दुग्ध क्रांति का कड़वा सच

यह आज़ाद भारत में 1970 का साल था। देश में डेरी विकास के आंदोलन चल रहे थे। डेरी उद्योग देश में आर्थिक तौर पर भी विकसित होने की प्रक्रिया में था। यह को ऑपरेटिव (सहकारिता) का रूप ले रहा था। साथ ही यह कोशिश हो रही थी कि बिना मिलावट के दूध और दुग्ध उत्पाद जनता तक पहुंचे। लेकिन जो उम्मीद थी वह क्या पूरी हुई? सफेद क्रांति का स्याह पहल क्या है इसकी पड़ताल कर रहे हैं सुमन और वाइके कालिया।

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडडर््स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की ओर से पहली बार आए सर्वे से यह बात साफ हुई है कि दूध के 70 फीसद नमूनों से यह बात साबित हुई है पूरे देश में दूध की गुणवता के जो निर्धारित मानक है उन पर हम कहीं नहीं है। फेडरेेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन आरगेनाइजेशन (एफआईएमीओ) के आंकड़े बताते हैं कि जो लोग दूध नियमित पीते है उसमें हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर और कई और रोग हो रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देश के दस ऐसे प्रदेश जहां दूध सबसे ज्य़ादा होता हैं और जिनके 451 दूध उत्पादन कें द्र हैं। इन पर केंद्र और राज्य सरकारों को दूध उत्पादन करने वाली डेरियों पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। एफआईएपीओ की जांच रपट से पता चलता है कि इन डेरियों में किस तरह का गाय का रख-रखाव है। ये गांए अपनी प्राकृतिक ज़रूरतें भी नहीं पूरी कर पातीं। मसलन गाय अपनी बछियों से प्यार और दुलार नहीं पाती। इन्हेें तो दूध देने वाली मशीनों की तुलना में कहीं बदतर तरीके से रखा जाता है। उनके शरीर के साथ गलत बर्ताव होता है। उन्हें दूध देने के लिए बछड़े बछिया जन ने के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। फिर ढेरों एंटीबायोटिक्स और हारमोसे दिए जाते हैं। इस से ज्य़ादा से ज्य़ादा दूध दे सके। जब गायों को इस बुरी हालत में रखा जाएगा तो बछिया तो कमजोर पैदा होती रहेगी। ऐसी गायों को दिल के रोग, डायबिटीज, कैंसर और कई दूसरी बीमारियां जकड़ लेती है जो नियमित दूध पीने वालों को भी मिलती हैं।

दूध की सुरक्षा

डेरी उद्योग में पशुओं की अनिमयित देखरेख से दूध की सुरक्षा पर ज़रूर ऐसे सवाल उठते हैं जो इन डेरी में जुड़ते हैं। पशुओं को उनके बछड़ों से अलग रखा जाता है। जो बछड़े होते हैं उनको 25 फीसदी की तो पहले सप्ताह में ही मौत हो जाती है। इन्हें पशु चिकित्सक को दिखाया भी नहीं जाता और अवैध तौर पर मिली दवाओं के जरिए 50 फीसदी डेरी में दूध निकाला जाता है। जो जानवर दूध नहीं दे पाते उन्हें आर्थिक तौर पर कमजोर किसानों के सिपुर्द कर दिया जाता हैं। वे चाहें तो उन्हें निजी प्रयोग में लें या कसाई घरों में बेच दें। दोनों ही स्थितियों में कोई खास कमाई नहीं होती। दूध में मिलावट की जो तस्वीर हमें मिली वह तो दिल दहला देने वाली है। खास तौर पर द्रव्य दूध में खासी मिलावट मिलती है। एक तो हमारे देश में दूध के रख रखाव के दौरान हाइजिन और सैनीटेशन का ध्यान नहीं रखा जाता इसलिए पैकेजिंग के दौरान मिल्क में डिटरजेंट का इस्तेमाल होता है। सर्वे रपट के अनुसार ऐसे दूध का उपयोग जिसमें डिटरजेंट होता है वह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होता है। दूध के आठ फीसद नमूनों में डिटरजेंट मिला। मिलावट की दूसरी जो अन्य वस्तुएं दूध में मिली उनमें हैं ग्लूकोज, यूरिया, स्टार्च और फारपेलिन। मिलावटी दूध के 179 नमूने मिले।

