दिल्ली की तर्ज पर बचाया जाए देश का पर्यावरण

पेड़ काटने की जगह हों स्थानांतरित, भारत में प्रति व्यक्ति बहुत कम हैं पेड़

मुंबई की आरे कॉलोनी में पिछली सरकार की सहमति से ढाई हज़ार पेड़ों की कटाई शुरू हुई थी, जिसका वहाँ के लोगों ने विकट विरोध किया था। पुलिस ने विरोध करने वाले लोगों पर लाठियाँ भी बरसायी थीं। यह सब पिछली सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट के लिए किया गया था। अब जब आरे कॉलोनी के 2141 यानी 98 फीसदी पेड़ कट चुके हैं, तब मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट आरे कॉलोनी से कांजुर मार्ग पर शिफ्ट कर दिया गया है। इतना ही नहीं, अब प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज केस भी वापस होंगे। हालाँकि यह वर्तमान त्रिकोणीय सरकार ने किया है।

यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है कि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई की आरे कॉलोनी में जब पिछली भाजपा सरकार में इन पेड़ों को काटने का आदेश पारित हुआ, तब कॉलोनी के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया; जिसके एवज़ में उन पर उलटी लाठियाँ पड़ीं, उनमें से कई को गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये गये। मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट के लिए यहाँ पूरे दो हज़ार पाँच सौ पेड़ों को काटे जाने की अनुमति दी गयी थी; जो कि पर्यावरण के लिहाज़ से पूरी तरह गैर-कानूनी काम था। लेकिन आजकल की यह रीति बन गयी है कि अब सत्ता में बैठे लोग अपनी ताकत के नशे में बड़ी आसानी से अवैध को वैध और वैध को अवैध ठहरा देते हैं और उनको कोई भी कानून नहीं रोक पाता। अगर जनता इसका विरोध भी करती है, तो उसे पिटाई, जेल और मुकदमों के झंझट के सिवाय कुछ नहीं मिलता। हाल ही में तीन नये कृषि कानूनों को लागू करने के मामले में केंद्र सरकार और हाथरस कांड में उत्तर प्रदेश शासन-प्रशासन की मनमानी इसके दो सबसे ताज़ा उदाहरण हैं। आरे कॉलोनी में भी यही हुआ, वहाँ भी अब से ठीक एक साल पहले अक्टूबर के महीने में पुलिस ने पेड़ काटने के खिलाफ विरोध कर रहे करीब 200 प्रदर्शनकारियों पर डंडे बरसाये और उन्हें हिरासत में लेकर उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये। इसके अलावा बाहरी लोग वहाँ न आ सकें, इसके लिए आरे कॉलोनी में आने वाले सभी रास्ते बन्द करके वहाँ के पूरे इलाके में धारा-144 लगा दी थी। सवाल यह है कि क्या यह पर्यावरण के लिहाज़ से ठीक था? जो जुर्म करें, वही बेकुसूरों पर लाठियाँ बरसाएँ, यह कहाँ का और कौन-सा कानून है?

इसका मतलब साफ है कि कानून से ऊपर अब ताकत का स्थान है। वैसे उस समय कि खबरों और सूचनाओं की मानें, तो फणनवीस सरकार पर आरोप लगे थे कि यह सब कुछ वह कुछ माफिया की मिलीभगत से कर रही है। हैरत की बात यह थी कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने मेट्रो डिपो बनाने के लिए पेड़ों की कटाई रोकने सम्बन्धी याचिकाएँ खारिज कर दी थीं। यानी कानून भी सत्तासीनों के हाथ की कठपुतली बन जाता है। अब जब वहाँ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं और कांग्रेस, शिवसेना तथा शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की त्रिकोणीय सरकार है; आरोपी बनाये गये सभी प्रदर्शनकारियों पर से मुकदमे वापस होंगे और मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट कांजुर मार्ग पर शिफ्ट कर दिया गया है। इस पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने प्रतिक्रिया दी है कि इसका मतलब प्रोजेक्ट जल्दी पूरा नहीं होगा। इस पर वह ट्रोल हो रहे हैं।

वैसे जब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार बनी थी, तभी उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिन बाद हरित कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की घोषणा की थी; जिसे केबिनेट ने अब मंज़ूरी दी है। इतना ही नहीं, शपथ ग्रहण के दूसरे दिन ठाकरे ने आरे में बनने वाले मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी।

