देवघर रोपवे हादसा

सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी?

यह एक सच्चाई है कि हादसों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ज़्यादातर हादसे किसी की ग़लती या लापरवाही या कमी के चलते होते हैं। देवघर (त्रिकूट) रोपवे हादसे के बाद ये सभी बातें सामने आ रही हैं। अभी तक जो तथ्य सामने आये हैं उनमें अधिक कमायी का लालच, तकनीकी ख़राबी, लापरवाही, अनदेखी सभी बातें प्रथम दृष्टया नज़र आ रही हैं। अहम सवाल यह उठता है कि आख़िर हादसे के लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या ज़िम्मेदारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी? क्या तीन मृतकों को न्याय मिल सकेगा? क्या 48 घंटे ज़िन्दगी और मौत के बीच हवा में झूले 76 लोगों को राहत मिलेगी? ये बातें अभी भविष्य के गर्भ में है। फ़िलहाल सरकार ने जाँच समिति बना दी है, जिसे दो महीने में रिपोर्ट देनी है, तो उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से हादसे पर रिपोर्ट माँगी है। इन सबके बीच एक सुखद बात यह रही कि जिस तरह से आपदा के समय एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, प्रशासन और स्थानीय लोगों ने क़ाबिल-ए-तारीफ़ काम किया, जिसकी सराहना राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हुई।

अनूठा है देवघर रोपवे

देवघर से 20 किलोमीटर दूरी पर देवघर-दुमका रोड पर मोहनपुर ब्लॉक में स्थित त्रिकूट पर्वत का रोपवे रोमांचक पर्यटन स्थलों में माना जाता है। यहाँ ट्रैकिंग, रोपवे और वाइल्ड लाइफ टूरिज्म के लिए लोग आते हैं। इस रोपवे की सबसे ऊँची चोटी समुद्र तल से 2,470 फीट ऊँची है। ज़मीन से लगभग 1,500 फीट की ऊँचाई तक पर्यटक जा सकते हैं। त्रिकूट पहाड़ की तीन चोटियों में से केवल दो को ही ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है। तीसरी चोटी अत्यधिक खड़ी ढलानों के कारण दुर्गम है। त्रिकूट पहाड़ में रोपवे (केबल कार) देवघर का प्रमुख पर्यटक केंद्र है। त्रिकूट पहाड़ की तलहटी मयूराक्षी नदी से घिरी हुई है। इस रोपवे में पर्यटकों के लिए कुल 25 केबिन उपलब्ध हैं, जिसमें प्रत्येक केबिन में चार लोग बैठ सकते हैं। रोपवे की क्षमता 500 लोग प्रति घंटे है। रोपवे की लम्बाई लगभग 766 मीटर (2,512 फीट) है। चोटी तक पहुँचने के लिए केवल आठ से 10 मिनट लगते हैं और इसका टिकट 130 रुपये है। रोपवे का समय नियमित रूप से सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक है। तेज़ हवा या ख़राब मौसम में रोपवे को बन्द करने का प्रावधान है। देवघर रोपवे हादसा 10 अप्रैल को शाम लगभग 4:30 बजे हुआ। हादसे के समय रोपवे में 76 यात्री सवार थे। रोपवे की दो ट्रालियाँ तार पर झूलकर  पहाड़ से टकरा गयीं, जिससे एक महिला की तुरन्त मौत हो गयी। स्थानीय प्रशासन और वहाँ के लोगों ने किसी तरह कम ऊँचाई पर फँसे 30 लोगों को निकाला। बाक़ी 46 लोगों को एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस ने हेलीकॉप्टर से 12 अप्रैल की दोपहर तक निकाला। इस दौरान एक महिला और एक पुरुष की बचाव (रेस्क्यू) करते समय हाथ फिसलने से मौत हो गयी। यानी 76 में से 73 लोग बचाये जा सके।

 रोंगटे खड़े करने वाली घटना

त्रिकूट रोपवे में सवार बूढ़े, जवान, महिला और बच्चे सभी थे। हज़ारों फीट ऊपर हवा में ज़िन्दगी और मौत के बीच भूखे-प्यासे लोगों की तीन दिन साँसें अटकी रहीं। उनके पास भगवान का नाम लेने और बचाव का इंतज़ार करने के अलावा कुछ भी नहीं था। सो नहीं सके। अगर ग़लती से झपकी भी आती, तो नीचे गिर सकते थे। उनके परिजन लगातार तनाव में रहे। स्थानीय लोगों ने बचाव के साथ-साथ फँसे हुए लोगों को रस्सी के ज़रिये खाना और पानी पहुँचाया। ड्रोन की मदद भी ली गयी। कई लोगों ने प्यास बुझाने के लिए बोतल में मूत्र तक जमा किया।

