दलीलें अपनी-अपनी

पक्ष

पहले से चल रही प्रक्रिया का ही कर रहे हैं पालन : शाह

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि डिटेंशन सेंटर्स लगातार चलने वाला कार्यक्रम है। अगर कोई विदेशी पकड़ा जाता है, तो उसे पहले डिटेंशन सेंटर्स में रखा जाता है; क्योंकि उसे जेल में नहीं रखा जा सकता। ये लम्बे समय से चली आ रही प्रक्रिया है, जिसका हम पालन कर रहे हैं।

शाह ने कहा कि सिर्फ असम में एक डिटेंशन सेंटर है, जो आज नहीं बना है, बल्कि बहुत पहले से बना हुआ है। उनके मुताबिक, कर्नाटक के डिटेंशन सेंटर की उन्हें जानकारी नहीं और डिटेंशन सेंटर का एनआरसी और सीएए से कोई लेना-देना नहीं है। शाह ने कहा कि कई साल से गैर-भारतीय नागरिकों के लिए डिटेंशन सेंटर्स जैसी व्यवस्था भारत में है और इसे एनआरसी के लिए नहीं बनाया गया है। गृह मंत्री का कहना है कि डिटेंशन सेंटर देश में हैं, तो इसकी एक प्रक्रिया है और ये अवैध पकड़े गये लोगों के लिए है। उनके मुताबिक, असम में जिन लोगों को नागरिकता से बाहर रखा गया है, उन्हें भी डिटेंशन सेंटर में नहीं रखा गया है। वह अपने घर में ही रह रहे हैं। देश में जो डिटेंशन सेंटर हैं, उनमें ऐसे लोगों को रखा जा रहा है, जो अवैध रूप से पकड़े गये हैं। ऐसा तो अमेरिका में भी होता है।

शाह के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति बिना पासपोर्ट के पकड़ा जाता है, तो उसे कहीं तो रखना पड़ेगा। ये इसी की व्यवस्था के तहत हैं। अभी जो डिटेंशन सेंटर चर्चा में आये हैं, उनमें रिफ्यूजी नहीं, बल्कि अवैध पकड़े गये लोगों को रखा जाता है। हमने असम में किसी को नहीं रखा, ये सिर्फ अफवाहें हैं। गृह मंत्री के मुताबिक, असम की एनआरसी में पहचाने लोगों को छ: महीने का वक्त दिया गया है कि वे विदेश पंचायत (फॉरेन ट्रिब्यूनल) के सामने पक्ष रखें। वहाँ 19  लाख लोग डिटेंशन सेंटर में नहीं गये, अपने घर में ही रह रहे हैं। अगर उनके पास पैसा नहीं है, तो उनके वकील का खर्च भी भारत सरकार उठाने को तैयार है।

विपक्ष

फॉरेनर्स एक्ट के तहत बने थे डिटेंशन सेंटर्स : चिदंबरम

देश में डिटेंशन सेंटर्स को लेकर चल रही चर्चा के बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि यूपीए सरकार और अब मोदी सरकार के समय डिटेंशन डिटेंशन सेंटर्स में अन्तर है। चिदंबरम के मुताबिक, कांग्रेस के समय जो डिटेंशन सेंटर्स बने वे फॉरेनर्स  एक्ट के तहत बनाये गये थे। लेकिन अब जो सेंटर्स बन रहे हैं, वे नागरिकता कानून के तहत या एनआरसी से सम्बन्धित हैं।

चिदंबरम ने कहा कि फॉरेनर्स  एक्ट में यह ज़रूरी होता है कि पकड़े गये विदेशी को कैम्प में रखा जाता है। उच्च न्यायालय ने असम में इसे स्थापित करने का निर्देश दिया था। इसके बाद ही केन्द्र (यूपीए) सरकार ने इसे लेकर फंड जारी किया थे।

यूपीए सरकार और मोदी सरकार के समय के डिटेंशन सेंटर्स को लेकर चिदंबरम का कहना है कि इनकी परिभाषा में ज़मीन आसमान का अन्तर है। उन्होंने कहा कि आाज का संदर्भ अलग है। आज न्यायालय के आदेश के तहत डिटेंशन सेंटर्स नहीं बन रहे।

अब डिटेंशन सेंटर्स एनआरसी के तहत कैम्प लगाये जा रहे हैं। हम 19 लाख लोगों की बात कर रहे हैं। साल 2012 में 100-150 लोगों के लिए एक शिविर लगाने का आदेश दिया गया था। यूपीए ने 19 लाख (असम का मामला) लोगों के लिए कैम्प बनाने की बात तो नहीं की थी। कोई कांग्रेस सरकार (राज्य) अलग से कैम्प नहीं बनवा रही; क्योंकि 100-150 या 200 लोगों के लिए जेल के हिस्से को ही कैम्प में बदलने की योजना थी।

वरिष्ठ नेता ने साफ किया कि हमारे डिटेंशन सेंटर्स या कैम्प का नागरिकता कानून या एनआरसी से कुछ लेना-देना नहीं था, जबकि अब है। यही हमारे और अब बन रहे डिटेंशन सेंटर्स में अन्तर है।