दिखावे का प्यार, हवस और धोखा

साइबर ब्लेकमेलिंग, शारीरिक सम्बन्धों से जुड़ी वसूली और प्रतिशोधात्मक नग्नता की कोई भी घटना प्रख्यात नारीवादी माया एंजेलों के सुर्ख अल्फाज़ को ताज़ा कर देती है कि हर बार जब स्त्रियों की अस्मिता पर हमला होने के समाचार सुिर्खयाँ बनकर चमकने लगते हैं, तुम मुझे अपनी चाल से अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ इतिहास में शामिल कर सकते हो।

मुझे गन्दगी में धकेल सकते हो, फिर भी मैं धूल की तरह उड़ती हुई आऊँगी। प्रख्यात साहित्यकार शरद सिंह कहने से परहेज़ नहीं करती कि दुर्भाग्य से हिंसा और प्रतिशोध का शिकार स्त्रियाँ ही बनती है। ऐसी रक्तरंजित लकीरें पुरुष सदियों से खींचते चले आ रहे हैं। लेकिन कई घटनाएँ ऐसी भी हैं, जो इन नाज़ुक मुद्दों से भिड़ती हुई इस मिथक को खंड-खंड करती नज़र आती हैं। ऐसी घटनाओं की चपेट में आकर खबरों में खुलासा करने वाले भी किस तरह तिलमिला उठते हैं? राजस्थान के एक प्रतिष्ठित अखबार के नामचीन खबरनवीस इसकी ताज़ा मिसाल है, जो महिला मित्र से पींगें बढ़ाने की लालसा में अपना सब कुछ गँवा बैठे। उसकी सुख यात्रा की कामना का िकस्सा रक्तचाप बढ़ा सकता है। इस कहानी की परतें खोली जाएँ तो पता चलता है कि जटिलता, कुटिलता, प्रेमलता, प्रतिशोध और समझौते की चाशनी में दैहिक स्पर्शों के अनेक रहस्य खुलते चले जाएँगे।

खबरनवीस और उसकी महिला मित्र के जिस्मानी रिश्तों की शुरुआत 2001 में हुई। लेकिन प्रतिशोध का अध्याय 19 साल बाद लिखा गया। आखिर क्यों महिला मित्र दु:ख-दर्द, अन्याय और शोषण को 19 साल तक बर्दाश्त करती रही? आखिर क्या बेबसी थी कि वह खबरनवीस के मनोरंजन का साधन बनी रही?

दर्ज प्राथमिकी में शोषित के िकरदार में युवती का बहुआयामी चरित्र नज़र आता  है कि उसने ज़बरदस्ती उसे पलंग पर डाल दिया और मुँह में कपड़ा ठूँसकर दुष्कर्म कर डाला। वर्ष 2001 में दुष्कर्म की यह शुरुआत थी। उसी दौरान नग्नावस्था में मोबाइल से उसके फोटो भी खींच लिए गये। बताते चलें कि डिजिटल दुनिया के तौर-तरीके वर्ष 2002 में शुरू हुए थे। प्रतिशोध पोर्न का मामला पहली दफा वर्ष 2004 में डीपीएस के एसएमएस कांड में सामने आया था, तो फिर 2001 में डिजिटल फोटो भी कैसे खींचे गये? शोषिता की प्राथमिकी के मुताबिक, वह बड़े अखबार का बड़ा रिपोर्टर था। काफी रसूखदार और ऊँचे सम्पर्कों वाला था। उसने करियर बनाने में हर तरह के सहयोग की पेशकश भी की। उसने रिश्तों में बने रहने की धमकी देते हुए कहा कि तुम्हारे अश्लील वीडियो वायरल कर दूँगा। बहरहाल मामला करीबी रिश्तों का था; लिहाज़ा बिरादरी में भद्द उड़ी, तो आनन-फानन में समझौता हुआ; लेकिन जिस्म की उगाही की तर्ज पर लडक़ी ने लाखों का मकान कुबूला। आखिर क्यों इस सौदेबाज़ी में संस्कारजनित पश्चाताप ने सिर नहीं उठाया? खबरनवीस ने प्रतिष्ठा गँवायी, सम्पत्ति गँवायी और प्रतिष्ठित नौकरी भी गँवायी। कुल मिलाकर विवाहेत्तर यौन सुख की कामना का जिन्न खबरनवीस का अतीत, वर्तमान और भविष्य सब कुछ निगल गया।

