दवाएँ बनाने में अग्रणी भारत स्वास्थ्य सेवाओं में पीछे क्यों?

हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय अनुसंधान विषय पर आयोजित एक बेबिनार में कहा कि उनकी सरकार लोगों को समय पर स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेज़ी ला रही है। कोरोना वैश्विक महामारी के दौर में दवाओं, टीकों और चिकित्सकीय उपकरणों जैसे जीवन रक्षकों का व्यापक इस्तेमाल किया गया। उन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्र में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए उनकी सरकार द्वारा उठाये गये विभिन्न उपायों को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे उद्यमियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत को किसी भी प्रोद्यागिकी का आयात न करना पड़े। भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य सुविधाओं को सस्ता और सुलभ बनाने में तकनीक की भूमिका लगातार बढ़ रही है। लिहाज़ा तकनीक के अधिक से अधिक इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है। डिजिटल हेल्थ आईडी के माध्यम से हम लोगों को समय पर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ प्रदान करना चाहते हैं।

दरअसल भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनिया में अपनी छवि को मज़बूत करना चाहता है, और इस संदर्भ में वह कोई भी मौक़ा हाथ से नहीं गँवाना चहाता। ग़ौरतलब है कि इन दिनों भारत जी-20 की मेज़बानी कर रहा है। और जी-20 की इस मेज़बानी में भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र में तीन प्राथमिकताओं पर ध्यान क्रेंद्रित करने का एंजेडा बनाया है। इनमें आपातकालीन स्वास्थ्य, दवा क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करना और डिजिटल स्वास्थ्य तथा नवाचार शामिल हैं। भारत का एक स्वस्थ पृथ्वी का दृष्टिकोण वसुधैव कुटुम्बकम (विश्व एक परिवार है) के उस दर्शन से निकलता है, जिसका भावार्थ है- एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य। स्वास्थ्य के संदर्भ में यह सिंद्वात जी-20 देशों के सदस्यों का स्थानीय स्वास्थ्य संकटों के बारे में विचार करने और सार्वभौमिक समाधानों को निकालने बाबत सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

भारत ऐसी वैश्विक संरचना वाले नज़रिये को सामने रख रहा है, जिसमें अमीर व $गरीब दोनों देशों को एक साथ वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं का फ़ायदा मिले और वे बीमारियों व महामारियों से पैदा आपात स्थितियों का सामना कर सकें। अब जब भारत जी-20,2023 की अध्यक्षता कर रहा है, तो सबसे अहम है कि भविष्य में सभी देश प्रकोपों, महामारियों सरीखी चुनौतियों का मिलकर सामना करें। इसी के मद्देनज़र पहली प्राथमिकता आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत रोकथाम से जुड़े उपाय, तैयारियाँ, त्वरित प्रतिक्रिया आदि शमिल है। यह वैश्विक स्वास्थ्य संरचना पर ज़ोर देती है। वैश्विक स्वास्थ्य संरचना देशों को अगले स्वास्थ्य आपात स्थिति का सामना करने और मज़बूत उपचारात्मक व्यवस्थाओं के समर्थ होने की परिकल्पना करती है।

आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा को वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के संदर्भ में समझा जा सकता है। कोरोना महामारी में विश्व का कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र ढह गया और निम्न व मध्यम आय वाले देशों में असमानताओं व विषमताओं को और तेज़ कर दिया। इसने विश्व को यह महसूस करा दिया कि एक अकेले देश में स्वास्थ्य आपातकाल विश्व भर के स्वास्थ्य तंत्र को प्रभावित कर सकता है। महामारी के दौरान जीवन रक्षक दवाइयों, वैक्सीन, चिकित्सा उपकरणों पर परस्पर निर्भरता साफ़तौर पर बनी व दिखायी दी।

भारत की वर्तमान सरकार का मानना है कि कोरोना महामारी के कठिन दौर में सरकार ने उसका मज़बूती से सामना किया और विश्व में एक मिसाल भी क़ायम की। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस संदर्भ में भारत सरकार की सराहना की है। भारत का ज़ोर बड़े प्रकोपों को रोकने, उनकी तैयारियों व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए राष्ट्रीय क्षमताओं को मज़बूत करना है। इसी पहली प्राथमिकता में एंटीबायोटिक दवाओं के ख़िलाफ़ पैदा होती प्रतिरोधक क्षमता के मामले को भी कार्यसूची में रखा गया है।

ग़ौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों से एंटीबायोटिक रेजि़स्टेंस (एएमआर) एक चिन्ता का विषय बना हुआ है। बीते कई वर्षों से विश्वभर में एंटीबायोटिक दवाइयों के असर में गिरावट देखी गयी है। अनुमान है कि विश्व भर में सालाना 12.7 लाख लोग इसी एंटीबायोटिक रेजिस्टस यानी एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण मर जाते हैं। इस समय विश्व के सामने एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस एक बहुत बड़ी चुनौती है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की हाल में आयी एक रिपोर्ट में ख़ुलासा किया गया है कि यह प्रतिरोध महामारी के दौरान बढ़ा है। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के मुद्दे को जी-20 के पिछले सम्मेलनों में भी प्रमुखता से उठाया गया और उम्मीद यही की जा रही है कि भारत इस बार अध्यक्ष होने के नाते इससे निपटने में ठोस नेतृत्वकारी भूमिका निभाएगा। दूसरी प्राथमिकता दवा क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करना है। इससे कम क़ीमत पर दवाओं की उपलबधता को बढ़ाने और उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने का रास्ता साफ़ होगा। ग़ौरतलब है कि दुनिया में भारत के दवा उद्योग की अहम जगह है। और देश इस क्षेत्र में अपनी क्षमताओं व संभावनाओं को अच्छी तरह पहचानता है।

