दमड़ी ना जाये, चाहे चमड़ी चली जाये

पहले खुद समझों फिर बाद में दूसरों को समझाओं तो बात बनती है।लेकिन कोरोना काल में खुद तो आदमी समझ नहीं रहे है। दूसरों को समझाने में लगे है। ऐसे में बात बनती कम है , बिगड़ती ज्यादा है। तहलका संवाददाता ने दिल्ली में लगे दो दिन के कर्फ्यू के दौरान आज दिल्ली के कई इलाकों में पड़ताल की तो बात ये निकल कर सामने आयी कि कोरोना काल को सियासतदाँन अपने तरीके परिभाषित करने में लगे है। सुबह से ही दिल्ली में चाय की दुकानों में पहले की तरह भीड़ देखी गयी है। इसी के साथ अन्य खाद्य पदार्थों की दुकानों में आधी दुकान की शटर खोले समानों की बिक्री हो रही है। कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है। कोरोना की चेन को तोड़ने के लिये दिल्ली सरकार ने भले ही सप्ताहांत दो दिन का कर्फ्यू लगाया हो। लेकिन धरातल पर कर्फ्यू जैसा कोई माहौल देखने को नहीं मिला है।इतना जरूर है कि लोग एक दूसरे से कोरोना से बचने की सलाह देते दिखे।बतातें चलें लोगों का कहना है कि कोरोना बीमारी लम्बी चलने वाली है। तो कब तक घरों में रहे । उनका कहना है जितना बन पड़ रहा है। उतना परहेज कर रहे है।

यानि की अब लोगों ने कोरोना बीमारी को हल्कें में ले रहे है। कोई अगर गंभीरता से कोरोना से बचने की जानकारी देता है। तो उसका मजाक भी उड़ाया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता और कोरोना काल में लोगों का जागरूक करने लेकर हर संभव मदद पहुंचाने वाले केन्द्रीय फिल्म बोर्ड के सदस्य राजकुमार सिंह ने बताया कि दिल्ली में अगर लोगों ने कोरोना गाइड लाईन का पालन नहीं किया तो, आने वाले दिनों में कोरोना का विस्तार होगा।जिससे कोरोना की रोकथाम मुश्किल होगी।

व्यापारी प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि लोगों ने ये मान लिया है कि दमड़ी ना जाये , चाहे चमड़ी चली जाये। यानि की व्यापारिक नुकसान ना हो, चाहे जान का खतरा आये जाये। तो ऐसे में कर्फ्यू का लगना, ना लगना बराबर है। लोगों का कहना है कि कोरोना को अगर सही मायने में रोकना है तो, कड़ाई से सरकार को पालन करना होगा। अन्य़था सब यूं ही दिखावा साबित होगा।