समाजशास्त्री अर्जुन अहीरवाल कहते हैं- ‘यह घटना एक तरह से प्रतिशोध पोर्न से जुड़ी है। जब कोई व्यक्ति अपनी संगिनी को बदनाम करने के इरादे से अतरंग पलों को सार्वजनिक करने की धमकी देता है, तो यह प्रतिशोध ही होता है।’ अहीरवाल यह भी कहते हैं- ‘आखिर तो स्त्री मधुरकंठी शिकारी के प्रलोभन में फँसकर ही उसकी हबस का शिकार बनती है। हालिया एक घटना अजमेर की कॉलेज छात्रा से जुड़ी है। आठ माह की गर्भवती इस छात्रा ने एक युवक पर शादी का झाँसा देकर दुष्कर्म का आरोप लगाया। पीडि़ता का कहना है कि दो साल पहले स्नेपचेट पर युवक से मुलाकात हुई थी। लम्बे समय तक दोनों का सोशल मीडिया पर बातचीत का सिलसिला बना रहा। बाद में एक शादी समारोह में दोनों का मिलाप हो गया। युवक ने प्रेमजाल में फाँसकर शादी का झाँसा दिया।

युवक के आग्रह पर होटल प्रवास की संगिनी बनने को तैयार हो गयी, जहाँ उसे कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाकर देह शोषण के साथ अंतरंग पलों के फोटो खींच लिये। जब गर्भ ठहरा, तो युवती ने युवक पर शादी का दबाव बनाया। लेकिन शादी की बजाय युवक ने अंतरंग पलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे डाली। युवक पुलिस की गिरफ्त में है। लेखक अरविंद जैन कहते हैं- ‘शादी का झाँसा देकर किसी लडक़ी के साथ रिश्ते बनाना और बाद में शादी के लिए मना करना दुष्कर्म के दायरे में आता है। वह भी तब, जब लडक़े का शुरू से ही लडक़ी से शादी करने का इरादा न हो। इसे शादी की आड़ में यौन शोषण भी कहा जा सकता है। अधिकतर लडक़े शादी का झाँसा देकर रिश्ते बनाते हैं और तब तक बनाये रखते हैं, जब तक लडक़ी गर्भवती नहीं हो जाती। कुछ समय बाद गर्भपात कराना मुश्किल हो जाता है। नतीजतन मामले का विस्फोट हो जाता है। भारतीय अदालतों ने कई बार इस मुद्दे पर सवाल उठाये है कि किसी लडक़ी से शादी का झूठा वादा करके, शारीरिक रिश्ते बनाना, सहमति है या नहीं? यदि यह दुष्कर्म है, तो यह धोखेबाज़ी है या नहीं?’ एक प्रकरण में कलकत्ता उच्च न्यायालय का मानना था कि अगर कोई बालिग लडक़ी शादी के वादे के आधार पर शारीरिक रिश्तों पर रज़ामंद हो जाती है और तब तक लिप्त रहती है, जब तक गर्भवती नहीं हो जाती, तो यह उसकी ओर से स्वच्छंद सम्बन्धों की श्रेणी में आयेगा। ऐसे में तथ्यों को गलत इरादे से प्रेरित नहीं किया जा सकता। ऐसे मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा-90 के तहत अदालत द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता।