ट्री ट्रांसप्लांटेशन पॉलिसी पास करने वाला पहला राज्य बना दिल्ली

हाल ही में दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में ट्री ट्रांसप्लांटेशन (पेड़ स्थानांतरण) की पॉलिसी को मंज़ूरी मिल चुकी है। इससे दिल्ली अब ट्री ट्रांसप्लांटेशन पॉलिसी को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पॉलिसी के बारे में बताया कि ट्री ट्रांसप्लांटेशन पॉलिसी के तहत विकास कार्य में बाधा बन रहे 80 फीसदी पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जाएगा; उन्हें काटा नहीं जा सकेगा। जिस भी कम्पनी / एजेंसी को ट्रांसप्लांटेशन का काम दिया जाएगा, उसे ये सुनिश्चित करना होगा कि उसके द्वारा ट्रांसप्लांट किये जाने वाले 80 फीसदी पेड़ ज़िन्दा रहने चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जिस कम्पनी / एजेंसी को ठेका दिया जाएगा, उसके भुगतान से नुकसान की राशि काट ली जाएगी, 80 फीसदी से अधिक पेड़ों के जीवित रहने पर ही उसे भुगतान किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार की कोशिश है कि एक पेड़ का भी नुकसान न हो, फिर भी कहीं-कहीं पेड़ काटे जाते हैं। अब इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अभी तक नियम था कि एक पेड़ काटने के बदले में 10 पौधे रोपे जाएँ। लेकिन पौधे कई साल में पेड़ बन पाते हैं, इसलिए पेड़ों को भी न काटा जाए। कम-से-कम 80 फीसदी पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जाए और साथ में एक पेड़ ट्रांसप्लांट के बदले भी कम-से-कम 10 नये पौधे भी लगाये जाएँ। सब कुछ सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली सरकार डेडीकेटेड ट्री ट्रांसप्लांटेशन सेल और स्थानीय समिति बना रही है। स्थानीय समिति ट्रांसप्लांट हुए पेड़ों की जाँच और निगरानी करने के साथ सही ट्रांसप्लांटेशन होने पर प्रमाण पत्र देगी। इसके अलावा जिस एजेंसी को पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन का काम दिया जाएगा, उसका ट्रैक रिकॉर्ड चेक किया जाएगा कि उसने अब तक जो पेड़ ट्रांसप्लांट किये हैं, उनमें 80 फीसदी से अधिक पेड़ जीवित रहे या नहीं।

हाल ही में दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) में पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया है। ट्रांसप्लांटेशन का काम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की निगरानी में अक्टूबर में शुरू हुआ था। डीटीयू में नयी इमारत का निर्माण होना है। यहाँ से ट्रांसप्लांट किये जाने वाले कुल 111 पेड़ों में से सर्वाधिक 46 कदंब के, 15 जामुन के, 14 पापड़ी के, 10 पेड़ कचनार के, 12 पेड़ नीम के, पाँच कनेर के, दो अलस्टोनिया के और एक-एक शीशम, अमलताश, मचकन तथा सर्फ के पेड़ हैं। इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने में 7,59,700 रुपये की लागत आयेगी। यानी एक पेड़ पर औसत

6,844 रुपये खर्च हो रहे हैं। हालाँकि ट्रांसप्लांटेशन की यह लागत भी अलग-अलग है, जैसे 30 सेंटीमीटर तक के परिधि वाले एक पेड़ पर 2800 रुपये, 31 से 50 सेंटीमीटर तक परिधि वाले एक पेड़ पर 5,000 रुपये, 51 से 125 सेंटीमीटर वाले पेड़ पर 7,100 रुपये और 126 से 200 सेंटीमीटर तक वाले पेड़ पर 9,200 रुपये की लागत आ रही है। सभी भारी पेड़ों की ट्रांसप्लांटेशन से पहले छंटाई करनी होती है। उसके बाद तने के आधार के पास ज़मीन में पर्याप्त परिधि व गहराई में मशीन से खुदाई की जाती है, फिर जड़ों की मिट्टी को सँभालकर जेसीबी हाईड्रा क्रेनों व ट्रकों की मदद से उन्हें दूसरे स्थान पर लगाने के लिए ले जाया जाता है। जहाँ पेड़ को लगाया जाता है, वहाँ पहले से ही उसी आकार का गड्ढा खोदकर रखा जाता है।

ट्रांसप्लांटेशन पर विवाद भी

इधर दिल्ली के डीटीयू में पेड़ों का ट्रांसप्लांटेशन पर विवाद छिड़ गया है। ट्री एक्सपर्ट और लेखक प्रदीप कृषन ने दिल्ली सरकार के इस काम को गलत मौसम में ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया बताया है। उन्होंने कहा है कि नीम, अमलतास और जामुन जैसे पेड़ों का ट्रांसप्लांटेशन जनवरी के करीब होना चाहिए था, यह मौसम उनके ट्रांसप्लांट के अनुकूल नहीं है। इसके लिए उन्होंने डीएमआरसी द्वारा असोला में ट्रांसप्लांट किये गये पेड़ों का उदाहरण दिया, उन्होंने कहा कि वो पेड़ जीवित नहीं रह पाये। उन्होंने यह भी कहा कि प्रगति मैदान में भी 1713 पेड़ों का ट्रांसप्लांट किया गया था, जिनमें केवल 36 पेड़ ही जीवित रह सकने की स्थिति में हैं। कृषन ने इस प्रक्रिया को काफी महँगा और कम फायदे वाला बताया है। इस काम के ठेकेदार अशोक कुमार का दावा है कि उनके द्वारा पहले किया गया ट्रांसप्लांटेशन काफी सफल रहा है। उन्होंने कहा कि रानी बाग में एक अस्पताल के निर्माण के दौरान पीडब्ल्यूडी के साथ मिलकर 30 पेड़ ट्रांसप्लांट किये थे। इसके अलावा वल्लभगढ़ में 125 पेड़ और एनडीएमसी के 17 पेड़ ट्रांसप्लांट किये गये, जिनमें 90 फीसदी से अधिक जीवित रहे।

