देशभक्ति की नयी व्याख्या करती तिरंगा यात्रा

भाजपा को उसी के हथकंडों से चुनौती दे रही आम आदमी पार्टी

उत्तर प्रदेश में विधनसभा चुनाव में अब जब केवल छ: महीने ही बचे हैं, आम आदमी पार्टी (आप) ने अपनी तिरंगा यात्रा के ज़रिये चुनाव प्रचार का बिगुल बजा दिया है। आगरा, नोएडा और अयोध्या के बाद अब पार्टी नेता और कार्यकर्ता राज्य के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में तिरंगा लेकर जाएँगे और लोगों को देशभक्ति के मायने समझाएँगे।

आमतौर पर देशभक्ति के मायने होते हैं- देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर देना। उसके गौरव की हर क़ीमत पर रक्षा करना। जान चली जाए, पर तिरंगा झुकने न पाए। उसमें सब कुछ तिरंगे के लिए होता है। मगर आम आदमी पार्टी की देशभक्ति में सब कुछ तिरंगे के नीचे रह रहे लोगों के लिए है। बच्चों, महिलाओं, बुजुर्ग और युवाओं- सबका विकास ही उसके लिए देशभक्ति है। इनकी शिक्षा, इनका स्वास्थ्य, बिजली-पानी जैसी ज़रूरी सुविधाएँ इन तक पहुँचाना ही उसकी देशभक्ति है।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ चुनावों का केंद्र लोग नहीं, बल्कि उनकी जाति और धर्म रहता है; आम आदमी पार्टी ने इसे बदलते हुए आमजन को केंद्र में रखकर देशभक्ति के माध्यम से अपने विकास के एजेंडे को लोगों के गले उतारने का अपना तरीक़ा निकाला है।

शायद पार्टी अध्यक्ष केजरीवाल जानते हैं कि जाति और धर्म के आधार पर उनके लिए इस राज्य में अपना खाता खोल पाना सम्भव नहीं होगा। वैसे भी यहाँ मुख्य मक़सद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देना है; जो देशभक्ति, हिन्दुत्व और राम पर अपना विशेषाधिकार मानती है। उसके इस अधिकार-अहम को चुनौती देने के लिए ही अयोध्या में तिरंगा यात्रा और रामलला के आशीर्वाद से प्रचार की शुरुआत की गयी। अब विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में तिरंगा यात्रा करते हुए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता लोगों को देशभक्ति के मायने समझाने का प्रयास करेंगे। इसमें भाजपा के राष्ट्रवाद और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रवाद के बीच के अन्तर को भी लोगों के सामने खोलकर रखा जाएगा।

आगरा और नोएडा में तिरंगा यात्रा निकालते हुए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पार्टी सांसद व उत्तर प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह ने लोगों को समझाया कि उनके लिए देशभक्ति व राष्ट्रवाद क्या है? संजय सिंह ने कहा कि ‘तिरंगे के नीचे खड़ा हर ग़रीब बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ सके। दिल्ली की तरह उत्तर प्रदेश में भी हर गाँव में मोहल्ला क्लीनिक बन सके। हर ग़रीब के घर में बिजली हो और 300 यूनिट तक उसे नि:शुल्क मिल सके। हर घर को पानी मिले। उनके लिए यही देशभक्ति है। यही राष्ट्रवाद है।’

उन्होंने आगे कहा-‘अब आम आदमी पार्टी ईमानदारी और शिक्षा के माध्यम से हर गाँव में विकास की राजनीति को लेकर जाएगी। पूरे उत्तर प्रदेश में तिरंगा यात्रा निकलेगी और पार्टी के कार्यकर्ता हर जगह संकल्प लेंगे कि इस तिरंगे के नीचे रह रहे बच्चे, महिलाएँ, बुज़ुर्ग, युवा और किसान अपने अधिकारों से वंचित न रहें।’

आम आदमी पार्टी की देशभक्ति की परिभाषा में केवल लोग ही नहीं, संविधान भी हैं। बीते 15 अगस्त (आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ) पर दिल्ली के स्कूलों में लागू किये गये ‘देशभक्ति पाठ्यक्रम’ में बच्चों को संविधान के स्वतंत्रता, समानता व भ्रातृत्व जैसे मूल्यों की जानकारी देते हुए उनका आदर करना और उन्हें रोज़मर्रा के व्यवहार में उतारना सिखाया जाएगा। इसके साथ ही बच्चों और युवकों को सिखाया जाएगा कि कैसे वे आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर, सामाजिक और परम्परागत सोच से परे वैज्ञानिक व व्यावसायिक सोच वाले बन सकते हैं।