दिखावे के प्यार में हबस हावी होती है, जिसमें अंतत: किसी एक (लडक़ी या लडक़े) को धोखा ही मिलता है। ऐसी कहानियाँ महामारी की तरह हमारे समाज की रग-रग में पैठ गयी है। अधिकतर कहानियों में नायिका (लडक़ी) संताप और स्यापा करती नज़र आती है कि शादी का झाँसा देकर उसका यौन शोषण किया गया और अब प्रतिशोध पर उतारू है। इसे फितरत की संज्ञा देना ज़्यादा बेहतर होगा। क्योंकि शारीरिक सम्बन्धों के बाद जब संस्कार जनित पश्चाताप सिर उठाता है, तभी यह भाव जागता है।

समाजशास्त्री धीरेन्द्र अटवाल कहते हैं- ‘अव्वल तो स्त्री क्योंकर इतनी आसानी से बहकावे में आ जाती है कि दो-चार मुलाकातों के बाद ही साहचर्य के लिए देह सौंप देती है। फिर कैसे अंतरंग पलों की रिकार्डिंग पर सहमति भी जता दी जाए?’ धीरेन्द्र कहते हैं कि अपने लिए प्रतिशोध की खाई तो शोषिता खुद ही खोद लेती है। ऐसे मामले में मुम्बई हाई कोर्ट का 21 जनवरी, 2017 का फैसला बहुत कुछ कह देता है। विद्वान न्यायाधीश का कहना था कि जब लडक़ी वयस्क और पढ़ी-लिखी हो, तो उसे शादी से पहले बनाये जाने वाले यौन सम्बन्धों का अंजाम पता होना चाहिए। दुष्कर्म से जुड़े मामलों को लेकर अहम फैसला देते हुए उन्होंने कहा कि शादी करने का वादा दुष्कर्म के हर मामले में प्रलोभन की तरह नहीं देखा जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट के 9 जुलाई, 2019 के फैसले में भी विद्वान न्यायाधीश ने यही बात दोहरायी है कि अगर कोई लडक़ा शादी का झाँसा देकर किसी लडक़ी से सम्बन्ध बनाता है, तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जाएगा। क्योंकि इसमें लडक़ी की सहमति भी शामिल होती है।

जस्टिस मृदुला भटकर ने कहा कि एक पढ़ी-लिखी लडक़ी जो अपनी मर्ज़ी से शादी से पहले लडक़े से सम्बन्ध बनाती है, उसे अपने फैसले की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। जस्टिस भटकर ने कहा कि अगर कोई धोखा देकर लडक़ी की सहमति हासिल कर,े तो वहाँ प्रलोभन की बात समझ में आती है। प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए कुछ सुबूत तो होने चाहिए कि लडक़ी को इस हद तक झाँसा दिया गया कि वह शारीरिक सम्बन्ध बनाने को राज़ी हो गयी। इस तरह के मामलों में शादी का वादा प्रलोभन नहीं माना जा सकता। सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि हालाँकि समाज बदल रहा है फिर भी उस पर नैतिकता हावी है। उन्होंने कहा कि कई पीढिय़ों से यह नैतिक तौर पर माना जाता है कि शादी के समय तक वरजिन रहने की ज़िम्मेदारी लडक़ी की है।

हालाँकि आजकल की युवा पीढ़ी के पास सेक्स से जुड़ी सारी जानकारी होती है और युवा कई तरह के लोगों से मिलते-जुलते हैं। समाज उदार होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जहाँ शादी से पहले सेक्स का सवाल आता है; समाज नैतिकता की बात करता नज़र आता है। ऐसे हालात में एक लडक़ी, जो लडक़े से प्यार करती है; यह भूल जाती है कि सम्बन्ध बनाने में लडक़े साथ उसकी मर्ज़ी भी शामिल थी। वह बाद में अपने फैसले की ज़िम्मेदारी लेने से बचती है। कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि सम्बन्ध खत्म होने के बाद रेप के आरोप लगाने का चलन आजकल काफी बढ़ रहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में अदालत को एक निष्पक्ष नज़रिये से दोनों पक्षों की बात सुननी पड़ती है; जिसमें आरोपी के अधिकार भी शामिल हैं और पीडि़त का दर्द भी।