दिल्ली में डिप्थीरिया का कहर अब तक 20 बच्चे मरे

राजधानी दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में कथित लापरवाही के कारण आये दिन मरीजों की मौत के मामले सामने आते रहते हंै पर किसी न किसी कारण ये मामले दबते रहते हंै। पर जब मरीज़ों के मरने-खपने के मामले लगातार बढ़ते हैं और उनके परिजनों के चीखने और चिल्लाने की आवाजें गूंजने लगती हैं तब सरकार और डाक्टर हरकत में आते हैं। ये लोग अपनी जिम्मेदारीं से पल्ला झाडऩे में भी देरी नहीं करते है और मरीज़ों की मौत के लिए अभिभावकों की लापरवाही और जागरूकता का अभाव बताते हंै और मरीज की मौत के लिये कहते हैं अस्पताल में ही मरीज देर से आया है उसकी हालत ज़्यादा खराब थी इसलिए मरीज को बचाया नहीं जा सका।

इस समय दिल्ली -एनसीआर में डिप्थीरिया बीमारी यानी गलाघोंटू के कारण लोगों में भय है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में 20 दिनों में 20 मरीज़ों के मरने के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में हड़कंप मचा हुआ है। आलम यह है कि मरीज़ों के परिजनों की कोई सुनने वाला नहीं है। डाक्टर अपनी जि़म्मेदारी से बचने के लिये सीधे तौर पर मरीजों के परिजनों को खरी खोटी सुनाने में लगे हुए हंै ।

डिप्थीरिया से मरने वालों का सिलसिला लगातार जारी है पर राजनीतिक दलों के नेता अपने -अपने अंदाज में बयान देने में लगे हंै दिल्ली नगर निगम के महर्षि अस्पाल में मौतें होने के कारण ‘आप’ और कांग्रेस पार्टी सीधे तौर अस्पताल प्रशासन और भाजपा को जि़म्मेदार ठहरा रही है। जबकि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर आदेश गुप्ता ने जांच कमेटी गठित कर जो भी इस माले में दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है और अस्पताल का दौरा कर अस्पताल में भर्ती मरीजों को बेहत्तर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा किया है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ सुनील कुमार गुप्ता का कहना है कि डिप्थीरिया को लेकर अभी तक 100 मरीज दिल्ली और दिल्ली के बाहर भर्ती हुए हंै जिसमें सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के बच्चे हंै। उन्होंने बताया कि दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों से भी मरीज भर्ती हुए हंै। इस मामले में सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि जब भर्ती बच्चों की मौतें छह सितम्बर से होने लगी थी तब तो अस्पताल में दवा और इंजेक्शन थे फिर अचानक जब मौतों की संख्या बढऩे लगी थी तब अस्पताल प्रशासन और डाक्टरों ने सुविधाओं का अभाव और बच्चों के अभिभावकों को लापरवाही को जि़म्मेदर ठहराना शुरू कर दिया । इलाज करा रहे बच्चों के परिजनों और उनके रिश्तेदार मनीष और जुगल ने बताया कि डाक्टर को भगवान माना जाता है पर उनके साथ जो व्यवहार डाक्टरों ने किया है उन्हें भगवान ही सबक सिखायेगा।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिल बंसल ने बताया कि इस मामले में सीधे तौर पर अस्पताल प्रशासन जि़म्मेदार है। इस सारे मामले की जांच होनी चाहिये ताकि डाक्टरों की लापरवाही सामने आ सके। कसौली स्थित सीआरआई में जब एंटी डिप्थीरिया सीरम के 200 से अधिक वाइल तैयार होने का दावा किया जा रहा है तो वहां से क्यों नहीं मंगवाया गया। इससे बच्चों की जान बच सकती थी। यह एक गंभीर चूक है। इस मामले की जांच होने से सारा मामला साफ जायेगा और आने वाले समय में बच्चों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सकेगा।

इस समय अस्पताल प्रशासन और सीआरआई सीरम मामलें को लेकर आमने-सामने है सीआरआई के डायरेक्टर डॉ अजय कुमार ने बताया कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में सीरम वाइल तैयार है और उनके यहां सीरम बनने का काम कभी भी बंद नहीं हुआ है बल्कि उन्होंने ,खुद महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में सीरम उठाने की बात की थी पर अस्पताल से सीरम उठाने कोई आया ही नहीं।

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ सुनील गुप्ता का कहना है कि सीरम कसौली में बनना बंद है इसलिए अस्पताल को सीरम की आपूर्ति नहीं हो सकी इसके कारण बच्चों की मौत हो गयी। फिलहाल जो भी हो ये स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सेवाओं और इलाज के नाम पर सीआरआई और अस्पताल प्रबंधन कितना उदासीन और लापरवाह है जिसका खमियाजा गरीब बच्चों को अपनी जि़न्दगी देकर चुकाना पड़़ रहा हैं। इस मामले में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन का कहना है कि एन्टी डिप्थीरिया सीरम बाजार में उपलब्ध है पर दिल्ली नगर निगम सहायता मांगे तो वे मदद कर सकते हैं।

अस्पताल प्रशासन से जुड़े एक डाक्टर का कहना है कि बाजार से लाए गये सीरम के प्रयोग पर पाबंदी है। ऐसे में बाजारों से लिए गए सीरम का प्रयोग भी नहीं कर सकते हैं।

सीरम को लेकर दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों के डाक्टरों का कहना है कि गलाघोटंू बीमारी को लेकर जो लापरवाही सामने आयी है उससे तो जगजाहिर है जब कसौली सीआरआई केन्द्र में सीरम उपलब्ध होने का दावा किया जा रहा है तो ऐसे में कोई न कोई तो षडय़ंत्र की बात है चाहे वह निजी कंपनियों को लाभ पहुचाने की बात है शायद सीरम को एक दवा कंपनी अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहती है। बताया जाता है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य कमेटी की गाइड लाइन्स के मुताबिक महर्षि अस्पताल में बाजार के सीरम पर रोक है।

दिल्ली ही नहीं पूरे देश में पूर्ववर्ती सरकार पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप और मेडिकल टूरिज्म को लेकर सक्रिय रही है और वर्तमान सरकार आम जनमानस तक बेहत्तर स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने का वादा ही नहीं कर रही है बल्कि प्रयास कर रही है हर रोज़ स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर करने के लिये आधुनिक स्वास्थ्य उपकरण भी मुहैया करा रही पर जहां सिस्टम में ऐसी क्या कमी रह जाती है कि हम सब वहीं खड़े हंै जहां दो दशक पहले थे।