भारत का दवा उद्योग का सालाना कारोबार ढाई से तीन लाख करोड़ का है। दुनिया के 100 से अधिक देशों में भारत से दवाइयाँ निर्यात होती हैं। अमेरिका में सामान्य दवाइयों की माँग का 40 प्रतिशत और ब्रिटेन की कुल दवाइयों की 25 प्रतिशत की आपूर्ति भारत में बनी दवाइयों से ही होती है। वित्तीय वर्ष 2022 में 24.47 अरब डॉलर के फार्मा उत्पाद 200 देशों को सप्लाई किये गये। कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान भी भारत ने कोरोना की रोकथाम के लिए स्वदेशी प्रभावशाली टीका ईजाद किया और अन्य ज़रूरतमंद देशों की भी कई तरह से मदद की। कोरोना के मुश्किल चरणों के दौरान भारत ने सार्वभौमिक वैक्सीनेशन कार्यक्रमों के नेताओं में से एक नेता के रुप में अपनी स्थिति को तराशा है।

इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउडेंशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय दवा उद्योग मात्रा के आधार पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। भारतीय दवा उद्योग के विस्तार के लिए सरकार की नीति में अनुसंधान और विकास पर का$फी ज़ोर दिया गया है। दवा उद्योग में अपनी क्षमताओं के आकलन के आधार पर भारत ने स्वास्थ्य के एजेंडे में फार्मास्युटिकल सेक्टर में उद्योग को मज़बूत करने सम्बन्धित प्राथमिकता को दूसरे स्थान पर रखा है। सहयोग को मज़बूत करने के पीछे एक मंशा बढिय़ा वैक्सीन, चिकित्सा विधान और नैदानिक तक पहुँच के लिए न्यायसंगत तंत्र को बेहतर बनाना है।

भारत की कोशिश क्लिनीकल परीक्षण और अनुसंधान व विकास के लिए अनुकूल ढाँचा बनाना है और चिकितसा को क़िफ़ायती बनाना है; ख़ासतौर पर निम्न व मध्यम आय वाले देशों के लिए। इटली (जी -20, 2021) और इंडोनेशिया ने (जी-20, 2022) अपनी-अपनी अध्यक्षता में क्षेत्रीय उत्पादन व शोध हब पर ध्यान क्रेंद्रित किया, भारत ने जी-20 अध्यक्षता में उपलब्धता, पहुँच बनाने और ख़रीदने के सामथ्र्य सम्बन्धित फ़ासलों को संबोधित करने वाला प्रस्ताव दिया है। तीसरी प्राथमिकता के तहत डिजिटल स्वास्थ्य के लिए मौज़ूदा वैश्विक प्रयासों को एक संस्थागत ढाँचे में परिवर्तित करने के मकसद से भारत डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और समाधान पर ध्यान क्रेंद्रित करेगा। इस प्राथमिकता के तहत भारत की योजना वैश्विक डिजिटल जन स्वास्थ्य सामग्री-टेली मेडिसन, टेली रेडियोलॉजी, और यहाँ तक कि ई-आईसीयू को बढ़ावा देने की है।

वैश्विक स्वास्थ्य ढाँचे को बेहतर बनाने के लिए भारत में जी-20 स्वास्थ्य कार्य समूह की चार बैठकों में से पहली बैठक जनवरी में केरल में आयोजित की गयी थी। इस बैठक के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण प्रवार ने कहा कि जी-20 की भारत की अध्यक्षता के साथ, हमारे पास इस बात का अवसर है कि हम देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग बनाये, ज्ञान साझा करने की सहायता से प्रभावी नीतियों का निर्माण करें, जो दुनिया भर के नागरिकों को सुलभ, क़िफ़ायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में सहायक हो।

दूसरी बैठक इसी 17-19 मार्च को गोवा में होगी। भारत जी-20, 2023 की अध्यक्षता कर रहा है और इस मौक़ को विश्वस्तर पर एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश भी कर रहा है। लेकिन जहाँ तक देश के भीतर स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभ उपलब्धता व गुणवत्तापूर्ण सेवाओं का सवाल आता है, तो कई सवाल खड़े हो जाते हैं। आज भी कई दुर्गम इलाक़ों में रहने वाले लोगों को आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं।

प्रधानमंत्री आयुषकार्ड योजना के तहत भी कई गढ़बढियाँ सामने आती रहती हैं। जहाँ तक केंद्रीय स्वास्थ्य बजट का सवाल है, तो वह भी आबादी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने से बहुत दूर है। यह बात दीगर है कि प्रधानमंत्री का ज़ोर देश के लोगों को यह बताने पर है कि अब 5जी तकनीक की वजह से स्वास्थ्य के सेक्टर में स्र्टाटअप के लिए भी बहुत सम्भावनाएँ बन रही हैं। ड्रोन तकनीक की वजह से दवाओं की डिलीवरी और टेस्टिंग से जुड़े लॉजिस्टक्स में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आते दिख रहा है।