इसे देखकर लगता है कि अपनी देशभक्ति की इस परिभाषा से, जिसमें आमजन व संविधान सर्वोपरि है; आम आदमी पार्टी ने बड़ी आसानी से भाजपा के हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद से अपने को पूरी तरह से अलग कर लिया है। वह युवकों की ऐसी पीढ़ी भी तैयार करने जा रही है, जिसमें किसी की भी देशभक्ति को उसके धर्म या फिर जन-गण-मण गाने या नहीं गाने से नहीं नापा जाएगा।

दिल्ली से बाहर अपने पैर पसारने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी की इस तिरंगा यात्रा के तीन राजनीतिक तत्त्व दिखायी देते हैं। पहला विकास, दूसरा देशभक्ति और तीसरा धर्म। दिल्ली के सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार भले ही ख़त्म न हुआ हो, पर शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में अतुलनीय सुधार और ग़रीबों को बिजली व पानी जैसी सुविधाओं का नि:शुल्क वितरण अभी तक केजरीवाल की पार्टी का लोकतांत्रिक राजनीति व प्रशासन का मुख्य आधार रहा है। इसी के बल पर वह दिल्ली में दो बार भारतीय जनता पार्टी के आक्रामक प्रचार का सामना कर उसे पछाडऩे में कामयाब हो सकी।

गोवा, उत्तराखण्ड, पंजाब सभी राज्यों में पार्टी प्रमुख केजरीवाल ने मुफ़्त या फिर सस्ती बिजली के वादे से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। अब जब आम आदमी पार्टी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, गुजरात और उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव लडऩे जा रही है, तब उसने अपने इन्हीं विकास कार्यों को देशभक्ति का नाम दे दिया है। उसके अनुसार, ‘व्यापक जनहित आधारित विकास की सोच, नीतियों व प्रशासन के साथ चलना ही देशभक्ति है। तिरंगा को उसने शहीदों के सम्मान का प्रतीक बनाया है और हिन्दुओं के पर्व त्यौहार व राम सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा को अपनी सत्तात्मक चुनावी राजनीति का आधार। इन तीनों पर अपने राष्ट्रवाद की नींव खड़ी करके उसने भाजपा के हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद की हवा निकालने की रणनीति बनायी है।

अफ़ग़ानिस्तानमें तालिबान के राज के बाद भारत में भाजपा के राष्ट्रवाद के फैलाव को रोक पाना किसी के लिए भी अब ज़्यादा सम्भव नहीं हो पाएगा। ऐसे में सुसाशन और विकास के ताने-बाने से बुना जा रहा आम आदमी पार्टी का राष्ट्रवाद लोगों को कितना आकर्षित कर पाएगा, इसकी परीक्षा दिल्ली से बाहर अभी होनी है। उसी से यह भी तय हो पाएगा कि तिरंगा यात्राओं के साथ लोगों के दिलों में उभारी जाने वाली सुशासन और विकास की देशभक्ति का रंग कितना गहरा है। दूसरा, आज जबकि बहुलवादी राजनीति समय की माँग है, उसके द्वारा की जा रही बहुसंख्यक राजनीति का पासा सीधा भी पड़ सकता है और उल्टा भी।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलना कितना ज़रूरी है, यह भाजपा को भी समझ आ गया है। ऐसे ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत बार-बार मुसलमानों के क़रीब जाते नहीं दिख रहे हैं। उन्हें यह भी समझ आ गया है कि सत्ता के शीर्ष पर बने रहना है, तो समन्वयवादी राजनीति पर चलते हुए दिखना ज़रूरी है।

ऐसा नहीं कि केजरीवाल इस तथ्य से वाक़िफ़ नहीं हैं। फिर भी अगर भाजपा शासित राज्यों में वह हिन्दुओं की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाओं के इर्द-गिर्द अपनी चुनावी रणनीति का एक आधार खड़ा कर रहे हैं, तो सम्भवत: इसलिए कि उन्हें लगता है कि इससे धर्म के नाम पर भाजपा को मिलने वाले हिन्दु-मतों में सेंध लगाना क़ाफ़ी आसान हो जाएगा। सम्भवत: इससे आगे चलकर बहुसंख्यक-मतों पर भाजपा के एकाधिकार को ख़त्म करने में भी आसानी हो। ऐसे में बहुसंख्यकवाद आम आदमी पार्टी की सत्तात्मक राजनीति की मजबूरी या फिर रणनीति या दोनों ही हो सकती हैं। मगर उसे लम्बी पारी खेलनी है तो कांग्रेस से ख़ाली होती जगह को भरते हुए समन्वयात्मक राजनीति को ही अंतत: अपना आधार बनाकर चलना होगा।

(लेखिका वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)