पानी एक ऐसा द्रव्य पदार्थ है जो दूध में आमतौर पर मिलाया ही जाता है। यह दूध की पोषकता कम करता है। उससे उपभोक्ता को समस्या होती है। पांच केंद्र शासित राज्यों और 28 राज्यों से मंगाए ब्यौरे में ही बताते हैं कि इनमें सबसे खराब राज्य हैं बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, उत्तराखंड और दमन व वयू। इनमें आहार में शुद्धता का दावा 100 फीसद तो था लेकिन वह सही नहंी। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि मांग ज्य़ादा है और सप्लाई कम। फिर जो 250 नमूने पूर्वी राज्यों मे लिए गए उनमें गोवा और पुडूचेरी में तो 100 फीसद मिलावट थी। तकरीबन 70 फीसद नमूनों में तो दूध के मानकों की खासी अनदेखी थी। करीब 46 फीसद ‘सॉलिड नॉट फै टÓ (एसएनएफ) तो निहायत कम था। और इसकी बजाए दूध में पानी की खासी मिलावट थी। कहा जाता है कि दूध में जितनी ज्य़ादा मिलावट होती है उतना ही ज्य़ादा आमदनी होती है। स्किमड मिल्क यानी मक्खन निकाले हुए दूध से परिणाम बढ़ाया जाता है दूध का इसमें ग्लूकोज डाला जाता है। इस सर्वे में यह भी जानकारी हुई कि दूध में न्यूट्रिलाइनर्स, एकिडिटी हाईड्रोजन पेरोक्साइड, चीनी, स्टार्च, नमक, डिटर्जेंट, पारमेलिन और वेजेटेबल साल्ट का इस्तेमाल आमतौर पर किया ही जाता है। अध्ययन से पता चलता है कि नमक, डिटर्जेंट और फार्मेलिम, ग्लूकोज से दूध में गाढ़ापन, और चिपचिपापन बढ़ता है। वहीं स्टार्च से दूध की जमना तक बंद हो जाता है। दूसरे जो सिंथेटिक कंपाउंड दूध में मिलाए जाते हैं उनसे दिल संबंधी बीमारियों कैंसर और मौत तक संभव है।

पंजाब का भी हाल बुरा

एक जमाना था जब भारत में दूध उत्पादनक राज्यों में 36 मिलियन लीटर दूध रोज उत्पादित होता था और प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता प्रतिदिन 1,035 मिलीलीटर होती थी। यानी 60 फीसद दूध और दूग्ध उत्पादन के नमूने अब मिलावट के मिलते हैं। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के कमिश्नर केएस पन्नू और तंदुरु स्त पंजाब मिशन के निदेशक ने एक व्यापक मुहिम मिलावट के खिलाफ चला रही है। उन्होंने इस को सही माना कि राज्य में अब दूध और दूध उत्पादन मिलावटी माने जाते हैं। एक बड़ी तादाद में पंजाब में ऐसी इकाइयां हैं जो गुणवत्ताहीन है, गलत ब्रांड बना कर मिलावटी दूध और उत्पाद बेच रही हैं। अब तक 1,424 नमूने पकड़े गए इनमें 60 फीसद तो गुणवत्ता जांच में नाकाम रहे। उन्होंने कहा कि गैर मिलावटी आहार, खास तौर पर दूध और दूध के उत्पाद तंदुरूस्त पंजाब मिशन के मुख्य हिस्से हैं। शुद्ध आहार, हर नागरिक का अधिकार है।

पंजाब सरकार कानून की समीक्षा कर रही है। कानून के सभी पहुलुओं का आकलन करके कायदे कानून न मानने वालों पर कार्रवाई होगी। यह पूरा मामला केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। यहां 150 मिलियन टन उत्पादन होता है। दुनिया में दूध उत्पादन करने वाले देशों में भारत 1997 से ही नंबर एक है। भारत ने 2014 में पूरे यूरोपीय संघ को परास्त किया। देशों के हिसाब से भारत के बाद अमेरिका में दूध का सबसे ज्य़ादा उत्पादन होता है। चीन तीसरे स्थान पर है।