देश में अब तक कहाँ-कहाँ ट्रांसप्लांट हुए हैं पेड़

ऐसा नहीं है कि दिल्ली पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने वाला पहला राज्य है, इससे पहले दूसरे राज्यों में भी पेड़ ट्रांसप्लांट किये जा चुके हैं। हालाँकि दिल्ली में जो विधेयक पास हुआ है, यह देश में पहली बार हुआ है। वैसे तो दिल्ली में ही इससे पहले कई जगह पेड़ ट्रांसप्लांट किये जा चुके हैं, लेकिन इसके अलावा हरियाणा के वल्लभगढ़, इंदौर (मध्य प्रदेश),  गुजरात आदि में पेड़ ट्रांसप्लांट किये जा चुके हैं। वैसे भारत में पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन की शुरुआत 2016 में ही हो चुकी थी। भारत में इस तकनीक को आईआईटी ने अंजाम दिया था।

दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में है पेड़ों की कमी

पर्यावरण और इंसानों को पेड़ों की आवश्यकता के आधार पर देखें तो एक व्यक्ति पर कम-से-कम 64 पेड़ होने चाहिए; जबकि देखा गया है कि कहीं-कहीं 64 परिवारों पर भी एक पेड़ नहीं है। दिल्ली के अलावा भारत के कई शहरों में कई कॉलोनियाँ ऐसी हैं, जिनमें पेड़ों का बेहद अभाव है। वहीं भारतीय गाँवों में फिर भी पेड़ हैं। एक सर्वे के मुताबिक, करीब तीन दशक पहले भारत में अब से दोगुने से ज़्यादा पेड़ थे। देश में पेड़ों की इतनी तेज़ी से कटाई चिन्तित करती है। सन् 2018 में जारी नेचर जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में एक व्यक्ति के लिए ओसतन करीब 422 पेड़ मौज़ूद हैं; लेकिन भारत में यह संख्या बहुत कम, सिर्फ 35 है। जबकि रूस में सबसे ज़्यादा एक व्यक्ति पर करीब 641 पेड़ मौज़ूद हैं।

रोकना होगा पेड़ों का अवैध कटान

भारत में आज भी जंगलों का अवैध कटान जारी है। कई जगह तो पेड़ों के कटान को लीगल करार दिलवाकर वन विभाग और प्रशासन आदि की सहमति से काटा जाता है। इसी तरह अवैध कटान भी वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की जानकारी में ही होते हैं और यह सब चंद पैसों के लालच में चंद लकड़ी माफिया से मिलीभगत करके किया-कराया जाता है। हर राज्य में दिल्ली की तरह पेड़ न काटने पर कानून बनना चाहिए, ताकि हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सके।

लोगों को पेड़ लगाने के लिए किया जाए प्रोत्साहित

भारत के गाँवों में अधिकतर घरों के आँगन में किसी-न-किसी चीज़ का पेड़ अब भी मिल जाता है। हालाँकि शहरों में भी पुराने घरों में या किसी-किसी बड़े घर में पेड़ मिल जाते हैं। यह बहुत अच्छी बात है। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को चाहिए कि वे लोगों को अपने-अपने घरों में या घरों के आसपास पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करें। जिन घरों में पेड़ लगाने की जगह न हो, उन घरों में अधिक-से-अधिक फुलवारी या छोटे कद के वो पेड़ लगाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो गमलों में लग सकते हों।

दिल्ली व अन्य शहरों में लगभग सभी सडक़ों के दोनों किनारों पर अतिक्रमण रहता है। ऐसी सभी सडक़ों पर से अतिक्रमण हटवाकर वहाँ दोनों तरफ पोधरोपण किया जाना चाहिए, ताकि भारतीय शहर हरे-भरे हो सकें। हमारा पर्यावरण जितना शुद्ध होगा, हम उतने ही स्वस्थ होंगे। आज जितना पैसा हर व्यक्ति अपनी बीमारी में लगाता है, अगर उसका 15 फीसदी भी पेड़ लगाने में खर्च कर दे, तो उसके बीमार होने की सम्भावना कम हो जाए।