 बचाव कार्य की हुई तारीफ़

बचाव कार्य (रेस्क्यू ऑपरेशन) वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत तमाम लोगों ने बचाव कार्य में शामिल एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस और प्रशासन की टीम की तारीफ़ की। स्थानीय लोगों की मदद के लिए साधुवाद किया। राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपये का मुआवज़ा दिया है। रोपवे संचालन करने वाली कम्पनी ने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये देने को कहा है। रोपवे के एक स्टाफ पन्नालाल पंजियारा ने ट्रॉलियों में फँसे 22 पर्यटकों को बचाया। उनकी सराहना हर ओर हुई। राज्य सरकार की ओर से पन्नालाल को एक लाख रुपये प्रोत्साहन राशि दी गयी। प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बातचीत की।

 कमियों की अनदेखी

रोपवे हादसे के बाद कई तथ्य सामने आये हैं, जिनसे पता चलता है कि अगर अनदेखी नहीं की जाती, तो हादसे को टाला जा सकता था। सूत्रों के मुताबिक, त्रिकूट रोपवे के निर्माण के समय वर्ष 2009 में गठित तकनीकी दल (टैक्निक टीम) ने रोपवे प्रोजेक्ट की वाइबिलिटी (क्षमता) पर सवाल उठाये थे। सदस्यों ने माना था कि रोपवे की केबल ट्रॉली में कम्पन ज़्यादा है। टीम में बीआईटी मेसरा के मैकेनिकल विभाग के प्रोफेसर भी शामिल थे। जाँच में टीम ने पाया था कि ऊपरी हिस्से में जहाँ खड़ी चढ़ाई है, वहाँ केबल तार में कम्पन ज़्यादा हो जाती है। इस वजह से ट्रॉली असन्तुलित हो जाती है। ट्रॉली ऊपर जाने के बाद हिलने-डुलने लगती है। इन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया।

राज्य सरकार की पूर्व वित्त सचिव राजबाला वर्मा ने तत्कालीन पर्यटन सचिव अरुण कुमार सिंह को पर्यटन स्थल के विकास सम्बन्धित पत्र लिखा था। इसमें राजबाला वर्मा ने कहा था कि पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए आवंटित पैसों का सदुपयोग नहीं हुआ है। जिन पर्यटन स्थलों को विकसित किये जाने के लिए पैसे रिलीज हुए उनमें देवघर की रोपवे सर्विस सेवा भी शामिल थी। इसमें पैसों की भारी वित्तीय अनियमितता हुई। मामले की एसीबी से जाँच होनी चाहिए। अभी हाल में रोपवे की फिटनेस रिपोर्ट दी गयी थी। धनबाद स्थित सीएसआईआर की प्रयोगशाला सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (सिंफर) ने 22 मार्च को रोपवे को फिट करार दिया था। इसके 17 दिन बाद ही हादसा हो गया। लिहाज़ा फिटनेस रिपोर्ट पर सवालिया निशान लग रहे हैं। रोपवे संचालन की ज़िम्मेदारी दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि कम्पनी सुरक्षा मानकों को अनदेखी करती है। भीड़ बढऩे पर ट्रॉली में क्षमता से अधिक लोगों को बैठाया गया था।

 निष्पक्ष जाँच ज़रूरी

रोपवे हादसे पर झारखण्ड उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर रिपोर्ट माँगी है। राज्य सरकार ने भी वित्त विभाग के प्रधान सचिव के नेतृत्व में चार सदस्यीय जाँच समिति बनायी है। इसलिए हादसे की जाँच तो होगी ही, पर जाँच में लीपापोती न हो और दोषियों को सज़ा मिले यह ज़रूरी है। यह भविष्य के लिए मददगार साबित होगी। क्योंकि हादसे के बाद अब तक जो तथ्य सामने आये हैं, वो तो कम-से-कम यही दिखा रहे हैं कि हादसा लापरवाही और अनदेखी का नतीजा है। अगर रिपोर्ट सही आएगा, तो भविष्य में सुधार किया जा सकेगा। दोषियों को सज़ा मिलेगी, तो भविष्य में सम्बन्धित विभाग और कम्पनी इस तरह की लापरवाही करने से डरेंगे। इसलिए हादसे के लिए ज़िम्मेदार कौन है, यह तय किया जाना ज़रूरी है। जिससे भविष्य में ऐसे हादसों को सम्भवत: रोका जा सके।

 

देश में प्रमुख रोपवे

 भेड़ाघाट रोपवे, जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ग्लेनमोर्गन रोपवे, ऊटी, तमिलनाडु

 स्काईव्यू पटनीटॉप, जम्मू-कश्मीर

 गुलमर्ग गोंडोला केबल कार, जम्मू-कश्मीर

 मलमपुझा उडऩ खटोला, केरल

 संगीत घाटी केबल कार, दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल

 राजगीर रोपवे, बिहार

 आउली केबल कार, उत्तराखण्ड

 गन हिल केबल कार, मसूरी, उत्तराखण्ड

 महाकाली रोपवे, गुजरात

 सोलांग रोपवे, मनाली, हिमाचल प्रदेश

 गंगटोक रोपवे, सिक्किम

 द्रवि केबल विद बैंक रोपवे, सिक्किम

 गुवाहाटी पैसेंजर रोपवे, असम