-स्थानीय भाषा में लेबल के साथ अनुचित पैकेजिंग साम्रगी या अल्पविकसित लेबलिंग के साथ उसे बिना चालान के अनधिकृत डीलरों द्वारा बेचा जाता है। नक़ली और अवैध उत्पादों का न तो परीक्षण किया जाता है और न ही मूल्यांकन किया जाता है, जो अपने आप में सरकारी व्यवस्था को चैलेंज कर अवैध कारोबार को बढ़ावा देता है।

बतातें चलें मल्टीनेशनल कीटनाशक दवा कम्पनियों से जुड़े व्यापारियों का सेन्टर मौज़ूदा समय में गुजरात में है, जो लगभग दो दशकों से पनप रहा है। लेकिन कोरोना-काल में एक विकराल रूप धारण कर चुका है। ‘तहलका’ को बीज की कम्पनी में काम करने वाले अर्जुन पाराशर ने बताया कि जिस प्रकार एलोपैथ और आयुर्वेद डॉक्टरों के पास एम.आर. जाते हैं।

उसी प्रकार किसानों के पास कीटनाशक दवा वाले और बीज वाले जाते हैं और किसानों को प्रलोभन देते हैं। इस खेल में स्थानीय अवैध तरीक़े से कारोबार करने वालों का हाथ होता है, जो अपनी मोटी कमायी के लिए किसानों को ठगने का काम करते हैं। राज्य सरकार के कृषि मंत्रालय में बैठे आला अधिकारियों के दिशा-निर्देश पर सारा काम चलता है। क्योंकि किसानों को ठगने में जो सिस्टम सिलसिलेवार काम कर रहा है। उसमें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों का हाथ है। एक अधिकारी ने बताया कि एक दौर वो था, जब कृषि से पढ़े-लिखे युवाओं को अनपढ़ों की तरह देखा जाता था। लेकिन अब लोगों की सोच बदल रही है, तरीक़े बदल रहे हैं। लोगों ने कृषि को पूरी तरह से कमायी का ज़रिया बना लिया है; चाहे उसमें लोगों को स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक़्क़तें क्यों न हों? वे मल्टीनेशनल कम्पनियों से जुडक़र सोशल मीडिया, बेबसाइट के ज़रिये भ्रामक जानकारी दे रहे हैं, जो पूरी तरह से आपराधिक साज़िश की श्रेणी में आता है।

कृषि अनुसंधान से जुड़े पंकज यादव का कहना है कि जिस प्रकार स्वास्थ्य मंत्रालय कोरोना-काल में डॉक्टरों को मरीज़ों को स्वस्थ करने में लगे हैं। उसी प्रकार कृषि मंत्रालय को अपने कृषि अधिकारियों के साथ मिलकर किसान और किसानी के सुधार के लिए काम करना चाहिए। अन्यथा एक दिन वो आने वाला है, जब देश में नक़ली बीज, नक़ली कीटनाशकों के चलते लोगों को कई नयी बीमारियों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि जो संस्थाएँ कृषि में सुधार में लगी हैं, वो सियासी अखाड़े में तब्दील होती जा रही हैं। अगर कोई किसान या उपभोक्ता सुधार केंद्रों पर शिकायत करता है, तो उस शिकायती को राजनीति से प्रेरित माना जाता है।