दिग्गी राजा के मुकाबले साध्वी

साध्वी प्रजा ठाकुर भाजपा की उम्मीदवार हैं भोपाल से। उनके मुकाबल में हैं कांगे्रस के दिग्विजय सिंह। वे मध्यप्रदेश के बहुुत सुलझे हुए राजनेता हैं। वे काफी पढ़े लिखे हैं और हिंदू धर्म के बारीक अध्येता रहे हैं। उन्होंने राज्य में दो बार मुख्यमंत्री पद संभाला। उनके पिता होल्लकर स्टेट में राघोगढ़ के राजा थे। इसलिए राज्य की जनता उन्हें दिग्गी राजा भी कहती है। उनके मुकाबले में भाजपा ने अपने उम्मीदवार के तौर पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उतारा है। उन पर आतंकवादी होने का आरोप रहा है। अभी भी वे ज़मानत पर हैं। प्रज्ञा ठाकुर को अपने भाषणों में आग उगलने पर जिला चुनाव अधिकारी दो बार नोटिस दे चुके हैं। उन्हें पहली नोटिस तब मिली जब उन्होंने 26/11 की आतंकी घटना से अपनी जान पर खेलने वाले हेमंत करकरे के बारे में कहा था कि मेरे ‘श्राप’ से उनकी मौत हुई। दूसरी बार उन्होंने एक टीवी चैनेल से कहा कि मुझे गर्व है कि मैं (अयोध्या में) ढांचे पर चढ़ी और उसे गिराया। मुझे इसका गर्व है। इस पर एफआईआर भी है और जिला चुनाव अधिकारी सुधम खाडे ने नोटिस भी दी। उन्होंने भु-आचारसंहिता के चौथे अध्याय के तहत इस ध्यान पर उन्हें दोषी भी माना। विवादित ढांचे पर अपनी बात पर साध्वी का कहना, मैंने तो अपने राम और धर्म की बात की। मैं नोटिस  का जवाब दूंगी।

आतंकवादी होने के आरोप में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मध्यप्रदेश के भोपाल से भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार हैं। आतंकवाद से देश को बचाने की संकल्प करने वाली भाजपा के इस कदम से पूरे देश में तगड़ा विवाद छिड़ा है। भोपाल में अपने पहले भाषण प्रज्ञा ने यह कहा उनके श्राप के कारण मुंबई के पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे मारे गए। साध्वी प्रज्ञा के इस कथन से न केवल पूरे देश में पुलिस के बड़े अधिकारी और कर्मचारी आहत हुए बल्कि देशवासी भी। हेमन्त करकरे 24/11 के मुंबई कांड में आतंकवादी हमले का मुकाबला करते मारे गए थे।

हालांकि भाजपा की ओर से राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने साध्वी प्रज्ञा के विचारों से भाजपा को अलग कर लिया। लेकिन देश के लिए सोचने और करने वालों को भाजपा की कथनी करनी से अब खासा आघात हुआ है। देश के मध्यम वर्ग में भाजपा के राष्ट्रवादी सोच का जो प्रभाव था वह प्रज्ञा को भोपाल से संसदीय चुनाव लड़ाने की घोषणा के साथ ही कमज़ोर पड़ गया। भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं में खासी निराशा है।

मध्यप्रदेश में दो बार कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के मुकाबले में भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को उतार कर समुदायों के धु्रवीकरण की अपनी पुरानी रणनीति लागू की थी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह परंपरावादी लेकिन सहज-सरल हिंदू हैं और उन्होंने पत्नी अमृता सिंह के साथ पिछले साल नर्मदा नदी की 1100 किलोमीटर पैदल परिक्रमा की थी। इस दौरान उन्होंने नदी किनारे के गांवों की समस्याओं को खासा जाना समझा था। भोपाल शहर की संसदीय सीट अर्से से भाजपा की ही ‘सेफ सीट’ कही जाती है। इसलिए भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को यहां से मौका दिया। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष ने कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह से मुकाबले प्रज्ञा ठाकुर को ही उम्मीदवर बनाने पर ज़ोर लगाया था। जिस पर भाजपा हाईकमान ने अपनी मुहर लगाई। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चयन को ठीक कहते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने लोकसभा आम चुनाव 2019 में विकास की वजाए मुख्य मुद्दा अब हिंदुत्व रखा है। देश में आम चुनाव के चार चरण हो चुके हैं। इनमें देशभक्ति, आतंक से मुकाबला और अब हिंदुत्व मुद्दों को प्राथमिकता दे रही है। भाजपा खास कर गलियों-घर-घर वोटों के लिए प्रचार और भाषण में।

मतदाता अब यह पूछते हैं कि सबका साथ-सबका विकास मंदिर, स्मार्ट सिटी, देश के  बेरोज़गारों को रोज़गार भ्रष्टाचार खत्म करना आदि मुद्दों का क्या हुआ जिन्हें हल करने के लिए केंद्र में भाजपा की सरकार सत्ता में तीन चौथाई बहुमत से राज करती रही। लेकिन इस चुनाव में इसका बदलता फोकस मतदाताओं को अचंभित कर रहा है।

भोपाल में भाजपा की ओर से संसदीय चुनाव में नामजद प्रज्ञा पर मालेगांव (महाराष्ट्र) में धमाके में भूमिका निभाने का आरोप है। इस धमाके में छह लोग मारे गए और एक सौ एक से भी ज्य़ादा लोग घायल हुए। प्रज्ञा फिलहाल जमानत (बेल पर) पर जेल से बाहर हैं। उनके ऊपर अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट के तहत मामला चल रहा है। यानी उन पर आरोप हैं आतंकवादी कानून के तहत गैरकानूनी काम करने का। उन पर हत्या से साजिश रचने तक के आरोप हैं। अब जनता पर है कि वह चुनती है आतंकी को या अनुभवी राजनेता को।